Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ विज्ञान के नये उच्छ्वास 69 वी-लदन मे गिरा तो विश्व में खलबली मच गई। इसमें सदेह नहीं कि इस राकेट पद्धति के विकास में जमन वनानिको का महत्त्वपूर्ण भाग रहा है। लेकिन इमे सर्वाच्च और शक्तिसम्पात बनाने का पूरा श्रेय तो रूस को ही प्राप्त है। ___अय राष्ट्र भी गगनचारी हो चले है। मानव कीप्रात्यति सहारशक्ति से जनता भयभीत है। परन्तु यह तो मानना ही पडेगा कि इस प्रकार के उड्डयन और वनानिक प्रयोगो द्वारा अन्तरिक्ष याना अवश्य मर न हो जाएगी। मगल ग्रह की यात्रा भी मभावित हो जाएगी। बल्कि स्पष्ट कहा जाए तो यदि इसी प्रकार उड्डयन क्षेत्र दिनानुदिन प्रगतिगामी बना रहा तो रूस के मगल ग्रह तक पहुंचने की सभावना सत्य का स्थान ग्रहण कर सकेगी। जव गुरुत्वाकपण शक्ति पर विजय प्राप्त हो जाएगी तो पृथ्वी और प्राकार का मतर स्वत समाप्त हो जाएगा। प्रथम उपग्रह पृथ्वी का भ्रमण करही रहा था कि रूस के उवर मस्तिष्क सपन्न अनुमधित्सको ने एक माह के भीतर ही अर्थान नवम्बर सन् 1957 में द्वितीय उपग्रह स्पूतनिक नबर गतिमान कर दिया। वहपूर्वपिक्षया छह गुना विशाल था। इसका वजन 1120 7 पोड था। एक हजार मील अनुमानत पर गया । इसके घूमते ही विश्व के साम्राज्यवादी राष्ट्रा के हृदय प्रकम्पित हो उठे। 'लाइका नामक स्थान को इसके भीतर भेजा गया, जिस के भोजन, शास प्रिया, निवास, जल एव अय जीवन सम्बधी यावश्यकताप्रा का न केवल प्रवध ही किया, अपितु अपनी प्रयोगालामा में वठ पर वानिक उमके हृदय की धडकन, श्वास प्रश्वास और यदा-कदा उसके मोरने का अनुभव भी करते रहे। ___ 1 फरसरी, 1058 को अमेरिका ने अपनी अनेका असफलतायो के बाद अपना भूउपग्रह (एक्सप्लोरर) छोडा । यह 19500 मील प्रति घण्टे की गति से पृथ्वी का चक्कर लगाता था। इसका वजन 30 पौण्ड था। 130 मिनट म पम्नी की परिक्रमा लगा लेता था तथा रही-कहीं तो 200 मील में अधिक ऊचाई तन रहता था। इसके निर्माता जमन वनानिक डा. बौनाउन पा कहना है कि कई वर्षों ता यह गगन म विचरण करता रहगा।' उनका यह भी क्यन है कि इन चानचदा द्वारा विश्व के समम्न तार(Wires)एप कर निश्चय स्थानापर वितरित भी पिए जा सकेंगे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153