Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 127
________________ 130 आधुनिक विज्ञान और अहिंसा भी प्राणी को न सताता है,न मारता है और न दुःख ही देता है। यही अहिंसा का सिद्धान्त है । इनी मे विज्ञान का अन्तर्भाव हो जाता है। गक्ति और माधनों के आधार पर पुरातन कालिक वैनानिक गवेपको ने सूचित किया है कि विज्ञान को जितना प्रोत्साहन दिया जाय, दिया जाना चाहिए। पर वह मंहारगक्तिहीन हो। भगवान् महावीर ने जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति पर स्वैच्छिक नियन्त्रण लगाते हुए विवेक, यातना और सोपयोग निवृत्ति मलक प्रवृत्ति का सकेत किया है । पाश्चात्य दार्गनिक वटैण्ड रसेल ने कहा है "मनुप्य को कानून ग्रीन आजादी दोनों चाहिए, कानून उसकी आक्रमणकारिता एवं गोपक भावनाओं को दवने के लिए और स्वाधीनता रचनात्मक भावनात्रों के विकास व कल्याण के लिए।" प्रत्येक राष्ट्र यह चाहता है कि वहां के नागरिक मुशील, चरित्र-संपन्न और नीतिमत्तापूर्ण जीवन-यापन करने वाले हों। प्रानामक प्रवृत्तियों को रोकने या अंकुश लगाने के लिए राष्ट्र कानून बनाता है ताकि अनिष्ट प्रवृतियो को पनपने का अवकाग न मिले । साथ ही नागरिकों की रचनात्मक प्रवृत्तियां अत्यधिक विकसित हों-यह भी गासक का कर्तव्य है। तभी विज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। रचनात्मक जीवन को प्रोत्साहन तभी मिल सकता है जब उसका पारिवारिक जीवन सुखी और समृद्धिशाली हो। यह राष्ट्र की गान्तिवादी नीति द्वारा ही संभव हो सकता है । मसार मे विप और अमृत विद्यमान हैं ।मनुप्य इतना अवश्य जानता है कि मेरे लिए ग्राह्य क्या है ? वस्तुतः विष विष है तो भी दृष्टि सम्पन्न मानव इससे अमृत का काम ले सकता है। संखिया तीव्र विष है पर यदि इसमे से प्राण हानि करने वाले तत्त्वो को निष्कासित कर उपयोग में लाया जाय तो वह अमृत बनकर रोगोपशान्ति के साथ देह को मुन्दर और सुदृढ़ बना देगा । तात्पर्य, हेय मानी जाने वाली वस्तुप्रो मे से नि.सार तत्त्व पृथककर दिए जाएं तव वे भी अमृतोपम सिद्ध होती हैं। यह सव लिखने का तात्पर्य केवल इतना ही है कि प्रत्येक वस्तु या सिद्धान्त के प्रति मानव का विगिप्ट 1. एव खु नागिणो सारं जन हिंसह किंचण । अहिमा समयं चैव एयावन्न विवाणिया ।। -~मत्र कृतांग 11 114 1 10

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