Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 113
________________ विश्वाति ने प्रहिसात्मक उपाय एक द्वारा 'वोटो ( विशेषाधिकार ) प्रयोग करने पर महासभा का निर्णय भी वायान्वित नही किया जा सकता। 117 मयुक्त राष्ट्रसघ का मूल उद्देश्य विश्व शांति और विश्व गुरता है। उसके समस्त प्रयत्न इखा की पूर्ति स्वरूप हैं । सघ चाहता है कि समस्त राष्ट्रा ममयी रह और काई नी राष्ट्र वल का दुरुपयोग पर निवल राष्ट्रा की स्वाधीनता मे बाधा न वन । परिस्थितिनग यदि वमनस्य हो भी जाय तो उन युद्ध द्वारा न निपटाकर आपली वार्ताना या पचायती समाधान द्वारा उसका हरिया जाय। इसका दूसरा उद्देश्य यह भी है कि विभिन्न राष्ट्रा म आर्थिक, सामाजिक या सास्कृतिक समस्याएं ग्रन्तराष्ट्रीय सहयोग द्वारा हल हो। उन राष्ट्रा मग शाति स्थापित करन के लिए वहाँ की सामाजिक एव धाचिय प्रगति में योगदना, पिछडे हुए दो को विश्व वर द्वारा ऋण देना व कल्याणकारी योजनाग्रा की पूर्ति में सहयोग करना भी सघन अपने बसल्या मम्मिलित कर लिया है। एशिया के नवादित राष्ट्रा को इन प्रयत्ना से पयाप्त सहायता प्राप्त हुई है। यूनिकफ नटर साल गय है जहां चिकित्सा ने पतिरिक्त प्रोषध, साउन मोर दूध वितरण किया जाता है। नवीन प्रौद्यागिक र व्यापारिष विकास के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है । शमगिर व सांस्पतिक उत्थान विषय में भी इनका योग रहा है । दिल्ली का साजन गुलालय राष्ट्र प की सहायता का ही परिणाम है । दसरा तीसरा उद्देश्य है जाति, धर्म, भाषा एवं लिाधार पर रिमी नो जाति के प्रति नेवभान न रखा जाय । विश्व के समस्त मनुष्य मानव के मूत्र नूत प्रधिवाना उपयोग करें। विचार स्वातन्य, वाणा यमपरिपालन एन लेगन स्वातंत्र्य पर सवना समान परि हो । उसे यह है कि सुरक्षा परिषद्मा मुख्य पाय अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा मारत है। यद्यपि पादन क 'ए' पास से मनान बाई म्यान घर्षित नहीं है। भाषि राष्ट्रक के समय स्नान दिया श्री । कारिया, कानरिया ण्डनसर जमा मीर बागी .

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