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भूमिका
१७ और यही प्रवचन का सार है । इसलिए द्वादशांगी में आचारांग का प्रथम स्थान है।'
इससे प्रतीत होता है कि नियुक्तिकार इस धारा के समर्थक रहे हैं कि रचना की दृष्टि से आचारांग का प्रथम स्थान है। किन्तु ग्यारह अङ्गों को पूर्वो से निषूढ माना जाए, उस स्थिति में नियुक्ति-सम्मत धारा की संगति नहीं बैठती। संभव है, नियुक्तिकार ने अङ्गों के नि!हण की प्रक्रिया का यह क्रम मान्य किया हो कि सर्व प्रथम आचारांग का नि!हण और स्थापन होता है तथा तत्पश्चात् सूत्रकृत आदि अङ्गों का । इस सम्भावना को स्वीकार कर लेने पर दोनों धाराओं की बाह्य दूरी रहने पर भी आंतरिक दूरी समाप्त हो जाती है। ६.श्रुतस्कंध
समवायांग में आचारांग के दो श्रुतस्कन्ध बतलाए गए हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि समवायांग में प्राप्त द्वादशांगी का विवरण भी आयार-चूला की रचना का उत्तरवर्ती है। प्रारम्भ में आचारांग के दो स्कन्ध नहीं थे। आचार्य भद्रबाहु ने आयारचूला की रचना की, उसके पश्चात् दो स्कन्धों की व्यवस्था की गई। मूलभूत प्रथम अंग का नाम आचारांग अथवा 'ब्रह्मचर्याध्ययन' है। समवायांग में इसके अध्ययनों को 'नव ब्रह्मचर्य' कहा गया है।' आचारांग नियुक्ति में इसे 'नव ब्रह्मचर्याध्ययनात्मक' कहा गया है।" द्वितीय श्रुतस्कन्ध के दो नाम हैं --आयारग्ग (आचाराग्र) और आयार-चूला (आचार-चूला) ।
नियुक्तिकार ने आचारांग के दस पर्यायवाची नाम बतलाए हैं१. आयार-यह आचरणीय का प्रतिपादक है, इसलिए आचार है। २. आचाल-यह निविड बंधन को आचालित करता है, इसलिए आचाल है। ३. आगाल - यह चेतना को सम धरातल में अवस्थित करता है, इसलिए आगाल है। ४. आगर-यह आत्मिक-शुद्धि के रत्नों का उत्पादक है, इसलिए आगर है। ५. आसास-यह संत्रस्त चेतना को आश्वासन देने में क्षम है, इसलिए आश्वास है। ६. आयरिस - इसमें 'इति-कर्त्तव्यता' देखी जा सकती है, इसलिए यह आदर्श है। ७. अंग-यह अन्तस्तल में स्थित अहिंसा आदि को व्यक्त करता है, इसलिए अङ्ग है। ८. आईण्ण-इसमें आचीर्ण-धर्म का भी प्रतिपादन है, इसलिए यह आचीर्ण है। ९. आजाइ --- इससे ज्ञान आदि आचारों की प्रसूति होती है, इसलिए आजाति है ।
१०. आमोक्ख-यह बंधन-मुक्ति का साधन है, इसलिए आमोक्ष है। ७. मुख्य-विभाग
आचारांग के नौ अध्ययन हैं । समवायांग' और आचारांग नियुक्ति में इन अध्ययनों के जो नाम प्राप्त होते हैं, उनमें थोडा भेद हैसमवायांग
आचारांग नियुक्ति सत्थपरिण्णा
सत्थपरिण्णा लोगविजय
लोगविजय सीओसणिज्ज
सोओसणिज्ज सम्मत्त
सम्मत्त आवंती
लोगसार
धुत
धुय
विमोहायण उवहाणसुय
महपरिणा १. आचारांग नियुक्ति, गाथा ९:
आयारो अंगाणं, पढम अंग दुवालसहंपि । इत्थ य मोक्खो वाओ, एस य सारो पवयणस्स ।। २. समवाओ, प्रकीर्णक समवाय, सूत्र ८९ : दो सुयक्खंधा । ३. वही, ९।३: णव बंभचेरा पण्णत्ता। ४. आचारांग नियुक्ति, गाया ११ णव बंभचेरमहओ।
महापरिण्णा विमोक्ख उवहाणसुय ५. आचारांग नियुक्ति, गाथा ७:
आयारो आचालो, आगालो आगरो य आसासो।
आयरिसो अंगति य, आईण्णाऽऽजाइ आमोक्खा। ६. समवाओ, ९।३। ७. आचारांग नियुक्ति, गाथा ३१-३२।
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