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अविकसित धर्म और विज्ञान का संघर्ष
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है-वैनानिक जागरण ने धर्म के प्रति जड़ विश्वास हिलने लगे। धर्म प्रतिपादको ने स्थितिपालक वृत्ति के प्रावेग मे इन वैनानिको की न केवल निन्दाही करनी प्रारम्भ की, अपितु, उन मनीपियो को अकस्य यातनाएं भी दी जाने लगी। गैलिलियो को नमत्रो की खोज पर कारावान भुगतना पडा। कोपरनिकस के 'सूर्य पृथ्वी के चारों तरफ भ्रमण नहीं करता' कहते हो उने धर्मद्रोही घोषित किया गया । डार्विन के विकासवाद ने वार्मिक जगत मे भारी हलचल पैदा कर दी चूंकि तात्कालिक कथित धर्मवेना केवल धर्म बास्त्रो के सिद्धान्तो के अन्धभक्त थे, क्योकि वाईविल मे तो मानव को यादम और हवा का उत्तराधिकारी बताया गया है। तात्पर्य, वाईविल या तदनुरूप वर्मशास्त्रो के विरुद्ध समस्त शुद्ध वैज्ञानिक प्रयत्नो की न केवल उपेक्षा ही होने लगी, अपितु गवेपको पर नाना प्रकार के अत्याचार भी होने लगे । पर विजयश्री वैज्ञानिको के साथ ही रही। कालान्तर मे उनकी गोध आदरणीय वन गई। 19वी गताब्दी के समाप्त होते-होते विज्ञान का प्रभाव प्रचुर परिमाण मे बढ़ चला । सम्प्रदायवाद और जातिवाद उन पर तनिक भी अपना प्रभाव न डाल सके। इसके विपरीत सम्राट्, राजा और अन्य शासक ने वैनानिको को खोज मे सहायता देकर उन्हें प्रोत्साहित करने मे गर्व का अनुभव करने लगे।
प्रमंगतः यहाँ एक बात का उल्लेख अनिवार्य प्रतीत होता है कि सापेमत. विज्ञान के प्रति भारतीय दृष्टिकोण सहिष्णुतापूर्ण रहा है । यहाँ प्राचीन
और अर्वाचीनों मे मतभेदों की कमी न रहने के वावजूद भी कभी किसी नूतन चित्रार प्रवर्तक को न फांसी पर लटकाया गया और न उसे अन्य किसी प्रकार की नागरिक यातनात्रों का ही सामनाकरना पड़ा है। भारतीय संस्कृति अहिंसा प्रधान होने के कारण समन्वयवादी दृष्टिकोण से प्रोत-प्रोत है। यहाँ यह भी