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आधुनिक विज्ञान और अहिंसा
मे रही हुई अाध्यात्मिक शक्ति की प्रेरणा मानते है । जव मनुष्य को वाह्यभौतिक पदार्थ मे शान्ति का अनुभव नही होता है, तब वह 'चिर शान्ति' की खोज करने लगता है। आध्यात्मिक पिपासा पूर्त्यर्थ नवीन मार्ग का अनुगमन करता है । मानव के इस प्रयत्न कोही दर्शन का नाम दिया गया है। प्राध्यात्मिक प्रेरणा का प्रमुख आधार है वर्तमान से असतोप और भविप्य की उज्ज्वलता का दर्शन । यही भारतीय परम्परा मे दर्शन की आधार भूमि रही है । आध्यात्मिक प्रेरणा से जिस दर्शन की उद्भूति होती है, वह दर्शन उच्चकोटि का समझा जाता है । कुछ दार्शनिक व्यावहारिकता से भी दर्शन उद्भूति का सम्बन्ध लागू करते है।
इस प्रकार पाश्चात्य दार्शनिको की दृष्टि मे तर्क, सशय, आश्चर्य आदि दर्शन के प्रादुर्भाव के कारण माने गए है। पर पौर्वात्य दार्शनिको की दृष्टि से दुख ही दर्शन-उत्पत्ति का प्रधान कारण है। दुख से मुक्ति पाना यही भारतीय दर्शनशास्त्र का मुख्य ध्येय है।