Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 18
________________ भारत की विशेषता प्रत्येव राप्ट की एक ऐसी साम्कृतिक मौलिक सम्पत्ति होती है, जिससे न वेवल राप्ट निवासी ही, अपितु, परराष्ट्रीय समाज भी अनुप्राणित होता रहा है। भारलवप की अपनी निजी विशेषता अध्यात्मशक्ति की मौलिकता पर अवलम्बित रही है । भारतीय चितन का केद्र विन्दु अहिंसा-अध्यात्म रहा है । सस्कृति इस महान् शाश्वत तथ्य मे आवत है । साहजिक वृत्ति और दृष्टि अध्यात्म मे प्रोत प्रोत रही है। यही कारण है कि भारत शताब्दिया तक विभिन्न जातियो के सास्कृतिक प्रारमण के बावजूद भी अपना मौलिक व्यक्तित्व मुरक्षित रखने म समथ रहा है। आत्मपरक सिद्धात ही विसी भी राष्ट्र की नीव है । यहाँ प्रमगत स्पष्ट कर दना आवश्यक जान पड़ता है वि भारतीय चितन का स्वर अत्यधिर पामलक्षीय रहने का यह तात्पय नहीं है कि वह प्रारतिक-भौतिक--जगत के प्रति पूणत उपक्षित रहा। अतीत से पालोक से स्पष्ट है कि भारतीय मनीपिया ने जितना श्रम और शक्ति का व्यय आत्मपरव गवेपणा म लगाया है उतना ही भौतिक शक्ति की विभिन्न गावामा के अनुशीलन में भी। प्रारमलभीय गस्कृति के प्रति यहाँ के सन्त महन्त और तीयङ्करी का भुसाव इमलिए विरोप रहा है कि वेवल भौतिक पाक्तिकी उपासना या प्राप्ति ही मानव का चरम साध्य न रहकर, एक मात्र साधन रहा है। साध्य की प्राप्ति तो अतमुखी चित वृत्ति के वियाम द्वारा ही सम्भव है, जो अहिंसा वा मत्रिय मायना द्वारा प्राप्य है। दानिव चिन्नों न भौतिय शक्ति को वाम करना ही मानव की अन्तिम विजय नही माना। वाह्य शक्ति का पीपरण या विकास भले ही राष्ट्र और ममाज म क्षणिक सुख गालिका प्रमार पर मरे पर वह स्थायी शान्ति पा जनव नही हो मरना । पाश्वत शातिमा गम्भीर मन्दश वीतराग वाणीम इस प्रकार प्रतिध्वनिन हुआ है

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