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पाँच
दर्शन का स्वरूप और प्रयोजन दशन मानव मस्तिष्क की वौद्धिक उपलब्धि है। प्रश्न है दशन की समस्या और प्रयोजन क्या है ? इस सम्बध में प्रत्येक पारम्परिक विचारका म मत भिनता है। एक ही देश के दाशनिक दशन के प्रति एक मम नहीं हैं। ऐसी स्थिति मे जीवन और जगत के प्रति दृष्टिकोण मे ही जहाँ अतर है वहाँ विभिन्न मतभेदोका होना पाश्चय की बात नहीं। पूर्व और पश्चिम वे विभिन्न दाशनिको मे पयाप्त मत बभिन्य दृष्टिगोचर होता है। यद्यपि विश्व की दाशनिक चितन प्रणाली वा विश्लेपण यहाँ विवक्षित नहीं, तो भी केवल स्यूल रूप से उल्लेस मात्र पर्याप्त होगा।
यूरोपीय दशन का उद्देश्य और उसकी एक मात्र समस्या विश्व व्याख्या परने की है अर्थात विश्व के सभी विमिन अर्वाचीन दानिव इसी तथ्य को लेकर चले हैं । यद्यपि यूरोपीय मध्ययुगीन दशन मे भिन्नत्व अवश्य है।
यूना मान-सायों यीच उच्चतम विचारसायो शताब्दियो से माधना स्थली के म्प में विन्यात रहा है। थलीज एनरनीमेण्टर, हैराकनाईटग और ऐनविजमिनीज प्रादि या मतव्य रहा है कि ददयमान जगन की विभिन व्यक्तियों का उद्भव से सभव हो। डिमाकाइटस जीव और जगत की व्याख्या के प्रति शायद इमलिए प्रारपित रही हैं कि उह इसका पान ही था। सौपिस्ट शिक्षा मापवाद मे ही दान को उभापर मनुष्य के सामाजिक वनतिम विनामो वा बौदिर मण्डा कर गरे । तत्वमीमासा या क्षेत्र समस्त विश्व है, पर यूरोपीय दान मारमा और परमात्मा के प्रति जिनामा जगो कोई वस्तु नती है । या तो अद्यतन यूरोपीय दान के प्राधार-म्नम्भ ठेवाड प्रात्मा मे ही अपन चिन्ता या प्रारम्भ करत हैं, पर दान पो दप्टि ग वह पय सिदान्न लेकर चले हैं। यहाँ प्रात्म मिति, ईश्वर मिति द्वार या पररण मात्र है। तात्पप यूरोपीय दानिव बाह्य जगत तर ही चितन