Book Title: Aavashyak Saptati
Author(s): Munichandrasuri, Maheshwarcharya, Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 22
________________ चतुर्दश्यामेव पाक्षिकप्रतिक्रमणस्य प्रमाणानि . ११ परिहारेण पर्वत्रयस्थानुपदेशात् २॥ पंचदसी पाक्षिकमिति क्वचि. दपि व्याख्यानाऽ शनात् ।३। चतुर्दशी-पाक्षिकयोः एकतरग्रहणेऽन्यतरग्रहणाऽदर्शनात् ।४। प्रस्तुतपर्वत्रयाकरणे पृथक प्राय श्चत्तादर्शनात् ।। पाक्षिकोक्तानुष्ठानानां चतुर्दश्यामेवोपलम्भात् । ६।। इति ।। अमुचार्थ प्रायः स्वयमेव गाथात्रयोदशकेन पूज्याः प्रकटयाञ्चक्रिरे । तथाहि-पंचाणुट्ठाणमयं पक्खियपव्वं जिणेहिं पण्णत। ताई चउहसीए पायं दोसंति ननस्थ ॥१॥ भट्ठमी-चउहसीसु उववासो साहुणो सुए भणिओ। आवस्सयचुण्णोए पेइयजइबंदणा भणिया ॥२॥ ववहारे पुण भणिया पक्खिमसद्दे ण चउरपी घेव । __ आवस्सयंमि पक्खियदिणंमि पुण पक्खपटिकमणं । ॥ भणिया निसीहमाइसु पक्खियदिवसंमि सुद्धि पडिवत्तो । एवं चाहसीए पंचाणुट्ठाणमणणंति ॥४॥ जं पुण लोए रूढकत्थ वि पन्नरसीतिहि-पडिक्कमणं । चउमासगपडिकमण छ?तवेणं सुए भणियं ॥५॥ तं च किल पुनिमाए तस्सनुसारेण पक्खपडिकमणं । मोत्त तवाइविसेसं पडिवना सरिसभावाउ ॥६॥ सुयणाणपंचमी भट्ठमी य तह चउरसी उ च उमास । संवच्छरियं पव्वा साहुण सया इमे पंच ॥७॥ एवं महानिसीहे भणियं पुन्चेमु तिमु य उववालो। चउमासे पुण छह तहमो पज्जुसवणाम ।।८।। मुयनाणपंचमीए सुयपूया सा य वोहिलाभाय । कम्मक्खयहमहमि उववासो चसीए पुणो ।९॥ निस्सेससिद्विलाभो चउमासग-१ जुसवपन्चेसु ।

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