Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 123
________________ सत्ताईस विज्ञान पर अहिंसा का सकुश विश्व की कोई भी वस्तु चाहे कितनी भी मुन्दर उपादेय और आवश्यक हो पर उसम सतुलित वृत्ति अपक्षित है। विनान नि सन्देह उपयोगी सिद्ध हुना है, पर आज बढी हुई भौतिक गलिया को देखते हुए प्रतीत होता है वि अव दम पर अकुश की आवश्यक्ता है । अति की गारी नहीं होती। चितान स्वय अपने पाप म अकुश जसा प्रतिभापित होता है पर वह मस्तिष्क जगत् तक ही सीमित है। हृदय की अनुभूतियो को विज्ञान में अवकामा कहाँ ? भानुक्ता और यथाथता म सामजस्य कहाँ ? विकास की चरम स्थिति पर पहुचा हुया विश्व प्राज अनुभव करता है रि जब तक आध्यात्मिक दृष्टि का जीवन म विकास न होगा तब तक पैनल विनान के बल पर ही मानवता की रक्षा नहीं की जा सकती। मनुष्य विज्ञान का दास बना हुआ है। आध्यात्मिक शक्ति के वीजस्वरूप अहिंसा ने वह बहुत दूर चला गया है। तभी ता विज्ञान वरदान के म्यान पर अभिशाप प्रमाणित हा रहा है। वस्तत भौतिय गस्निया पर विजय प्राप्त करना कोई वडी बात नहीं है, मानव की मानवता ता इसी म है कि वह अपनी इच्छा शक्तियो पर अधिकार प्राप्त करे । अावश्यरतामा यो कम करने के लिए प्रयत्नशील रह। जीवन को सुकुमार भावना से परिप्नावित करे। माधुनिक विनान के दप ने मनुष्य को मदो मत्त बना दिया है। वह दूमरा ये प्राण लेने के लिए तनिक भी नहीं हिचक्ता। एक बार बुध मल्लाह अपनी नोरा में यात्रियों को उस पार पहुंचाने के लिए जा रहछ । माग म एर मयासी सडाऊ पहन नदी के ऊपर तह पर जा रहये। यात्रिया क पाश्चर्यान्वित ढग से पूछन पर सयामी जी ने कहा कि यह मिद्धि मैंन 18 वप के परिश्रम म प्राप्त की है। इस पर यात्री. समूह पिलपिलासर हात हुए रहने ला पि जो काय दो पम म होता है

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