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आधुनिक विज्ञान और अहिंसा
रक्षा के लिए तुझे चूहे से सिंह बनाया, अव मुझे ही खाना चाहता है । जा, "पुनर्मूपिको भव" वापस चूहा हो जा । ऋपिने पुन. उमे उसकी मूल स्थिति मे परिवर्तित कर दिया । जिस प्रकार ऋपि ने सिंह को मूपक बनाकर अपनी माया समेट ली, इसी तरह मानव जाति के कल्याणार्थ यदि वैज्ञानिक अपनी माया समेट ले तो विश्व कल्याण और विश्व शान्ति हो सकती है। यद्यपि विनाशक अस्त्रो को भी कुछ लोग शान्ति का सोपान मानते हैं। ऐसे ही लोगो को लक्षित करते हुए डॉ अोपन हीमर ने कहा--"दो भयंकर विच्छू एक वोतल मे बन्द कर दिये जाएँ तो सहज ही यह सोच-सोचकर एक दूसरे से डरते रहेगे कि यदि एक दूसरे को काटेगा तो दूसरा भी अपना चमत्कार बिना बताए नहीं रहेगा और यो एक दूसरे की मृत्यु का समान
और निश्चित अवसर है।" विच्छू एक-दूसरे को डसेगा नही यह कैसे माना जाय ? मनुष्य विच्छू से कही अधिक विपैला है जो स्वय मकड़ी के समान जाल बनाकर अपने आपको फसाता है पर इस प्रकार आणविक जालो की शक्ति का स्वामी होने के बावजूद भी वह मानसिक शाति का अनुभव कहाँ कर पाता है।
पण्डित जवाहरलाल नेहरू आदि जैसे कई मानव कल्याणकामी विश्व प्रसिद्ध नेताओ ने कई वार वहुत स्पष्ट शब्दो मे सूचित किया है कि प्राणघातक शस्त्रो का प्रयोग कतई बन्द हो जाना चाहिए।
रोम के इतिहास मे एक कहावत वन गई है कि “जब रोम जल रहा था तो नीरो वाँसुरी वजा रहा था।" उसने अपनी उपेक्षात्मक मस्ती मे रोम के कष्ट की तनिक भी परवाह नहीं की । शताब्दियाँ वीत गईं, पर रोम के इतिहासकारों ने नीरो को क्षमा नही किया, बल्कि उसके दण्ड के लिए यह घृणास्पद कहावत उसकी उपेक्षा का प्रतीक बन गई । असामाजिक व्यक्ति को देखते ही नीरो का स्मरण हो पाता है। ठीक यही स्थिति विश्व के प्रमुख राष्ट्रो की है। सभी शक्तिशाली गुट ज्वालामुखी के मुंह पर वैठकर आणविक अस्त्रो की वाँसुरी वजा रहे है। ज्वालामुखी के फटते ही वे नष्ट हो जाएँगे। कही ये सव नीरो की कहावत मे ही अपना अन्तर्भाव न करवा ले।