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याधुनिक विज्ञान और ग्राहसा
सामने होगा ।" "
भारत के सुप्रसिद्ध महान् दार्शनिक डा० राधाकृष्णन के शब्दो मे"वैज्ञानिकों ने यव तक ऐसे हथियार हासिल कर लिये है, जिनसे पन्नभर मे ममुची पृथ्वी की मनुष्य जाति को मिटाया जा सकता है । समस्त ससार के नेताओं के सामने अब सबसे बडी महत्त्वपूर्ण समस्या यही है कि मानव समाज को इन प्रलय से कैसे बचाया जाए। हम लोग परमाणु युग के अन्धकारमय वातावरण मे जीवन-रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं और विज्ञान की महान सफलताओं ने हमारे मन में उतना भय-यातक फैला दिया है कि हमे लगता है कि हम किसी ग्रन्थी मशीन के विकराल शिकंजों में फैल गये हैं । गृह विहीन हो गये हैं । हम लोग किमी भयानक गढ़े के कगार पर खड़े हैं या शायद उसमे धँसते भी जा रहे हैं ।"
सचमुच ग्राज विज्ञान मानव का त्राण नहीं कर सका । उसको जड़ प्रधान बनाकर उसकी मानवता का ग्रपहरण किया है। विज्ञान का परिणाम मानव ने जितना सुन्दर और अभिलषित समझा था, उतना वह नहीं निकला । विश्वशाति और हिंसा
इस भयाक्रान्त युग मे मानव जाति का वास्तविक त्राण खोजा जाए तो वह हिंसा में ही मिल सकता है। विज्ञान अब तक इन व्वसात्मक ग्रस्त्रों का प्रतिकार करने में असमर्थ रहा, और निकट भविष्य में भी उससे सुरक्षा की प्राशा नही की जा सकती। ऐसी स्थिति मे विज्ञान के साथ अहिंसा का क्रान्तिकारी सिद्धान्त सलग्न हो जाए तो विश्वशान्ति सभावित है। हिंसा का अस्तित्व जन-जन के मन मे कायम किया जाए तो विश्वशान्ति सक्रिय रूप धारण कर सकती है और जो विश्व - आयुधों के ज्वालामुखी पर खड़ा है, वह हिमालय की शीतल एव शान्त गोद मे विश्राम पा सकता है ।
वर्तमान मे जो परीक्षण विरोध तथा निशस्त्रीकरण की दिशा मे
1. We appeal as human beings to human beings. Remember your humanity and forget the rest. If you can do so the way lies open to a new paradise. If you can not do so there lies before you the risk of universe death.
-Elbert Enstiens. July 1955.