Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 114
________________ 118 याधुनिक विज्ञान पार पहिमा आदि की समन्यायो को मुलझाने मे संयुक्त राष्ट्र मघ ने बहुत प्रयत्न किया है। नि शस्त्रीकरण योजनाओं को नियान्वित करना तो इसका प्रमुख अग ही रहा है। सयुक्त राष्ट्र संघ के दो प्रमुख अंगो की पूर्ति के लिए याथिक तथा सामाजिक परिपद् , अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय; मयुक्त राष्ट्रसंघ सचिवालय, सैनिक कर्मचारी समिति, सयुक्त राष्ट्र सहायता एवं पुनर्वास प्रशासन; सयुक्त खाद्य एव कृपिसगठन ; संयुक्त राष्ट्र प्रौद्योगिक, वैज्ञानिक तथा सास्कृतिक संगठन ; अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ; स्वास्थ्य संगठन एवं नि.शमी करण आयोग आदि मगलमय प्रयत्न है। जहाँ अहिसा के द्वारा विश्व-गाति सम्पादिन करने का प्रश्न हे । सयुक्त राष्ट्र सघ उसके एक अग की पूर्ति करता है। क्योकि सघ ऐती शक्ति रखता हे जहाँ से वैर-विरोध की भावनाओं को प्रोत्साहन न मिलकर शमन के मार्ग सुझाए जाते है। विभिन्न दृष्टिकोणो में सामजस्य स्थापित करने के प्रयत्नों को यहाँ बल मिलता है । विश्व के राष्ट्रो का मतसंग्रह हो जाता है और यदि कोई वड़ा राष्ट्र किसी बात का विरोध करे तो उसे कार्यान्वित करने का अवसर नहीं मिलता। अग्रेजो ने स्वेज नहर पर जव आक्रमण किया तो विश्वलोकमत विरुद्ध होने के कारण उस युद्ध की स्वतः समाप्ति हुई थी। हम यह नहीं कहने जा रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ सभी स्थानों पर सफल ही रहा। क्योकि सन् 1946 के बाद वहुत-सी ऐसी घटनाएँ विश्व के पटल पर अकित हुईं जिनसे आशावादियो को विश्वास था कि संयुक्त राष्ट्र सघ इनमे कृतकार्य होगा पर 'लीग ऑफ नेशन्स' की भाँति वह विश्व-शाति स्थापित करने मे असफल भी रहा । फिर भी यह स्पष्टतया स्वीकार करना ही पडेगा कि छोटी-मोटी बातो को लेकर उठने वाली ज्वालायो को संयुक्त राष्ट्र संघ ने आगे बढ़ने से रोका या किसी सीमा तक सुलझाने का प्रयत्न किया। फिलिस्तीन, काश्मीर, कांगो और इण्डोनेशिया इसके प्रमाण है। लीग की तुलना में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य अधिक है। कार्यविधि पुप्ट और प्रभावोत्पादक है। विश्वशान्ति के बहुसख्यक तथ्यों में एक यह भी सर्वावश्यक है कि विभिन्न राष्ट्रो में पारस्परिक सद्भावना और विश्वास की अभिवृद्धि हो और यही

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