Book Title: Yantrarajo
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणेशाय नमः / यन्त्रराजो मलयेन्दुलरिकृतटीकासहितः। चौसर्वज्ञपदाम्बुजं हृदि परामृश्य प्रभाव्यं परं जीमन्तं मदनाख्यसूरिसुगुरुं कल्याणकल्पद्रुमम् / पिकानां हितकाम्यया प्रकुरुने सद्यन्त्र राजाग नाभेदयुतं चमत्कृतिकरं सूरिर्महेन्द्राभिधः // 1 // / प्रणम्य सर्वन्नपदारविन्दं सूरमहेन्द्रस्य पदाम्बुजं च। तनाति तहुम्फितयन्वराजग्रन्थस्य टीका मलयेन्दुसूरिः / अथ प्रथमतः प्रतिचिकीर्षितस्य सकलगणितसारभूतस्य धन्दरीजग्रन्थस्य निरन्तरान्तरायनिर्वापणाय शिष्टाचारपरिपालनाय शिष्यप्रतिशिष्यपरम्परासुप्रचयगमनाय भक्तजनमनःसंकल्पकल्पद्रुमायमाणस्वाभीष्टदेवतागुरुनमस्कारपूर्व For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / . . . . ! 026925 inmandir@kobatirth.org यन्त्रराजो ततः स्वल्पसारं विषदमिदमत्यन्तसुगम बितन्वेऽहं शाखं सहृदयहृदानन्दकृतये // 2 // कृप्तास्तथा वहुविधा यवनैः खवाण्यां यन्त्रागमा निजनिजप्रतिभाविशेषात् / तान् वारिधीनिव विलोक्य मया सुधावत्तत्सारभूतमखिलं प्रणिगद्यतेऽत्र // 3 // स्पष्टार्थम् / अथ सूत्रकदेव यन्त्रराजमहिमानमाचष्टे / यथा भटः प्रौढरणोत्कटोऽपि शसर्विमुक्तः परिभूतिमेति। तहन्महाज्योतिषनिस्तुषोऽपि यन्त्रण होनो गणकस्तथैव // 4 // ___ इदमपि स्पष्टार्थम् / . अत्र भुजकाट्योः क्रमोक्तमज्यानयनम् / यत्म्याल्लवादा: कलिकादिकं त For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मयलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / अस्य व्याख्या भुजज्धाकोटिज्यानयने भुजकोटिभागानामधस्ताद्यदि कलादिकं भवति तदा तदतीतभाग्यान्तरखण्डकेन गुणितं च षष्टया हृतं लकं फले क्षिप्तं प्रत्ये कं क्रमातमे च भुजमौर्वी कोटिमौर्वी च स्यात् / अत्रोदाहरणम् / रवेः परमक्रान्तिभागाः 23 कलाः 35 एषां भुजज्यानयनार्थमेत एव भुजांशाः कल्पिता राशित्रयस्य भुज इति संमा तत्रैको राशिः त्रिंशदंशाः एतेषां भुजज्यानयनं यथा क्रमज्याकोष्ठकेषु त्रयोविंशत्यंशानामधस्ताप्राप्तं फलं कलाः 14.6 विकलाः 38 तदधोऽन्तरं 57 / 26 अनेनान्तरण भुजभागानामधःस्थिताः कलाः 35 गुणिता जाता 1985126. - अधःसाथस्य पष्टया भागे लब्धं उपरिचितं जाता विकला 2016 एषां षष्ट्या भागे लब्धाः कलाः 33 विकला: 36 पूर्वोक्त 1406 / 38 एवंरूपे योजिताः परमक्रान्तिभागानां क्रमेण भुजन्या कलादिका 1440 / 15 अथ क्रमेण कोटिच्यानयनम् / यथा रवे; परमकान्त्यमा एव भुखभागाः 23 कला: 35 एते नवते: शोध्यन्ते शेषांथा: 66 / कलाः 15 एते कोटिभागा जाताः ततः क्रमज्याकोष्ठकेषु षट्पष्टिभागानामधः प्राप्तं फलं कलाः 3288 विकला:४६ तदधोऽन्तरं 25 / 3 अनेनान्तरेण कोटिभागानामधःस्थिताः कलाः 25 गुणिल जाता: 625 / 15 अधोऽहस्य षष्ट्या भागे लब्धमेकं तस्मिन्बुपरि विप्ले जाता विकलाः 626 एषां षष्ट्या भागे लब्धाः कलाः 1. विकलाः 26 एतदुपरितनाङ्गे 3288 / 46 क्रमेण क्षिप्ते जाता परमक्रान्तिकोटिभागानां कलादिका जीवा 3261 अथ पूर्वोक्त एव भुजभागा: 23135 तत: उक्तमज्या For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजो कोष्ठकेषु त्रयोविंशतिभागानामधः प्राप्तं फलं कलाः 286 विकलाः 11 तदधःस्थमन्तरं 253 अनेनाझेन भुजभागानामधःस्थकला 35 हन्यन्ते जाता:८७५ अधोऽङ्गस्य 105 षष्ट्या भागे लब्धमेकं 1 उपरि क्षिप्ते जाता विकला: 876 एतेषां षष्ट्या भागे लब्धाः कलाः 14 विकलाः 36 एताः पूर्वोक्तकोष्ठका 286 / 11 मध्ये योजनीयाः परमकान्तरतामज्या 300147 कलादिका। अथोतामेण कोटिज्यानयनम्। पूर्वोक्ता गव कोटिभागाः 66 / 25 तत उक्तमज्याकोष्ठकेषु षट्षष्टिभागानामधस्तत्प्राप्तं फलं कलाः 2135 विकलाः 45 तहधोऽन्तरं 57036 अनेन कोटिभागानामधःस्थिता: कला 25 गुणिता जाताः / 14254800 अधःस्थाकस्य षष्टिभागे लब्धा-- विकलाः 15 एतासां पूर्वराशिक्षेपे जाता विकलाः 144. एतासां षष्ट्या भागे लब्धाः कलाः 24 एताः पूर्वोक्तफलाके 213545 न्यस्यन्ते जाता परक्रान्तिकोटिभागानां कलादि. का उक्तमज्या 2158 / 45 एवं सर्वत्र क्रमोक्तमाभ्यां भुजज्याकोटिज्यासाधनम् / अथ भुनन्याकोटिज्यातश्चापसाधनम् / गते फलाके भुजकोटिमौर्योस्तदूर्ध्वगाश्चापलवाः स्थिताकाः। षष्ट्या इतं चान्तरकोष्टभक्तं कमोत्क्रमाभ्यां तदधः कलादि // 6 // | अत्र व्याख्या पूर्व भुजज्याकोटिज्यासाधिता तस्याः प्रत्यंशफ For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / -- - लज्यायपातिते तदूर्ध्वकोष्ठाझा धनुरंशा भवन्ति शेषं षष्ट्या गुणितं तकोष्ठ काधःस्थितान्तरालेन विभक्तं धनुरं 748 26 313 / 306 45 55 8 251 IN क्रमज्याज्ञानार्थ सारणी। 563 / 625 / 686 188 क्रमज्याजानार्थ सारणी। 125 38 62 501 438. भागाः क्रमज्या अन्तरं भागा: ज्या अन्तरं For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमज्याज्ञानार्थ सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः 13 14 15 16 17 / 8.8 831 882 1112 1972 ज्या 1052 32 4 अन्तरं 6 58 58 For Private And Personal Use Only यन्वराजो www.kobatirth.org क्रमज्यानानार्थ सारणी। भागा: / 128, 3140 1406 1464 1521 / 1578 ज्या 16 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरं 58 42 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमज्याज्ञानाधं सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः / 27 33 28 / 1680 29 1745 30 1800 32 / 1907 क्रमज्या: 1854 OY 22 42 अन्तरम् 52 41 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकोसहितः / www.kobatirth.org क्रमज्याज्ञानार्थं सारणी। भागा: 29 40 क्रमज्याः 2013 / 2064 22162265 2314 2116 / 2166 __32 MY Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् 51 5150 48 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमज्याज्ञानार्थ सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः / 4142 43 44 क्रमज्या: 2408 2455 2500 2545 2588 49 अन्तरम् 45 44. 44 द 42 For Private And Personal Use Only यन्त्रराजो www.kobatirth.org क्रमज्याज्ञान) सारणी। भागा: 52 53 54 क्रमज्याः ) 2675 2016 2757 / 2767 2012 2836 2875 / 45 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir গনস 40 OPY indianath... RE Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ---- ज्याज्ञानाथं सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागा: 56 / 57 58 / 2884 / 3018 / 3053 / 2848 3148 क्रमः ज्या 3.85 48 3110 41 38 अन्तरं 35 / 29 34 / / 33 / 45 32 5. 31 / 53 30 10 3 / For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org क्रमज्याज्ञानार्थ सारणी। 2 भागाः / 62 / 63 / 64 65 66 67 3178 / 3207, 3235 / 3262 / 3288 3313 ज्या 48. স্বন / 25 / 24 40 52 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमज्याज्ञानाथं सारणी।। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः / 68 / 73 74 क्रम 3423 3442 3477 3360 53 3282 / 3403 / 54 3460 33 न्या 52 48 42 20. अन्तरं / 2018 18 For Private And Personal Use Only यन्त्रराजी www.kobatirth.org क्रमज्याज्ञानार्थ सारणी। भागाः 7677 80 / 81 82 34833507 3521 2533 क्रम ज्या 6535 / 3555 / 33.64 / 41 58 8 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरं 1 MY 12 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमज्याज्ञानार्थं सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः 84 88 - क्रम 8. 3581 3585 3547 144 अन्तरं 46 23 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिक तटीकासहितः / www.kobatirth.org अथोक्तमज्याज्ञानार्थं सारणी। भागाः उतामज्या: अन्तरं Home Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mang Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तमज्यामानार्थ सारणी / / 12 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागा: 44 उत्तमज्या : 4454 / 66 78 / 40 अन्सा 12 14 15 For Private And Personal Use Only यन्त्रराजो www.kobatirth.org उक्तमज्यामानार्थ सारणी। भागाः उत्तम 186 217 239 ज्या : 4 . अन्तरं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 4 19 56 20 / 581 22 / 23 / / Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतमज्याज्ञानाथं सारणी / / - - Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः 24 25 28 421 उजाम. स्याः / 20 अन्तरं 24 26 27 28 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org क्रमच्याजानार्थ सारणी। भागाः 35 / भागाः जाम- 28 451 30 482 11 / 32 514 547 33 34 / 580 / 615 28 22 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकामख्याज्ञानाथं सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागा: 40 उसामज्याः .24 842 883 / 624 15 M अन्तरम् 42 For Private And Personal Use Only उनमज्या ज्ञानार्थ सारणी / यन्त्रराजी www.kobatirth.org भागाः / 43 44 / 45 4647 28 48 उत्तमच्या : 6 1981 1238 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 88 4445 X Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमज्याचानार्थं सारथी / Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra / भागाः 52 53 उन्हामन्याः 1285 1334 1383 1433 1483 1535 1586 45 अन्तरं 48 48 50 51 24 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org उक्तमज्यानामार्थ सारणी। भागा: भागा: 57 58 58 1 12 / 63 उलामज्याः 1638 1682 1045 1854 1808 54 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरं 55 5445 41 44 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकमख्यानानार्थ सारणी। भागा: 645 6667 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 21352163 उमज्या: 2021 52 / 2008 34 / 2308 52 2268 44 2 45 24 अन्तरम् For Private And Personal Use Only यन्वरानी www.kobatirth.org उनमन्याज्ञानार्थ सारगी। भागा: उवामज्याः 2427 2487 2728 208. 42 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् Chey 25 AC 4 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकमयात्रामा सारगी। भागा: 81 82 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 83 84 / उता मज्या: 2851 2012 3151 3223 2874 52 88 58 50 अन्तरम् / 1 61 10 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहित:। www.kobatirth.org उक्रमज्यामानार्थ सारणी। भागा: C . उक्त मज्या: 3286 3.48 / 3411 2474 TE 3537 .. . 22 ." Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् 45 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 यम्बराजो भानामधस्ताव्यस्तं कसादिकं भवति 144. / २५अस्या मधे अयोविंशतितमकोष्ठकाधःस्थितक्रमज्याकोष्ठकावाः 14.6 / 38 पात्यन्ते शेषं 33 / 46 षच्या गुणिते नाता: 2026 एते अधः कोष्ठकान्तरान 5736 विभज्यन्ते लथं कला: 35 एवं भुजज्यातो धनुरंशाः 23 / 35 सपना एव सुजज्यात: कोटिज्यातच मोक्रमाभ्यां चापसाधन कार्यम् / अथ प्रतिभागं राशित्रयस्थ क्रान्तयः सान्तरा लिख्यन्त तद्यथा - ----- 48 . 143 48 क्रान्तिलामा) साहसी 24 24 क्रान्तिमानार्थ सारणी। 8 24 भुजभागा: क्रान्तिकला: अन्तरं भुजभागाः क्रान्तिकला: अन्तरं For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ meanin-enerat - क्रान्तिमानाथं सारणी ! Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भुमभागाः 13 14 mano क्रान्ति . 181 315 238 262 281 कला: 4816 असरं RY 2 48 44. Y For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org क्रासिमानार्थ सारणी। | भुनभागाः 15 / क्रान्ति 356 कला: 378. 448 484 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरं 23 23 23 22 2 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रान्तिञानार्थ सारणी। भुजभागा: 22 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 23 24 25 - - - क्रान्तिकला: / 584 648 54 অন্ন 22 For Private And Personal Use Only - - क्रान्तिज्ञानार्थं सारणी। यन्वराजो www.kobatirth.org 28 भुजभागाः क्रान्तिकलाः 735 25 28 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - क्रान्तिञानार्थ सारणी। भुजभागा: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 40 4142 816 क्रान्तिकला: 855 874 872 44 अन्तरम् 18 / 18 18 43 For Private And Personal Use Only क्रान्तिमानार्थ सारणी। मलयेन्दुसूरिकतटोकासहितः / www.kobatirth.org 44 45 PR भुजभागाः क्रान्तिकलाः 861003 1020 1.30 49 28 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रान्तिज्ञानार्थ सारगी। भुम भागा: 5. Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 5152 53 54 / 55 56 क्रान्तिकला: 11deg2 / 1118 1147 AC 15 अन्तरम् 45 24 For Private And Personal Use Only यन्त्रराजी www.kobatirth.org कान्तिज्ञानार्घ सारणी / भुजभागा: 55 क्रान्ति- 1176 कलाः 18 58 1180 . 5860 123 1216 1228 20 / 20 1253 अन्तरम् 3 13 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1312 12 INICAL Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कान्तिजानार्थ' सारणी / भुमभागाः 64 65 66 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 1264 1275 1286 1286 क्रान्तिकला: 1306 1315 2054 1624 58 अन्तरम् For Private And Personal Use Only क्रान्तिज्ञानार्थ सारणी। मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org 74 भुजभागाः क्रान्तिकसाः 1348 1357/ 1364 137. 53 / Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कान्तिजानार्थ मारणो। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भुजभागाः। 78 / 8. / 2 / 83 / 84 1406 क्रान्तिकसाः 1400 25 1403 5. 2. / 14 32 / अन्तरम् | 4 4 18 इति क्रान्तिकोष्ठकाः समाप्ताः 3 . 53 For Private And Personal Use Only यन्त्रराजी www.kobatirth.org क्रान्तिमानार्थ सारणी। भुजभागा: 88 88 1428 1414 क्रान्तिकला: 1412 / 1414 1411 22 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्तरम् Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिक्सटीकासहितः / अथ शानयानयनम् / सवादधश्चत्कलिकादिकां स्यादतीतभोग्यान्तरताडितं तत्। घट्या हृतं भुक्तफलेन युक्तं यन्त्र स्फुटाः क्रान्तिलवा भवन्ति // 7 // अस्य व्याख्या लवानां भुजांशानामधस्ताद्यदि कनादिक फलं भवति तदा तदतीतभीग्यान्सराङ्गताडितं षच्या भक्त भुक्तफले युक्तं च यन्ने स्फुटाः क्रान्तिलवा भवन्ति / अत्रीदाहरणम् / भुजांगाः 1.130 तत: क्रान्तिकलाकोष्ठ केषु दशांशानामधः प्राप्तं फलं कलादि 2382 तदधोऽन्तरं 23 // 4. पनेनान्तरेण पूर्वोक्ता त्रिंशगु मखते जाता: 18.120. प्रधोऽस्य पध्या भागे नाच 2. ते उपरि हिम्यन्ते जाता विकलाः 710 पामा षध्या भागे लब्धं कलाः 11 विकलाः 50 एतद्भुक्ता फले 23812 नियु क्रान्ति कला: सम्पत्राः 25.0 152 एवं मर्वत्र यदि तवानामध: कलादिकं भवति सय प्रकिया। भुजांगा: 20 तेषामधः प्राप्त कलादि 1415 एता एय नवतिभागात्मकस्य राशियस्य परमक्रान्तिकला भवन्ति / आमामेय क्रान्तिकलानां पध्या भागे लब्धा: परमकास्ययाः 23 कला: 35 एवमन्यावापि क्रान्तिसाधनं कार्यम् / For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 यन्त्रराजो अथ प्रत्यंशराविषट्कं स्वस्वाहोरात्रप्रमाणोत्पादनम् / * भुजांशकानां विपरीतमौर्वी मेषप्रमाणेन हता हृता च। भुजज्यया तक्त्रमया ततो यलब्ध फलं तच्छ कलं दिनस्य // 8 // * अत्रीपपत्तिः / आचार्येण दक्षिणध्रुवं दृष्टिचिन्हें प्रकलप्य तस्माहोलोपरिगतस्य कस्यापि वृत्तस्यावलोकनेन विषुववृत्तधरातले यादृगाक्कतिस्तत्साधनार्थं प्रथमं गीलपृष्ठस्थस्य कस्यापि विन्दोरूपं विषुववृत्तधरातले तदृष्टिचिन्हा हिवहत्तकेन्द्राद्यावतान्तरेण दृश्यन्ते तदन्तरं प्रसाध्य युज्याखण्डाख्यं लतं / यथा गोलपृष्ठे कोपि व विन्दुर स्योपरि उवद ध्रुवप्रोतं कर्त्तव्यं उ, उत्तर ध्रुवं, द, दक्षिणध्रुवं के विषुववृत्तकेन्द्र केग विषुववृत्तव्यासाधं प्र वविन्दोः प्रतिविम्बं विषुववृत्त धरातले च नकलप्यं / तदा केदा , त्रि.ज्या 1 व ... तथा केप्र = स्प-उव - कोज्या उव त्रि.ज्या व चि.ज्या उव --उदचाप च्या उव.