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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभाबोधवम् / रेखाः प्रलग्नाः किल यचयत्र खाधारके स्युः प्रतिभाय तेषाम् // 8 // यदाधारवृत्तस्य पृतीयकेन्द्र खञ्चिन्हभिन्न तदेवात्र बोध्यम् / तदाधारवृत्तस्य पृष्ठीयकेन्द्र विधिं कुर्वता गोलविद्यावरेण // 6 // यथा गोलपृष्ठे किमपि अकगवत तदीयपष्ठीयवेन्द्र के दृचिन्ह 4 प्राधारपृष्ठीय केन्द्रनिर्दिताहीयोन्द्र म ग_प्रोतमशात एकगजटर्सन बटोखा प्रोतहत्ताधारहत्तयोयोगरेखा म गोसगर्भविन्दुः / प पथ चिन्हात् पकनहत्तपालिगतरेखाभिर्या सूचीत्र एकत्रिभुस तलोतहत्तधराट. तलगतं तेन त्रिभुलधरातले पक्गवासस्य धरातलं लम्बरूपं तयाधारवत्तस्य धरातलं च तत्र सम्वरूप नद्योगरखा कर्म रखा तदा 2 हकग = टुजगचापासमं ( रेखागणितस्य हतीयाध्यायेन) 2 एटग =एकगचापा सम पस्य कॉटि- Zर्ग के परन्तु एकगचापाकोटिः जगचापासमा तेन Lहकग ==Z गं क मतस्तदनरूपं हत्तमेव पूर्व सिद्धान्तेन .. - -.- I WA For Private And Personal Use Only
SR No.020948
Book TitleYantrarajo
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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