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धमका स्वरूप
मैसूय ही रहा । वितु यहां पर भौतिक और आध्यात्मिक दोनो क्लानो पामुदर मगम रहा है जिसका प्रकन इतिहास के पृष्ठा पर स्पष्ट अक्ति है। तमशिला और नालदा विश्वविद्यालयों की प्रख्याति दूर-दूर के प्रातो और देशों में फैली हुई थी। उन विद्यालयों की प्रयोगशाला मे अपना सास्थ. तिक जीवन हासन के लिए बडे-बडे पहाडा और मरितामा को ही नही किंतु विशाल ममुद्रा को भी नांधकर विद्याप्रेमी विद्यार्थी समुपस्थित होते थे। यहां उह न्यायदान, साग्यदान, गणित, ज्योतिपणास्म, नीतिशास्त्र पौर प्राध्यात्मिक फिनॉसपी अध्ययन कराया जाता था। एप कुलपति के सानिध्य में संक्डो अध्यापय और हजारो विद्यार्थियो का समूह रहता था। इसमे स्पष्ट है कि भारतीय परम्परा में भौतिय विनान मी अल्पता नहीं थी। पर उन मबसराप्रयोगात्मस्वरूप में विकास में ही दिया जाता था। वहाँ हेय, गेय और उपादेय का पूर्ण विवेक होना था । उन गुम्युनो में १ पलाएँ और विद्याएं मिवलाई जाती थी जो बौद्धिक विकास के माथ ही अन्तश्चेतना में भी पान या सचलाइट जगमगा सक और मास्कृनिर जीवन पा निर्माण कर मवें । जो विद्या मानव यो विलासिता पपन में गिरा दे पौरपरत प्रतापी जजीरागे आवेप्टिन कर दे, उराका मारतीय दृष्टि से कोई मूल्य नहीं था। महर्षि माने विद्या फी माययता बताते हुए पया ही मुदर पहा है
"सा विद्या या विमुक्तये" विद्या यही है जो व्यक्ति वा समार ये बचना में मुमत करमाक्ष की दिशा म प्रेरित परती हो।
उक्त दृष्टि में जय हम चिनन परते हैं तोपाते हैं कि भारतवप शक्षणिक मोर माध्यातिववाद मे प्रत्पतममुन्नत था ।पर बनमान सिा पद्धति को देता माध्यारिमा विकासमा नारा पुरातन युग की वीती यात मा हो गया है। मात्र पायारिमा गिता में मार्ग पर भौनिय निभा ने भरना गुदामा गार दिहै। यति पान ये पियापी से यह प्रश्न पिया जाप शिदावन या पिरामाद मार मारगाम यादन्द्रामर मोनिस्वाद तथा गाम्यवाद पा है ? गो गम्भव है वह न विषयों पर घटाता प्रभाव भाषा म भाषामा गरिनु उमग या पागमपि भगवा महागीर