कोज्या / उव 2 ज्या उव-कोच्या उत्र For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / . व्याख्या भुजभागानां या विपरीतमौर्वी उक्तमज्या सा मेषप्रमाणेन 18 / 38 गुणयित्वा भुजक्रमज्यया भाज्या तत. स्तस्मालब्धं फलं तद्दिनस्य खण्डं भवति / अत्रोदाहरणम् / यथा प्रथमांशस्य भुजलवा: 100 एषामुक्तमज्या 033 इयं मेषप्रमाणेन 18 / 38 एकरूपेण गुण्यते जाता 0627 / 1254 अधःस्थाङ्गस्य षट्या भागे लब्धा: 20 शेषं 54 लब्धाङ्काः 20 उपरितनाङ्क 627 एवं रूपे याजिताः 647 एषामपि षध्या भाग लब्धं 10 उपरितनशून्यस्थाने स्थाप्यन्ते जाताः क्रमेण कलादयः 1 0147 / 54 ततोऽस्या भुजक्रमज्यया 625. भजनार्थ दशषष्ट्या 6 * गुण्यन्ते तन्मध्ये 47 क्षिप्यन्ते 6 47.54 एवं भुजक्रमज्याङ्केऽपि 62 षष्ट्या गुणिते पञ्चाशनिमन्ति ते जाता 3710 एभिः पूर्वाङ्गस्य भागे लब्ध भागाद्यं 01. एवमेतत् प्रथमां यस्य युज्या फलं शकलमुच्यते एवं नवत्यंशान् यषिद् ाज्याखण्डान्युत्पाद्यानि / ज्याउव च्याउव 4 अधात्र यदि उव = 8.0 तदा केप्र = त्रि, प्रतः विज्यामानसमं मेषादिमानं तन्मानमिष्टं चेल्कल्प्यते तदानुपाती यदि त्रिज्यया पूर्वसाधितं के प्रमानं तदा मेषप्रमाणे नाभीष्टेन किं जातं के प्र= ममा उज्यालव अत उपपन्न मू ज्याउव लोक्तम् / नवत्यधिकानामुकमयां ज्यामित्या प्रसाध्याग्रिमशोकोपपत्तिया। For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्र राजी अथ नवत्यधि कांग्रेषु धुज्याखण्डोत्पादनम् / प्रवईमाने नवतेरथांशे कोटिक्रमज्यान्तिमया 3600 तु यक्ता। तुलाजमानेन इता विभक्ता क्रमज्यया वाहुजया लवादि // 6 // व्याख्या नवतरुपरि अशी त्यधिकशतपर्यन्तं 18. या सर्भिवति तदा कोरिक्रमज्यया सहितायाः विज्यायाः तुलाजयोनिन गुणिताया भुजकमज्यया भक्ताया लब्ध फलं लवादि नवत्यधिकांशानां घुयाखराळं भवति / पत्री. सारणम् / यथा राश्यादि केन्द्र 31.. केन्द्राइजानयनं यथा 'पात्रितयादविकल्पमधिक केन्द्रं विशोधयेत् षड्भ्यः / घहधिकमूनं डिनवाधिकं श्याधये चकात् // भस्य व्याख्या राशिधिकस्य केन्द्रमिति संज्ञा सन्म केन्द्र पाश्तियात् पारा शित्रयादविकल्पं तस्मान्न किश्चित्यात्य मित्यर्थः / तत्र केन्द्रमेव भुजः / प्राधिक तत् षडाकोषयेत् षडधिकं षडिरून कायं भवाधिक केन्द्र चक्रात् हादशादियोधयेत् सर्व त्रापि शेषांशको भुजः / पत्र प्राधिक केन्द्रमस्ति इति षड्भ्यः पूर्वोतकेन्द्राङ्गः शोध्यते शेषं भुजः 2'28. प्रत: कोटिरामीयते राशित्रयादस्मिन् भुजे पातिते शेष For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्त येन्दुसूरिकतटीकासहितः / 24 कोटिः // 01.01. अस्याः कोटे: क्रमज्या 62'50 अन्तिमज्या 16.. सहिता 3652 / 50 मेषतुलामानेन 18138 गोमूत्रिकया गुणिता जातोराशिः 68578850 138156 / 18.00 अधःस्थास्य पध्या भागे लब्ध 31 एते 850 मध्ये क्षिप्यन्ते जाता 881 / एते 138156 मध्ये क्षिप्यन्ते जाताः 14.133740 एषामपि पध्या मागे लब्धाः 2335 शेषं 37.40 लब्धा उपर्यो 58 / 578 क्षेच्या जाता: 718137140 एतेभ्यो भुजभागानां 88 क्रमज्यया 3588 / 27 भागे लब्ध एकनवत्यंशानां लवाद्यं धुज्या खण्डं 18158 / अथ युज्याफलानामुपयोगमाह / इदं भचक्राईभवांशकानां ाज्याफलं स्पष्टतरं यदुक्तम्। अक्षांशकेभ्यः सुधिया तदई केन्द्र तथा व्यासविधौ विधेयम्॥ 1 // व्याख्या भचक्राईभयानामशी त्यधिकम्पल मिशानां भागामा स्पष्ट तर युज्याफलमुक्त मक्षांशकेभ्यः केन्द्र व्या मोत्पादनाथें / सुधिया तस्य धुजाफल स्थाई करणीयम् एतनागाद्यं छज्याफलं सौम्यध्रुवादे कांशतः प्रत्यंशं याम्यध्वा भिमुखं अगीत्यधिकभागपर्यन्तं ज्ञातव्यम् / एतन्नतवलयोत्यादने दर्शयिष्ये पथ प्रत्वंशरामिषटकस्य ाज्याफन्न कोठका: सन्तरा लिख्य न्ते For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्वराजो . - - . . ---. - - - -.. ir into a द्यज्याखण्डनामा) सारणी / |ज्याखण्ड ज्ञानार्थ सारणी। R - - 11elH धुन्धाफलं अन्तरम् भागा: ज्याफलं अन्तरम् - - - --- - - -- --- For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनचे न्दभूरिकतटोकासहितः। 0 0 28 17 Mr. 6 युजाखण्ड ज्ञानार्थ सारणी। द्यज्याखण्डनानार्थ सारणी। 20 . . 2 4 भागा: - युज्या फलं अन्तरम् सागा: द्यज्याफलं अन्तरम् For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्याखण्डनाना) सारणी / Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागा: / 29 30 31 32 धुज्याफलं MAR 48 अन्तरम् For Private And Personal Use Only यन्त्रराजी www.kobatirth.org युज्याखण्डनानार्थ सारणी / भागाः / 38 38 धु ज्या फलं Y Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - युन्याखण्डवानासारणी। भागाः Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 44 47 धुज्याफलं 88 अन्तरम् 12 / 12 12 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः। युन्याखण्डमानार्थ सारगी। www.kobatirth.org भागाः 50 51 52 द्युज्याफलं - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9 अन्तरम् Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्युज्याखण्डनानार्थं सारणी / भागाः Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra द्यज्याफलं 48 o0 र अन्तरम् त 14 14 For Private And Personal Use Only यन्वराजो www.kobatirth.org घज्याख राहतानार्थं सारणी। भागाः 1 धुज्याफन्लं 4 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 0 अन्तरम् 1) 15 15 : 15 5 i dyowirAMJHamat.unimittaiminarauratkashhammaki Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युज्याखण्डनानार्थ सारसी / भागा: 71 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 72 73 74 द्यञ्चा- 14 14 14 14 g8 MY अन्तरम् / For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org यज्यासण्डज्ञानार्थ सारणी / भागाः / 78 82 द्यज्या. फलं 15 55 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्वराजी 78 द्यज्याखण्डनानार्थ सारणी / धुच्चाखण्डज्ञाना' सारणी। MY भागाः 8283 845 42 20 भागाः यज्या या- फलं अन्तरम् अन्तरम् फलं For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युज्याखण्ड ज्ञानार्थ सारणी / Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 6 भागा: 1 .0 1.1 / In 102 24 द्यज्याफलं 24 16 43 37 अन्तरम् Gur For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org द्य ज्याखण्ड ज्ञानार्थं सारणी / भागाः 107 108 108 110 aa ज्याफलं C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् my 3 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्याखण्ड ज्ञानार्थ सारणी। | भागाः 113 114 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 115 द्यज्या- फलं 28 41 30 32 . 42 21 अन्तर . 34 35 35 / 37 30 For Private And Personal Use Only यन्त्रराजी www.kobatirth.org द्युज्याखण्ड ज्ञानार्थ सारणी। भागाः 120 121 122 123 124 / 25 / 126 34 35 यज्याफलं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् 42 - 434446. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FEATREATRE धुजाखण्डज्ञानाथं सारणी। भागा: 128 / 128, 130 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 131 . 4. 41 42 / 88 45 यज्या फलं 38 25 अन्तरम् . 1 41 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुसूरिकतटीकासहित: / www.kobatirth.org यज्याखण्ड ज्ञानार्थ सारणी। भागाः / 134 135 / 136 / 140 48 53 47 दा ज्या 4851 53 फलं 58 MY अन्तरम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 26 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दा ज्याखण्डज्ञानार्थ सारणी / भागाः 141 142 143 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 144145 / 146 147 55 57 58 धु ज्याफलं 282 44 28 0 19 अन्तरम् 445158 4 For Private And Personal Use Only यन्त्रराजो www.kobatirth.org युज्याखण्डनानाथं सारणी।। भागाः 148 / 148 150 151 / 152 153 154 द्य ज्याफलं 32 अन्तरम् 22 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याखण्डन्नानार्थं सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः 155 / 158 158 105 द्यज्याफलं अन्तरम् m Gh For Private And Personal Use Only ाज्याखण्ड ज्ञानार्थ सारणी / मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / www.kobatirth.org भागा: 148 धुज्याफलं 231 28 138 50 4 58 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यज्याखण्डनानार्थ सारणी / Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागाः 168 170 171 172 / 173 224 / 281 331 यज्या - / / 2.4 फलं 3 249 42 40 2 अन्तरम् For Private And Personal Use Only तत् खण्डयोरन्तरसंगुणं सत् / भवेल्लवाधः कलिकादिकं यत् अथ द्युल्या फलानयनम् / यन्वराजी www.kobatirth.org भागा: 175 द्यज्याखण्ड ज्ञानार्थ सारणी / 176 17 18 178 1225 2250 / 450 75 3480 युज्याफलं 2 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरम् 112 374 1124 / 1228 manenerature Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / षट्या हृतं भुक्तफले नियोज्यं भवन्त्यहज्याशकलानि सम्यक् // 13 // व्याख्या तवानामधस्ताद्यदि कलादिकं भवति तदा भुक्तभोग्ययोई यी: खण्डयोरन्तरेण गुणं -बट्या हृत लब्धं भु. ता कले याज्यं एवं युज्याशकलानि सम्यक् भवन्ति / अत्रीदाहरणम् / कल्पनया यथा लवाः 1 तदधः कलात्रिंशत् 30 ततो युज्याफल कोष्ठ केषु प्रश्रमांशाधः प्राप्त युज्याफलं 0 / 10 तदयोऽन्तरं 0 / 10 अनेनान्तरणाध.स्थाः कला:त्रिंशगुणिताः 300 अस्याङ्गस्य षध्या भागे लब्धा 5 उपरि शून्यस्थापि. तास्तेषां भागे प्राप्ताः पञ्चैव कलाः स्थितास्ता भुक्ताफलमध्ये निक्षिप्ता जाता पञ्चदश 15 एतत् सादांशस्य धुज्या फलं 0 / 15 ए वमन्यत्रापि कार्यम् / अय सौम्य यल्वे इष्टाक्षांशानामुन्नत वलयव्यासप्रमाणानयनम् * पलै विह.ना गगनाष्टरूपाः 180 शेषास्तथाक्षाः पृथगेव धाऱ्याः / शेषाक्षयोर्वासरखण्ड केभ्यो धुच्याफलं वै परिसाधनीयम् // 12 // * अत्रोपपत्तिरस्य ग्रन्थस्य समाप्ती मटुक्तेन प्रतिभावीधर्कन छेद्यकविधिना वोध्या। For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 44 यन्धराजो - - - तदक्षसंज्ञेन फलेनहोनं यक्तं च शेषांशफलं विधाय / अर्द्ध विधेयं च ततः क्रमेण केन्द्रं भवेदव्यासदलं भुजाख्ये॥१३॥ शेषे तथाक्षे च यथेप्सितांशाः शोध्यास्ततः पूर्ववदुक्तरीत्या / कार्याणि केन्द्राणि सविस्तराणि भूजाख्य हत्तात्पुरतः स्फुटानि // 14 // एषां व्याख्या पलशब्देन अक्षांशा उच्यन्ते पलैः स्वस्खलेशानांगैगंगनाष्टरूपा अशीत्यधिकशतांशा 18. हीनाः कर्तव्याः शेषांशाः अक्षांशाश्च पृथक् धार्याः / ततोऽक्षशेषाक्षांशयोपुंज्याखण्ड केभ्यः पूर्ववत् ाज्याफलमानीयाक्षांशगतफलेन अक्षशेषफले विस्थं एकत्र हीनमपरत्र युतं च कृत्वा इयमप्यहोकतं सत् क्रमेण केन्द्रव्यासौ भुजवृत्तस्य भवतः / तदनु अक्षशेषे अक्षे च एकादिषट्पर्यन्तेषु इष्टोन्नतांशेषु अक्षशेषात् अक्षाच्च पूर्वोत्तरीत्या एव तावतामुन्नतांशानां भुजास्थितानां केन्द्रव्यासानयन कार्यम् / अत्रोदाहरणम् / यथा श्रीमद्यीगिनीपुरे याम्याक्षांशाः 28:38 एतेऽक्षांचा अशी त्यधिकशत 180 मध्ये पात्यन्ते शेषांशाः 151 / 21 एभ्यो युज्याफलमा For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / 45 नीयते यथा राशिषट्कस्य स्वाहीराचप्रमाणफलज्याकोष्ठकेषु एकपञ्चाशच्छताधः प्राप्तंधुज्याफलं 7558 सदघोन्सरं 215. अनेनान्तरेणांसाध:स्थिनाः कलाः 21 गुमन्ते जाताः 42 / 1050 अधस्तनाङ्गस्य षड्या मागे लब्धाः 17 एते उ. परितनाचे 42 मध्ये योज्यन्ते जाता 58 एताज्याफलाइ 75 / 58 मध्ये योज्यते जातमक्षशेषस्य ाज्याखण्डफलं भागायं 76 | 58 अनयैव रीत्या अक्षांशभ्यः 28 / 28 धुन्या फलं प्रसाध्य तदिदमांशफलं भागाद्य 51 सदअपूर्वानीतं शिफलं स्थानदये संस्थाप्याक्षांथफलमेकत्रपातयित्वा अन्यत्र योजयित्वा चावशिष्टांशींकते क्रमेण भुजहत्तस्य केन्द्रं 35'5830 व्यासश्च 4 0 158130 स्याताम् / अथ भुजहत्तादग्रे स्थितानामुन्नतांयानां केन्द्रव्यासानयनम् / पूर्वोक्ता दक्षशेषात् 151121 षडुब्रतांसा: पात्यन्ते जाताः 14521 तथा क्षांशाः 22938 ततः पूर्वरीत्या घडुव्रतांशामां केन्द्र 28 / 31 व्यास: 3328 एवं क्रियमाणे चतुर्विशत्यु बतायानां पातनाच्छषांशाः 12712.1 अक्षांशाः 438 एभ्यः पूर्वरीत्या साधित केन्द्र 1827 व्यास: 2015 यत्राक्षांशभ्य उवांधा न पतन्ति तत्र युक्तिमाह | स्युरक्षतश्चदधिकोन्नतांशाः / तेभ्योऽक्षपाते विहिते तथैव / For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्दराजो. धुञ्याफले तदृहयतः प्रसाध्य युक्तोनितं शेषभऽक्षजातम् // 15 // पोलतं केन्द्रमिह ति तहद व्यासोऽपि तस्मात्पुरतोंऽश्कानाम् / शेषे तथाक्षे च वियोगयोगात्तथैव केन्द्राणि सविस्तराणि // 16 // अनयोाख्या यत्राचशेभ्यः उन्नतांया न पतन्ति तत्रोत्रतांशेभ्योऽक्षांशान् पातयित्वा शेषांशेभ्य उक्ताशाम्पातयिखा ततः प्राग्वत्तयोर्य ज्याफले समानीय हिस्खे शेषांशफले प्र वाज्याफलेन क्रमाद्युक्तोनिते च पश्चादी कते सावतामुन / तांथानां क्रमेण केन्द्रव्यासौ भवतः / सत ऊर्ध्वमीप्सितांशानां शेषांशभ्यः पातेऽक्षांशकेषु क्षेपे क्लते च युज्याफलादिप्रक्रियायां कताय क्रमेण नवत्युवतांगाना केन्द्राणि व्यासास भ. वन्ति / अत्रीदाहरणम् / यथा पूर्वोत्रा: शेषांगाः 127121 अ. क्षांशाः 4138 पथ शेषशिभ्यः षडुब्रतांशाः शोध्यन्ते जाता: शेषांशाः 121:21 उनतांशाना बहुत्वात् पक्षांशेभ्यो न पात न्ति इत्यक्षांशा एव सेभ्यः पात्यन्से शेषाः 1121 एतेऽयक्षांशाः एवं एषां घुज्याफलं यथा शेषाणां द्युमाफलं 34 / 58 / प्रवाशा ज्याफलं .'13 तती हिस्से शेष ज्याफले अक्षांद्यन्याफलेन युरो वियुक्त अर्बीतते च त्रिंगतांशानां केन्द्र For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्तयेन्दुमूरिखसटीकासहितः। 47 17136 व्य.सः 1123 सतः परमीप्सितांशान् शेषांशयी / विशोध्य अक्षांशेषु क्षिप्त्वा पूर्वोत्रायुज्याफलादिप्रक्रियया |भवत्युचतां शपर्यन्तं केन्द्रव्यासा: साध्यन्त / पथ याम्ययन्त्र इष्टाक्षांशानां उन्नतवलयकेन्द्रव्यासानयनम् / यथ सौम्ये यमदिगतेऽपि . भूजाख्यवृत्तं भवतीच तुल्यम् / प्रचापि सौम्योदितयैव रीत्या कार्य विशेषः पुनरग्रतोऽस्मात् // 17 // शेषे तथा च समीप्सितांशाः क्षेप्या भचक्राईमुपैति यावत् / भाडाधिकं यच हि चाक्षशेष तच्छोधितं शून्यरसानलेभ्यः 360 // 18 // अक्षांशकान् प्राप्तफलेन युक्तं हीनं तदई भवति इयं तत् / अतोऽक्षशेषे पतिते भचक्रात् शधे तथाऽये च यथेष्टभागान् // 18 // त्यत्का च धृत्वा च कृते तथैव सर्वाणि केन्द्राणि सविस्तराणि / For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यम्बराजो सौम्यानि याम्यानि च मित्र यन्त्र निवेशनीयानि यथोदितानि // 20 // एषां व्याख्या सौम्ये याम्ये च यन्त्र अक्षांशेभ्यो भूजवत्तानयनं तुल्यमेव ततोऽत्रापि याम्ययन्त्र सौम्ययन्त्रोक्लयैव प्रक्रियया भूजवृत्तस्य केन्द्रव्यासौ साध्यौ / अग्रत: केन्द्रव्यासानयनेऽस्मात्मौम्ययन्वादयं विशेषः / कोऽयमित्याह / शेषांश क्षाशेऽच एकादिषट्पयन्ता इष्टोत्रतांशा भचक्राईमशी त्यधिकशतांशान् यावल मेण योजनीयाः ततो छु ज्याफलाद्यानयन सौम्ययन्त्रवत् / भचक्रादूर्व पुन: शून्धरसानलेभ्यः 360 अक्षशेषे विशोधिते प्रग्वदुभयोर्तुज्याफले साधित हिस्थे शेषफले अक्षफलेन युक्ते वियुक्त अर्कीकृते च तावतामुन्नतांयानां केन्द्रव्यासौ स्याताम् / तदन शून्यरसानलेभ्यः प्रक्शोधितेऽवशेषे इष्टोवतांशापातयित्वा अक्षांशे तान्योजयित्वा च शेष तथैव कृते नवत्यंशपर्यन्तं सर्वे केन्द्रव्यासाभवेयुः। एता. नि च सौम्यानि याम्यानि सव्या सानि केन्द्राणि सौम्ययाम्यात्मके मिययन्त्र बुद्या स्थाप्यानि / अत्रोदाहरणम् / अक्षांशाः 28 / 38 शेषांशा 151 / 21 एभ्यः प्राग्वत्साधित भूजहत्तस्य केन्द्रं 35158:30 व्यास: 4 0 158.30 ततो ऽक्षये घेऽने च 151 // 21 // 28 // 38 षडुबाया योज्यन्ते जाता: 157,21 अक्षांचा३४३८ एभ्यः प्राग्वत् षडुनसांगाना For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः। 