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याधुनिक विज्ञान और अहिंसा
मसार मे यह नियम रहा है कि किसी कठिन कार्य को देखकर पुरुषार्थी डरता नहीं है वह सतत प्रयत्नो द्वारा अधिक उत्साह से कार्यरत्त रहकर समस्या को समाधान के रूप में परिणत कर ही देता है । जहाँ सर्व साधन सुलभ हो और परिस्थितियाँ अनुकूल हो वहाँ कोई कार्य प्रसाध्य नहीं रहता । अमेरिका ने प्रचुर अर्थ व्यय कर इस क्षेत्र में सर्वांगीण अनुभव रखने वाले विद्वान् व यन्त्रशास्त्रियो को प्रचुर वेतन दे न्यूमेक्सिको की भूमि के एक कोने पर योस अल्मोस स्थान पर परमाणु बम की प्रयोगशाला बनाई। 14 अप्रैल, 1943 को हारवर्ड विश्वविद्यालय का साइक्लोट्रोन वहाँ पहुँचाया गया।
चाहे किसी भी राष्ट्र द्वारा इस बम का प्राविष्कार हुआ हो, हमे उसका निर्णय नहीं करना है। पर इतना सच है कि संसार को अणुवम का सर्वप्रथम ज्ञान 1945 मे हुअा।
दूसरा महासमर समाप्ति पर था। रूस तया मित्र राष्ट्रो के सामूहिक प्रयत्न से जर्मनी की पराजय हुई। पूर्व में जापान अपनी अतुल शक्ति से इनसे मोर्चा ले रहा था। जापान की इस दुर्दम्य शक्ति को रोकने के लिए 6 अगस्त, 1945 को हीरोशिमा पर अणुवम फेका। ढाई लाख की जन संख्या वाला वह नगर भस्मिभूत हो गया। मकानों में लगा हुया लोहा पानी की तरह वहने लगा, इसके तीन दिन बाद ही 9 अगस्त, 1945 को दूसरा वम नागासाकी पर गिराया गया। यहाँ भी वही मृत्यु-ताण्डव हुआ जिसकी कल्पना नहीं कर सकते। चार मील के क्षेत्र मे कोई प्रागी नही वच सका। भाग्यवश जो बचे वे भी अपाहिज या विकलांग हो गए। फलस्वरूप जापान ने शस्त्रास्त्र रख दिए । इस क्रूरतम घटना से मानव के माथे पर जो कलंक का टीका लगा वह अभी तक नही बुला है। इन वमो के विस्फोट के कारण वर्षों तक वहाँ वनस्पति उत्पन्न नहीं हो सकेगी। 80 फीट नीचे तक की पृथ्वी जल गई चल-अचल वस्तुएँ पिघलकर लावा वन गई। 100 मील तक इसका प्रभाव पहुँचा।
विज्ञान का दूसरा प्रलयकारी उच्छ्वास है-उद्जन वम (हाईड्रोजन वम), जिसकी व्वसात्मक गक्ति सापेक्षत दो सौ गुनी अधिक है। इसके निर्माण मे चार-पाँच करोड स्पयो का व्यय होता है । इसकी शक्ति दस