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याधुनिक विज्ञान और अहिंसा और गीघ्रता से बनने लगी है । आधुनिक लांडरी मे एक घण्टे मे दो हजार कपडे धोये जा सकते है । एक कमीज की तह करने मे एक मिनिट से ज्यादा समय नहीं लगता। मुद्रण यत्रो ने भी आश्चर्यजनक कार्य कर दिखलाये है ।
आज के मुद्रणालय एक घण्टे मे समाचार पत्रों की हजारो-लाखो प्रतियाँ मुद्रित कर देते है । ऐमी मगीने है जो उन पत्रों की तह करती जाती है, पते अकित करती जाती हैं, पैकेट बनाती जाती है, और टिकिट भी लगाती जाती है।
आज ऐसी मशीनो का भी प्रयोग किया जाता है जो बड़ी-बडी रकमो का जोड़ लगा सकती है, अनेक प्रश्नो को हल कर सकती है, व्याज फैला सकती है। ऐसी भी मशीने है जो विनिमय की निश्चित दर पर एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करने का हिसाब लगा सकती है।
'डिक्टाफोन' ने लेखको को कितनी सुविधा उत्पन्न कर दी है। अनुवादको की कठिनाइयों को दूर करनेवाला टाइपराइटर भी आज मौजूद है जो एक भापा का करीव आठ भापात्रो मे अनुवाद कर देता है।
यूरोप और अमेरिका के देश अव कृपि के लिए प्रकृति के मुहताज नही रहे। वहाँ कृत्रिम वर्षा का भी प्रयोग किया जाने लगा है। पशुओं द्वारा चलने वाले हलो के स्थान पर ट्रैक्टरो का प्रयोग तो अब पुरानी-सी बात हो गई है। प्राकृतिक खाद के वदले रासायनिक खाद, जो अत्यधिक उपजाऊ होती है, तैयार होने लगी है । वहाँ खेती-बाड़ी के प्रायः सभी कार्यों मे यंत्रो का उपयोग होता है। फसल काटने की एक मशीन, जो 50 हॉर्स पावर से चलती है और जिसमे 30 फुट तक लम्बी दराती होती है, बड़ी शीव्रता से फसल काटती है और प्रतिदिन करीव हजार, डेढ हजार वोरी अनाज भी निकाल देती है।
ऐसी मशीनो का भी आविष्कार हो चुका है जो एक घंटे मे 2400 रोटियाँ बना सकती है, 2400 वोतलो मे दवा भर सकती है और 3000 वोतलो को डाट लगा कर बद कर देती है।
पहले एक मनुष्य दिन भर चोटी मे एड़ी तक पसीना बहाकर कुछ मन मिट्टी खोद पाता था, आज मशीन की सहायता से, उतने ही समय मे, 1600 से 2000 टन तक मिट्टी खोदी जा सकती है।
मनुप्यो की मुविधा के लिए नदियो के प्रवाह तक बदल दिये गये है ।