48 केन्द्र 461 व्यासः 528 एवं चक्रावं यावत् केन्द्रव्यासा: साध्याः एवं क्रियमाणे भचक्रादूर्वं शेषांशाः 18121 अक्षांशाः 58 / 38. अत्र भााधिकबाच्छेषांयाः 18021 भचकात् गोध्यन्ते जाता: 178638 एते शेषांशाः उभयो: प्राग्वा ज्याफले साधित शेषफले विस्थानस्थेऽक्षफलेन एकत्र बुतो अन्यत्र वियुक्ती च अर्बीकते नातं त्रिंगदुखतांगानां केन्द्र 134. व्यासः 822 // 38 प्रथा अमेषादुनतांगा हीनाः नियन्तऽथे क्षिप्यन्ते च तथा माता: शेषांशाः 102138 पक्षांशाः 64 / 38 एभ्यः प्राग्वत् पत्रिंशदुब्रतांशानां केन्द्र 158 / 53 व्यासः 147127 अनयैव रीत्या नवत्यशपर्यन्तं केन्द्रव्यासा: सम्पादनीयाः / / अथ निरक्षांशात् लकाप्रदेशान्मेरुपर्यन्तं पूर्वापरदिग्ख्यापिमः सप्तविभागास्वदन्तर्वतिनां नगराणां अचांगज्ञानार्थ प्राद्यैः कल्पिता: सन्ति / तेषां यवनभाषया इकलीम इति संत्राः कताः / शनिगुरभौमरविशुक्रबुधसोमाः क्रमात् खा. मिनय एवं निरक्षलङ्करप्रदेशात् प्रतिभागमक्षांशास्त्रयोदश नवलिप्ताभि 12151 रूना मध्यरेखातः पूर्वापरभागस्था भवन्ति / एवं यत्राक्षांशाः त्रयोदश 13 षड्विंशतिः 26 एकोनचत्वारिंशत् 38. बिपञ्चाशत् 13 पञ्चषष्टि 65 रष्टसप्ततिः 7 नवतिः . पर्यन्ताः / अनेनैव क्रमेण सप्तभामाः स्युः परं हिपञ्चाश. 53 दशांशा यावअनुष्याणां निवासः . wr. . ' -imr... * .. समान For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजो तदग्रतः पक्षध्वंशपर्यन्तं शीतवाहुयात् अन्धकाराच मनुष्याणां अल्प एव सञ्चारः तत्परतः किबरगन्धर्वविद्याधरसिहानां प्रचारदेवभूमयः / अथ चतुर्विभागान्सर्वतिनां नगराणां सुखावबोधार्थमक्षांशाः प्रदान्ते तद्यथा लशायामधांशाः .. पादाने 11 काञ्चयां 12 तिलङ्गे 18 अनागुद्यां 18 / 10 गङ्गासागर 1812. हावसे 1813. दिवगिरी 2034 भाबकसंज्याणदमननवसारिकायां 21 अलजपुर 21 माण्डवे 22 मक्कायां 21 मधुवने 20 श्रीभृगुको नन्दपदे स्तम्भतीर्थ धवस्वके / 22 आशापनल्या 23 सीमनाबपनने माङ्गल्यपुरे 2212015 रैवतकाचले 2231 उज्जयिन्यां 223. धारायां 2313. अहिलपुरपत्तने 240 नलपुरे 25. सिरौजे 25 ग्वालियरे 25 अजमेर 26 नागपुरे 26 वाराणस्यां 25/25 लक्षाणावल्या 25 कुण्डिनगरे 26 / 28 कान्यकुले 26.35 माणिक्यपुर 2648 तैरभुक्त 27 जाजनगरे 27 सउडीयस्थाने च 2015 पयोध्यायां 2722 गोपालगिरौ 2728 वुहिजे 27/45 गोपीमहकोजलाल्या 284 कम्पिलायां 281. शिवग्याने 28 / 15 उपनगरे 282. परपनगरे 2828 दिलल्या श्रीयोगिनीपुरे च 28128 रोहीतके 28. मेरटे 28. मुसताने 244 हास्या 2945 श्रीपेरोजनृपाशितहिन सारपैरोजावादे 28148 चम्पाने 222 दीगे 22 खम्भाते 22 For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्तयेन्दसूरिकतटीकासहितः / 51 भण्होजअहमदावादे 23 हारकायां 23 जातोरइन्दुरे 24 सरखतीपत्तने 2 / 5. चानेखरे कुरुक्षेत्र 30.. कपिछले अनन्धर सुनामसिमणिके 3.3. देवपासपुरे 31 बदकसाने 35 से 3622 दामगाउ 36.3. मोराजे 3614. वलखे 26/4 * नपसावरे 371. काश्मीर 21/2. तिरमिदि 20:35 वावरदे 37 // 4. चिगानि 375* बुधहारे 38 समरकन्दे 4* वुधारजमे 4212. कासगरे 44 वुलगारे 48 तावत्पर्यन्ता निवासभूमिः / तथा काव्ये सति एभ्यो. क्षिांशा विलोक्या: / अथ गएकानां हिताय कियतामपि अक्षांशानां सौम्ययाम्यकेन्द्रव्यासा: सान्तरा: परमदिनविषुपच्छायास्तकर्णसविता: प्रदर्श्यन्ते यथा नवीनयाम्य मौम्यमिश्रयन्त्रकरणं एम्यः सत्वरमायाति परमदिनं काम्यां 3415 पल छाया 5.45 कर्णः 1318 अथात्र यन्त्र भमण्डला ग्रन्थनियत्तिवर्षोत्यबसायन दाशिवक्षवध्रुवकाः सौम्ययाम्यविक्षेपसहिता: प्रोच्यन्ते / विषण्यं क्रियंशा फतवोऽग्निवेदाः हा४३ सौम्यः शरो भानि लवास्तथा 27 स्मिन् / नयन्तकं नन्दधरास्विवेदा-१९४३ वाणोऽस्य याम्योऽग्निशराव साही:५३।३.१२१॥ For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवाया: . 1218 24, 30 36 42.48 45 अक्षांश- 25 18 13.1 5 10 16, 23 शेषांशाः 365 26 24 24 24/ शेषशेषा-१५४१४८ 142 136 13.124 118112 106 24 24, 24 | 24 24 . 24 24 24 24 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra For Private And Personal Use Only www.kobatirth.org केन्ट्राणि 21 2034 यबराजी व्यासा: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir POLIMATETAPA मलयेन्टुसूहिकतटीकासहितः / नचैव नेत्रदयमग्निवेदा- 22243 सौम्यः शरस्तभुजा नखाश्च 26 / 2 / / तवाश्विभं वाणकराः कुदोषी 25 / 21 वाणोऽस्य सौम्यो मुनयो नखाश्च 72.22 // प्रजे भमङ्गदितयं त्रिवेदाः / 26 / 43 सौम्यः शरश्चन्द्रशराः खबाइ 5 / 20 / मनुष्यशीर्ष धृतयः सुराः स्युः 11833 सौम्योऽस्य * पची विकराः स्वमेव 23 // 23 // रोपरं रामहशोऽग्निवेदाः 1 / 2343 सौम्येषुरस्थानगुणा वियच्च 30 / ब्राज़ नृभे भूस्त्रिदिवौकसोऽ 221133 म्य वास्तु याम्यो विशिखा दिशश्च 5 // 10 // 24 // नृयुग्मपादे करियस्त्रिवेदा 28543 याम्यः शरोऽस्येन्दगुणाश्च सार्वाः 31 // 30 // स्कन्धोऽस्य वामो रवयोऽनिवाणाः // 12 // 53 शरोऽस्य याम्योऽद्रिधराः खरामाः 1730 // 25 // तस्मिन् षडास्योऽग्निधरास्त्रिवाणा 153 * पत्री भरः For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजो वाणोऽस्य याम्यो दिकराश्च साहः 2 / 3 / / तद्धस्तभे शून्यभुजा 20 स्त्रिवाता- 53 याम्योऽस्य पत्री नगभूमयः 170 खम् // 26 // कर्के च धिष्ण्यं भगवानगस्तिः षडब्धयो 3 / 6 / 4 याम्यशरोऽक्षशैलाः 75 // तत्रैव चाद्री तवः सुराश्च हा३३वायोऽस्य याम्योऽङ्कगुणा दिशश्च 36 / 10 // 27 // तस्मिंस्तृतीयं रक्यी गुणमा 3 / 12 / 13 सौम्यः शरो नन्दलवाः खवेदाः 1 / 4 / व्याधानुजोऽस्मिन्धृतयो ऽग्निवेदा 31843 याम्यः शरो भूपतयो दिशश्च 161 मार॥ सिंहे मघा भूमिकरास्त्रिबाह हार॥२३ सौम्य. पतन्यस्य नभः खचन्द्राः / 1. कन्यास्थितं भन्निधरास्त्रिदोषः 513 / 23 सौम्योऽस्य वाणोगिरिश खवाणाः११५.६॥ भन्तन ऋक्षाणि सुराः // 27 // 33 शरोऽस्य याम्यः पयोराशिभुषोऽधवाता 14 / 5 / / चिचा तुलायां तिथयोऽग्निरामा 6 / 15 // 33 For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिक्ततटीकासहितः / याम्यः शरोऽस्य हितयं लवाः खम् 20 // 3 // स्वाती च तस्यां तिथयोऽग्निवाणा हो१५५ सौम्यः शगे भूमिगुणाः खरामाः 31 // 3 // कोटे विशाखा दहनस्त्रिरामा 9333 सौम्यश्शरोऽधनतयश्च साहाः 44 // 3. // 31 // ज्येष्ठाय चापे धरणी सुराश्च 8133 स्थाहक्षिणस्यां विशिवोऽब्धयः खम् 4 / / तस्मिन् धनुः कोटिभमग्निभूमिस्त्यम्भोऽब्धयः८।१३।४३ घतिरूत्तरेषु३६। // 32 // मूलं च तचैव नखा गुणाः स्यु-८२.३ र्याम्योऽस्य वाणोऽग्निधराः खचन्द्राः 13 // 10 // भं तत्र तत्त्वानि समुद्ररामाः चार॥३४ सौम्यः पतच्यस्य करौखवाताः 2 / 5* // 33 // मृगेऽभिजिद्रं षदुषर्बुधक्ष्माः हाहा१३ सौम्यः शरी बाहुरसा नभश्च 62 / श्रुतिर्मगे बाहुकरास्त्रिवेदाः हा२२१४३ सौम्यः शरो नन्दकरा दिशश्च 26 // 10 // 34 // कुम्भेष भं वाणकरास्त्रिवाताः 102553 For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्ररानी सौम्यः शरो रामकरा वियञ्च 23 / / तत्रैव भं नागभुजास्त्रयोऽपि१.२८३ सौम्यः शरः शून्यरसाः खमेव 60 // 35 // मीने हरांशः कुकरास्त्रयोऽथ 11 / 21 / 3 सौम्यः शरो भूमिगुणा नभोऽत्र 31 / / / तव में वन्दियमास्त्रिधाच्यो 11 / 23 / 13 याम्यः शरो नन्दलवाः खवेदाः 6 / 4. // 36 // इमानि भान्यायनकर्मशुद्धान्येषु दिवाणा 52 विकला अपि स्युः। यन्त्रोपयोगीनि मयोदितानि नक्षत्रगोले बहुलानि तानि // 37 // नक्षत्रगोले त्वनयव रीत्या रहस्यमेतद्यवनागमस्य / हकर्मशद्धानि विधाय भानि यन्चे निवेश्यानि गुरूपदेशात् // 38 // एषां व्याख्या शकमतेन नक्षत्रगोले नक्षत्राणां हाविंशत्यधिकसहस्र 8022 मुक्कमस्ति तन्मध्ये ग्रन्थकारण यावनं नक्षत्रगोलं सविस्तरं सम्यग्बुद्ध्वात्र यन्त्रोपयोगीनि हात्रि For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः। 57 नक्षत्राणि गृहीतानि तत्र मेषे 5 वर्ष 2 मिथुने 5 कर्के " सिंहे 1 कन्यायां 2 तुलायां 2 मृसिके / धनुषि 4 मकर 2 कुम्भे 2 मीने 2 एषां ग्रन्यादिध्रुवकालाः सायनाः मविक्षेपा: स्पष्टार्थी एव यथा मेषे प्रथमनक्षत्रस्य राश्यादिध्रुवकः / / 6 / 43 // 52 उत्तरी विक्षेप:२३. नक्षत्राणां मेषादिराश्यंगाद्याः क्रमेण नक्षत्रध्रुवको मेषादिराशिभ्यो याभ्यसौम्यविभागेन नक्षत्राणामन्तरं विक्षेपः / तथा सर्वेषु ध्रुवकैषु हिपञ्चाशद्विकला जेया: नक्षत्रनामादिन्यासी नच कोष्टकेभ्योऽवधार्यः। एतानि नन्नवाणि दृक्कमशहानि कस्खा गुरूपदेशाधन्तेषु स्थाप्यानि कर्मणां पुरस्तात् व्याख्यास्यते নীল নক্ষমতলাবি বুদ্ধমন্তানি ক্ষিনানি स्थाप्यानीति शेषः / अथ ग्रन्थादिनक्षत्रध्रुवकेभ्योऽभीष्टवर्षे नक्षत्रध्रुवकानयममाह! हिनन्दस्य 1262 रहिताच्छकाब्दाबभोऽश्विशैलै 720 गुणिताखवेभैः 8.. / प्राप्त कलाद्येन युतं स्वभीष्टे वर्षे भवेत्सायननामकन्तत् // 38 // व्याख्या इष्टवर्षस्थशकाग्दे विनन्दसूर्यानूनवित्वा शेषं न. भोऽश्वियैर्गुणयित्वाखखेभैर्भाच्यास्तेभ्यो लधं यकालादिफलं तद्युक्ताः सायना ग्रन्यादिनक्षत्रध्रुवकाः इष्टवर्षस्य नक्षत्रधु For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 58 यन्त्रराजी वका भवन्ति / अथ अन्यशकवर्षे 1282 नियनः एषु पातितेषु शाके न किञ्चित्तिष्ठति ततः कल्पनया भाकः 13.4 वर्षे नक्षत्रध्रुवकोदाहरणं प्रदर्श्यते / स्थापितशके 13.4 एभ्यो हिनन्दसूर्याः 1282 पात्यन्ते शेषं 12 खाखिशैलै 720 संगुण्य जातं 864. अष्टशत्या 8.. भागे लब्धं कला: 1.148 एताः पूर्वोक्तसायने मेषाधे नक्षत्रध्रुवके / '4 3 / 52 क्षिप्यन्ते जातोऽभीष्टशकवर्षस्य मन्नबध्रुव कोऽयम् 1654340 एवं शेषा अपि ग्रन्यादिनक्षत्रध्रुवका: स्वयमूहाः अथ नक्षत्राणां खस्वध्रुवकेभ्यः खकीयस्वकीयक्रान्ल्यानयनम् / भेषादावुत्तरो गोलस्तुलादौदक्षिणः स्मृतः। क्रान्तौ चिराशियुक् दोचा वाणकोटिज्ययाहत 40 // भाज्यारत्यया ततश्चापे नवतेः शोधिते पुनः / गुणेन भक्ता बाणज्या प्राप्तंभागादिकं ततः // 41 // स्यादन्तरं पराक्रान्तिस्तेन युक्ता तथोनिता। गोले भवाणयोरैको भेदे वाप्तस्ततो गुणः // 42 // इतः पूर्व धनुाि भक्तश्चान्त्यज्यया ततशच लब्धाच्चापं युतं होनं कर्तव्यरेख तत्॥४३॥ गोले भपचिणोरक्ये भेदे स्यादपमः स्फुटः / For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / याम्यसौम्यविभागेन मध्यरेखासमाश्रितः॥४४॥ ___ एषां व्याख्या ग्रन्थादिनक्षत्रध्रुवके मेषादिराविषट्के उत्तरगोलस्तुलादिराशिषट्कस्थे दक्षिणगोलः / ततो नक्षत्रध्रुवकं पट्टके संस्थाम्य तत्र राशिस्थान राशिवयं दत्त्वा पूर्ववजीवा समानोयते सा भुजज्या सत्रिराशिज्या च कथ्यते सा बाणकोटिज्यया हत्वा पान्थन्यया 36.. भाज्या ततः प्राप्तचापमानीय नववियोध्य तच्छेषाटुत्पनेन गुणेन नक्षवायरज्यायां भगायां ततो लब्धं भागादिकमन्तरमुच्यते ततः पूर्वोतग्रन्यादिनक्षत्रध्रुवके तदधःस्थितवाणेन सह एकदिक्खितवादैक्ये भिन्नदिकस्थितत्वात्तयोर्भेदे च प्रामानीतेनान्तरेख परमक्रान्तिभागा: 23 / 35 ऋमिण युक्तहीनाच क्रियन्ते ततस्तेषां जीवामानीय पूर्वानीतचापस्थानीयतया जीवया मा संगुण्यायव्यया 36.. विभज्य यसर्थ सापक्रमज्या ततो विधाचापमानीय प्राग्वहोलेक्ये गोलभेदे च नक्षत्रशरेण युक्त बीनं च कृतं सच्चापमेव मध्यरेखातः सौम्ययाम्य विभागन नपत्रावां स्फुटोऽपमः क्रान्त्वंशानां भवति। प्रचोदाहरणं संवत् 1427 मेषादिस्थितत्वादुत्तरगीले सायनो रोहिणीनवस्य ध्रुवक: 2 // 1 // 33252 शरोऽस्य याम्यः // 1. ध्रुवके च 2 // 1 // 3153 राशिवबच्चेपे जातः // 13 // 52 // प्र. मादावितयादविकल्पमित्यादिना भुञज्यानीयते भुजीऽयं | For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्तराजी Ama 28 / 26 / / ततः क्रमज्याकीडकेषु भुजभागाना 28 मधः पाम फलं 16806 तदधोऽन्तरं 55 // 13 भनेनान्तरेण भुनभागानामधःखे कलाविकले 268 गुणिते पन्या भक्ते लब्बे फले 213 पूर्वकले 168 युर जाता सा भुजज्या 17148 एवं सर्वत्रापि / अथ वापस्य को टिज्या तत्र याम्यो रोहिणीशरः 5 / 10 / अयं नवतेः यही जासः ८४ापू• अत: माखदानीता जीवा 358525 अनया मागा. नीता भुनन्या १७१४ाट गुणिता जाता 614584158 अस्यास्यज्यया 36.. भागे लब्धाः 17.7 / 12 भम कल्पनयेयमेव भौवी / अत्र चापसाधनं यथा क्रमजीवाकीहुकानां अष्टाविंधतिभामानामधास्यं फलं 168.6 पूर्वानिसाया: कला 28101. दिमौलः 17.12 पात्यन्त शेषाः 1716 तेन चापांथाः शून्यमुपलक्षणं शेषाः 176 पध्या संगुण्याष्टाविंशत्यधःस्थितेनान्तरण 5413 वि भव्यते लब्ध कहादिफलं 18034 नातं जीवातसापमिदं 28 / 18 / 24 एवं सर्वत्रापि धापसाधनं कर्तव्यम्। श्रम चापे नवते; शोधित शेषं भागादि 6 // 41 // 26 अतः प्राम्बज्जीवा 11681. अनया प्राबबीताय नमवशरस्य 5 // 1. व्यायां 324 / 10 भकायां लध भागादिकमतर 8 तस्विरागिपरहिनस्व रोहिणीमचषभुषकस्यास्य 2 // 1 // 33 // 52 तश्करस्य For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसरितीकासहितः / 1 च मित्रदिकेन मोलभेदोऽस्तीति तैनान्तरण 16.8 परकातिभागा 23135!* वियोज्यन्ते जाताः 23 / 28352 अतः प्राम्बहोज्यो 1434121 एषा प्रागानीतचापको टिव्यवा 2158.1* गुणिता जाता 4545886 / 5 / 20 अन्त्यज्यया | 260. भला मधापक्रमज्या 1262 / 45 अस्याः प्राखञ्चार्य साधितं 20133 एत एव कान्तिभागा याः / अत्र राशिनय. वर्जितरोहिणीनशनवकस्य तहाणस्य च भिन्नदिन স্বামগ্ৰাছুৰ | মিনমিা ৰঙিলম্ব सौम्या: क्रान्तिभागा: सिद्धाः 15 // 2216 एतवता रोहिणीनक्षचं मध्यरेखासः उत्तरस्यां एतावद्भिर्भागैस्तिष्ठति अनया युक्त्या सर्वेषां नक्षत्राणां क्रान्सिसाधनं कार्यम् / अथ प्रकारान्तरण कान्तरानयमम् / अथ बानीय दाक्रान्सिनक्षचभ्रषकात्ततः। तया शरस्य संयोगो वियोगो वैक्यभेदतः॥४५॥ तस्माज्जीवा इतोस्कष्टकान्तिकोरिययाथ वा / उतभक्रान्तिकोटिज्याभक्ता प्राप्ताङनुश्च यत् // 46 // सदेव कान्तिभागाः स्युः सौम्या याम्या यथाविधि / क्रान्तिसायकयोर्योगाहियोगाछेषतच दिक् // 47 // एषां व्याख्या अध वेति प्रकारान्तरे ग्राग्वहीलं विचार्य For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 6 . यन्धराजी नक्षत्रध्रुवकात भुजमानीय तम्माकान्तिरामीयते तया काम्या सह शरस्य दिगेको योगो दिगभेदे वियोग क्रियते सम्मायुक्ताहियुतानाशात् प्राबधामानीय परमक्रान्तिकोटिव्यया तां संगुख्य प्रामानीसक्रान्तेः कोटिज्यामुत्पाद्य तयासा भज्यते ततो यावं तमाचा प्राग्वसाध्वं तचापमेव प्रবময় ভীলা স্বাস্থ জালিমা দলিল। যা सौम्यत्वं याबलं च कथमित्युच्यते दिगैक्ये कान्तिवाणयोयोगावचदिक मम्बन्धैव क्रान्तिदिक भेदेऽधिकान्यूने पातिते शेषात् प्रस्तुत नक्षत्रस्य दिन स्वात्। पत्रोदाहरणम् / भेषाधितत्वादुत्तरगोले सायनो रोहिणीनवस्य ध्रुवकः 2 / 11 / 52 शरी याम्यः 5 / 1. पत्र पाल्याभावादयमेव ध्रु. वको भुजा भुर्जामाः // 33152 एर्षा क्रातिरानीयते यथा प्रातिफलण्याकोष्ठकेषु भूमभागानाम 61 धस्साबा पलं 1238557 सदधोऽन्सर 12 / 25 अनेमान्तरेण भुजभागामामधःखितकलाधिकला 33152 गुपिते पश्च्या मतो सर्व कलादि फलं // 55 पूर्वफले 12285 किले जाता कान्तिः कनामिका 1235 / 51 एवं सर्ववापि क्रान्तिः साध्या / अस्थाः पश्या भागे लचा भागादिक्रान्तिरतरा 2.135151 रोहिणीघरी यायः 11. पत्र भिवदिकादन। योर्वियोगेऽधिकत्वातान्तिः शरे पातित पेषमुत्तरं 15 // 25 // 11 परमात्राम्बबाधिता औवा 857 // 5. अयं परमकान्तः - - For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir v. .. mac ..' rotei n मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / / 23435 कोटिज्यबा 3288 / 12 गोमूविकया गुस्खते 216..83 / 44 अस्याः प्रागानी तक्रान्सेः 20 / 3 5 / 51 कोदिज्यया 3358 / 44 भागे नवं फल 83140 मरमान्याम्बत् चापं 16:5158 एतचापमेव शास्वगाः एते प्रागानीतकाशिशेषस्य सौम्यवाहोम्या बोध्या: कास्थानबने पूर्वसिाया: प्रयुक्ला याच युके कलास विकलासु च किञ्चिदरमिति नदपरवाच दोषाय। / पच नक्षत्राणां लखध्रुवकेभ्यः स्वस्त्रहमानयनम् / हकर्मण्ययनं मत्वा मृगाद्यमथ कर्कटम् / सविभज्या परक्रान्तिमौर्ध्या इत्या विभाजिता ea उक्तोडक्रान्तिकोवास्थमौर्या प्राप्त फलं हि यत् / तेन इत्वेष कोटिज्या विभज्यान्त्यज्यथा ततः // 46 // सन्धात्कोदण्डकोटिया उत्याच मशराङ्गणः / संतायोक्ताफलेनोक्तधनकोटिञ्चयोहतः // 5 // प्राप्ताचापं तु दृकर्म फल पूर्वोक्तयुक्तितः। मछत्रवाणयोरक्ये का भेदे धनं भवेत् // 51 // / एषां व्याख्या दृधर्मानयने मगावं कर्काचं सौम्य पायन विचार्य मन्यादिनक्षत्रध्वकस्य चिराशियामाका जन्यामानीय परमकान्ति 23 / 35 मोर्या 144125 mainanmid MEHAR. . .... . ....... For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - यन्त्रराजी सन्ताय च प्रागानीक्रासिको टिजया विभञ्च ततः प्राप्न फलेम वाणकोटिज्यां इत्वा अत्यज्यया प्रयं भव्यते सती ल. अस्य कोदपद्धस्तत्वोटिज्यामानीयमुच्चले तदनु शरज्यामानीयोलमलान इत्त्वा च मामानी सधनुःकोटिज्यया इथं हियने ततो लब्धाश्चापं साध्यते तदेव हकर्मफल एप टिक्वानक्षबायनवाणयोरैक्थे र भिनदिकलेन तयोर्भदे धर्म भवति तत्फलमिष्टवर्षस्थ तस्मिन् अथादिनचत्रभुवके यथोचितं हि धनं च ते तच्च कर्मशवं भवति। अत्रोदाहरणम् / यथा मकरादित्वादुत्तरायणे सायनो रोहिणीध्रुवक: श।३३।५३ शरोऽस्थ याम्यः 5 / 1 . रोहिणीध्रुवकात् राशिश्ययुतात्यावदानोता भुजज्या 1014 इयं परमकान्ते 23135 मा 14.15 गुमिता जाता 1468804 / 32 अस्या: पूर्वानीतरीहिगीस्फुटापक्रम 15:2216 कोटि 7415754 ज्यया 3471 भागे सब फलं 711 / 14 भने रोहिणीशरः 51. कोटि 845. ज्या३५८५।२५ गुणिता जाता 255..575* अस्याः अन्त्यज्यया 36.. भागे लब्ध 7.8 / 21 अमाप्रारबागायं धनुः 1112153 कोटि; 78 / 3817 प्रतः प्राग्वज्या 352127 इयं धनु:कोठिया भागा पृथक् स्थास्यम् / अध शर // 1. ज्या 324 / 1. इयं पूर्व फलेन 722124 गुख्य से जाता 23.5 // अस्था: प्रामानीतधनु कोटिज्यया 3539 / 28. भारी लन For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नयनम् / मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / 15. 