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आधुनिक विज्ञान और अहिंसा
ही प्रधानता दी है। मानव, धर्म के द्वारा ही कल्याण का मार्ग जान सकता है। अतः धर्म के स्वरूप को ठीक तरह से समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि धर्म क्या है ? उसके साधन क्या हो सकते हैं ? तथा उसका अन्तिम प्रयोजन कैसे पूर्ण किया जा सकता है ? ग्रादि प्रश्नो की मीमासा (युक्तियुक्त पूर्ण) का नाम ही दर्शन है। इस प्रकार प्रस्तुत दर्शन का भी वही उद्देश्य प्रतीत होता है, जो अन्य दर्शनो का है । चार्वाक दर्शन
भारतीय दर्शनो मे चार्वाक एकान्त भौतिकवादी दर्शन है । इस दर्शन की मान्यतानुसार सुख-दुःख इसी लोक तक सीमित हैं । यह लोक अर्थात् पुनर्जन्म को नही मानता । इस जीवन मे जितना मुख का उपभोग किया जाय उतना ही श्रेयस्कर है। इसके सम्बन्ध मे उनका एक सिद्धान्त-मूत्र प्रसिद्ध है कि ऋण करके भी इन्सान को खूब घी पीना चाहिए । मृत्यु के पश्चात् पुन. जन्म लेना पड़ेगा, ऐसा कहना सव मिथ्या है । क्योकि गरीर की राख हो जाने पर कोई चीज नही वचती, जो पुन. जन्म धारण कर सके । 1 चार्वाक के मतानुसार ऐहिक सुख की प्राप्ति के लिए ही दार्शनिक विचारधारा का जन्म होता है।
इस प्रकार भारतीय दर्शनो मे चार्वाक दर्शन को छोड़कर शेष सभी दर्शन दुःख से मुक्त होकर नि.श्रेयस की प्राप्ति मे ही निष्ठा रखते है ।
1. यावत् जीवेत् सुख जीवेत् ऋण कृत्वा नं पिवेत् ।
भन्मीभूतत्य देहस्य पुनरागमन कुत ॥