Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 68
________________ 66 आधुनिक विज्ञान प्रार अहिंसा परीक्षक बोट सतरनाक क्षेत्र मे जा पहुंचे। दोपहर को पत्रकारों के लिए भी पाना मिल गई। वहाँ कुछ डुवे, कुछ उलटेमंकड़ो पोत दिखाई पड़ रहे थे। विमानवाहक इण्डिपेण्डेस नये और मावुनिक युद्ध-पोतों मे से था, वह भी परमाणु बम की सनक का शिकार हुग्रा । पोछे पता लगा कि इण्डियेण्डेंस यद्यपि ध्वस्त हो गया था तो भी डूवा नहीं। पत्रकारो की प्रॉसे सभी जहाजो मे जीवन के चिह्न ढूंढ रही थी और देखना चाहती थी कि परमाणु बम के वाताघात से मुअरो, बकरियों और चही मे से कौन बचा। पहले जीवधारी आक्रमणकारी वाहक फालोन के ऊपर दिखाई पड़े। यह पोत नेवादा से एक मील दूरी पर था। सम्वाददाताओं ने वहां दो वकरियो को देखा जिनमे एक कटघरे पर खडी थी,उसकी दाढी हवा मे हिल रही थी, दूसरी लेटीहुई थी। उनकी ऑखें चोधियायी-सी थी। दोनो जानवरों पर आघात का प्रभाव दिखलाई पड रहा था। विशाल विमानवाहक 'सरातोगा' परमाणु बम के वाताघात की पहुँच से दूर था। उसके ऊपर के प्राणी अच्छी अवस्था मे थे। प्रथम विकिनी परीक्षा ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु बम के पतन स्थान से दो मील दूर पर 'सरातोगा' जैसे पोत सुरक्षित रह सकते है। युद्ध मे 100 फुट पर गिरे गोले से बच निकलने की आशा रहती है किन्तु परमाणु बम के गिरने के दो मील तक सुरक्षा की अाशा नहीं। 'सरातोगा' जैसे पोत के डेक पर यदि नाविक रहते तो वहाँ पर रख छोड़े सूअरों की भाँति शायद वम विस्फोट के दूसरे दिन वे जीवित रहते । लेकिन कौन कह सकता है कि हीरोशिमा के अभागों की भांति वे दस या अधिक दिन में मर नहीं जाते। नेवादा दूसरे दिन सारे समय तप्त रहा । यह रेडियो क्रिया सम्बन्धी रेडियोकरण का प्रभाव था । वम विस्फोट के 72 घंटे बाद ही संवाददाता नेवादा के ऊपर जाने की इजाजत पा सके।"1 सन् 1955 के प्रारम्भ में यही वम अमेरिका ने नेवादा स्थित एक उच्च मीनार पर गिरा कर देखा। 500 मील की दूरी पर इसकी चमक दृष्टि1. सम्पूर्णानन्द अभिनन्दन-ग्रन्थ, पृष्ठ ११-१३ । परमाणुशक्ति और परमाणु वन-राहुल साकृत्यायन ।

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