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दान और विनान
तीय मसति म पड्दाना का मगम देखने का मिलना है। इस प्रकार का विनान के क्षेत्र मे पहा । समी बनानिर प्राय एस ही माग पर स्थित है
और जो विभिन्न दिखलाई पटते ह, उह भी एव स्थान पर बाज नही तोक्न घाना ही पडेगा । यो दान और घिनान का जीवन में अपना एव म्वतत्र महत्व है। उसकी पूण उपयागिता है। दोना जीवन के श्य तक पहुँचन वे प्रान्त माग है। हाँ, इतना अन्तर अवय नात होता है कि दान वा प्रमुग भुनान पाम तत्त्व को पोर है, इससे मानव को परम तत्त्व यी उपनधि होती है, जबपि विनान का प्रवाह भौतिर तत्व की अोर ही प्रवाहित हुना है। इसमे मारव को नवीनतम भौतिक साधन प्रमाथन प्राप्त होते हैं। अन म हम इम निप्प पर पहुंचते हैं कि विनान और दान में कुछ भतर प्रतीत होने पर भी मम वय यापन ही अधिक मामा म पाया जाना है।
पर स्वर यह भी है रिदान और विनार में विभेद ही क्या है। भारतीय विलेपमा ने दान शास्त्र द्वारा ममम्त नानिर रहम्यो को अपने मानमिव श्रम-तक द्वारा समुपस्थित कर दिया है, फिर मानर निगान को क्या अपनाये । दानिय शास्त्र भी मुमा वेपण यत्तिका ही प्रामाहित करते हैं पर विचारणीय प्रश्न यहाँ यह है निदान कापाय अतीत को अपना पाह मिलना ही विस्नत मान लें, पर यतमान विमान वी अपशा दानिशा पा चितन कुछ प्रातर मामित ही था। दान और शिान म कुछ मौनिक भेद है, इमे समझना मावश्यय है। दानितान मप्ति के विभिन तय्या का पता लगाया और धनानिय पिनेपली न उर प्रत्या पर दिमाया। गगन का प्राधार घमास्त्र रहा है, प्राी धमशास्त्र पथिा तथ्यों का प्राटिकरण दानाम म दुना है। इसलिए वही नहीं अधवि'वामा को भी राम प्रकाश मिला है, जब मिदिमान विमी भी पाश्चयजनय पटना को ईश्वरीय गोया प्रारतिर पटना न मान पर उनो धारणा पी गोप मी पोर युदि रोगतिमान करना है । दानिर ता प्राप्त पुरपा पी पापा कोही पनिम गत्य मानवा पाया है । इसम ना करना नाम्निाना है। दान भग पापापही प्राज धम और अध्यात्म पी विविध मा रताया पर रियन है, जाति विनाायाक्षम प्रत्यन व्यापर और मनुष्य पापाय क्षम यामी प्ररणारनाहै। दानचिन्नन प्रधान है पार विमा पार