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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्तराजी Ama 28 / 26 / / ततः क्रमज्याकीडकेषु भुजभागाना 28 मधः पाम फलं 16806 तदधोऽन्तरं 55 // 13 भनेनान्तरेण भुनभागानामधःखे कलाविकले 268 गुणिते पन्या भक्ते लब्बे फले 213 पूर्वकले 168 युर जाता सा भुजज्या 17148 एवं सर्वत्रापि / अथ वापस्य को टिज्या तत्र याम्यो रोहिणीशरः 5 / 10 / अयं नवतेः यही जासः ८४ापू• अत: माखदानीता जीवा 358525 अनया मागा. नीता भुनन्या १७१४ाट गुणिता जाता 614584158 अस्यास्यज्यया 36.. भागे लब्धाः 17.7 / 12 भम कल्पनयेयमेव भौवी / अत्र चापसाधनं यथा क्रमजीवाकीहुकानां अष्टाविंधतिभामानामधास्यं फलं 168.6 पूर्वानिसाया: कला 28101. दिमौलः 17.12 पात्यन्त शेषाः 1716 तेन चापांथाः शून्यमुपलक्षणं शेषाः 176 पध्या संगुण्याष्टाविंशत्यधःस्थितेनान्तरण 5413 वि भव्यते लब्ध कहादिफलं 18034 नातं जीवातसापमिदं 28 / 18 / 24 एवं सर्वत्रापि धापसाधनं कर्तव्यम्। श्रम चापे नवते; शोधित शेषं भागादि 6 // 41 // 26 अतः प्राम्बज्जीवा 11681. अनया प्राबबीताय नमवशरस्य 5 // 1. व्यायां 324 / 10 भकायां लध भागादिकमतर 8 तस्विरागिपरहिनस्व रोहिणीमचषभुषकस्यास्य 2 // 1 // 33 // 52 तश्करस्य For Private And Personal Use Only
SR No.020948
Book TitleYantrarajo
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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