Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 126
________________ विज्ञान पर अहिंसा का अवुरा 129 स्वभाग्य को ममाप्त कर साती है । आखिर यह जगत सभी महापुरुषों और प्राविप्वारखो आदि के परिश्रम से इतनी उच्च स्थिति में पहुंचा है।" अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि क्या हम निरपुल विनान के हाथ में समस्त जगत को सौंप दें अगर विज्ञान के साथ अहिंमारमा नतिक्ता विकसित हो सकी तो इसके परिणाम भयवर हो सकते हैं। विश्व की कोई भी वस्तु मूलत कभी किसी को हानि, लाभ नहीं पहुँ। पाती । हानि-लाभ तो व्यक्ति के दष्टिकोण की वस्तु है । विज्ञान भी स्वत माप्य को हानि नहीं पहुंचाता प्रत्युत इसके विपरीत निरतर शोषवृत्ति से विश्व के नूतन रहस्यो का उद्घाटन करता है। पर मूल प्रश्न है मानव द्वारा इसके समुचित प्रयोग का । उदाहरणाय एप चाकू से चिकित्सिरगल्य चिकित्सा द्वारा रुष्णतीरोग मुक्तिकामहत्त्वपूर्ण काय करता है तो उसी चाय से पिसी के प्राण भी लिए जा सकते हैं। इसमे अच्छाई या बुराई स्त्रगत न होर व्यक्तिगत हो जाती है। पला के क्षेत्र मेवहा जाता है कि सोदय वस्तु परक प्रनिमासिन होते हुए भी वस्तुत व्यक्ति परप है। व्यक्ति के दृष्टियाण म ही प्रात्मस्य सोदय जागत होता है। उसी प्रकार विमान ये क्षेत्र मे भी हम पह सपते हैं कि निसदह विमान की वास्तविक यनानिकता उस सिद्धात पी अपेक्षा उसके प्रयोक्तामा पर अधिक निभर है। देवी और आसुरी पाक्तियां विपान की देश भले ही लगती हा पर हैं य मानव की ही वत्तियाँ। मानव समाज रूपी रय वा समुनित सचालन करन के लिए शाा और विगामी प्रपाता है और साथ ही मानव-ममाज का दृष्टिकोण प्रात्मनान परस प्रयान प्राध्यास्मिर भित्ति पर अवलम्वित हाना चाहिए तभी विमान वरदान माल माना है। अप्रमाद मार विवर दनानिव प्रयोक्तामा पए प्रनिधार है। नरे विशा प्रगतिशील विज्ञान भी भौतिक जगन का भरे ही मानोफिनगर पर वह प्रेरणागीम मजनात्मव तत्त्व प्रदान नहीं कर सपनामात्मनार को गति स पूरित मानव ही विमान वारापन प्रयोजना या सपना है। भगरान महावीर म अपनी दीपातिय मापना के बाद जो मनुभयरत प्राप्त रिया उसर एक प्राम सूचित किया गया है वि को भी पुगगामासातो उगरा सार यही है कि वह अपन पामपान, पारण हिर यिनान या मनोग परताहमा रितीनी हिना नहीं करता। रिमी

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