6528 एभ्यः प्राम्बचापं 212 13 इदभव दृकर्मफन्तं रोहिणीनक्षस्व सौम्यायनत्वात्तहायस्थ च याम्यवादुमयार्भेदे धनं खा रोहिणोध्रुव क्षिप्यत जातं कर्मशुद्धं रोहिणीनयमिदं 2 / 2 / 26 / 14 एवं मधेषां नक्षत्राणां हक्कम साध्वम् / / अथ प्रकारान्तरेण दृकर्मानयनम् / पूर्ववत्सचिराशिज्या तच्छरेण इता हृता। ताधनन्द मुभिः०४ लब्ध भागादिकं ततः॥५२॥ इस निरक्षलग्नेन सहिष्णा स्थितराशिना। हृतं खखाग्नि 3.. भिर्भागादिकं हक्कम पूर्ववत्॥५३॥ अनायोख्या पूर्ववदयनं विचार्य नक्षत्रध्रुवारपना स| बिराशिया तलरेश हत्वा अतावनन्दवसुभि 88.4 कि. भज्या नसो या भागादिकं तस्माभिरचलग्न मेषादिनोदय विनायो वसुभानि 278 विद्रनवयमा 288 स्त्रिरदा 323 इत्यादिमा प्रस्तुतनश्चत्रसम्बन्धिलक्षीदितमेषा दिलम्नप्रमानि हते खाग्निभि 30. भले चलब्ध भागादिकमेक टक्कर्मफलं भवति तप्राग्वदभीष्टध्रुव के ऋएं धमं च कार्यम् - चोदाहरणम्।यथा मकरायुत्तरायणे सायनो रोहिणीध्रुवकः 2 / 1 / 33152 गरोऽस्य याम्य: 5.1 अस्य प्राग्वचिराशि भुजमा 1714 / 8 एषा परीण इला जाता 8856126 इयं कताभनन्दवसभि 88.. 4 भक्ता स्तब्ध भागादिकमेव धर्म Anwww For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 44 यन्वराजो फलं .5818. एतद्रोहिणीनचत्रस्य मिनराशिस्खलामकोदयमिथुनप्रमाणन 322 गुपितं जातं 32 // 12020 एसत्खखाम्निभि 3. विभज्य लय फलं / / 4 एतदेव हकर्मफसंपाम्बरायनयोंदे रोहिशीनववे धनववशात् देयं जातं शहरोहिणी नक्षत्र 21223816 अब प्रागानीतहधर्मशुद्धस्य चान्तरं कला विकला 52 स्वल्यान्तरत्वाब दोषः / अथ नवाण संस्थापनवशेन सौम्ययाम्यवाहोराचानयनम्। खाहोरापानये सौम्थे यन्त्र होनाधिका क्रमात् / सौम्ययाम्यापमांशैः स्यात्रवतियत्ययः परे // 545 तयोईयोरङ्कयोर्या दुखण्डच्या समागता। यन्त्र इथेऽपि नक्षचमुखं स्पष्टतरं भवेत् // 55 // अनयोख्यिा यन्त्र सौम्बयाम्यतया हिधा भवति पत्र सौम्ययन्चे स्वाहारामानये भवतिनक्षत्राणां सौम्ययाम्यकातिभामेहींना युक्ता स्यात्। पर याम्ययन्त्र तु व्यस्थयः कोऽर्थः सैव नवति * तैः सौम्ययाम्यक्रान्त्यशैयुना होना च स्यात् / सयाईयोरप्ययानवतियुनाथेषयाधुज्याखण्ड केभ्यः भागतं ज्याफलं नववाशां सौम्ययाम्यवाहोरात्र स्पष्टतरं मुखं भवेत् / सौम्यस्त्राडोरापस्योदाहरणं यथा रोहिण्या: उसरा क्रान्ति: 15 // 22 / 6 एषा सौम्यक्रान्तितया नवतः मोध्यते शेषा 74 / 37154 एभ्यः प्राग्वाल्पाखण्ड केभ्य: प्रा WW.TEM - -. For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकामतिः / नीतं शुज्याफलं 14158 एसदेव रोहिणीनक्षत्रस्य सौम्य स्वाहोरात्रम् / अश्च याम्यवाहोरात्रानयनै उदाहरणम् / रोहिण्याः सौम्या क्रान्तिः 15 / 22 / 6 एषा सौम्यत्वान्नक्र्योज्यते नातं 105 / 22 / 6 अस्य युज्याखण्ड केभ्यः प्राग्बद्ध युज्याफलं 25 // 47 एतट्रोहिण्या याम्यम्वा होरात्रम्। . अथानीतांशस्थापनार्थ स्वाहोरात्रविचारपूर्व नक्षत्रस्वरूपं किमिदुच्यते। अथ व्यायो ग्रहाः सननवाः स्पष्टा: पूर्वचितिजे उदयं प्रयान्ति ततो यावता कालेन पश्चिमक्षितिजे अस्त प्रयान्ति म कालस्तेषां दिनमाह त एवास्तक्षितिलाधावता काले न पूर्व क्षितिज प्रयान्ति स कालस्तेषां रात्रिः एत एव शुन्याखण्ड केभ्यः स्वाहोरानाण्युत्पाद्यन्ते। अध कतिचिवज्ञत्राणि सोम्ययन्त्र कतिचिद्याम्ये पतिचिम्मिथे भवन्सि सेषां लक्षणमुच्यते तत्र यस्य नक्षत्रस्य सौम्यवाहोरात्रं चिंशदंशमध्य गं याम्यं च त्रिंशदंशोभंग सबक्षचं सौम्ये यन्च एवोपयुज्यते यस्य तु याम्यं स्वाहोरात्रं विशदंशमध्यगं सौम्यं तु त्रिंशदूर्ध्वगं सबननं याम्ययन्त्र एबीपयुज्यते यस्य स्वाहोरात्र इयमपि विगमध्यगं तमक्ष मिश्रवन्ने स्प्राप्यते यथाभिजिवाचनस्य सौग्यखाहोरात्र।२७ याम्यं 60148 एतनक्षत्र सर्वदा सौम्ययन्चे स्थाप्यते एवं अगस्त्यस्य सौम्य स्वाहोरात्र 56 / 12 याम्य For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्वराजों 6 / 13 एतत्र सर्वदा याम्ययन्त्र एव पत्र प्रस्तुताया रोहिण्याच सौम्य स्वाहोरात्र 14158 याम्य' 25147 एतबक्षत्र सौम्य याम्ये मिश्चे चोपयुज्यते सौम्बयाम्यत्व च दिशो लङ्कातः सौम्यध्रुवं याम्यं ध्रुषं वाभिलक्षीकतोभयतो ज्ञेयं एवमन्चेषामपि नक्षत्राणां स्वाहोरात्रसाधनं कार्यम् ঋছাম্মামীলীঘলযমুনামান। अक्षस्यष्टकान्तिभागान्तरोत्या. सौम्या याम्यास्ते नतांशाः खमध्यात्। खाशार ड्वोनास्ले महीजोन्नतांशा मध्यान्होन्याः स्वस्वदेश भवन्ति 56 // अक्षकान्त्योयोगतश्चोन्नतांशाः खाङ्क 6. शेभ्यो बृद्धिभाजस्तदा च / हीनाः कार्या व्योमनागचिति 180 भ्यः शेषास्ते स्युः स्वाक्षगाश्चोन्नतांशाः // 57 // अनयोर्व्याख्या अक्षांशाना नक्षत्रस्पष्टक्रान्त्यशानां च यदन्तरं कोऽर्थः अधिकाजामीनाके पातित यषं तदेव सौम्ययाम्यदिग्जातलेन नक्षत्राणां खमधारसौम्या याम्याश्च नताशा भवन्ति तेषु नतांशेषु नवते: 80 पातितेषु शेषा নযাঁ মীলা ঘিনিলনা কাম ঘানা For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Arbaa ronline ___ मलयेन्दुरिक्षतटीकासहितः / भवन्ति यत्र तु अचांगाना कायंशानां वैकदिकात योगे क्रियमादि सति नवराधिक्यं भवति नत्र खशीयधिकश- / तात् 18. पातितेषु शेषं मक्षत्राणां मध्यान्होनतांशा भव- / মি যা ল ব স্বামী স্ত্রীধর্মীয়ম মিল্লামन्ति / अत्रीदाहरणम् / यथा प्रस्तुताया रोहिंग्या: स्फुटा का- : तिरुत्तरा 15 / 22 / 6 दिसण्या याम्याक्षांश: 28 / 28 / 0 प्रल्पवाचान्यगा अक्षांशभ्यः पात्यन्ते शेषाः 13 / 16 / 54 एते या म्याचशेषत्वेन याच्या मतांशा बोध्या: एते नताशा नवतः / पास्यन्ते शेषाः 76 / 4336 एते रोहिण्याः परमोवतांशाः क- : प्यन्ते। एतावन्तोगान् रोहिणी अजोद्दिष्टभुजात् स्वमध्यमाक्र- : मतीति भावः / अनया युक्त्या सर्वेषां ननत्राणां नतीव्रताप्रसाधनं कायम् / अथ प्रतीत्यर्थ मंबत् 1457 चैत्रशक्त 15 दिनादागामि 1484 वर्षे अन्धादिवाचिंशचनाणा कान्तिहधर्म सौम्ययाम्यबाहाराषपरमोखतांशाः स्पष्टीकृत्य न्यासन प्रदृश्यन्ते यथा तहिने भारवीले रिख 771 सावनचन्द्रः 13 पुत् अध मकरादिषयस्य संख्याप्रमाणमा / मृगस्य वृत्तप्रमितिः खरामा- 3. स्तुलाजयोनन्दभुवोष्टरामाः 19 // 38 / कर्कस्य वयः चितिवायवः 12151 / स्यादानवेन्द्रमध्यादियमूहनीया // 58 // - - - mammi . .. . For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्धराजो अस्य व्याख्या यन्वे इतवयं भवति तच वहिर्मकरहतंतमाममंशादि चित् 3. तासि द्वितीयं मेषतुल योः तबमाणं अंशाः 1838 वतीयं कर्कस्य तन्त्रमाणभागा:! 12 कलाः 50 इयं चिविद्यापि इत्तमितिर्यन्त्रमध्यान्द्रादूनीया / अत्राबायोऽयं / यन्ने स्वबुद्धया अत्तं विधाय मध्या चतुर्दि त्रिंशदंशपरिकल्पनया पहिास्यं मकरवृत्तं भवति तदनन्ताप्रमाणेन मध्ये वायं साध्वम् / अथ परमापमांशानां क्रमयां कोटिभागानामुक्रमज्यों चोत्याध मेषतुलाकत्सद्दयोत्पादनमा ! परापमांशास्त्रिकराः कलाश्च शराग्नय 23035 स्तवमजा च मौर्षी / शून्याधिशकास्तिथयोऽ 144.115 थ कोटिभागाः घडजानि शरेक्षणानि ६हार५॥५६॥ तञ्ज्याङनन्दाक्षिगुणा विचन्द्राः 3266 / 12 कोयुक्तमज्यामशरेन्दुदताः२१५६४५ // वाणाब्धयः कोटिलबोकमज्या त्रिंशद्गुणापक्रमकोटिमौर्या // 6 // इताच यलब्धमिहांशकादि तस्मात्स्फुटं मेषतुलाप्रमाणम् / For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4www मलयेन्दुमूरिहाटीकासहितः / तुलाजमानस्य कृतिः खरामः 3. हताप्तमंशादि कुस्तीरमानम्। 61 // एषां धावा परमापमानानां 22 // 15 प्राग्वनामधा 14.15 प्रतो मेषतमाहसमानीयते। इयं परमापमानानां कोयुक्तमज्या 2158 / 45 मकरहतमानेन प्रिंशसा मण्य * जाता 6473 / 135. अधस्तनामस्य पश्चा भाग नब्ध 22 तवेये परि जाता 64782330 असाः परमापकमकोटिज्यया 3288.12 भागे लब्धांशाः 18 कक्षा 38 ए सम्मेषतुलाहतप्रमाणं तस्य अतिर्नाम वर्म: 385 / 28 एषां परामै 3 र्भाग बांशाः 12 क 51 एतत्कालप्रमाणे मकरसप्रमाणं त्रिपदेयाः सिता एव / प्रथ ज्यासानस्य तथा भचक्रकेन्द्रस्योत्पादनमा * परापमानां नरभागमौर्वी इता नरस्योशामजीवया सा। ततो विभक्ता परमापमास्त्रमौव्यान्तिमज्यायुतथा यदाप्तम् // 62 // कोटिज्यया मिश्रितमतिं हिस्त्रिंशद्गुणं कोटिगुणेन भक्तम् / खग्धं च तड्यासदलं ततश्च / पूर्षे दले कोटिगुणोनिते च // 13 // *मत्रोपपत्ति पन्या मोन प्रतिभागोधर्वगछेदाकविधिमा वोध्या। For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजो शेवं खरामै 30 गुणितं विभक्त कोटिज्यया प्राप्तमिदं लवादि / केन्द्रं भवकस्य भवेदवश्य तदन्ततो व्यासहसंभ्रमः स्यात् / 64 एषां व्याख्या परमापमांगाना 23635 या नरभागमो. की कोटिज्या सा तस्यै व नरस्य कोटेरुकमज्या संगुण्य अन्त्यज्यया 3600 युनथा परमापमज्यया भज्यने तब्ध - वादिकं कोटिज्यया मिश्रितमहातं हिस्थाप्यं एकत्र चिंशता संगुण्ड पूर्वोतया कोटिया भर तय सवादिक व्यासाई भचक्रे भवति। ततश्वी रितं पूर्वदले कोटिज्यात पातिते तच्छेषं चिता हत्वा पूर्वोक्तकोटिश्यया भज्यते ततो लब लादिकं भसकस्य केन्द्रं भवति। एलेन भय के. न्ट्रांशप्रमाणेन यन्त्र मध्यासौम्ये याम्ये च पक्षे चिकत्वा तदुपरि व्यासाईत भाम्यम् / अवोदाहरणम् / परमापमांशाः 23 / 35 एते भवतेनुप्रता: कोटिभागाः स्यु : 66 / 25 अतः प्राग्वकमन्या 3258 / 12 तथा कोटिभागानामुना मश्या 2158 / 45 अनया कोटिकामव्यागुणिता जाता 7125457 / 12 एषा परमापक्रमज्यवा 144015 सहिता अन्यन्यथा 5040 / 15 भज्यते नग्धाः 1413 / 42 एते कोटिज्यायां विम्यन्ते जाताः 4912154 एते क्रय विधा we - - - 04 For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ww - + ममयेन्दुसूरिक्ततटीवासहित 2356 / 27 अनयोरकं बलं 2356 / 27 विंशता गुषितं जातं 7.6831. रई कोटिज्यया 328812 भल्यते नश्च व्यासदन्तस्य प्रमाणे भागादि 21 // 2 // अथ प्रथस्थित दसं 2356 / 27 कोटिल्यात: पास्य' 328812 मे 842 // 15 त्रिंशता गुपितं 182 / 3. पततिाम् कोरिया 3288 / 12 भले नब्ध भचक्रकेन्ट्र भागाद्यं 134 / अथानीसमचका केन्ट्रव्यासाईयो: प्रमाचमार। भागा भचक्रकेन्द्रस्याष्टो लिप्ता वेदवन्हया 834 / व्यासास्थि भरादोषो रसभेचाणि चक्रामात् 21 / 26 // 65 // स्पष्टार्थः / अथ भमण्डलार्थ लङ्गोयप्रमाणानां प्रवंशभागादिषु युक्तिरुच्यते। निरक्षशकोदयलग्नमानात स्फुरं फलं याप्रतिभागमेति / यथोचितं तद्गणकेन योज्यं भमण्डले खचिमितेऽपि यन्त्र // 6 // प्रय व्याख्या यन्ध तावदानवते. रेक 1 हि३ त्रि | पञ्च / घट् 6 दम 1. प्रमापोवतांगवलम्वल्पनया For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __ -- - यम्बराजी षोढा भवति षणामपि तद्यन्त्राणामुन्नतवन्त यानां भचक्रस्थापनार्थं निरन्ने लगास्थाने हादमानामपि मेषादीनां लग्नानां प्रमाणं दशभिर्भता प्रत्येकं तेषामंशादिकमानीय विंशहिभक्ता तस्मादपि प्रत्ययभागादिकं फलमुत्पाद्य च एकैकलम्नस्य शिदंग पर्यन्तं तत्सर्वेष्वपि यन्त्रेषु भमण्डले गणकेन यथाचितं स्थाप्यम् / अत्रोदाहरणम् / लडायां मेघप्रमाणं 278 वषस्य 26 मिथुनस्य 323 एतेऽप्युलामेगा कर्कसिंहकन्यानां भवेयुः / तथा एत बडपि उनमालादीनां म्युः / दशभिः पलरको भागो जायते / अथ दशाशकोत्यत्तिः / खगोले कालचक्रभचक्रयोः परिधिहयमस्ति तत्र यः कालचक्रपरिधिः स त्रि'यनिशपरिमितैस्समांशैर्भता पञ्चपञ्चघटीतुल्यैकं नग्न स्यात् / एषमहोरात्रस्य षष्टिघटीभि 6. द्वादशस ग्नात्मको भगणः सम्पूर्ण: स्यात् / तत्राहोरात्रस्य षष्टिघटीनां पलानि 3600 भगणांर्भक्तानि दश लब्धाः अतो लसोदयानां दशभिर्भागदानात् प्रत्ये कमंशाः प्राप्ताः एवं खदेशादयानामध्यंशाः माध्या: अन्यच्च कालचके परिधिचक्रांशानां प्रलोकं लोदयांचर्विभजना क्रियसे / प्रधाग्यही रात्रेए भचक्रे परिधिन्यूनाधिकं पञ्चघटीभिर्मेपलग्न त्रिदशात्मकं स्यात् / यथा निरचे मेषलग्नांशादि 2748 परिभितिर्जायते अनया युक्त्या कालचक्रभचकयोः परिधी समविषमभागेभंगणं पूरयतः / अथ मेधादिलम्नत्रयाणां For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / - प्रत्यंगस्थापनार्थ नयत्यंथपर्यन्तं प्रदृश्यते / यथा भचक्रस्य स्थापनार्थमुदाहरणं मेषादि 27 / 48 रस्य विंशता भागे लब्ध 055 / 36 अंशफलं प्रत्वंशयुक्तां 1 / 5 / 1212 / 26 / 485 3 / 42 / 24 भायाति / अथ इष्टशङ्कोः छायाकर्णसाधनम् / क्रमाचतोत्रतांशानां जीवा साध्या कलादिका / नतज्या स्वस्वशङ्कनी विभक्ता चोन्नतज्यया // 67 // अङ्गलाद्यं फलं यत्स्यात्तऊसेयं स्वस्वशकजम् / बिजौवा स्वस्वशङ्कयो छेदेनाता फलश्रुतिः // 6 // अनयोाख्या उदाहरणेनैव नतांशाः 8 उग्रतांशाः 1 नतज्या 3588 / 27 उबतज्या 62 / 5. नतज्यां हादभिः संगुण्य उबतम्यया विभव्य लय द्वादशाङ्गलशङ्की; छायाफनमङ्गलाद्य 68725 कर्णानयने विव्या 360. इदशभि: संगुण्य 42200 उबत ज्यचा 62 / 50 विभच्य लब्ध सप्ताङ्गलशकोः छायाफल्लमङ्गुलादिकः कर्ण: 6832 पुनरपि नवज्यां सप्तभिः संगुण्य सनतज्यया विभज्य लचं सप्ताङ्गलशानीः कायाफलमगुलाधं 400 / * त्रिज्यां सप्तभिः संगुख्य 2520. उन्नतज्यया 62 / 50 अङ्गुलादिक; कर्ण 41. एवं नवाङ्गतयोः कायापलं कर्याच साध्यः / तिग्मांशु सप्ताङ्गसशकुजाता छाया नवत्यन्नतभागकानाम् / चिरन्तनाचार्यवरैः प्रदिष्टा प्रदृश्यते सहणकोपयुक्त्यै // 6 // For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायामानाचे सारणी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra H उबलांमाः / 2 / 3 / / 5 / / 8 / 8 .11 12 13 14 बादशाइल-(१७३४३ 246 171 130 1158785 / 75 1961 1 1 / गच्छायाः 2538 31 36 10 1.44 समाङ्गलम-४० 12.0 142.58 66 57 48 | 14 | 3836 |22 3. कुच्छयायाः * 27 34 6.. For Private And Personal Use Only यमराजी www.kobatirth.org शयानानाथे सारणी। बतांचा: | 17 | 18 | 18 | .. 21 22 23 24 25 26 wwwwwwred दायास शाच्छाया: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्ताङ्गुलशदुकायाः 28 4312144 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायानानाथ मारपी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उबांधा 29 30 31 32 बादशाहुल 21 2. 1818 या कायाः 4. | 44 58 33 सप्ताङ्गुलभ- 12 12 11 11 10 | 10 | हुलाया: ! 40 5 / 38 1330 23 28 For Private And Personal Use Only मलयेन्दुमूरिजतटीकासहितः / www.kobatirth.org छायाज्ञानार्थ सारणी। उग्रतामा 43 45 NE 43. 24 343 मधुच्छायाः 53 समाकुल- .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . 53 शकुछाया: Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कायामानार्थ सारथी। Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तांशाः 57 5856061 12 13 15, 16 र 68 . द्वादशाङ्गल. 076 / इशया: 3.1056 / 29 31 651 For Private And Personal Use Only शाकायाः 23, 13 3 / 51 / 43 | 34 26 54 / 5. | 42 : 41 33 | बन्चराजी www.kobatirth.org M - wwwser छायामानार्थ सारणी। उवतांशाः / 71 | 12 | 13 4 ! 75 76 71|% e.[80 . 81 2 3 4 2 दावाल- 4 3 3 3 प्रमुछायाः / समाङ्गुल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . .. . कायाः! 33. 453228 / 22 140 18. 51 1 inE... Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायामानार्थ सारही। मेषादीनां प्रत्य फल Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागा: जयतांशाः। 5 6 1388 88. वादान गच्छायाः 4 51 - 28 35 सप्ताङ्गुन गच्छाया: 4743 3824 : --- . rime MAJHL For Private And Personal Use Only मलयेन्दु सरितटीकासहितः / www.kobatirth.org मेषादीनां प्रत्याफल भागा: अंग्रफल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरं . .. . Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेषादीमा प्रत्यशफल Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भागा: | 26 27 28 ! 28 24 25 25 अंधफल अन्तरं For Private And Personal Use Only यन्वराजा www.kobatirth.org मेषादीनां प्रत्यशफलं भागाः 46 / 47 48 अंधफलं 36 | 37 | 18 2040 | 51 43] 32 | 22 24 | 35 36 48.48 48! 86 40 47 47, 47 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir মন 58 | 5 | / / " Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / -- - - w aan-ya | 45 / 46 मेषादीनां प्रत्ययफल मेषादीनां प्रत्यशफलं -- - - - - -- -- मmay - 80 46 46464646 | / - !, भागाः अंग्रफ mu For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजी अन्तरम् / अशफल / भागाः | भामा 1778 2207 22 मेषादीनां प्रत्य शफल 2102 10 10 मेषादीनां प्रत्यशफना ! 8. 