Book Title: Aagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 913
________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [सर्वजीव], ------------------- प्रति प्रति० [9], -------------------- मूलं [२६३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२६३] दीप अनुक्रम [३८९]] तत्थ जे ते एक्माहंसु छविहा सब्बजीया पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-आभिणियोहियणाणी सुयणाणी ओहिनाणी मणपज्जवणाणी केवलनाणी अण्णाणी, आभिणियोहियणाणी णं भंते ? आभिणियोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ?, गोयमा! जह० अन्तोमुहुत्तं उको छावर्डि सागरोवमाई साइरेगाई एवं सुयणाणीवि, ओहिणाणी णं भंते!०१, जह० एकं समयं उक्को जवहिं सागरोषमाई साइरेगाई, मणपज्जवणाणी णं भंते !०१, जह० एक समयं उको देसूणा पुवकोडी, केवलनाणी णं भंते!? सादीए अपजयसिए, अन्नाणिणो तिबिहा पं० २०-अणाइए वा अपजवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ साइए सपज्जवसिए जह० अंतो० उक्को० अणतं कालं अवडं पुग्गलपरियह देसूर्ण । अंतरं आभिणियोहियणाणिस्स जह० अंतो० उक्को० अणंतं कालं अवई पुग्गलपरियह देसूर्ण, एवं सुप० अंतरं० मणपजव०, केवलनाणिणो णस्थि अंतरं, अन्नाणिसाइसपज्जवसियस्स जह० अंतो उको छावर्द्धि सागरोचमाई साइरेगाई। अप्पा० सम्वत्थोवा.मण. ओहि असंखे० आभि सुप०विसेसा० सट्टाणे दोषि तुल्ला केव० अणंत अण्णाणी अणंतगुणा ।। अहवा छब्विहा सव्वजीचा पण्णत्ता तंजहा-(एवंविधः पाठ इतः प्राग आवश्यको न चोपलब्धो दृश्यमानादर्शपु कचिदपि) एगिदिया बेदिया तेंदिया चरिंदिया पंचेंदिया अजिंदिया। संचिट्ठणांतरा जहा हेवा । अप्पाबहु ~912~

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