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आधुनिक विज्ञान और अहिंसा
नता देता है। दूसरा विज्ञान और दर्शन मे मुख्य अन्तर यह है कि विज्ञान का निर्णय हमेशा अपूर्ण रहता है जब कि दर्शन अपने विपय का सर्वागीण स्पष्टीकरण करता है । कारण कि विज्ञान सत्य के एक अंश को ही ग्रहण करता है जिसका आधार दृश्य जगत् ही है। विज्ञान की बदलती तस्वीरें
विज्ञान एक स्वतन्त्र धारा है। ज्ञात होता है कि इस धारा ने धर्म और दर्शन के विवादास्पद द्वन्द्वो से अपना एक अलग-थलग मार्ग निकाला है । विज्ञान की दृष्टि मे सत्य वही है, जिस पर प्रयोगशाला की मुद्रा लग चुकी है। यह अन्धविश्वास को प्रश्रय नही देता है। कारण यह है कि तार्किक जगत् मे प्रत्येक विश्वास को तर्क की कसौटी पर कसकर ही मूल्यांकन किया जाता है, आज का मानव अपनी व्यक्तिगत तथा अन्तर्राष्ट्रीय समस्या का समाधान अपने पूर्वजो की अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक ढंग से निकालता है। ___ यह सब कुछ होने पर भी एक बात विचारणीय है कि विज्ञान के निर्णय अब तक स्थिर नही रहे है । इतिहास से यह स्पष्ट जात होगा कि विज्ञान के निर्णय किस स्थिति मे किस प्रकार परिवर्तनशील है । एक वैज्ञानिक की सत्य वात दूसरे वैज्ञानिक के युग मे असत्य लगने लगती है। जैसे चन्द्र, सूर्य, पृथ्वी तथा अन्य ग्रह गणो की गति, स्थिति और स्वरूप आदि के विषय मे 'टोलेमी' के युग की वात 'कोपरनिकस' के युग मे नही रही और 'कोपरनिकस' के नये निर्णयो पर प्रो० आइन्स्टाइन के सापेक्षवाद ने एक नया रूप लेकर अपना प्रभाव जमा लिया। क्या ऐसी स्थिति मे अधिकार की भाषा मे यह कहा जा सकता है कि प्रो० पाइन्स्टाइन के ये निर्णय अन्तिम है ? कदापि नही, भले ही जो निर्णय आज सत्य प्रतीत हो रहे है वे ही कल भ्रान्ति के रूप में परिवर्तित हो सकते है।
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त से कौन अपरिचित है। विज्ञान जगत् मे गुरुत्वाकर्षण की धूम मच गई थी। पर आज के इस सापेक्षवाद के युग मे गुरुत्वाकर्पण का सिद्धान्त निष्प्रभ हो गया है।
"कहते हे, आइन्स्टाइन के अनुसधान का प्रभाव न्यूटन के गुरुत्वाकर्पण वाले नियम पर भी पड़ा है। गुरुत्वाकर्पण को लेकर वैज्ञानिको मे कुछ