1 82 83 अभूदृगुपुरे वरे गणकचकचूडामगाः कृती नृपतिसंस्तुतो मदनसरिनामा गुरुः / सदीयपदशालिना विरचिते सुयन्त्रागमे महेन्द्रगुरुणा स्फटा गणितकर्मपूर्तिः कृता / 70 // स्पष्टाधः। श्रीपेरीजनृपेन्द्रसर्व गणक: पृष्टो मईन्द्रप्रभुर्जातः सूरिवरम्तदीयचरणाम्भोजेकभृङ्गद्युता। मूरिश्रीमलयेन्दुना विरचिते मधुलियसागम - - - For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसरितटीकासहितः। व्याख्याने मणिताभिधप्रथमकोऽध्याय: समाप्तिं गतः / इति श्रीयन्त्रराजाममे गणिताध्यायः समानः / अव यन्वघटनाध्याची व्याख्यायते / श्रादौ यन्त्र मुण्मयं धातुजवा. विस्तीर्ण च स्वेच्छया कारयित्वा / दैर्य यासौ पालिवृत्तस्य तस्मिनायः कार्यो यन्त्रवत्वानुमानात् // 1 // अस्य व्याख्या मृत्प्रसिद्धा धातवः पिलाया मुख्मयं धातुमयं वा असं विस्तीर्ण विस्तारायतं च कारयित्वा यन्त्रमुखानुमानात् तमिन्यन्त्र पालिहत्तदैव्यव्यासौ आयाम विस्तारौ प्राय: कायौँ विस्तीर्ण मिति पदं स्वेच्छयेत्यत्र योग्य तता यावतीच्छा ताव विस्तीर्ण कार्यमित्यर्थः / थाम्ये भागे ऽस्य चिकोर्ष किरीटमें हक प्रोक्तं कोष्ठकागारमेतत् / मध्ये तस्य स्वेच्छयाक्षांशकानां पत्राण्यन्यान्यन्नतांशाश्रितानि // 2 // अश्य व्याख्या कार्यमित्यनुवयं यस्य यन्त्रस्य याम्ये दधिमे भागे त्रिकोणं विरट गिरस्थितवान्मुकुट सदृशं कार्य चट्टक् एतादृशं कोष्ठकागारमिति प्रो तस्य कोष्ठका For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 84 यन्वराजी गारमध्ये अन्यान्युनतांपवलयैराश्वितान्यक्षांयानां पत्राणि स्वेच्छया कार्याणि स्वेच्छयेति योऽर्थः यावतां देशानां पत्राणि कर्तुमिच्छति तावन्ति कार्याणि पत्र प्रत्रे चोपरि भिवदेशोत्पकोतवलयानि कार्याणि / एकं पचं चोन्नतांशस्य पचादहिन पिण्डे माधनीयं ततोऽन्यत् / खकोत्पन्नाराशयो मेषमुख्याः संस्थाप्यन्ते यन्त्र धिष्णयैः समेताः // 3 / / प्रस्य व्याख्या ततस्तदनन्तरं इनतांथपत्रादेकं पत्रमन्यत् पिण्डे हिगुणं साधनीयं यस्मिन्पत्र सङ्कोत्पबा मेषाया हादश राययो धिण्यैः सहिताः स्थास्यन्ते / इदं च पत्रं भचक्राधिष्टितत्वाइपत्रमित्युच्यते / पचाण्येवं कोष्ठकागारमध्ये मुत्या साध्यास्तेष पूादिकाष्ठाः। पृष्ठे यन्त्रस्यायते हे भुजाओं स्रो कृत्वा छिद्रमन्तर्भुजं च // 4 // अग्रे पश्चात्तस्य चाथाधिकोसे कृत्तच्छिद्रे यबमेचे निवेश्य / छिद्रे शिवा मेरुकोलं दलाली तेन छित्वा घोटिकास्मिन्निवेश्या // 5 // For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः। 5 / पनीर्थ्याख्या एवं पूर्वोतविधिना पाणि कोठवागारमध्ये मुका पूर्वा परा सौम्या धाम्या चतस्रो दिशः साध्याः / सती यन्त्रपूर्वपदेशे च पायसं भुजं कत्ला तदये है सूी घ तथास्य भुजस्य मध्ये छिद्र शाखा तस्य विद्स्याये पयाच छिद्र चतःकोणयन्वनेचे निवेश्य छिद्रे भुजमध्यविवर मेबसंन की च पिता ते मेहकीलेन कोष्ठकागारसहिता दलालों विदध्या पप मेरुकीले घोटिका पक्षकाकारा कीक्षका क्षेप्या। कृत्वा छिद्रसूक्षमस्य चिको तच शिवा कण्टकं रश्चिकाभम् / तस्य प्रान्ते मुद्रिका लम्बिकाख्या सूपं देयं यम्वनिष्पत्तिरेवम् // 6 // अस्य व्याख्या अस्य यन्त्रस्य विकषि सूझ छिद्र बरखा सब अश्विक मुखामे कण्टके शिवा तत्प्रान्ते मुद्रां च दत्वा मुद्राप्रान्ते लबिकाख्यं सूर्य देयं एवं यन्त्रभिष्यत्तिया। अभूगुपुरे वरे गएकरकचूडामणिः कती नृपतिसंस्तुतो मदनदरिनामा गुरुः / तदीयपदशालिना विरचिते सयवागमै महेन्द्रगुरुणोदितं घटनकर्म यन्त्रस्य तु॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजी श्रीपैरोजभूपेन्द्रसर्वगपकः पृष्टो महेन्द्रप्रभुर्जातः सूरियरस्तदीयचरणाम्भोकभङ्ग घुता / सूरिश्रीमलयेन्दुना विरचिते सद्युतियन्त्रागमव्याख्याने विशद च यन्नघटनाध्यायो हितीयो गतः // इति श्रीयन्त्रराजागमे घटनाध्यायः समाप्तः / अब यन्त्ररचनाध्यायी व्याख्यायी / यन्वं प्रोक्तं षड्विधं यानवत्या 1. एक 1 हिर ची३१५ गई पतवंश 10 कैश्च / वेधाप्यैतत्सौम्ययाम्यप्रभेदात् सन्मित्वे मिश्रसंच परंच // 1 // व्याख्या पानवतेरेक 1 वित्रि 3 पल 5 षट्पति 1. असायपरिकल्पनया यग्वं पद्विधं प्रीती चतुर्भिरंशनवतेजनं न संभवतीति नोक एतदेव सौम्ययाम्यप्रमदात् धा स्यात् तमिश्रले मिथसंन पर यवं प्रौलम् / वृत्तव्यं कर्कटकेन पृष्ठे यन्त्रस्य निर्माय चतुर्दिशोळ्याः / प्राग्याम्यगाः कोष्ठगतास्ततश्च स्थाप्याः खनन्दप्रमितोन्नतांशाः // 2 // ' व्याख्या पूर्वोक्त युक्त्या घटितयन्त्रस्य कोष्ठकागारस्य पा. For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकसटीकासहित: / बलमागे कर्कटास्टन सोयन्त्रेण हत्तध्यमुपरितने मादधःस्वं च लघुविधाय प्रायाधाचतम्रो दियो रेखाइयेमायाः। तर पूर्वस्मिान् से पूर्वदक्षिणदिमध्ये केन्द्राभिमुखाः कोइगता भवतिप्रमिता उतांशा सितैरकाद्यः स्वाम्याः / पहितीयहत्तस्य लेखनमाह। वत्ते द्वितीये लिखितोन्नताशा रेखा विस्लेखाः प्रतिभागजाताः / पक्षयेऽपक्रमजा विभागा: शक प्रभा प्रामिादता तथा ज्या // 2 // স্যাঞ্জা গান গুলমললিলিামানুসামাশা मानुसारेण प्रतिभागजाता रेखाविलेख्या: सतो दचिण. पधिमान्तरालेऽपक्रमभागा ख्याः / तथा पश्चिम सोम्यान्तराले वृत्तमध्ये साप्ताङ्ग लछायां लिखिखा तदधस्तादुभवतः परिम सौम्यवान ग्नान् हादशकोष्ठकान करखा पश्चिमोत्त. ररेखाता मध्य यावदेकादिद्वादशाङ्गुलान् विलिख्य तेषामधस्तावत: यविमसौम्यरेखाप्रतिभागजातानुसाझा रेखा विले ख्याः / तत उत्तरपूर्वान्तरालकोष्ठ केषु जीवा विलेख्या। चतु सामाना रेखा केन्द्रसम्मुख एव कार्याः कदाचिद्यन्वं | अनुदयस्यापि छाया लिहिता न भवति सदा छायाटीकाया द्रष्टव्या / एवं यन्चस्य पृष्ठभागसाधना सम्पूर्ण जासस / For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्तराजी प्रथ कोष्ठकागारस्य पूर्वपक्षसाधनम् / वत्तत्रये पालिगते कृते प्राक वृत्ते किरौटान्तरतो घटीश्च / अंशानभीष्टान् खरसाग्नि 360 संख्या रेखास्तदीयास्तदधी विस्लेख्याः // 4 // व्याख्या यन्त्र कोष्ठकागारस्य पूर्वभागै पाल्यां कर्कटाण इत्तत्रये छते सति प्रथमे नायाख्यते किरीटमध्यात् पष्टिघटिका विलेख्याः / तदधः चिकीर्षितेकायुवतांशानुसारण कोष्ठकान् विधाय चतुर्दिषु नवतिरंशा सिताभकैलेख्याः उपरितनस्य इत्तस्य नाडीरूपत्वात्तदधास्थितहितीयवसे पलरूपा रेखा प्रतिवाष्टं यथोचिसं लेख्याः / प्रय सौम्ययाम्पयन्खे दृष्टाक्षांशपत्रेषबतवलयाना माधममार। यन्वेय सौम्ये विरचय्य का यन्त्रानुमानेन चिलिख्य तत्र / भागान् खरामान् 30 रचयेत्तदंशः कर्कादिवृत्तं तृतयं दलेषु // 5 // व्याख्या सौम्ये यचे अष्टाचाशपयाणि काष्ठमयफलके काचया दृढं सचिवेश्य पत्रानुमानेनैको कम्वा विधाय तत्र विशदेशान् परिकल्पा कम्बास्थिसैरंगैः कर्कप्रमाणेन 1651 For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - __मलयेन्दुसूरितटीकासहित 88 / मेषतुलाप्रमापन 1838 मकरप्रमाणेन 3. यसमध्यात् काटकेन वृत्तत्रयमालिखेत् / दिगडितेवेषु च मध्यकेन्द्रादवाच्यरेखोपरिकेन्द्रमानैः।। चिन्हे कृते तच्छिरसः पृथुत्व- .. मानेन वृत्तानि लिखेत् स्फुटानि // 6 // व्याख्या ततः पूर्खादिदिगडितेषु याम्यरखोपरिवेन्द्रलवे भिपदधिकांशस्थापनार्थ साममयों पदिका पिन्धस्य मध्यकेन्द्रादवाचरखोपरिवेन्ट्रयामकादिनामंधानांप्रत्येक केन्द्रमान; कर्णाटकेन चिन्हं त्वा शच्छिरसः तम्मूहत: पशुत्वस्य / ध्यासस्य मानन स्कुटानि हतानि लिखेत् / भूजास्थमाद्यं भवती वृत्त ततः परं चोनसमहलानि / तेषां लिखेदानवतेर्षिभागान् शुद्धानिनायुनततावत्यै // 7 // ध्यारख्या एषु इत्तेषु प्रथमं भूजाख्यं इस षाणि उसाशानां कृतानि भवन्ति इति शेषः / एषु च तेषु पूर्वोत्तौकायशपरिकल्पनया भानवतेस्तहिमागानुनताशान् सिखेत् किमधे इनस्य सूर्यस्त्र आदिशब्दाच्छषाणां यहाणां धियानां पहचतताक्गत्ये सूर्याधुग्नतत्वधानायेत्यर्थः / - m- -. ... For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजो मध्यान्ह रेखामभितोऽथ कर्कवृत्तस्थिते प्रागपरे विभागे। क्रमालिखेद्धां परमंदिनं च देशाभिधानेन तथाक्षभागान् // 8 // व्याख्या मध्यान्हरेखामभितः समयतः कर्कटकेन वृत्तम ध्यस्थिते पूपिरविभाग क्रमानां विषुवरछायां परमं दिनমুনিরাল ব মন্ধিকালঘামা থিলিকাपयेदित्यर्थः / पथ मौम्ययाम्ययन्ो हाराखापनमाछ। कुमादधो हादशधा विभज्य मृगादिकायमण्डलेषु। विधाय वृत्तान्यभितः प्रतीच्यामर्मिवेश्या दिशापि होराः // 6 // अस्य व्याख्या कुजादपक्षितिजाम्पूर्व क्षितिजाचाधस्ता| अकरमेषकर्यालयमहलेषु हादयधा विभग्ध बुद्धया कर्कटेन वृत्तत्रयस्पर्थपूर्व मभितः पूर्वापरविभाग वृत्तानि विधाय प्रतीच्याः पथिमदिग्विभागादेकादिभि दगपर्यन्तरादिगरायोदिशापि होराःस्थाप्या:।एवं सौम्ययन्त्रे ऽघामपत्रমাখন এ বিশ্ববিৰাশামিমালালা বাসনা। For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -a -w, मसयेन्दुसूरिकतटीकासहितः। भचक्रपवेऽपि पुरेव कप्ते वृत्तचयेऽभ्यन्तरतोऽष्टभागान्। हित्वा कलाशाब्धिगुणानवाच्ये व्यासाईमानेन विधाय ते // 1 // निरक्षमेघादिविसमभागान् पूर्वोदितान प्राचि निवेश्य न्याः। वृत्ते द्वितीय तदधो निवेश्यास्तदंशरेखा गणकैनिजेष्टाः॥११॥ अनयोख्यिा कोष्ठकागारपत्रस्योपरि दृढ़तया मुख्यापिसे मचक्रपऽपि पूर्व वाहिककाधनपूर्व कर्कमेषमकरप्रमाशिम वृत्तबये पचित सति प्रभ्यन्तरतो यन्वमध्याद्याम्यभागे रेखोरि भचक्रकेन्द्रप्रमाणे 834 मुका तदन्ततो सता यासाईमानेन 21 // 26 उत्तं विधाय तदधी लम्नांगरेखास्थापनार्थ वितीय विधाय पूर्वोदितान् निराधमेषादिलम्मभागानंशकला 275 * इत्यादि रूपानन्याः पूर्वभागाविवेय सदध:स्थिते हितीयले निजेष्टाः पूर्वोत्रयुबा पछि धयोचिता एकाद्यास्पदंशरखाः कामाविवेश्या मेवादीमा. मंशादिमानं यथा मेषे भागाः बसायापि For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्दराजो धिष्ण्यानि गगनेषवः 275. / वृषे नन्दहशाध्यक्षा 2854 युग्मे दन्ता घडिन्दवः 32 // 16 // 12 // युक्तमादेत रथ स्युः कर्कसिंहाङ्गनास्वपि। कन्यादिषट्कमानं स्यात्तुलादो वैपरीत्यतः // 13 // अथ भपके प्राशुटकर्म संस्कृतनक्षत्रस्थापनमाह। प्रागव्यासवृत्तेजिमुखानि सन्ति नमामि लोदयजानि यष / रेखा धर्ना प्रतिभागजातास्तव केन्द्राभिमुखेन लेख्याः // 14 // केन्द्रात्प्रतीपं विरचय्य चिदं सौम्यप्रमाणेन च कर्कटेन। नव धिष्ण्यस्य यथोदितस्य निवेश्यमस्याप्रमतीव सक्षम् // 15 // व्याख्या यष व्यासपत्ते पूर्वत सप्तरस्था निरचागि मेषादिलनानि सांगामि लिखितानि सन्ति सत्र पूर्वरग्दामन समीक्वत्य नचवायामंशप्रमायेन केन्द्राप्रतीपं सौम्यवाही रात्रममापन चिन्हं विरचय तत्रैव पिम्होपरि याष्टिस्य For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहिताः / धिष्ण्यस्य नामसहिसस्वातिसूभमा मुण्वं स्थाप्यम्। धनुर्म गान्तर्निमितं विधेयं चिन्हें प्रसिद्ध मकरस्य नाम्ना / याम्यमाणं गणकेन विष्वक् मुहुर्मुहथुम्वति नाडिवृत्तम् // 16 // स्पष्टं एवं सोम्ययन्त्र भचक्रसाधनम् / प्रथ केवलयाम्यवांशपत्र बलवनयमाए / याम्यापि यको विधिरक्त व व्यत्यास्य बत्ते मगकर्मसंन / दिक्साधनापूर्वकमुन्नतांशान् यायोपि भागे विनिवेशयेच // 17 // मध्याच्च सौम्ये विरचय्य केन्द्र व्यासाईमानेन कुजं विदध्यात् / भाभाईकंदविणतस्ततश्च केन्द्राणि विस्तारयुतानि कुर्यात् // 18 // समयोाख्या याम्यपि यन्त्र विधिवतसाधनादिः प्रागुसा एव अयं विशेषः मृगकहते व्यस्थास्य गहत्तस्थाने | कर्क समिति कहत्तस्थाने भूगत्तमिति च नाम सला दिक्साधनपूर्वकमुमतांमान् दक्षिणस्यां दिशि निवेशयेत् स्या www For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 84 बन्दराजी M.AM पवेदित्यर्थः / तथा यन्त्रस्य मध्यादुत्तरस्वां दिशि प्रोतयाम्यकेन्द्रमानेन कर्कटेन चिन्हें हावा उलयाम्यष्यासाईमानेन वृत्तं विदधीत। एवं भाई यावत में न्द्रमानासमानेचाबत मानि संसाध्यानि ततो भार्दाधिकालात दक्षिणस्या मदि. . स्तराणि केन्द्राणि कुर्यात् केन्द्रमानसिमामेखोबतवलयानि संसाधयेदिति भावः / एवं के अक्षयाम्ययन्ऽक्षांसपत्रस:धना सम्पूर्वा / प्रय के वलयाम्ययन्त्रे भचक्रपत्रसाधनमाह। भचक्रपनेऽपि च थाम्ययतया कृतेषु वृत्तेष्वथ केन्द्रविन्दात् / व्यासाख्यवृत्ते विहित कुबेर भागे मिवेश्यानि पुरेव भानि // 16 // व्याख्या भचक्रे याम्यामांशपत्रवदुक्तकमकरवृत्तवपरी त्येन से विश्तेिषु दिक्सावनपर्व यन्त्रमध्यादुत्तरभागे भन्नाकेन्द्रमानेन 8 / 34 चिन्हें हत्वा तदुपरि व्यासाईइत्ते 2116 विहित पूर्वती निरचाणि भानि मेषादीनि तथा भानि नक्षमाथि पुरव सौम्यग्रन्त्र स यायलाहोरात्रमा. नेन प्रकटीकतमुखानि स्याप्यानि सौम्ययन्त्र सौम्यवाहीरात्रयुतानि लिख्यते / पप च याम्ययन्त्र याम्यवाहोरात्र. / युनानीतिभावः। For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मसधेन्दुसूरिकतटीकासहितः / অঘ মিশর্মন্তু কার্যীয় বামপনশয়ানমা। समिश्रभेदेषु फणीन्द्रयको वृत्तपय सौम्यवदेव कार्यम्। कन्तितः खाग्निलवैविभज्य वृत्तइयं याम्यवदेव शेषम् // 20 // अस्य व्याख्या तम्भित्रभेदेषु सौम्ययाम्यामकयन्त्रभेदेषु फ। गीन्द्रयन्चे उतांशपचे सौम्पयन्न इष त्तत्रयं मकरमेघ कांख्य कार्य ततः कश्चत्तमेव 12151 बुधा शिद. विभव्य याम्ययन्त्र व शेनं इसहर्ष भेषमबराख्थं प्रामध्ये कार्यम्। एसावता मध्यात्क्रमेण हत्तपञ्चक मकरमेषकर्कमेषमकरालयं समुत्पत्रम् / पत्र की भावः सोम्यध्रुवात् कर्कआसनः मध्ये मेषः वहिर्म करः ततः सौम्ययन्त्र कहत्तमादौ तथा याम्यधुवान्मकरो निकटः मध्ये मेषः कर्को वतिः / ततो याम्बयन्त्र मकरउत्तमादौ इदं सहयात्मकमिति तथैव हत्तरचनोला। प्रय फणीन्द्रय अधांशपत्रे उचलवलयमाधनमा / कर्कस्य वृत्तापरि मसाध्य सौम्योक्तयत्वोन्नतमण्डलामि। याम्यानि कुर्यात्तदधः स्थितानि संपातशहामि हियाम्यभागे // 21 // For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बबरामी - प्रस्य व्याख्या प्रवाशय पूर्ववहिक्साधनं सत्वा याम्य दिग्भागै कहत्तादुपरि मकारहत्तपर्यन्तं सौम्य वीमतमगडलानि प्रसाध्य कादधो याम्य इव मिशितान्युनतमहडसानि कायोणि। एवं फणीन्द्रयन्ते पाणपत्रसाधना सम्पूर्ण / भय कपीन्द्रयन्छ भमण्डसमाधनम् / माग्वदपस्य च पञ्चवृत्त मेषादिषटकं विनिवेश्य सौम्य। याये ऽथ भागे विनिवेशनीयं प्राकपश्चिमान्ने तु तुलादिषट्कम् // 22 // अस्य व्याख्या पस्य फणीन्ट्रयब्याख्यमिश्रयन्त्रस्य भपत्रे प्राग्वदचांगपत्रवत् सपञ्चत्त रचितपश्चात्तके सौम्ययनवत् मध्यात् याम्यरेखोपरि प्य केन्द्रोशः 814 सौम्यदि. म्भाने प्रापचिमरेखालन व्याम विरचय्य तप मेषादिराणिषटकं निवेश्य च ततो वाम्ययम्बवन्मध्यात् सौम्यरेखोपरि लधु केन्द्रायः 834 याम्यदिगभारी पत्रिमपूर्वरेखा लाग्न व्यासह विषय्य तुतादिषटकं निवेशनीयम् / प्रथास्मिन्यन्त्र भम इलाशैनपत्रम्यानमार। सौम्यानि भानौह कुलौरवार्थ लेख्यानि सौम्ययुगुणोदितानि / - msunwar - For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकसटीकासहित: / याम्यानि चैतानि कुलीरमध्ये शेषाणि याम्यागुणोदितानि // 23 // अस्त्र व्याख्या इह पूर्वोदित फणीन्द्रयन्त्र भचक्रपत्र सौम्यानि भानि सौम्ययुगुणोदितानि प्रोक्तसौम्यवाहोरात्रान्वितामि कर्कवृत्तात् वाचे पामकरासौम्य यन्त्रबन्लेख्यानि। अथ भचक्रपत्रस्य घटनशिचामाइ। आधारवृत्त परिरक्षणीयं यन्त्र भचक्रार्थमपास्य शेषम् / फणीन्द्रय नलं गदितं मयैतत् जयानि यन्त्राण्यखिलान्यपीथम् // 24 // अस्य व्याख्या भचक्रपत्र शेषपत्रमपास्य छिला राशिनजवस्खितिहेसोराधारहत्त' परिरक्षणीय शेष मष्टम् / एवं फणीन्दयो भचक्रपत्र साधना सम्पूर्णा जाता। अथ किमपि प्रस्तुत सविशेषमुच्यते / केन्द्रव्यामेभ्यो यानि उव्रतवलयानि संपादितानि सन्ति तानि केवलसौम्ये केवल याम्ये मिश्रे च सर्वदा धाम्यभागे एव भवन्ति / तथा केवलयाम्ययन्त्रादपि सौम्ययवादपि मौम्य यन्त्रवध टिकादिकालनियमोऽचोदिष्टभागस्थानेषु सवंदा सौग्य दिम्निभागे तुल्यमेवायाति / परं यन्त्रविधिलशामिधनिरक्षस्थानादुत्तर ध्रुवाभिमुखं खखकेन्द्रव्यामेभ्यः साधितसौम्योचतवलयैः सौम्यनक्षत्रसहितैः सौम्यनक्षत्रसा For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शबराजी धनचक्रः याम्ययम्बसाधना तथाविधा नाकारि / सब को तुः। तती यान्यकी द्रव्यासदतःसाधितयाम्योचतमण्डसानि भृशं दुर्घटानि पृथुलप्रमाणत्वात् बहुविस्तराधि। प्रत एव साधयितुमशक्यानि तथा तहिकसम्बन्धीनि नक्षत्राण्यपि स्वोकतराणि निरुपयोगीनि च / अतस्तैस्तवाडीचके ततद्याम्ययन्त्रं विहाय सौम्यवसाङ्गीकारः ततः / लक्षात उत्तर ध्रुवाभिमुख परमकान्तिपर्यन्तं अस्मादेवसौम्ययन्त्रात् ध. टिकादिकालनियमः मुखोपसभ्यः सुखावबोधश्च प्रमाशीछतः / तथा तैरेव गणकार्यगरैगणितञानं कौतुकाथै भौम्ययाम्योझवेन गणितागमन उभयोः सौम्ययाम्यगणितयोथुज्याऽनेकानि मित्रयवाणिमा तथा पक्रिरे यया यवा तयोः सौम्ययाम्ययन्त्रयोः सौम्यगाम्यविभाग स्वखापस्थाने घटिकादिसमयनाने एभ्यो मिश्रयन्त्रेभ्य एव सर्वदा सत्वरमायाति विशेषश्चायं यसः फणीन्द्राभिधे मिश्रयन्त्रे इत्तपञ्चकलात्सौग्ययाम्योगवन गणितेन उन्नतमण्डलेयतः संयासशुद्धिः स्यात् / परमन्तेषु मिययन्धेषु तत्तत्रयसवात्तेनैव गगितेन उनतमहतानि पुथम् जायन्ते / अतस्तेषु मम्यातसुधिन जातेति। For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / अथाचाशेभ्यः परमदिनानयनम् / हिस्थाशांशा जिन२४र्भका सम्धमक्षारिशोधितम्। शेषमई इतं दिम्भिः पश्यात दिगुणीचतम् // 25 // तत्राडिकाविनाधादि जाके चिंशता युतम् / नयम्मान्ते रखी मोर पलेभ्यः परमं दिनम् // 26 // उदाहरणेनैव व्याख्या या