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याधुनिक विज्ञान और हिमा
और उत्पत्ति का तत्त्व नमभ कर उन्हें जीवनोपयोगी बनाने का मार्ग प्रस्तुत करता है । सचमुच यह महा देवता है । विज्ञान ने अन्धविश्वासजन्य नम्पूर्ण मान्यता को चुनौती दे रखी है। उपर्युक्त माने जाने वाले वैज्ञानिक तथ्यो मे वायु और पृथ्वी को ग्राज का वैज्ञानिक स्वतन्त्र तन्त्र मानने को तैयार नही ।
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त्रायुनिक विज्ञान का प्रारम्भ
विज्ञान मानवी चेतना का ही एक विशिष्ट रूप है । तव धरातल पर जब से मानव और उसकी चेतना का अस्तित्व है, तब ही में विज्ञान का अस्तित्व स्वीकार करना होगा। उसका आदि काल निर्धारित करना "ऋषियो के कुल और नदियों के मूल" खोजने के समान होगा। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि याधुनिक विज्ञान का जन्म ईना के पन्द्रहवी शती ने माना जाना युक्तिनगत है । जो भी हो, इसमें संदेह नहीं कि विज्ञान के प्रभाव ने मानव समाज की काया पलटने मे अनुपम योग दिया है । यद्यपि प्राचीन विज्ञान की गति में मानव नमाज को शीघ्र परिवर्तन की क्षमता न थी, साथ ही कई बाधाएँ भी खड़ी कर दी जाती थी । पर विज्ञान के नवीन स्वरूप में, बाधक तत्त्व के प्रभाव में, नमाज को शीघ्र परिवर्तित करने की अद्भुत शक्ति है ।
विज्ञान की प्रगति से पूर्व
विज्ञान के नमुचित विकास और प्रगति के पूर्व मानव समाज के ऋषिकांग कार्य और विचार पुरातन धार्मिक सिद्धांतो द्वारा नियन्त्रित थे । वार्मिक पहलुओं का सभी क्षेत्रो मे प्रभाव था । ज्ञान के समग्र विषयों का वर्मशास्त्रो मे ही अन्तर्भाव था । इतिहास, गणित, भूगोल, खगोल और समाजशास्त्र आदि विषयों का केन्द्र विन्दु भी धर्म शास्त्र ही था । इसका परिणाम यह हुआ कि जहाँ धर्म के द्वारा अपनी प्रगति में कुछ प्रेरणा मिली, वहाँ धर्म मे बढ़ते हुए जड विश्वासो के कारण हानि भी कम नही हुई । धर्म अत्यन्त पवित्र वस्तु है और अन्तर्जगत् से सम्वत्र है, पर स्थितिपानको या अत्यन्त पुरातनवादियों की दर्प-वृत्ति के कारण कभी-कभी इस पवित्र वस्तु मे भी स्वार्थका ऐसा विकार उत्पन्न हो जाता है कि वह प्रेरणा का स्रोत होकर भी स्वयं प्रेरणा का पात्र वन जाता है । तभी निरकुन वार्मिक व्यक्तियों