Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 119
________________ 123 विश्व शाति के हिसात्मक उपाय किन्तु तात्कालिक सामाजिक परिस्थिति व सास्कृतिक इतिहास को गमारता से देखा जाय ता स्पष्ट हुए विना न रहगा कि महात्मा बुद्ध की अपक्षा अहिंसा क्षेत्र म भगवान महावीर की हिसा मूलर उत्ताति कही अधिक सफल और व्यावहारिक रही। बुद्ध के माध्यमिर मा स भी जनता को आश्वस्त ता किया गया पर विशुद्ध आध्यात्मिक क्षेत्र म बढनेवाल उदबुद्ध साधक को महावीर पी अहिसा न न केवल प्रभावित ही क्यिा अपितु एसा माग प्रस्तुत किया कि वह यदि उच्चकाटि के वत्ता द्वारा कठोर जीवन विताने को सक्षम नहीं है ता सरल व सात्त्विक पथ पर चलकर भी आत्मकल्याण के साथ लोक कल्याण भी सरलता में कर सकता है । इसकी पृष्ठभूमि अणुव्रत है, जिसम नतिकस्तर के साथ प्राध्यात्मिक उच्चत्व के भाव भी विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त महात्मा बुद्ध न करुणासिस्त हृदय से प्राणी रक्षा व वयक्तिक स्वातम्य मूलक निम्न पचशील प्रस्तुत क्यि-~~ 1 प्राणियो को दुख मत दो। 2 जो दूसरे को नही द सकते वह उसस भी न ला। 3 यौन विषयक सम्बधाम दृढ़ता के साय नतिकता का पालन करो। * असत्य मभाषण मत करो। 5 उमाद या पावश उत्पन्न करनवाले मद से सदव दूर रहो। इन पचशीलो म विश्व शाति का अन्तर्भाव हो गया है । पर प्राज महात्मा बुद्ध के इन उपदाको धूमिल कर दिया गया है। युद्ध के अनुयायो ही मागच्युत होकर विश्व-साति की स्थिति को कही-रही मदिग्ध बना देत हैं। प० जवाहरलाल नहरू ने भी राजनीतिक दृष्टि स विश्व-गाति स्थाप नाव पचतील या सिद्धान्त स्थापित किया है । एक प्रकार से प्राचीन परम्परा के अाधार पर ही पडित जी ने कुछ परिवतन के साथ ससार के सम्मुस इनरी घोषणा की, जिसस नतिकता और नयम द्वारा प्रत्यर राप्ट अपना उत्यान करते हुए अय राप्ठा की मुख साति और व्यवस्था बनाये रखे। जून, 1954 में चीन के प्रधान मत्री श्री चाऊ-एन लाई का नारत म पागमन हुआ था, उस समय प० नहरू और इन दोना के मध्य जा मुस-याति मूलर यातालाप हुमा उसी के परिणामस्वरूप इन पचगीला की उद्घापणा

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