तद्यथा दिल्यामक्षांमाः 2838 हि:स्थाः 2838 चतुर्विधतिभिभाशामधं // 1138 पक्षांशेभ्यः शोधिसं शेषं 2027 23 भक्तिं 11441 दशगुणं 1310 षष्या . सं 2 / 17 / 10 बिगुपितं 1 / 34134 * प्रोपपत्तिः। थीग्रहलाघनकारालाच छायेषुध्यक्षभायाः कृतिदमसवानन्यस्य विज्ञापनासबमलेन पसभा = सवा पन्नभा = अ एकाहुसपसभासम्बन्धि परमपरंत्रयाविश्यतिमितं प्रकल्व पत्नभा सेन गुपिता परमपरं पनामक -214-23.542 )- (2355 ) - (231) स्वल्पान्तरात्- (च-5) पद चव्यर्थ षष्टि भयं तपिशुणं दिनमानार्थ शिद्युतं तेन सर्वमुपपनम्। For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्ररावी उपरि विशनि 30 युतं दिया परमदिनं धयादि 34 / 34134 एवं चिंशदवाशान् वारदायाति पचतोऽग्रतोऽसारं करी. ति एवं सर्वत्र / . अथ परमदिनाहियुवायानयनमा / *हीनं खरामैः 30 परमं दिनं च शेषं नगघ्र गुणितं च षष्ट्या 60 / भक्तं चिगोवाहुभि 223 रङ्गलादि छाया स्फुटा स्याहिषु वयस्य // 27 // पस्य व्याख्या उदाहरणनैव आया यथा परमदिन 34 / 3434 खरामै 30 हीनं शेषं 4 / 34.34 सप्तगुणं 31 / 1158 कक्षा पिहः 1821158 कपिसभागारा 283 विषुवकाया 6133 कलापिरहशेषं 258 अनया युक्त्या शयानयन कार्यम्। अभूगपुरे वरे गणकचकचूडामणिः कृती नृपतिसंस्तुतो मदनसूरिनामा गुरुः / * पोपपत्तिः। पत्र दिखनागमयंगगुपयोगेन विषुवती गुणिता परमं पलाम कचरं - 21 वि - H x + 6 x + 6 x 4 + खस्यान्तान 42 284 283 ततपश्चम / . चे x 6. For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिजातीकासहितः / तदीयपदशालिमा विरचिते सुरवागमे महेन्द्रगुरुग्णोदित रचनकर्म जातं स्फुटम् // 28 // श्रीपेरोजनृपेन्द्रसमसका पृष्टी महेन्द्रप्रभु र्जातः सूरिवरस्तदीयचरणाम्भोजेकणाधुता। सूरिश्रीमलयेन्दुना विरचिते सद्युत्रियन्ताममव्याख्याने रचनाभिधेऽतिविधदोऽध्यायस्तुतीयो गतः / * इति यमराजागी बबरचनाध्यायः समाप्तः / अथ यन्त्रशोधनाध्यायो व्यास्वायते / निष्यन्वयनामुलंब्य रंधे कोलं प्रवेशयेत् / तदा लम्बयेत्सूचं भारेण संयुतम् // 1 // मध्यरेखां स्पृशेत्त यं शुद्ध तदा हि तत्। अन्यथाधिकमस्थाङ्ग पर्षित्वा शोधयेत्ततः। अनयार्थ्याख्या निष्यने यन्त्रमुजव्य तस्विरी टट्रि लोहमयं कील प्रवेशयेत् तदये भारेण संयुतं मूत्राचं लम्बयेत् / सम्बमानं कुर्यादित्यर्थः / लम्बमान सूर्य यन्त्रस्य मध्यरेखामाधन्तं स्मृशेत् तदा तद्यन्वं शक्षमिति समन्ततो भारशी यमित्यर्थः अन्यथा पशह यदि स्वानदास्य यन्त्रस्य वामं दक्षिणं दाधिकमई घर्ष यिखा पुनः शोधयेत् सूत्रस्पर्धनेतिशषः। For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ' यबरामी ___ अथ कुजा सीबतमत्तानां शोधनमा / मेषाजीवापानेखायोगः स्पीत्कुन स्फुटे। केन्द्रव्यासान्तः शुद्धैः शोधयेदुखतांशवान्॥३॥ अस्य व्याख्या मेषयुजीवाप्राग्रेखोर्योगः सन्निपात: उभयतस्तयोः स्पर्थात्कुनाख्याते स्फुटे भवसः। तथा पूर्वोतोः केन्द्रब्वासान्तरकवतांगान/दुब्रतवृत्तानि शोधयेत् शहानि कुर्यादित्यर्थः / उदाहरणं यथा मध्यात बहुतांशाना केन्द्रप्रमाणेन 28 / 32 चिम्हं छत्वा तदुपरि व्यासमानेन 328 वृत्ते पावसाचार्या बसय मिष्य ततो यबमध्यात् मध्यरे:खोपरि उबतवलयं यावत्केन्द्रं व्यासाम्तरं 3156 लम्बाभागैः प्रतीयमानं यदि स्यात्तदा तद्दलये शुधम् / एवं शेषाण्ययुच. सवलथानि मोध्यामि। अथांगानां धादयसम्नानां शोधनमाह / उदयास्तोदीच्ययाम्यरेखाग्रे सहशांशता। प्राक्तततुर्यदिकसंख्यालग्नानां लग्नशुद्धता // 4 // अस्य शाखा उदये पूर्वक्षितिजे अस्ते अपरचितिरी . दीचरेखा याम्बरेहाये च प्रथमसप्तचतुर्थदशमानां मेषतुताकमकराणां मांश्यता तुल्यांपता यदि स्वात् तदा तेषां चतुया लम्नानां शुचता या तहेपरीत्येऽशुद्धता च एवं येषायपि लग्नान्यथैः शोधमीयानि / For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....-....-. .. मलयेन्दुसूरिकतटीकासहिता অন্ন স্থালিয়া ঘনীল नक्षत्रवधुशोधनमार। मध्यरेखास्थिते स्वखराश्यंशे संस्पृशेदि / भास्वं स्वान् परमाशांश्च तदा तयशुद्धता // 5 // অয় ঘাৱা অৱষ য য ৰহয়ন্সি মাশক্তি समिभागे मध्यरखोपरि खिने सति तस्य तस्य नषचस्व चुस्थानं खाम्मरमांधात् परमोमतांमान यदि सथति तदा तस्य नचास्यास्त्रशुद्धिः स्यात् / तदभाव पचोनिहिर्वा कार्येति शेषः / यथा शुलं रोधियीनच मिथुनस्य बतीयेथे वतने तस्मिनये मध्यरेतापरि स्थापिते. रोहियास्थ यदि सीयान्परमोवतांशान् 70 स्मृति तदा रोहित स्थास्यविभवति / एवं शेषाणि नक्षमास्यानिशोधनीयानि। অঙ্গ যমুছলিমলীয়ান হামৰ থাৎ। भुजाप्रयुग्म शुद्धं स्था खास्थ परपूर्वयोः / नमध्यरेखोपरिग शुई पादयं तथा // 6 // अस्य शाख्या यन्त्रपृष्ठे भुजाग्रयुग्म पूर्वापरखीपरिगं यदि स्यात् तदा सुमाग्रं श तथा पादश्यं तस्या भुजाया मध्वरेखोपरि स्थितं शकं भवति / / अभूगुपुरे बरे गलकचनापूडामणिः छती नृपतिसंस्तुसो मदनसूरिनामा गुरुः / For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 104 यन्चरानो तदीयपदशालिना विरचिते सुयबागमे महेन्द्रगुरुणोदितं निखिल्लयन्त्रसंशोधनम् // 7 // श्रोपेरोजनृपेन्द्रसर्वगणकः पृष्टो महेन्द्रप्रभु. ह्यतः सरिवरस्तदीयचरगाम्भीकभृङ्गाता। मूरिशोमल येन्दुना विरचिये सद्युतियन्वागम- . स्वास्यनिखिलयन्वशाधनमयोऽध्यायवतुर्थोऽगमत् / গুলি বৰাজল যমনায়। अध यन्त्र विचारणाध्यायो व्याख्यायते / अथ रवः शेषग्रहाणां नक्षत्राणां चोवतांगानयनमा छ / करेऽपसव्य विनिवेश्य यन्त्र ज्योतिर्विदा भास्वरसंमुखेन। तथा भुजाग्र परिचालनीयं यथा विशेच्छिद्रयुगऽकंतेजः // 1 // . अस्य व्याख्या अपसव्शे दक्षिणे यया छिद्रयुगे इति भुजापादसम्बड़े शेष स्पष्टम् / पूर्वेऽहनि प्राककुभो भुजाये स्पष्टं रवरुनतभागकाः स्युः / तदेव मध्यं दिनतोऽपरांशा राचौ ग्रहोहधपि चैवमेव / 2 // For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहित / पस्थ वाण्या पूर्वेऽहनि पूर्वा प्राककुभः पूर्वस्याः दिशः भुजाप्रमष्टा श्वाचा नवतिपर्यन्ता रवेश्चतभागाः स्युःभवेयुः / त एव मध्यं दिनतो मध्याजादूर्ध्वमपरोषांशाः स्युः तया गपकन दक्षिणनेत्र निमीत्सवामनेत्रीपरिस्न योग दृष्टस्य स्पृष्टग्रहस्य विश्वस्य वा देधे अजायस्पृष्टा अंशाः पूर्वापरदिग्गतत्वेन पूर्वोन्नताशा: अपरीश्वताशा ज्ञेयाः / अथ विमकवश्विपूर्वापराचतांशेभ्यो दिनगतशेषघटिका. द्यानयर हरमानयनं चाह / रव्यंशकं प्रागपरे च भूजे धृत्वोन्नतांशोपरिगे कृतेऽस्मिन् / विस्थानसंलग्नमृगास्यमध्ये कालांशकः पङतिर पलप्रमाणः / / पडिवि भक्त दिवमस्य यासं शेषं च घयादि परिस्फट स्यात् / तथोन्नतांशस्पृशि भास्करांशे प्राग्भूजगः सायनलम्नभागः // 4 // अनोख्या इदिने सायनमेषादिराशिस्थितसूर्याशं / पूर्वाडे प्राकुज परास्तभूज च धृत्वाऽस्मिन्नेव सूर्यांश माहिडपूर्वापरोचनांगोपरिगे शते मत्ति कमात् हि:स्था For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वन्दराजी नसंसम्नमगास्थमतिले काचांदमयसप्रमाणेः पद्धिर्विभर्दिनस्वातीनं शेषं च धब्यादि परिस्ट स्पष्ट स्यात् / - अब दिपाहीरामयनम् / एवं रचः सप्तमराशिभागोयौव होरावलयेऽस्ति सेव। होराड्युनावाच ततः वषष्ठषष्ठस्य गण्या परभूनत्तात् // 5 // अस्व व्याख्या एवमिति कोऽर्थः पूर्ववज्ञास्कराइटीनता शोपरि खाषिते सति तमासप्तमरायो यनि हारावसयेऽस्ति सैव तहिने पाया दिनवारहोरा सती दिनवारहोरात: अष्टषष्ठस्य हितीयामा बादधार्थता होरा था परमि वारा अपरमूनाला बया। भथ दिनगतपघटीभ्यो रथुमतांशानधनम् / रव्यंशकं प्राधितिजे निवेश्य चिन्हें मृगास्थे विरचय्य पथात् / पौरका घटिकोपरिस्थं तदेव छत्वा परिचिन्तनीयम् / 6 // रव्यंशको यान्वृित्ति तदंशसंस्थास्तपनोवतांचाः। For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......." .. hiva.. मत्तयेन्दुसूरिखसटीकासहितः / 1.0 मध्याहतोऽस्तक्षितिजात्तचैव ते बोधनीयाः सुधियाशिष्टाः // 7 // पमयोर्व्याख्या रव्यंशकं प्राचितिजे निवेश्य मात्र चिन विरचय पवादभीष्ट कानघटिकोपरियं तदेव भगास्य' छत्वा गण केन बिलोकनीय तस्मिन् तहत रयंभः स्थिती भवति ताबदामाचः पूर्णत: सूर्शवतांगास्तावतीषु वaী মন্দীনি মি: / মা বাশখিনিজামী पूर्वेतिरीत्या सुधिया विदुधा पशिष्टाविष्टचठीषु भवशिसास्त उबांगा बोधनीयाः / अब रानी नचविचोचताशेभ्यो राषिगतशेषपटिकानयनम् / विडोवतांशोपगतेष्टभास्ये रयंशस्तन्द्रास्थिते।.. चिन्हयान्तर्मतशेषनाडी पक्षादि पूर्वापरराषिभागे // 8 // प्रस्थ व्याख्या रायो भुजाग्रेस इष्टनक्षत्र वि माथा: प्रतीचा वा में उबताधाः प्राप्यते सेकूवतवलखितेषु विदोबांधे मिहनजनहत मुखे सति सूवशिस्तबजये ऐन्द्र कुजस्थे च पूर्वापरराधिभागे प्रमाअकरमुखपिहयान्तर्गतं शेष नाडीपलादि स्पुटं स्यात् / For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्नराजो অদ্য ৰক্ষী লন্থাৰলিয়ন। तत्रैव नक्षचमुखे निविष्ट प्राग्भूजगं सायनमेति लमम् / सूयाशकाधिष्ठितवृत्तसंख्या तदा च होरापि निशि स्फुटा स्यात् // 6 // অয় সম্মিা সব শিষ্টীলসমৰ শিলৰ निविष्टे पूर्वराचेऽपरराचे मारभूमी सायनलम्नति तथा सदा तस्मिन् वनकाले यस्मिन् वलये सूर्याय: स्थितोऽस्ति तेन ताता हारा भवतीत्यर्थः / अथ राषिगतघटीभ्यो नक्षत्रावान्तीव्रताथानयनम् / वयोशकस्त क्षितिजस्थिते. कृत्वा मुगावे गतमाडिकास। निबेशिते चोन्नतहत्तगाः स्यः प्राच्यप्रतीच्योडुमबोनतांशाः // 1 // प्रस्य म्याख्या सूर्यास्तश्चितिजस्थिते सति मृगास्ये मङ्ख कत्वा पश्चाहतेष्टनाडिकासु अत्र मृगास्ये निवेशिते सत्युचतांयत्तस्थिताः स्वकीया; प्रायप्रतीच्याडुभवाः पूर्वापरकपास्थितनछत्राकान्ता उनांशाः स्फुटा भवतीति शेषः / For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः। प्रय दिनगतरात्रिमतवटीभ्यो लग्नानयनम् / प्रागस्तभूजोपगतेऽर्षभागेऽङ्किते मृगास्ये गतनाडिकास / स्थिते च तस्मिन युनिशोः क्रमात् स्यात्याग्भूजगः सायनलमभागः // 11 // दिवसे सूर्याशे प्राञ्चितिजोपगते मृगास्ये चिन्हित ततो गतमाडिका तस्मिन्मगास्ये स्थिते सति प्राकक्षितिजस्थितः सायनलग्नभागः स्यात् / एवं रात्रावस्तक्षितिजे स्थिते सूर्योध मुमास्थं चिन्हयित्वा ततो रात्रिगतघटीषु मृगास्य पारीपित प्राक्षितिजगतः सायमा लग्नभागी भवति / भध हादशभावसाधने भावचतुष्टयसाधनमाह / पूर्वास्तभूजोत्तरदक्षिणासु . प्राक्साततुर्याम्बरस्तग्नभागाः। समे भवेत्केन्द्रचतुष्कमिष्टे यत्र स्थिताः स्युर्वलिनो ग्रहेन्द्राः // 12 // अस्य व्याख्या द्रष्टे तात्कालिके लग्ने पूर्वभूजास्तभूजोत्तरजियासु समकाल संभवन्स: प्राक्सप्तर्याम्बरलम्नभागाः प्रथमसप्तमचतुर्थदशमत्तमांसा: कोन्द्रचतुष्क भवेत् / यत्र केन्द्रचतुष्के स्थिता महेन्द्रा बत्तिनः स्युः भवेयुरिति / For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्धराजी पुनर्भावचतुष्टयोत्पादनमा / प्रझेशोरायुजि लग्नभागे खमध्यगौ नैधनधर्मभायौ। हितुर्यहोरास्यूशि सप्तमांशे खमध्यगावेव शिवार्कसंख्यौ // 13 // समभागे ताकासिम लम्नशिपथ / 15 रायुजि नवमेकादश राक्सयादमामस्थिते मतिसमध्यगी याम्यरेखापरिमतो कामाधनधर्मभावौ भवतः / तथा सप्तमां तत्स्थितससमलम्बांग हितीयचतुर्थहाराणान्तरणासघि पूर्ववत् खमध्यगावव एकादशहादशभावो स्तः / प्रथैरोभ्यः येषभाषचतुष्टयोत्पादनमा / वस्खादिभावा रसराशियुक्ता निजाबिजात्सप्तमसत्तमाः स्युः। संयोज्य भावहितयं समीप स्थितं तदर्ष विदितं च सन्धिः / 14 // भस्य व्याख्या वखादिभावा अष्टमसक्कादशहादयभाषा रसराशियुला राषिटकमा निजाविनाहावासममाः स्युः भवेयुः यथा अष्टमनवमैकादशहादशभावानां राशिषट्कयोजनात् हादग्यपातनात् शेषा हितीयवतीयपचमषष्ठमावा | भवेयुः। For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहित 111 अश्व सन्धेरानयनं भावयोगदल सविरिति बपनात् बादशप्रथमयोर्योगः एक मेसनं पमाहसंपई प्रधमन्धिः / एवं प्रथमरितीययोर्योगद खन्न सन्धिः। वितीयत्वतीयभावयोर्मेलने पौलते द्वितीय सन्धिः एवं षा अपि सन्धयः उत्पादनीयाः। पुर्ण च मिश्रं च फलं ग्रहेन्द्र: समांशके यच्छति भावसन्थ्यो। हीनोऽधिको वा कथितः स सन्धे रतीतभावैष्यफलप्रदाना // 15 // पस व्याश्या भाषसन्ध्योः समाथको बहेन्द्रः पूर्ण मित्र फलं यच्छति कोऽर्थः भावसमांशको ग्रहः पूर्ण फल सन्धिममांगकर मित्रं फलं ददाति तथा एव महेन्द्रः सवेशीनामक सबतीतभावस्य फलदायी सन्धरधिकांशकस भागामिभावस्य फलदायी भवति / पथ खेटस्य सन्मः सकाशाम्न्यूनाधिकले विंशिषकाफलानयनमाह। न्यूनाधिकत्वे विधिरेष कार्यः खेटांशमध्यन्तरयातशेषम्। इत्वा नसै 20 भावजसन्धिजांशा For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यमराजो म्तरेण भक्तं परिलभ्यते यत् // 16 // मत्स्याद् हिंधा भावफलं ग्रहस्य प्रहीयमानं परिवईमानम् / इदं तदा यच्छति व ग्रहशोयदा भवेकालगत्तगश्च // 17 // पनयोख्खिा सन्धः सकाव्यात् ग्रहस्थ न्यूनाधिकाले एम विधिः कार्यः। कोऽर्थः खेटांमध्यन्तरयोः पाने ते यच्छष तब 2. शिवा हवा भाजलसन्धिमानान्तरेण भज्ञ यत्फलं लभ्यते सत् महख विधा कौयमामवईमानमेवा. हावफलं भवेत् / इदं फलं पहेशस्तदा यच्छति यदा काल. चकमो भवति। গয় বন অমিমন্ত্রী মমত্মান্ধা पाद्यन्तरेखे रसभागजाते धृत्वा कुजे माचि मगेजिते दिः / अंशान् विचिन्हान्तरजाविभज्य पनिविलब्धाश्च पडझनीयाः // 18 // লাক্সনঃ সালমা सध्या मगास्ये निहितऽनुघसम् / प्राच्य कुसर्यलयः स्फुटः स्यात् For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकत टीकासहितः। शेषेषु खेटेष्वपि चेत्यमेव / 16 // / अनयोक्ख्या यमस्य ममडलरसभागजाते षसंगप्रमिने प्रायन्तरेग्ने प्राचि कुजे धृत्वा मंगास्य स्थानहयस्थे चि हवयं कृत्वा तदन्तरगान् शान् पद्धिर्विभज्य नब्धांशाः षडशा: कार्याः तसः प्राक्चतात् मृगास्यचिम्हात् स्पृष्टशिषु मृगाननेऽनुपम निवेगिरी मति प्रामुले सौरे खवः स्फुटो भवति एवमन्येपि खेटेषु चिन्तनीयम् / अथ प्रद्धिमत्तातहतमध्यगतात्रतांशस्थानज्ञानार्थमा / पदुन्नतांशेषु मुख तथान्ते रयंशमाधाय मस्तेि ट्विः / घनिर्दिचिन्तस्य लवान्विभज्य लब्धेषु भागेषु कतेषु घोढा // 20 // पूर्वोक्तरीत्यांशधुते मृगास्य प्रत्युनतांशं रविभागयोग्यम् / खानं भवत्युवतभागकानामेवं विधेयं निशि चान्यभानाम् // 21 // अनयोर्याध्या अक्षांशय मधुमतांशवादाक्ते च स्यानिवेख मृगार स्थानहयेऽपि चिन्हिते सति तदन्तमानघान् पविभिन्च लम्बशिषु पौठा खापितषु प्रागुत्तरीत्या For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्वराजो सगमुझेशेषु स्थापिवे प्रत्युवतांशं रव्यं शमीग्यमुखतांशानां स्थानं भवति एवमन्येषामपि भानामुखतांशा: समानेयाः वोऽर्थः यथा रव्यंशतः उन्नतांशज्ञानमत्ता तथा नक्षत्रचञ्चुतः सवतांगजानं विधेयम् / अथ रामचतुष्टयलम्न नक्षत्रोतांशज्ञानमाह ! वृतीयहोरान्तगतेऽर्कभागे यामोऽग्रिमः प्राकुनगं विलग्नम्। रात्रौ भवेदुम्नतवृत्तमध्ये धिष्ण्याग्रिमाश्चोवतभागकाः स्युः // 22 // एवं घडतान्तिमहोरिकासु न्यस्तेऽर्कभागेसति शेषयामाः। लग्नानि धिष्ण्योचतभागकाश्च विवेचनौया गणकै स्वबुद्ध्या // 23 // पनयोाख्या अथ रात्रावस्त गते कुऽर्कभागाविवेख मकरमुखे चिन्हे कलाक्षपत्रस्थ हारावलयानां मथे सूती होराप्रान्तेऽर्कभागे स्थापित पुन गास्ये चिन्हे सहयातर : कासत्ते घटीपलामक: धिमयामो भवेत् तवैव समकालं प्राकुज सम्म भागाद्यं स्यात् उक्तवलयमध्ये विष्ण्यवच्चुगता उतभागा अपि स्युः / एवं षष्ठमवमहोराप्रान्ते रव्यंथे For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः। 115 क्रमेण स्थापित शेष यामत्रयं लग्नानि नक्षवाणामुनतभागाच गणक खधिया विचार्याः / अथ रविसष्टीकरणमा ह। मध्योन्नतांशास्तषनस्य विद्ध्वा ते मध्यरेखोपरि चिन्तनीयाः / सम्यक्तदूर्ध्व स्थितमांशको यः सं सायनार्कश्च सदा स्फुटः स्यात् // 24 // प्रस्य व्याख्या रवमध्याहसम्बन्धित उन्नतांशान् यन्त्रण विध्वा मध्यापरेखेपरि संन्प्रमितावताशेषु चिन्हे लते भचप्रधाम्यमाणे यो राशिभागस्तव निविशति सस्मिन्दिने तदंशः सायनार्कस्य स्फुटो भवति। पत्रोदाहरणम् / इष्टदिने मध्याह्नसमये यन्त्रेण मध्यासमयस्यावतायाः प्राप्ताः 68 सत्र मध्याहरेखोपरि चिन्हे ते तदनुभचक्रे भ्राम्यमा तदुपरि मेषराशि दर्थोशः सायना लग्नः / अतो ज्ञातमिष्टदिने रविषादय भारी सायनी वर्तते अयनांशैविहीनो निरयषा भवति / अथ धिष्ण्यशेषग्रहाणां स्पष्टीकरणमाह / राचौ खमध्यस्थितभप्रहाणां परोन्नतांशाव्यधचिन्हनाभ्याम् / मध्यस्थरेखोपरि भांशका ये For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - यबराजो सच स्थितास्ते निखिलाः स्फुटाः स्युः // 25 // अस्य व्याख्या रातिसमये पाकाममध्यस्थितनावग्रहापां पराबतायान्यन्त्रेण विध्वा उन्नतवलये सबमितातामेषु मध्यरेखापरि चिन्हितेषु भचके धामिते नक्षत्रचञ्चौ स्थापित नक्षधांश राय च स्थापित ग्रहांशाः स्फुटा भवन्ति पत्रोदाहरणम् / सष्टीखातं रविवयम् / प्रय प्रकारान्तरेण इष्टकासे मरवावताभ्याभौमादियशसष्टीकरणम्। राभावभीष्टग्राहक्षयोश्च ज्ञात्वोन्नतांशासिमभागसंस्थे / भास्ये प्राप्तोन्नतभागभांशः स्फुटो भवेत्तस्य तदा सगस्य / 26 // भस्य व्याख्या रजवामिष्टग्रस्येष्टनक्षत्रस्व चीनतांभान् भाला भमुखे मिजोचतांशेषु यो राशिभाग उपविशति स्थापित सति लोपु पूर्वापरकपाल स्थितग्रहीनतांगेषु यो राधिभाग उपविमति तब यरः साधनः स्फुटा भवति / पत्रोदाहरणम् / संवत् 1435 प्रथमज्वेटशलपूर्णिमायां गुरौ राधिगतव्यः 5 पलानि 1. तसमये चित्रामच्चास्थापरोवतांशाः 55 तलाले परकपाले भौषितांशाः 3. एवं चित्रानचौ सब्दोपतांशामामुपरि न्यस्ते चिंथ. For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुरिक्षतटीकासहितः। 