Book Title: Aavashyak Saptati Author(s): Munichandrasuri, Maheshwarcharya, Labhsagar Gani Publisher: Agamoddharak Granthmala View full book textPage 9
________________ मान-गौरवनी लागणी प्रेरे तेम छे. आ नानी पण सुदरकृतिना कर्ता पुण्यनामधेय आचार्य श्री 'मुनिचंद्रसूरि' छे. ग्रंथकार:-ग्रंथकार महर्षि विक्रमनी १२ मी सदीना शासननभोमंडलना अनेक विशिष्ट प्रभावकतारको (ताराओमां) पूर्णिमाना चंद्रनी जेम अद्वितीय स्थान भोगवे छे. पूज्यश्री चांद्रकुलना अने वडगच्छ (तपागच्छ पूर्वेनु नाम) ना हता. जन्मादिः-पूज्यश्रीए दर्भावती (डभोइ) नगरीने चिंतक अने मोंबीआई नामना दंपतीने त्यां जन्म लइने पावन करी तेमनुकुल-चिंत्तयकुल हतु तेओए लघुवयमा 'प्राचार्य यशोभद्रसूरि' पासे दीक्षा स्वीकारी, तेओना विद्यागुरु 'उपाध्याय विनयचंद्र' हता. तेओश्रीनु अपरनाम 'चन्द्रसरि होव नु जाणवा मले छे. तेओना नामनो एवो अचिंत्य प्रमाव हतो के तेओनु नाम ज शांतिकमंत्र तरीके गणातु: तेओ बालब्रह्मचारी हता तेओश्री आहारमा १२ वस्तुओ वापरता हता. छ विगय सहित अन्यद्रव्योनो जीवनपर्यंत त्याग को हतो. निरंतर आयंबिल करता अने सौवीरनुपाणी वापरता आवा त्यागनी मूर्तिसमा आ महापुरुषना नामोच्चारथी उपद्रवोनी शांति थाय तेमां आश्चर्य शु?. __तेओश्रीए प्रमाणदर्शननो अभ्यास उत्तरज्झयणनी पाइयवृत्तिकार ते समयना ख्यातनाम विद्वद्वरेण्य वादीवेताल श्रीशांतिसूरि पासे को हतो. आ० सर्वदेवमूरि ना वरद-हस्ते सं. ११२९ थी ११३९ ना गालामां आचार्यपदथी विभूषित थया तेओश्रीनी गणना सैद्धान्तिक' मां थती हती. तेओश्रीना परिवारमा ५०० मुनिओ हता. तेमनु विहारक्षेत्र खंभातथी नागोरपर्यंतनु हतु. तेओश्री संवत् ११७८ कार्तिक वद ५ पाटणमां स्वर्गभाक थया. आ समये तेमना शिष्य वादीदेवसूरि अंबिकादेवीनी सूचनाथी त्यां हाजर थया हता. तेओश्रीए त्रीस नविनग्रंथो रच्या छे. वृत्तिकारः-मूलकारना प्रशिष्य अने दिगंबर विजेता श्रीवादिदेवसरिना शिष्य प्रा० महेश्वरसूरिए आ ग्रंथ उपर'सुखप्रबोधिनी' नामनी वृत्ति रची छे. तेमां तेमने मुनि वज्रसेने सहाय करीPage Navigation
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