________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ww - + ममयेन्दुसूरिक्ततटीवासहित 2356 / 27 अनयोरकं बलं 2356 / 27 विंशता गुषितं जातं 7.6831. रई कोटिज्यया 328812 भल्यते नश्च व्यासदन्तस्य प्रमाणे भागादि 21 // 2 // अथ प्रथस्थित दसं 2356 / 27 कोटिल्यात: पास्य' 328812 मे 842 // 15 त्रिंशता गुपितं 182 / 3. पततिाम् कोरिया 3288 / 12 भले नब्ध भचक्रकेन्ट्र भागाद्यं 134 / अथानीसमचका केन्ट्रव्यासाईयो: प्रमाचमार। भागा भचक्रकेन्द्रस्याष्टो लिप्ता वेदवन्हया 834 / व्यासास्थि भरादोषो रसभेचाणि चक्रामात् 21 / 26 // 65 // स्पष्टार्थः / अथ भमण्डलार्थ लङ्गोयप्रमाणानां प्रवंशभागादिषु युक्तिरुच्यते। निरक्षशकोदयलग्नमानात स्फुरं फलं याप्रतिभागमेति / यथोचितं तद्गणकेन योज्यं भमण्डले खचिमितेऽपि यन्त्र // 6 // प्रय व्याख्या यन्ध तावदानवते. रेक 1 हि३ त्रि | पञ्च / घट् 6 दम 1. प्रमापोवतांगवलम्वल्पनया For Private And Personal Use Only