Book Title: Aagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [सर्वजीव], ------------------ प्रति प्रति० [१], ------------------ मूलं [२४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२४५]
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उकोसेणं अंतोमुटुत्तं, अकसाइयम्स गं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ', सइयस अपनवसियस णस्थि अंतरं, साइयत्स सप-11 जावसियस्स जहणेणं अंतोमुहुत्तं उछोसेणं अनंत कालं जाब अबई पोग्गलपरियट्ट देसूग मिति, अस्य व्याख्या पूर्ववत् । अल्पबहुल-11 माह-एएसि णं भंते ! जीवाणं सकसाइयाणमित्यादि प्राम्बत् ।। अकारान्तरेण वैविध्यमाह
णाणी चेव अण्णाणी चेव ।। णाणी णं भंते! कालओ०१, २ दुविहे पन्नत्ते-सातीए वा अपजवसिए सादीए वा सपजवसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपजवसिते से जहाणेणं अंतोमुहत्तं उकोसेणं छावढिसागरोवमाइं सातिरेगाई, अण्णाणी जहा सवेदया ।। गाणिस्स अंतरं जहणणं अंतोमुत्तं उकोसेणं अणंतं कालं अबढ पोग्गलपरिच देणं । अण्णाणियस्स दोण्हवि आदिलाणं णस्थि अंतरं, सादीवस्स सपजाबसियस्स जहण्णेणं अंतोमु० उकोसेणं छावहि सागरोवमाई साइरेगाई । अप्पाबहु सब्यस्थोवा णाणी अण्णाणी अणतगुणा ॥ अहया वुविहा सध्यजीवा पनसा-सागारोवत्ता य अणागारोवउत्ता य, संचिट्ठणा अन्तरं च जहणेणं उकोसेणवि अन्तोमुहुत्तं, अप्पाबहु सागारो० संखे० (सू०२४६) 'अहवे'त्यादि, अथवा विविधाः सर्वजीवा: प्रज्ञातास्तद्यथा-सलेश्याश्च अलेश्याश्च, तत्र सलेश्यस्य कायस्थितिरन्तर चासिद्धयेथ, अलेश्यस्य कायस्थितिरन्तरं च यथा सिद्धस्य । अल्पबहुलं प्राम्बत् । भूयः प्रकारान्तरेण द्वैविध्यमाह-'अहवे'त्यादि, अथवा द्विविधाः *सर्वजीवा: प्रज्ञप्तास्तद्यथा-ज्ञानिनश्च अज्ञानिनश्च, ज्ञानमेपामस्तीति ज्ञानिनः न ज्ञानिनोऽज्ञानिनः मिध्याज्ञाना इत्यर्थः ॥ सम्प्रति
दीप अनुक्रम
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[३७०
R-62-644
जी०७४
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