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भारतीय मस्कृति मे दरानो का स्वम्प
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क्या उपाय हैं ' प्रादि विचारधारा मे ही सास्य दान की उत्पत्ति हुई है। जैन दशन
जन दान का प्रमुख उद्देश्य है, प्रारमा दुग में मुफ्त होकर अन त मुख यी पोर चढे । जीव और पुद्गल इन दोना कामम्बध अनन्त काल मे चना पा रहा है। वाह्य पुदगलो के सयोग मे ही जीव नाना प्रकार के क्प्टो का अनुभव प्ररता है । जव तर जीव और पुदगल कामम्ब धविच्छेद नहीं होगा तब तक आ यात्मिक सुख असम्भव है। जीव और पुद्ान दोनो तत्त्व अलग कसे हो सकते है ? उसके सम्बध म आचाय उमास्वाति ने अपने तत्त्वाथमूत्र म-"सम्यव दान, सम्यक नान और सम्यक चारित्र" ये तीन माग बतलाय हैं। तीना के प्राचरण से ही जीव और पुदगल सवथा अलग हो सकते हैं। एक बार जीव और पुदगल पृथव होन पर पुन उनका कभी मन प नहीं होता। वह जीव अनन नान, अन तदान, अनन्त भुग और अनन्त वीय चाला बन जाता है । इस प्रकार उन दशन का उद्देश्य स्पष्ट मना रहा है कि प्राणी दुख मे निवत होवर अनन्त सुप मे प्रवृत्ति करें। योपिक वशन ___वशेपिन दान के सस्थापक कणाद ऋषि थे । प्रस्तुत दशन का उद्देश्य भी नि श्रेयस की प्राप्ति हेतु ही धम का प्रादुर्भाव होता है। कणाद ने अपने बैशेपिर सून मे लिया है-धम वह पदाय है जिसमे मासारिक उत्थान और पारमाथिप नि मम दोना मिलते हैं।' जमिनी दशन
प्रस्तुत दान के प्रणेता जमिनी प्रापि हैं । जमिनी ऋपि के दो गिप्य थे। पूर मीमामय और उत्तर मोमासर । उनके नाम गे ही यह दान, पूर्व भीमानय और उत्तर मीमामक के नाम से प्रसिद्ध है। पूर्व मीमामर यनादि सामाननपाते हैं। इसरे दो भेद हैं-प्रभागर और भाट्टा उत्तर मौमामय सहतवादी वेदाली हैं । उरावे भी अनेर भेद हैं । म देशन ने भी धम यो 1 मम्यादरानमानचारित्रापि मोदमाग ।
-तत्याय गत्र।1-1 2 सोनियममिति स धम ।
---रोपिक सूम। 1-2