11. दंशबाथानामुपरि सिंहस्थ समीश्री सम्नः / तसो जात भौमः सिंहराश दामे था- भागे सायमी बने भयन१४ विहीनः 325 कर्मटे भपति एवं सर्वेऽपि प्रा . समानीयन्ते। अथ प्रामुख्यानयनम् / प्रसाध्यते कालयुगे मते - त्स्फटी अहस्ताई तदन्तरं यत् / पहित तधुदखोवृताप्त दिक्सङ्ग तस्य गतिः, कलाद्या // 27 // अस्य व्याख्या मसेभीष्टकालयुगे पूर्वमहरान्त चतुर्धग्रह. रादौ च यदि सटतानीयते तदा तदन्तर यदस्ति तत पडित्वा धुदलगाइन्य सदानं दशगुणं कुर्यात् एवं ते तस्य अहस्य कलाद्या गतिः स्यात् / अवोदाहरणम् / संवत् 1435 ज्येष्टशुक्ला 15 गुरौ प्राधावतांशा से; 42 दिनधयः 8 पतानि 36 समये स्टोऽर्थः सायनः 2046 वतीयप्राराले दिनगनघटी 21 पलामि 18 समये स्कुटीऽर्क: 2 // 1 // 137 इष्ट कालायोरन्तरं 14118 रसैमुणित मातं 8548 पदं दिनमानस अन 16 // 52 भई तती लवं | कलादि फलम् // 5. दपगुणं कुर्यात् एवं कृते जाता रवै: | स्फुटा गमिः कलादिका 582. एवं सर्वत्राप्यानवितश्यम् / For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बम्बराजो पथ परमानयनम् / निरक्षभूजेऽव कुर्कभा दवा मगे चिन्ह मिह इयं स्यात् / 'चरं हि तन्मध्यगतं हि सौम्य याम्यं भवेन्मेषतुलादितः स्यात् // 28 // व्याख्या निरभूजे तथा प्राजे प्रभाग स्थापित विःस्थानस्थे मृगास्थे चिन्हहये ते सति तमाध्यगतं काल इसे सलवादि फलं लभ्यते तद्रवो मेवादिषट्कस्थे भोग्य सुसादिषट्कस्थे च यायं परदखं भवति / प्रथेष्टाक्षे परमघरदलामयनम्। . निरश्चभूजात्पुरतोऽथ साथभूजान्तमध्यस्थगतं चराम्। * मार्ग स्पृशेद्यच च कालवृत्ते ते स्युलवाः षड्विहताश्च नायः // 26 // यथायथा साक्षकुछ निरक्षात्पुरो व्रजेत्तत्र चराईद्धिः। एवं कुर्ज याम्यदिशागतं स्यामृगादितस्तच परं चराचम् // 3 // * भूखं स्मृति पाठान्तरम् / For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir rw - - - - मलयेन्दुभूरिछतटीकासहितः। 118 1 - - परे परे पञ्चदशाच नाद्यशैकं दिन पष्टिपटीप्रमाणम् / निशा च तावत्पमितैव भूयासौम्यं त्वजाणिवा याम्यम् // 31 // एषा व्याख्या सुगम // अथ दिनराभिमानानयनम् / स्याशकं प्राक्षितिजे परेच मुक्खा ततो मार्गमुखेतिते विः / चायतचिन्दान्तगतं दिन स्था शेषास्त मिसा घटिकाः समस्ताः / 32 // प्यास्था शिकं प्राक्षितिजे परे पिति च मुखा / मगमुखे खानइये प्रापिते तधिहावे पूर्वापरचिनासारनतं | कालहसे दिनप्रमाणं घटीपसामनं भवति / तदारास्थित श्रेषं रानिमानस्य घटिकादिकं स्यात् / प्रथायनांगाः / यनवेन्द्रमध्योचतभागकेभ्योदेशे निजे योऽस्ति परिस्फुटेोऽर्कः / सिद्धान्तयुक्त्यापि च साधितो य- . स्तहिप्रयोगादयमांशकाः स्युः // 33 // mam - mm- ALA For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12. ' यबराजो व्याख्या इष्टदिने यन्त्रेण मध्यानीमतांग्रेभ्योऽक स्कुटीवते सिद्धान्तयुक्त्यापि स्फुटीछते उभयोर्यदन्तरं भागाचं त एवं तष वर्षे अयनांयका भवन्ति / अथ प्रत्युत्यानयनम् / शीघस्य मन्दस्य च खेचरस्य लब्धोन्नतांशान्तरमेकगत्योः / गत्यन्तरेणापढ़ते सयोश्च विभिन्नगत्योर्गतियोगकेन // 24 // लब्धं फलं वासरनाडिकाचं मन्दागतं स्यादधिकांशकस्य / शीघस्य हीनांशजुषश्च गम्यं युतिक्षयः स्यादनयोः स एव // 35 // म्याख्या गीग्रहस्य मन्दप्राइस्योबसांयान् सहीत्वासरं विधाय एकगत्योर्वकाऽवकायोगत्यन्तरेण तदन्तरं विमजेत् विभिन्नगत्याचं गतियोगम हरेत् / इत्य सधफलं दिनाचं भवति / इदमेव मन्दग्रहाच्छीघ्रग्रऽधिकांश सति गम्यं वेदितव्यम् / अनयोर्मन्दयीप्रयायुतिकालः स एव / अत्रीदापरणाम् / संवत् 1454 पौषशमा 15 भौमे सायनः स्फुटो गुरुः // 2.54 भुलिः 11. शुक्रः 17. भुतिः 15. एतस्मिन् दिने राषिशेषघटी 3 पन 3. समये शकशीघ्रग्र For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिजसटीकासहितः / इस्योचतांशाः प्राचाः 25 एतस्मिन् काले मन्दो जीवस्तटुवसांगा: प्रायाः 22 उभयरतरं 3 षच्या सवय 18. इयोमागित्वाअत्यन्तरेश 54 भागे सो दिनादिकालः 230 पत्र मन्दाच्छीघ्रस्य हीनांगकत्वात् एषः कासः / एतावता द्वतीय दिवसे शुक्रवासरे दिनगसघश्यः 2015 शुक्रगुर्योयुतिकान्तः। पक्ष वर्तमानवर्षस्य सम्बादागामिवर्ष लम्बानयनमाह। पूर्वे कुजेऽभीप्सितवर्षलग्नं निवेश्य मार्गाननमयित्वा। ततोशकेऽन्य 3 मिने धृतेऽस्मिन् भाद्यब्दलग्नं स्फुटमैन्द्रभूजे // 36 // व्याख्या पूर्वे कुजऽभीसितवर्षलग्नं निवेश्य मृगमुखं च चिन्हयित्वा अन्य मिते त्रिनयतिप्रमितंशक अस्मिअकरानने कृते सति भाविवर्ष लम्बनेन्द्रभुजे स्फुटं भवति / अषीदाहरणम् संवत् 1434 सायममेषमंक्रान्तिदिनं सायमोऽकः 1111.57* एवं पञ्चः 27 पलानि 3. संक्रमणकालः तदा यमायनं लम्न तहर्षलग्नमुच्यते 5 / 21 / 21618 असमाजवादयिमवर्षे 1435 सायनमेष संक्रान्ति दिने साथमं सम्ममानीयते सम्माये 5 / 21 प्राजे निहिते मकरानने साष्टषष्टियतकाष्ठकान्ते लम्ने चिन्हे आते तदने वहिनन्दमि m For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 122 यन्त्रराजी AMAA तेषाधु गचितषु 251 प्रमितामामुपरि मकरमुख समानीते प्राजेऽभीष्टवर्षस्य सायनं धनुर्वग्नमुपरिष्ट 8 / 10555 तदागामि वर्षसम्म जयं एवं सर्वाण्यपि समानतव्यानि। अथ देशान्तरसंस्कारेण स्फुट लग्नानयनमाइ / मध्यस्थरेखात करणं धनं स्यात्पलादि पूर्वापरदिग्विभागे। ततः स्थिते प्राकक्षितिजे भभागे कुर्वोत चिन्हें मकरामनामे // 37 // पश्चात्पुरश्चास्य शणे धने / तदंशमानेन धृते मृगास्य / प्रग्भूअभागिष्टपुरे विस्लमं तदा हि देशान्तरसंस्कृतं स्यात् // 38 // अनयोख्यिा सिद्धान्त करणोतविधिना पट्रन्यादीनां ग्रहाण देशान्तरं पलायात्मक लकं तातो मेरुपर्यन्त. मध्यरेखातोऽभीष्टस्थप्रागपरवशेन ऋणं धनं भवति / अत्र रवेर्यशान्सरं पलाद्यात्मकमागत लग्नस्यापि तदेव नेयं प्राकने भभागे लग्नाचे शिले सति मकरमुख चिन्हनीयं ततो यदि देशान्तरं ऋणगतं भवति तदा रविदेशातरमानेन पश्चाचिन्हं कार्य धमर्ग चेत्पुरस्ताञ्चिन्ह कार्य एवमुभयोर्मध्ये एकत्र मृगानने धते सति प्राजे देशान्तरसंस्कृतमिरपुरस्य विनम्न भवति / For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः। अथ नक्षत्राणां सौम्पयाम्यक्रातिमानम् / मध्याहरेखोपरिभस्य व कुलोरमेषान्तरगं यदि स्यात्। सौम्या तदा कान्तिरिदं च मेघमुगान्तरस्थं यदि दक्षिणा स्यात् // 39 // अस्य व्याख्या यन्त्रस्य मध्याभरखापरि भवन नक्षत्रचन धृत्वा विलोकनीयं यदि तत्वमेधानसरस्थं तदा तस्य नक्षत्रस्य उत्तरा क्रान्तिः / इदमेव नक्षत्रमुखं यदि मेषमकरा. स्तरस्थं तदा तस्य नचास्य दक्षिणा क्रान्तिः स्थादिति / / अथ यन्वस्थिताक्षांभ्या प्रवाशांशाना लग्नानयनम् / यवस्थिताक्षांशगणादौष्टाक्षांशैबिलम्नस्य विधि प्रवीमि / लग्नच तचोबतभागकेभ्यः प्राग्वत्ततः क्रान्तिरियं च गुण्या // 40 // अक्षांशयोरन्तरकेन भक्ता परापमेनाप्तमिता लवादि। मुगाननात्यापरतः प्रदेयं सौम्याप यन्वभवाक्षभागात् // 41 // न्यूनाधिक भीष्टयलांशके त For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्ररानी दिष्टाक्ष प्रा जगं विस्तमम् / याम्यापमं व्यत्ययतः समस्तमिदं विचार्य गणको तमेन // 42 // त्रिभिर्विशेषकं एषां व्याख्या यस्थिताक्षांशगणाद्यथा दृष्टाक्षांशैलंग्नमायाति तथा विधि ब्रवीमि वाथयामि तत्र ततो सम्न प्राग्यदुनसांशभ्यः समानीय रुगानने चिहशत्ला सग्नासौम्ययाम्यक्राम्यानयनम् / श्यं क्रान्तिरक्षांशकयोरसरकम गुण्या कोऽर्थः यन्त्रस्थिसाक्षांशानां तथेष्टाचाशानां अन्तरेण इन्यात् ततः परापमेन परमकान्त्या भाज्या च ततः प्राप्तमंशादि फलं मृगाननात् प्राक्परतच देयं कोऽर्थः यन्ले ग्रागानीसलम्नसमये यगास्य लग्नं भवति / तश्चिम्हात्पृष्ठतोऽग्रतच देयमित्यर्थः सौम्यापमे सोम्यक्रान्तो यम्वाक्षांचात् न्यूनेऽधिके इष्टाचांश मृगाननामाक् पृष्ठतय चिन्ह कार्य एवं कृते सति प्राकुजे यलम्नमुपविशति तदि. ष्टाचज लग्नं भवतीति इदं समम्स पूर्वोत याम्यापमे विपरीत कोऽर्थः यम्यापम यन्त्रावांशेभ्यः इष्टाचां न्यूनाधिके सति पूर्वक्षतमृगास्यचिन्हात्परतः प्रदेयमिति गणको. | त्तमिन ज्योतिर्वित्तमेन विचार्यम् / प्रस्खोदाहरणम् / यत्रस्थिसाक्षांशाः 28.38 इष्टाचांशाः 240 अप सूर्योन्नतांशाः प्राच्याः 66 एभ्यो लग्नं साधित वषादी सूर्ये सति 10. -- ---- - -- - --- - For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मलयेन्दुसूरिखतटीकासहितः। 125 . कर्क लग्नं च 2211. प्राकुमें निविष्टं मकरमुखे चिन्ह कार्य अम्माज्ञान्तिरतरा 1215 // 54 अंयात्मिका 2015:54 एषां यन्वाक्षेटाक्षांशयावियागेन / 38 इता माता८।१२ परमापक्रमेण 23235 भक्ता नवमंशादि फलं 148 बन्ने प्राकलनानयनसमये मकराननमुपविष्टमास्ति तम्माधिहादिदं फले बन्च स्थिताक्षात् 28 / 38 इष्टाक्षे न्यूने 240 प्रापर्वतश्चिन्हे मकरमुख धृते प्राजे कर्कलग्नं सायनं 218 एवमन्यत्रापि समानेयम् / भय सदोदितमक्षत्रेभ्योऽभीष्टदेशस्याचांशानयनम् / सदोदित तलगोर्ध्वगं स्यात् विधा दिवाराप्ततनतांशान् / ज्ञात्वा च संयोज्य चतैः पलांशा अ तैरिष्टपुरे भवन्ति // 4 // व्याख्या इष्टपुरेऽचांशा भवन्ति कया रीत्या सदोदित समग जर्श्वगं च यदा भवति कोऽर्थः / यदा ध्रुवमण्डलभम. माणमधः समायाति तदा तत्सदोदितनक्षवं परमाल्पीचसांगवानार्थ मुहुर्महुर्विदृध्वा पुनस्तदेव ध्रुवमण्डलम्चममा यदा जर्व गवति तदा पुनरपि परमानसांगवानार्थ मुहुम्तदेव सदोदित विध्या स्थानहयातानुबताणानेकी त्याकरणे इष्टदेशाचशा भवन्ति विशेषशायं प्रवां For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यतराजी शनानं ध्रुवात् ध्रुवस्थानं तु केन्द्रभूतमिति सूक्ष्मत्वेन दुर्लयं अतस्तरस्थानज्ञानार्थ सदोदित सदोदितताकैककवनया बारक्ष्यवेधनाच केन्द्राभिधमक्षस्थानमानयमिति तात्यधिः / उदाहरणम् / इष्टरयाने ध्रुषमण्डले पार्श्वगे यन्त्रेण सदोदितवेधन प्राप्ता: उन्नतांचा: 31 ततस्तमिनेबाधागते पुनरपि सदोदितक्षवेधनाप्रामा उतांशाः 25 उभधार्योगे 56 प्रकृित 28 अतो जातं योगिनी युरे अक्षांशाः 28 विद्यन्ते एवं सर्वत्र ज्ञेयम् / ___ अथ कर्मसंस्कृतनक्षत्रानवनम् / मध्याहरेखोपरि भास्य भागे न्यस्ते च योंशोऽस्ति भमण्डलस्य / सुसंस्कृतं तच हि राशिभाग स्फुटं भवेत्सायनकं तहछम्॥४४ // भूजदयस्योपरि भास्यदेशे धृते भवेद्यः खलु राशिभागः / तक्षसवन्धवशेन भस्य स्यातां क्रमादभ्युदयास्तलग्ने // 45 // व्याख्या यम्चे मध्याकरवायां भास्यभागे नक्षत्रवक्ता प्रदेश ते सति ममबलस्थ राशिमगन्नस्य योशोऽस्ति तत्र राशिभाग तहमं तनक्षत्र सुसंस्कातं साधन हक्कम शुद्धं भव For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - -- Mam. .. मलयेन्दुरिकतटीकासहितः / 127 ति। तथैव तस्मिनचचवत्री पूर्वापरभूजरेनोपरि धृते सत्युभयचापि यो राथिभागी लगति तमसम्बन्धवशेन भस्य नक्षत्रस्योदयास्तलरते क्रमेण स्यातां भवतः / प्रथ यन्त्रेण तिथिनक्षत्रयोगानयनम् / कुरी निरक्षे रविचन्द्रभाग-- न्यासान्मृगास्यक्तियस्य चिन्छे / कप्तामध्यात्परतोऽरुखोने चन्द्रभक्त तिथयो विलब्धाः // 46 // द्यमध्यरेखाङ्गशशाशचिन्हान्तरे चि 3 नि खचतु४. विभक्त / यदाप्यते तद्भगणेऽश्चिधिषयवा: स्फलं गतं स्वास्किल कालरते 47 // रव्यङ्गपीयूपकराजयोगे / रामाहते खाधिभि 4 रहते च / प्राप्त गर्न स्थाकिल योगहन्द शोध्यं भचकाभ्यधिके तु चक्रम् // 48 // गतं विशुद्धं निजभागहारादेष्यं भवेत्तविहतं च षष्ट्या / For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 128 যালী चन्द्रार्कभुक्त्यन्तरभन्नामेवं लब्धं दिनाय सकलं तिथेः स्युः // 46 // एष्यत्यताते च भजे खपडि-६० ईने चिनिनेन्दुविभुक्तिमतो। दिनादिकं स्यास्किल योगजे च षष्ट्या इते सूर्यशशाकभुक्त्योः // 50 // योगेन रामापहतेन भक्तो लब्धं दिनाां फलमेवमेव / अहे भवेदौदयिक ईरा भवेश मिश्रण सुसंस्कृतं तत् // 51 // एषां व्याख्या निर बजे प्रागपारेखायो स्पष्ट रकशक चन्द्रोधक च निवेश्य कासवते स्थानदयमाझे सगास्यचिन्ह कार्य गणना तु द्युमध्यान्मध्यावरखाबा: षट्कहासादिक्रमेण कार्य चन्द्ररुणाने सति कोऽर्थः सूर्याशे निरक्षभूनोपरि ते सति मकराननं यत्र लगति तदप्रमिताः सूर्याशकाः कथ्यन्ते एवं चन्द्रांश निरषभूजस्थे यत्र मृगास्व' स्यास चन्द्रांथा: तेम्यो रव्यंशकाः पात्यन्त यदिन पन्तति तदा एतान् 36. संयोज्य पात्यन्से बादश. भिमन्यन्ते तल्लद्धा शतप्रतिपदादिगततिथयो भवन्ति। For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुभूरिकतटीकासहितः / 138 / डाथ नक्षत्रानयनम् / युमध्यरेखाशयावचिन्हान्ती कोऽर्थः कालहत्तं मध्याकरेखातो यष मृगाननं सम्न तावन्तसन्ट्रोया लब्धाः सन्ति तेषु विनिन चत्वारिंशता विभत्री यत्फलमायते तदेव असिन्धादिगतनक्षत्राणि भवन्ति। / प्रय योगानयनम् / काम मकराननायासूाचवन्दायोर्योगसाधित विभिईते चलारिंशशिभक्ती यम, तदेव योगहन्दे विष्कुम्भादयो गतयोगा भवन्ति यदि योगे सते अति भचनाभ्यधिको भवति तदा पयधिनायतनयं 26. योध्यम् / अथ तिष्यादीनां घटिकामयनम् / गतं विग्रह নিজস্থা : বিলিগৰীৰাইৰাৱালনमये तिप्यादिषु लोधु यच्छे षं तत्कमेय तेषां गतमभिधीयरी तषिवभागहाराधियोध्यते भागामितिथ्यादिनांकमान्य' भवति / तात गम्यं वा पया इसे सूर्यचन्दमुल्यस्तरेण भव्यत एतस्मात तिधेर्दिनाद्यं दिनघटीपलामकं सर्वमपि भवति ति तिथिः / अथ मवचम् / एषति गये प्रतीते गते भजे नक्षत्र खुद्धिः षट्या गुणिते पिताडितया चन्दन्या मत सति बचा नक्षत्रस्य दिनादिकं भवति / अम योमः / योगस्य गतगम्ये घश्या इते मर्ययथामति. योगेन रामापहतेन भक्त लब्ध दिनाचं फलमौदायिक अहै। एवमेवाईराषिके तु मित्रेण संस्कृत कार्य गर्ने वियोधयेत् मिसात् गम्य मिथे नियोजयेदित्यादिना संसात For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir অল্পী ut कार्यमित्यर्थः / अथ नियानयने उदाहरणम् / संवत् 1433 यदि 2. भोमे यन्त्रेण स्फटौ रविचन्ट्रो अरातिसमये साधितो सबिरसणीकः 1114143 भुतिः 58321 चन्द्र 11 // 20 // 26 भुक्ति: 832 / 6 रव्यंशे निरषभूजीपरि ते सति मकरानन कालवत्त मध्यरेखात: स्मृष्टचतुश्चत्वारिंशदधिकयतत्रयां 344 शेषु सम्न एवं चन्द्रांश निरक्षभूमोपरि से सति मकराननं पञ्चाशदधिकशतत्रयांशषु 350126 लग्न एवं रब्यशाः 24443 चन्द्रांशभ्य: 150 / 26 प्रतिता: बातमन्तरं 5 / 43 एतद हादशभिर्भो म तिथिम्याने शन्यं एतावता अमावास्या मततिधिः शेषादिनाटिकलं // 26 // . एलइनवशात्तहिन मित्रा 44 // 58 हिशोध्य जातं वैचामावास्याप्रमाणं घटी 18 पल 18 एवं सर्वत्राम्यानेसम्यम् / अथ नवनानयन सदाहरणम् / तिथ्यानयने पूर्व ये चन्द्रायाः 35.126 पानीता: सन्ति ते विगुपिता जाता 1.51118 एते चत्वारिंशता 40 भत्ताः लभमखिन्यादिगतनक्षत्राणि 26 शेषमस्यैव गतं 11418 ससी दि. नादि .16 // 28 एतहतवधात्तहिममियात् 44158 कि. शोध्य जातं चैत्रामावानायां उत्तराभाद्रपदा नषठी 128128 प्रमाण मातं एवं सर्वच / योगानन्य सदाहरणम् / पूर्वानीताः सूयासा: 344143 चन्द्रांशाः 25.0 / 26 समयीयोंगे 1858 अन पक्राधिकरवात् चत्रांशान अपा For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Row Jawanwwww . मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / 111 स्य शेषांभाः 335/8 एते विगुणिताः 2.05 // 27 चरवारिपता 4* विभक्ताः प्राप्ता विष्कुम्भादयो गतयोगा: 25 अस्य व गतं // 27 समवय जार 227 एतचिगुणिते भन्द्राभुतियोगेन 2671111 भज्यते / शब दिनादि फलं 07:20 एतहतवशात् दिन मिश्रात् 4458 अपास्य जातं शमावास्यायां वामानामयोगी घटी 27 पल 38 वर्तते एवं सर्वन / पत्र तहिने सूर्यसिधान्त मैत्री अ. मावास्या पटीका 17135 इत्तराभाद्रपदा घटी 2737 अनामयोग अव्यः 36 पलानि 4. प्रमाणो वर्तते / तिध्यन्तरं पलानि 53 नपत्रासरं प 62 बायोगान्तरं प 58 प्रमाशमस्ति। परं ग्रन्थानारत्वाब दोषः एवं सर्वत्र अयम् / अथ हादशाह लशद्भुतः सस ग तशकोः छायानयनम् / शङ्कप्रभा मुनिहता रविभिर्विभक्ता प्राप्तं यदच सकलं फलमङ्गलाद्यम्। दिःस्थ च तद्भवति सप्तमितस्य शको छायाफलं स्फुटतरं गणकौनिवञ्चम् // 52 // अस्य व्याख्या हादशाङ्गुलयको: छायाफलज्यासः प्राप्ता सा सप्तभिर्गण्यते हादशभिर्भयते ततः प्राप्त प्रान्तादि. फलं समाकुलशको छायाभवति / उदाहरणम्। हादशाङ्गुत्तशोः काया 1,414 1. सप्तभिर्गुणिता जाता 78811. द्वा For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 122 बन्दराजी दशभिर्भया सचा पगुतादिना समानुलशकोः छाया एवंमचापि यम्। স্বত্ব সাকুলা মাজমা: হায়ালন। सप्ताङ्गलस्य प्रतिहत्य शकोः छायां पतङ्ग 12 विभोच्च शैलैः / खधं फलं सूर्यमितस्य शङ्कोः छायालाद्या गणक प्रदिष्टा // 53 // अथ व्याख्या समाालगनार्या फलज्यातः प्रासा तो हा. दशभिः प्रतित्य सप्तभिर्विभज्यते ततो लब्धं शादयाङ्गस्वपः छायाभवति। उदाहरणम्। सप्ताङ्ग क्षयकोः छायार। 