Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 120
________________ याधुनिक विज्ञान और अहिंसा 1. एकदुगरे की प्रादेगिक प्रमण्डता पोर नार्वभौमिकता का सम्मान। 2 पारस्परिक मनानमण । 3 एक दूसरे राष्ट्र के ग्रान्तरिक मामलो में हस्तक्षेप न करना। • एक दूसरे को नमानता की मान्यता प्रदान करना तथा परस्पर ___ लान पहुंचाना। 5. मानिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति को अपनाना । उन सिद्धान्तो के समर्थन में पीर्वात्य देशो के प्रधान मत्रियो मे पुष्टि की होड-मी नग गई। 25 मितम्बर को इण्डोनेमिया के प्रधान मंत्री ने और 19 अक्तूबर, 1954 को वियतनाम के मुन्धमत्री ने उन्हें स्वीकार किया। 29 दिसम्बर, 1954 को भारत, वर्मा, लका पोर इण्डोनेशिया के प्रधान मत्रियो का विचार-विमर्श हुया और अन्त मे अप्रैल, 1955 को वाण्डुग नामक स्थान मे एशिया के 29 राष्ट्रो का सम्मेलन हया जिसमे पचशील का स्पष्ट समर्थन किया गया और विश्वशान्ति के लिए उन्हें अावश्यक माना। मानव के मूलाधिकारो के प्रति निष्ठा प्रकट करते हुए कहा गया कि सामुहिक परिरक्षा के लिए कोई राष्ट्र दलवन्दी न करे। 19 फरवरी, 1955 को रूस की सर्वोच्च मोवियत ने न केवल पचशील के परिपालन पर जोर ही दिया अपितु तीसरे शील ग्रान्तरिक मामलो मे हस्तक्षेप न करने के सिद्धान्त की व्याख्या और बढाते हुए कहा कि किसी भी देश के पान्तरिक मामलो मे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक के अतिरिक्त वैचारिक प्रसारण में भी किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न हो । पश्चिमी राष्ट्रों के लिए सोवियत रूस की यह घोपणा एक समस्या बन गई। पश्चिमी राष्ट्र रूस पर प्राय यही आरोप लगाते है कि उसने अन्य देशो के साम्यवादियों के साथ सांठ-गाँठ करके विद्रोहाग्नि भडकाकर विध्वंसात्मक कार्यों को प्रोत्साहित करने वाली साम्यवादी विचारधारा का प्रचार करने के लिए ही सुचित संशोधन किया है । पर इसमे शक नहीं यदि प्रामाणिकता के साथ रूस के सशोधन पर अमल किया जाता तो कम से कम शीतयुद्ध के आतकपूर्ण वातावरण मे अवश्य सुधार होता। __ इसके पश्चात् 2 जून, 1955 को रूस और यूगोस्लाविया की सामूहिक घोपणा, 22 जून, 1955 को नेहरू,बुल्गानिन संयुक्त उद्घोषणा, 3 नवम्बर

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