Book Title: Aagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१४)
प्रत
सूत्रांक
[२३८]
दीप
अनुक्रम
[३६३]
“जीवाजीवाभिगम” - उपांगसूत्र - ३ ( मूलं + वृत्ति:)
-
प्रतिपत्ति: [ ५ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
----- उद्देशक: [-],
मूलं [ २३८ ]
आगमसूत्र [१४] उपांग सूत्र [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः
णमित्यादि, सूक्ष्मनिगोदा भदन्त ! कतिविधाः प्रज्ञप्ताः १, भगवानाह - गौतम! द्विविधाः प्रज्ञमास्तथा पर्याप्ता अपर्याप्राय एवं यादरनिगोदविषयमपि सूत्रं वक्तव्यं । तदेवमुक्ता निगोदाः, अधुना निगोदजीवानधिकृत्य भेदप्रभसूत्रमाह - निगोयजीवा णं भंते !" | इत्यादि सुगमं, भगवानाह - गौतम! निगोदजीवा द्विविधाः प्रहमास्तद्यथा-सूक्ष्म निगोदजीवा बादरनिगोदजीवाश्च चशब्दौ निगोदजीवतया तुख्यतासूचकी, एवमन्यत्रापि यथायोगं परिभावनीयी 'सुहुमनिगोयजीवा णं भंते' इत्यादि पर्याप्तापर्याप्रविपयं पाठसिद्धम् । सम्प्रति सामान्यतो निगोदसयां जिज्ञासिपुः पृच्छति -
निगोदा णं भंते! दव्वट्टयाए किं संखेजा असंखेज्जा अनंता ?, गोयमा ! नो संखेजा असंखेजा
अनंता, एवं ताव अपजन्तगावि | सुहमनिगोदा णं भंते! दव्वट्टयाए किं संखेजा असंखेजा अनंता ?, गो० ! णो संखेज्जा असंखेजा णो अनंता, एवं पज्जतगावि अपजत्तगावि, एवं बायरावि पज्जतगावि अपजत्तगावि णो संखेजा असंखेजा णो अनंता ॥ णिओदजीवा णं भंते! ट्टयाए किं संखेजा असंखेजा अनंता?, गोयमा ! नो संखेजा नो असंखेला अनंता, एवं पत्तावि अपजतावि, एवं सुहुमणिओयजीवाचि पजत्तगावि अपजन्तगावि, बादरणिओवजीवावि पजतगावि अपजत्तगावि || णिओदा णं भंते! पदेसट्टयाए किं संखेजा० ? पुच्छा, गो. घमा ! नो संखेजा नो असंखेजा अनंता, एवं पलसगावि अपजसगावि । एवं सुहमणिओयावि पतगाव अपजतगावि य, परसट्टयाए सच्वे अनंता, एवं बायरनिगोयावि पजत्तयावि
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