26 हादमिर्गुण्यते जाता 78et. सप्तभिर्भव्यते लब्धं वादमा लयकोः छाया अङ्गलाद्या .12.जायते / एवं सर्वत्राप्यानेतव्यम् / प्रथेष्टोवतशिभ्यो द्वादशाक्षसप्तामछायानयनम् / इटोन्नतांशान्नवतेर्विशोध्य सद्भांशकोष्ठहितयाहीत्या। निज निजं शङ्गभवं च वर्ग तया भजेदाखला प्रभेयम् // 54 // For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / नरयेन्दुसरिकतटीकासरितः / 133 वश्य ज्याच्या इष्टोवताशावतेविंशोध्य पातयित्वा तकायां फसच्चाकोष्ठकश्यारीला तमा निज निज शा. भवं वर्ग विभजेत्। एवं शत्रुश्यस्य ने इटोवतांशानां शाम पसाया छाया भवति / पत्रोदाहरणम् / यथाअष्टोत्रतांशाः 12 तेषां शादमागुलशो: छाया कियती भवति उतांशा नवतेजयुताः 08 एरीया या पुस्तकलिखितफसच्यातः प्राप्तालाचा 131 पनया उदयाकुबशावर्गो 145 विभज्यले सन्चाबादशालथाहायाकुलाबा 56 / 18 पध सादमोबसायाः 12 एषां सप्ताङ्लयोः कियती शाया भवति / उतांग्राः 12 एते नवते. युताः 28 एतेषां या पुस्तकलिखितफलचातः सप्तासाचा 128 पनया सप्ताहक्षयवर्गों 8 विभज्यते ततो बादशोबांधानां सप्ताङ्गलशयोः छायाछुलाया 3312 एवमन्यचापि समा. नेयम् / अथ यधेप पर्वतप्राकारदेवतासयतोरणस्तम्भवक्षादीनां दूरे दर्शनादुश्चत्वधानमाह। स्तम्भादिकानामनुविध्य चाम्र यन्त्रण नक्षचवदुचतायाः / वात्यै खपादाग्रभुवं भुजागमप्ययित्वा च तदुन्नतांशान् / 550 For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 यन्त्ररानी जाखाथ कोष्ठहितयाच शको छायां गृहीत्वान्यतरस्य चैकम् क्षिपन् विकर्षन् स्वधियाच भूयो भुजाग्रभागेन तदेव विध्वा // 56 / समयेमिमथास्य चिन्ह. इयान्तरं सप्तसमाइतं च। सूर्वाहतं वा निजमानयुक्तं कृत्वा वर्ददौहिततुङ्गतांशम्॥५७॥ एषां व्याख्या स्तम्भादिकामा अग्रं यन्त्रेण नक्षत्रवहिवा तुजताया प्रत्यै नानाय खपादायभूमि भुजाग्रं च चिन्ह यिवा तदुचतांशान् स्तम्भादीनां उक्तशान्विजाय तापताम्बतभागानां यायमध्ये पन्यतरस्यैकस्य छायाङ्गुसफज्याकोष्ठ मेभ्यो सहीत्वा तत्र स्त्रबुदण्या एवं चिपन्नथवा तती विकर्षस्तदुपरि नतानुब्रांशान् जात्वा भूयस्तदुपरि भुजाप्रमारोप्य भूमिस्थपूर्व चिन्हादग्रतः पृष्ठतश्च क्रममाणस्तदेव स्तम्भादीनामग्रं भुनानछिद्रण विध्वा स्वपादाग्रभूमिमायेत् / चिन्हदयस्यान्तरं हस्तवितस्त्य गुलाद्यं परिमापनमेकत्र स्थापयेत् / यदि सप्ताङ्गल छाया ग्रहीता भवेत् तदा तदन्तरं सप्तभिहचते यद्यन्यस्य तदा हादशभिः एवं कृते सति नि For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / 125 जवान नत्र संयोग्य प्र पण्डित. समीक्तिस्थामस्य तु तो वदेत् / अस्थीदारणम् / तोरपादेः भिरभि नक्षत्रवधि हे लम्बाः उबांगाः 16 तदा दैवीन धरणीस्थखपादा चिन्दित फसव्याकोडकेषु दृष्टेषु षट्षष्टिभागानां हादशा. गुनगाहोः सयानुसाया बन्धा 112 / अनेकसिखया चिप्ते जाता छाया 21 यत्र फत्तन्याकोष्ठक भी छाया भवति स कोष्टके यः तदुपरि ये अवतांगा वर्तन्ते ते ग्रामाः ततोऽच अचामालानासुपरि प्राप्ता उतांगाः 62 एषमतभेषु भुनाममारोम्य पूर्वस्वानादयत: पसाहा तथा माम्बत यथा भूयोऽप्युवस्थानच्य गिरी महिध्यते पुन: खपादा चिन्हिते पूर्वापरचिक्योरन्तरं प्राप्तं रस्ताः 6 ए. तस्मिन् कादमिति स्त्रवमुर्मानादत्रययुन चनाताः 75 एतदीरितखामस्ते शितामानमागतं एवं सर्वच करचीयम् / अथ यधप भौमादिपञ्चकरमोदयमा / सौरं तवं प्राक्षितिजे निधाय छिन् मृगापादय कालवृत्ते। कुर्यादभीष्टस्य सुगस्य कालाशकेषु वामं मकराननं // 58 // कृत्वाशयेत्यूर्वकुजे भवेद्यत् तबन्धमयोदयगं महस्य / For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्वराजो अहोच वक्रे विभजेबखेटान्तरं खगोष्णांशुविभुक्तियुक्त्या // 59 // मार्गखिते तच गभस्तिखटभुक्तयन्तरेबाप्तमिदं च कुर्यात् / सम्बं दिनादिस्त फलं ग्रहस्थ वातः स पस्यादुदयाभिधानः // है.॥ पिभिर्विशेष व्याख्या सोरं सवं ध्यो प्राकक्षितिज उदयरेखायां निधाय नाचते यत्र मुगा बम्न' भवति तत्र चिन्हं कुर्यात् तदनु तस्माश्चिन्दादभीष्टग्रहम् कामांचकेछ वाममप्रदचिप चिन्ह छत्वा मकरामनं स्थापयेत् / एवं बते प्राकुजे यज्ञम्म मांध लगति तबग्न तन ग्राखाचोदरगं पायनं भवनि। सच कालांशवानमिदम्। यत्रगुरुधाशिवाः कालार्ड, तरोत्तरैवभिः 110 11 15 मं 10 एने पदवकालांया प्रेमाः प्रय गतगम्यदिनघटीपलानयनम् / ततो लग्नग्रस्यारन्तरं वक्रावक्रस्थिते मई रविक्षेटभूतिरोगैनान्तरेण वा भव्यते ततो नधोऽभीष्टप्रास्वादये गशमाने दिनादिकाल: स्वात् / सम्नान पर गतकासः स्यात् प्रधिके गम्य इति भावार्थः / इदमने वच्यते / पपी -- .- ... - . ..--...-.-. For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मसयेन्दुरितटीकासहितः / 11. रापरपम् / संवत् 1515 प्राविमगुक 15 गरी दिने पर रातिसमये सारानी रवियुको साधितो रविः // 21281. गति: 1828 मुकः // 183 // * गतिवा 24142 र बमे माचितिजापरि हते मकरामनं चामतत्यधिक असे 10. चम्म' तत्र चिके छते शुकास्योदयपयाबानमा हवं मानमहत्त्वेऽष्टी कानाशास्तत्पूर्व चिन्हावाक्यष्ठभागे अपथिला मकराननं साप्यम् / तत्र नाता: 155 भागाः एवं आते प्रारी बन्यालम्न सायनं 12. उपविष्टम् एतच्छुक्रस्वाक्षसम्वन्ध्युदयाशं शनयुक्योरन्तर भागादि: सध्या सर्वित 3.. मनवशाइविशुक्रगतियोगेन 8 // 1. मलं ततो सखो दिनादिवासः // 3 // 17 यदि बम्बानी प्रास्ता गतकानी यदि बनादधिकतदा एयवासः गतं श१० मित्रादेवं 4505 पादियोध्य तत पाखिनशुक्रबादा सोमै घट्याइतघटी - .148 दु तकामये शनोदयो जात इति सि एक्मन्यत्रापि / अत्र बन्ने प मौमादिपञ्चकल्यास्तधानमार इटहनीष्टस्य बगस्य वास्तकाले गृहीत्वोडुभवोद्भतांशान् / धिष्ण्याननं नेषु निवेश विन्द्याकुजे परेऽभीष्टखगास्तलग्नम् // 6 // For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्त्रराजो ततोलविता मकरास्यमंशोर्भागं विधायापरभूज देशे। पुनमगाग्रे प्रविधाय चिन्हें चिन्ददयस्यान्सरजान् विभागान् / 62 // कालांशकैरिष्टबगस्य हीनानत्वाय शेवं विभजेस्परावत् / रवः खगोदधिकस्तदेष्यकालो भवेद्धीनतरे गतोऽस्मिन् // 63 // एषां व्याख्या इट्टे दिन घटनास्यास्तसमये इष्टनाचको. बतांगान नावा तस्य नवरस्य पच्चं तेषु सत्रतांशेषु निवेप्रयापक्षितिजस्वं इष्टग्रास्वातनम्नं विन्याजानीयात् / ततो मकरान अवयित्वा अंघो: सूर्यस्य भागमंशं अपर कुर्ज निदेश्य पुनसु गानने चिन्हं त्वा चिन्हदयस्य पूर्वापरचिनयोरन्तरोनवानभागानंघानिष्टरहस्य कायांतीनाम्यत्वा अथ शेषं पुरावद्विभजेत् / रवेश्चेद्धिको यहो भवति तदा एष्यकाका प्रथीना भवति तदा गतकार! अभीदाहरशम् / संवत् 1137 आखिनकृष्ण 3. गुरौ दिनरात्रिसमये स्फुटौ रनिएको यन्चेष साधितो रविः सायनः // 18 54 मुक्ति: 584* शक्रः 526. भलिपना 27635 For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मल येन्दुसूरिश्वतटीकासहितः / 128 तत्काले शुकास्तसमये अवपनपत्रस्योन्नतांशाः प्राथाः 60 तत्र नक्षत्रानने समानीतेऽपराजे शुक्रस्यास्तसाग्न सायनं 5 / 27 / 8 लम्नं वर्तते मकराननं तु 357 उपरि लग्न तत्र चिन्हं कला रव्यंशमपरे कुजे निधाय मकरास्ये 335 उपरि लम्ने सति चिन्हहयान्तरात् शुक्रस्य कात्तथा: 8 पात्यन्ते बखान पतन्ति समाकेष मेवान्तरं सवय भुतियोगेन 86 / 15 भञ्यते लवी दिनादिकालः // 24 // 42 यदि वेरधिको यहस्तदेष्यकालः हीनस्तदा गतकालः अवैध कालः 12 / / 42 एण्यत्वामिन 15 // 25 मध्ये योज्यते 62. जात एतावता पाश्चिनशुक्ल 3 यनौ घटी 1. पलेषु समये शुक्रस्यास्तः पथिमायां भवति / पर शताः सन्तु कवीश्वराणां स्वाथोपपत्तो गणितप्रबन्धाः / भस्माकमेतत्किल केवलाय परोपकाराय निधानमत्र / 64 // ग्रन्यास्मिन्यन्न राजस्य गम्भीरोऽम्मोनिधाविव / दुर्दुइयो निमज्जन्ति कुग्राइपरिपीडिताः // 65 // गुरूपदेशप्रबलं यानपावमिवाश्रिताः। सदुदयस्तरन्त्ये व विविधं गणितं परम् / 66 // विद्येयं महती मोक्ता गइने गखितागमे। For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - - - - - बन्दराजो कुशिष्याय तयाय दुष्टायैतान दीयते // 6 // श्रीयन्त्रराजोपनिषन्नियला कर सती मौलिकमासिवेव / तनोति शोभा परमां गुणाव्यां परीक्ष्यकान् स्वोन्मुखतात्रयन्ती / 68 / / सूर्याचन्द्रमसौ थावदीपायेते अगट्टहे। अन्योऽयं धनत्रराजस्य तावविद्याइदिनः // 6 // अभूगपरे वरे गणकचक्ररामणिः कली नृपतिसंस्तुती मदनसरिनामा गुरू। तदीयपदशालिना विरचिते सुयनागमे महेन्द्रगुरणोदितापनि विचारणा यनामा 17. // श्रीपेराजमहेन्द्रसर्वगशकः पृष्टी मरेन्द्रप्रभुः नर्मातः सूरिवरस्तदीयचरणाम्भोजेकजाता। सूरित्रीमनायेन्दुना विरचिते सिन्धधरावागमव्याख्याने 'मविचारणादिकथनाध्याचागमत्पबमः / इति बीयबराज: सटीकः समाप्तः / DANS For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - -- - - -- -- श्रीगणेशाय नमः। प्रतिभाबोधक सुषाकरहिवेदिरचितम् / नमामि राम रमवीयरूपमकारि बीवाशतिरत्र येन। पनेकरूपैकपरं प्रसादात् तस्य ब्रुवे भूतलवृत्तकपम् // 1 // वृत्ताधारा कैदिता भूतसाभ्यां सूची लम्बे वे भवेतां त्रिवाही। समिशन शौर्षादौ भुनौ यस्य सूच्याभाधारस्य व्यासरूपस्तृतीयः // 2 // या स्थाऐखा योगरूपा तयोः सा / तधिन् यसक्षातले सम्बरूपा। स्पष्टा विहन् बासनाऽस्थावबोध्या रेखानातक्षेत्रमित्य व ननम् // 3 // वबा प्रकग सूची बत्र अ शिरःसान तथा तत्र पकग विभुलं यस्य पर भग दो मुखो वतीयो भुजः पाधार -ram wwp For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभावोधकम् / वृत्तस्य ध्यान कगसंशेन समः / श्रय भकग सूची पतघट, जतखट धरातमाभ्यां छेदिता ये अकगधरातले सम्ब रूप घतचट भरातलं प्राधारधरातलस्य समानान्तरं तदा तयोर्योगरेखा सदट अकग धरातले सम्बो भविष्यति (1 प.चे १८)तदट रेखा अग घरातले दविन्दुगता करप्या तदा/ट*च दड = /तदज = .:. जड एकैव सरता तत्रैव इन अपि एव सरलरखा / वतपर ऐदनरूपं तु वृत्तमेव यतस्तदरातसमाधारधरातल समानातरं न वद x पद तद अथ यदि जटरत छेदनाम च वृत्तं स्यात् तदा पूर्ववत् 16 जद - तद 2 रेखागचितस्य वतीयाध्यायेन, ततः रद र बद = घर 4 चद प्राभ्यां 9=19 अथवा = चिदम सत्तः षष्ठा. ध्यायेन रेखागणितस्य, घडत्रिभुजे चदज विभु चमिधः सजातीयं तेन घिद : अचद परन्तु कग, पच रेले मिधः समानान्सरे सत: Lघडद - प्रगक / एलेन पाधारवत्तस्य दलं करोति बहरातलं शीर्षगतं च सूच्याः / mew For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिमाबोधकम् / तदेव खण्डं विभुजाकृतं चेलम्बो भवेत्सब धरातले च // 4 // तत्राधारे कोणमाने समाने यहि स्तः स्वमातलच्यस योगात्। नूबाधारे कोणमाने नवीने ये स्तस्ताभ्यां छेदनं ताई वृत्तम् // 5 // ने कोणमाने समदिग्गत वा विभिन्नदिकस्य भवतः समाने / सदा विदा छेदनजातरूपं वेद्य तु नूनं वलयानुकारम् // 6 // इत्यादि सिध्यति / अथ गौतमत्तानां कस्य चिहत्तस्य धरातले भन्येषां / प्रतिभानानार्थ विधिः / निर्दिष्टवृत्तस्य धरातलं यत् यत्पृष्ट केन्द्रं च तदेकमत्र / वेद्य कामातहणकैन नित्यमाधारसंज निजष्टिचिन्हम् // 7 // गोलोद्भवानामिह मण्डलानां पालीगंता या निजद्दष्टिचिम्हात्। For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभाबोधवम् / रेखाः प्रलग्नाः किल यचयत्र खाधारके स्युः प्रतिभाय तेषाम् // 8 // यदाधारवृत्तस्य पृतीयकेन्द्र खञ्चिन्हभिन्न तदेवात्र बोध्यम् / तदाधारवृत्तस्य पृष्ठीयकेन्द्र विधिं कुर्वता गोलविद्यावरेण // 6 // यथा गोलपृष्ठे किमपि अकगवत तदीयपष्ठीयवेन्द्र के दृचिन्ह 4 प्राधारपृष्ठीय केन्द्रनिर्दिताहीयोन्द्र म ग_प्रोतमशात एकगजटर्सन बटोखा प्रोतहत्ताधारहत्तयोयोगरेखा म गोसगर्भविन्दुः / प पथ चिन्हात् पकनहत्तपालिगतरेखाभिर्या सूचीत्र एकत्रिभुस तलोतहत्तधराट. तलगतं तेन त्रिभुलधरातले पक्गवासस्य धरातलं लम्बरूपं तयाधारवत्तस्य धरातलं च तत्र सम्वरूप नद्योगरखा कर्म रखा तदा 2 हकग = टुजगचापासमं ( रेखागणितस्य हतीयाध्यायेन) 2 एटग =एकगचापा सम पस्य कॉटि- Zर्ग के परन्तु एकगचापाकोटिः जगचापासमा तेन Lहकग ==Z गं क मतस्तदनरूपं हत्तमेव पूर्व सिद्धान्तेन .. - -.- I WA For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभाबोधकम् / पत्र के ग व्यासः। पथ मक = स्प। पकक्षा, मर्म - स एगचा पा, मक = स्म / (प्रकेचा केकचा) / मग = स्म ( पचा + कैगचा ) ततः कंग- मग - मक एवं यदि इस दृक् हमसूत्रादधो याति तदा | तमोयोगः प्रतिभाव्यासो यः / / अनारसूनावतारोऽयम् / अभीष्टाधारवृत्तीयपृष्ठकेन्द्रान्तरं हि यत्। विधेटवृत्तविष्कमादलोनहितं ततः // 10 // तयोः खण्डजे स्पर्शरेखे तयोर्यनवेदन्तरं व्यासमानं तदेव / यदा स्यारणं चाममानं तदा तु तयोर्योगमानं भवेदव्यासमानम् // 11 // प्रथ यथा विधुवहत्तधरातले क्षितिजस्य प्रतिभाशानमभीष्ट तदा तयोः पृष्ठीय केन्ट्रान्तरं मनाशीननवतिः चि. तिषस्य म्यामद भपतिस्ततो वित्तविष्कम्मदतीनसचितमित्यादिना 2.- -. = - अचाप्रथम म रगतं तथा .- अक्षा+2.-१८. - अक्षा प्राभ्यां यहा स्याटणं चापमानमित्यादिना For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभावोधकम् / स। (18. - अशा) + स्म / अछा-यासः आचार्यण पापा स्पर्शरेखारूपमेव युज्यावर्ष पूर्व साधितं तेन व्यासदनं दिनु) गोलगर्भात प्रतिभायाः केन्द्रान्तरं - थासद - घिद्यु - 3 ( प्रद्यु-हिछु ) एतेन पलैबिहीना मगनाष्टरूपा इत्याशुपपत्र' भवति (द्रष्टयं विचल्लारिं यत्पृष्ठे दादत्तम् ) नागचापमाने बीजप्रक्रियया धनवार्योगं विधायोपपत्तियोध्या। भयात्र यदि पिकोहमित्या स्पर्शरसे विधाय योगः कार्यतदाश्म (.-पक्षां) + स पक्षां / नि.कोज्याम - कोस्य प + स्म - 2+ वि. ज्याम कोण्यास _ वि. वा प्यासद ज्या कोज्या ज्याप / -कोशेष एवं गोलचन्द्रात् प्रतिभाकेन्द्रातरं - विर चिच्या प -कार- स मान ... For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभावाधकम् / बिर बि.ज्या- त्र 2 च्या प्रबो न्या: कोज्यान त्रि (वि-रण्या त्र) त्रि - 2 चि ज्यान र न्याई भ. को ज्या ज्याच चि. कोज्याप्र . - = कोस्थप = पृष्ठीय केन्द्रान्तरस्य स्पर्शरेया धाप पूर्वसिद्ध व्यासदलं च -कोछेप पृष्ठीय केन्द्रान्तरण्य छेदनरेखा। अतः सूत्रम् / साधारखमहत्तपृष्ठकेन्द्रान्तरस्य ये। छेदनस्पर्शरेखे ते व्यासकेन्द्रान्तरे ध्रुवम् // 12 // एवं यदि कस्यापि अत्तस्य पृष्ठीय कोन्द्र आधारष्ठ केन्द्रात् अतुल्यान्तरे कलम्यते तव्यासदलं च क तदा पूर्वयुक्त्या प्रतिभाव्यासमानं - स्य 1 ( अ + क )-- स्थ६ (भ-क) नि. ज्या 3 ( अ + क ) त्रिज्या, ( अ- क ) कोमा 3 (+ क ) कोज्या / (-- क ) For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभावोधकम् / त्रि { कोज्या (अ - क) ज्या ( अ + क}} ___ कोज्या ( अ + क ) को ज्या (प्र-क) / चि{ कोच्या (अ+क) ज्या! ( अ + क )} __ कोण्या (अ+क) कोज्या : (भ-क) त्रिज्याक कोन्या (अ + क ) कोज्याई (- क) वि. ज्याक 2 कोज्या (भ+ ) कोल्याप-व) -ततो व्यासद / , वि . त्रि. याक भनयैव युक्त्या गोलगर्भात् प्रतिभा. कोज्याप+कोच्यामा या: केन्द्रान्सरं = {स्य (म+क) + स्म (अ-- क)}| त्रिज्याम कोज्याप+कीज्याक प्रतः सूत्राणि आधारः खेप्सितो यः स्यात्तथेष्टवलयं निजम्। For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभावोधकम् / तन्पृष्ठकेन्द्रविवरं ध्रुवसंत्रं भवेदिह।१३। स्ववृत्तविष्कम्भदस्तोत्थकोटिज्यकान्विता सा ध्रुवकोटिशीवा / हारो भवेदच तथा चिजीवा / गुणो महत्तभवा च कल्य्यः // 14 // स्ववत्तविष्कम्भदलस्य जोवा ध्रुवज्यका चात्र गुरमेन गुण्या / हारेण भक्ता प्रतिभाभवे स्लोव्यासाई केन्द्रान्तरसङख्यके ते // 15 // अथैवं विषुवहत्तधरातले क्रान्तिकृत्तस्य प्रतिभाधानार्थ पूर्वोषधे तयोः. प्रसवेन्द्रान्तरं विनांयसमं तेन तत्प्रतिभाव्यासः __ कोज्याजि पि , कोज्यानि. त्रि तथा मकरध त्रि - ज्याणि त्रि-+ ज्याजि मामा = काच्याजि. चि ततोऽनपातो यदि मकर पि- ज्याजि तव्याने किंगदंमारादा क्रान्तिहत्ते कि मातस्तमानातीयो गासः = 1.1+1- ज्योति ? / (चि+ ज्यामि। -+ स: For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभाबोधकम् / वाज्याजि , काज्याभि. कउिज्यालि / = 1 वाज्याजि ' केाज्याजि (त्रि + ज्यानि)। कोज्याजि+ कोज्या जि. कोठज्यानि (त्रि+ज्याजि) . कोज्यानि अत एकसप्ततिपृष्ठस्थपरापमानां नरभागमौर्वी इत्याधुपपत्र अन्तरे कते केन्द्रान्तरं चोपपन्न भवति / एवं वहव: प्रकारा अनेन सिद्ध्यन्ति किं लिखनविस्तरेण / एवं पूर्वोक्तयुक्त्यैव गोलस्पर्शरेखयाई योर्योगेन य: कोणः स एव तत्प्रतिभारेखयोरुत्पबाणस्तथा या रेखा गालवृत्ते स्पर्शरेखा तत्प्रतिभा च तत्प्रतिभाहत्ते स्पर्शरेखा। यदव्यासमितिरनन्ता सा प्रतिभा सरलरेखेव / प्रतिभावोधकमिदं संक्षेपेण कृतं स्फुटम्। सुधाकरेण धीमनिर्बध्या ज्ञयं विशेषतः // 16 // / शराङ्कसप्तन्दुशके व्यतीते सुधाकरेणैतदकारि तुष्टय / यन्त्र प्रचारागमपण्डितानां श्रीजानकोजानितपावलम्बात् // 17 // ति श्रीसुधाकरहिवेदिक्कतं प्रतिभाबोधक For Private And Personal Use Only