Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 147
________________ 152 आधुनिक विज्ञान और अहिंमा आज धनिक और निर्धन के बीच जो गहरी खाई विद्यमान है और उसके कारण जो विषमता बढी हुई है, अनैतिकता, धूनखोरी, चोरी आदि पाप बढ़ते जा रहे है, सही अर्थ में धर्मनिष्ठ व्यक्ति उन्हें नहन नहीं करेगा। वह ग्रामोद्योग-निप्पन्न वस्तुयो का उपयोग करेगा, जिससे गरीबों को रोटी-रोजी मिले, वे भूखे न मरे, उनका गोषण न हो, महारंभी (यन्त्रोत्सन) वन्तुयो को सस्ती देखकर वह अपने अहिनक विवेक को ओझल नहीं होने देगा। वह महाहिना के द्वार पर नहीं जायेगा। अाज नही तरीके की धर्म-निक्षा न मिलने और धर्म पालन में विवेक न होने के कारण प्राय. प्रत्येक धर्म के लोग अहिंसा को स्वीकार करते हुए भी ऐसे पदार्थों का उपयोग करते है जो फैगन, विलास, वेकारी और आलस्य बढ़ाने वाले है, सादगी और संयम को नप्त करने वाले हैं। किन्तु जहाँ मूल में ही अवर्म है, वहाँ धर्म और धर्म के फल की क्या आशा की जा सकती है ? ___ अतएव यंत्रो से निप्पन्न प्रत्येक वस्तु का उपयोग करने से पूर्व अहिंसाव्रती को विवेक करना होगा । तभी अहिंसा की शक्ति वढेगी। केवल 'अहिंसा परमो धर्मः' का नारा लगाने से,अहिंसा भगवती की मूर्ति बनाकर पूज लेने से या अहिंसा के उपदेश की स्तुति अथवा पूजा कर लेने मात्र से अहिमा की शक्ति नहीं बढ सकती। शुष्क चर्चा निरर्थक है । अहिंसा भोवपीठ बनाकर उसकी गोध नहीं की जा सकती। जीवन व्यवहार के द्वारा ही उसकी प्रतिष्ठा हो सकती है। इस प्रकार यदि समाज के विभिन्न क्षेत्रों मे हो रही महाहिंसा की रोकथाम की गई और नवीन-नवीन अहिंसा के प्रयोग जारी रखे गये तो अहिंसा की शक्ति बढ़ेगी, इसमे कोई संदेह नहीं । अहिंसा की गक्ति वड़ने पर ही मानव जाति की संजीवनी शक्ति बढ़ेगी।

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