Book Title: Aagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [८], --------------------- उद्देशक: [-], ------------------- मूलं [२४२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
काकाशप्रदेशप्रमाणलात , तेभ्यो वनस्पतिकाविका अनन्तगुणाः, अनन्तलोकाकाशप्रदेशप्रमाणत्वात् , उपसंहारमाह-'सेत्त'मित्यादि मुगमम् ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां जीवाभिगमटीकायां अष्टम्यां प्रतिपत्तौ नवविधप्रतिपत्तिः समाता ॥
प्रत सूत्रांक [२४२]
दीप अनुक्रम [३६७]
अथ नवमी प्रतिपत्तिः उक्ता नवविधप्रतिपत्तिः, सम्प्रति क्रमप्रानां दशविधप्रतिपत्ति प्रतिपादयति
तत्थ णं जे ते एवमाहंस दसविधा संसारसमावण्णगा जीवा ते एवमाहंसु तंजहा-पदमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिदिया पढमसमयवेइंदिया अपढमसमयबेईदिया जाव पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया, पढमसमयएगिदियस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पपणता? गोयमा! जहणणेणं एक समयं 'उको एक, अपढ मसमयएगिदियस्स जहणेणं खुट्टागं भवरगहणं समऊणं उको बावीसं वाससहस्साई समऊणाई, एवं सब्बसिं पढमसमयिकाणं जहपणेणं एको समओ उकोसेणं एक्को समओ, अपदमा जहपणेणं खुड्डागं भवग्गहर्ण समऊणं उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समऊणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाई समऊणाई ।।संचिट्ठणा पढमसमयस्स जहणणं एक समयं उकोसेणं एक समयं, अपढमसमयकाणं जहणणं खुड्डागं भवग्गहर्ण समऊणं
जी०७३
अत्र अष्टमी "नवविधा" प्रतिपत्ति: परिसमाप्ता: अथ नवमी "दशविधा" प्रतिपत्ति: आरब्धाः
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