Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ desh अप ३६ पंमितश्री मेरुविजय विरचित Lede वस्तुपाल तेजपालनो रास 86 Jain Educationa International - तथा पंचानुष्ठान चोवीशी. PAY5 परम प्रतापी महा उदार वस्तुपालनी धर्मकरणी, श्रीजिनमंदिरोना जीर्णोद्धार आदि अनेक लोकोपयोगी परोकारमय चरित्रथी सद्गुणवालां चरित्रोनी शिक्षाना दर्पणरूप श्रृंगार वीर करुणा शांत रस आदि प्रबोधमय कथानो सार विविध देशीमां श्रावक जीमसिंह माणके मुंबइ. मध्ये निर्णयसागर मुद्रायंत्रमां उपावी प्रसिद्ध कर्यो. संवत् १९७६ सने १७२०. अकुर For Personal and Private Use Only de de de check too clocks Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथ ॥ ॥ पंमितश्रीमेरुविजयविरचित ॥ वस्तुपालतेजपालनोरासप्रारंजः ॥ उहा ॥ राग रामगिरि ॥ ॥ सकल जिनेश्वर पय नमी, समरी सरस्वती माय ॥ पंच तीर्थी जिनवर नमुं, मनवंबित सुख थाय ॥१॥ आदे आदि जिनवर नमुं, युगल्या धर्म निवार ॥ मरुदेवीए जनमी, प्रथम जिन अवतार ॥२॥ शांति जिनेश्वर सुखकरु, पंचमो चक्री राय ॥ नामे नव निधि पामीए, पूज्ये पातक जाय ॥३॥ ब्रह्मचारी चूमामणि, बावीशमो जिन नेम ॥ राणी राजुल परिहरी, पोहता शिवपुरी खेम ॥४॥पुरिसादाणी पास जिन, पूरे वंबित आश॥प्रह उठीप्रजु नित नमुं, आपे शिवपुरवास ॥५॥ शासनपति जिनवर नमुं, चोवीशमा प्रजु वीर ॥ चौदह सहस्त्र मुनिवर जसु, गौतम वडो वजीर॥ ६॥ ए पंच तीर्थी नित्य नमुं, पंचम गति दातार ॥ जिन चौवीशे वली नमुं, पामुं नवनो पार ॥ ७ ॥ सित्तरसो जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) वर नमुं, उत्कृष्ट काले होय ॥ विहरमान वीशे नमुं, महाविदेह देत्रे जोय ॥ ७॥ गुरुप्रसादे जिन लह्या, गुरु गरुया गुणवंत ॥ सरस्वती प्रसन्न गुरु थकी, गुरु हितकारी जंत ॥ ए॥ ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी, कविजन केरी माय ॥ वाणी आपे निर्मली, वस्तुपाल गुण गाय॥१०॥ वली तेजपाल ए क्या हुआ, किम राख्युं जग नाम ॥ धर्मकरणी शी शी करी, कहुं माय ताय तस गम ॥ ११॥ गुर्जर देश सोहामणो, सकल देश शणगार ॥ अणहिलपुर नगरी तिहां, धर्म तणो आगार ॥ १२ ॥ ॥ ढाल पहेली॥ ॥ जिनजननी हरष अपारो ॥ ए देशी ॥ जंबूहीपते रुको जाj, लाख योजन तेह वखाएं ॥ जरत क्षेत्र ते मांदे कहीए, पांचसे योजन जाको लहीए ॥१॥ बत्रीश सहस्स अनारज देश, तेमां जैन धर्म लवलेश ॥ सामा पंचवीश आरज देश, तेहमां धर्म कह्यो सुविशेष ॥२॥ अंग बंग कलिंग बे देश, काशी कोशल ने कुरुवंश ॥ वली पंचाल सोरठ कहीए, जिहां शत्रुजय तीरथ लहीए ॥३॥ कुशावर्त्त जांगल वसु देश, सांमिल मायाल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) विशेष ॥ वैराट सिंधु सूरसेन देश, तिहां मथुरा नगरी निवेश ॥ ४ ॥ लाट नोट कर्णाट ए सोहे, देश काशी वाराणसी मोहे | दक्षिण देश विचद नारी, देश केकय अर्ध विचारी ॥ ५ ॥ मगध देश अनुपम लहीए, सामी पंचवीश आरज कहीए | तेहमां नगर कहुं वली ईश, राजगृही नगरी बे जगी ॥ ६ ॥ जिहां धर्म तणी बहु खाणी, तिए राजगृही नगरी कहीवाणी ॥ हुआ मेघकुमार अजयकुमारो, सुलसा रेवइ श्राविका सारो ॥ ७ ॥ राज्य करे त्यां श्रेणिक रायो, शुद्ध समकितधारी कवायो || नित प्रणमे वीर जिन रायो, पद्मनाभं जिन जीव जाणो ॥ ८ ॥ हुआ धर्मी तिहां कयवन्नो, शालिन हुआ वली धन्नो ॥ नालंदो पाडो तिहां होय, चौद चोमासां वीर जोय ॥ ए॥ जोयण नव बारी कहीए, अमरपुरीथी अधिकी लहीए ॥ चरम केवली जंबूकुमारो, बीजा अनेक पुरुष उदारो ॥ १० ॥ राजगृही नगरी ए सारो, तेथी गुर्जर देश मनोहारो ॥ दान मान दयानी खाणी, चतुर देश छानोपम जाणी ॥ ११ ॥ तिदां नगर शिरोमणि कहीए, त्रण नाम तेनां लहीए ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदे अणहिलवाडं होय, गोपाले वास्युं गम जोय ॥ १५ ॥ शशा आगल श्वानज हागुं, गोवाले गम निरधामु ॥ अण हिल गोवाल नामज जाणो, नरसमुष बीजुं मन आणो ॥ १३ ॥ आज पाटण नाम कहीवायुं, ए मोटुं गाम गवायुं ॥ तेहनो सांजलो विरतंत, ते कहेतां उपजे खंत ॥ १४ ॥ पाटण पासे मालासण गामो, तिहां वसे घांची राणो नामो ॥ स्त्री तेमी नगरे आवे, पाटण देखी आनंद पावे ॥ १५ ॥ नयर जोतां नारी मन हींसे, कणेकमां नाह नवि दीसे ॥ पातरीयां बेहु गमार, शोध्ये लाधो नहीं पीयु सार ॥ १६॥ राजा आगल जपोकारी, पीयु लाधो नहीं कहे नारी ॥ नामे राणो वाम आंखे काणो, ए अहिनाणे अम पीयु जाणो ॥ १७ ॥ राणी वचन सुणी राय हरखे, घांचण सामु राजा निरखे ॥ अश्रुपात करती ते बाला, राय जुए स्त्रीना चाला ॥ १७॥ राये नारी करुणा आणी, ढंढेरो फेरे नगरे जाणी ॥ घांची राणो वाम आंखे काणो, सहु मिली आवो राय गणो ॥ १ए ॥ नवसे नवाणुं मच्या ए जात, तोहि नाव्यो नारीपत्र तात॥काणा देखी नारी मुख जोवे, निज नाह न दोगे तब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 4 ) रोवे ॥ २० ॥ तोड़े न मल्यो ते जरतार, तब जांखी थइ ते नार || एवं नगर अनोपम लहीए, नरसमुद्र पाटण एकही ॥ २१ ॥ हवे राजा नगर जोवरावे, तोड़े तेहनो पीयु नहीं आवे || नारी सात दिवस त्यां जोती, पढी प्राण त्याग करे रोती ॥ २२ ॥ स्वामी विरहे सती थाउं, पीयु राणो नाव्यो किहां जानं ॥ राय आज्ञा दीए ते वार, सती यावा जाये नार ॥ २३ ॥ पीयु पीयु करती मारग जावे, समसा काष्ट रचावे || राजा दीए द्रव्य बहु मान, पतिव्रता पीयु समरे ताम ॥ २४ ॥ जयजय शब्द करती दानज दीए, निज जर्त्तार धरती हिये ॥ सतीमुख जोवा सदु धावे, राजादिक लोक बहु यावे ॥ २५ ॥ नगरलोक बहु तिहां यावे, सतीना गुण सहु कोइ गावे ॥ नारी वरसती रूपानाणे, निज मुखथी पीयुने वखा ॥ २६ ॥ तिहां मलीया लोकना थोक, धर्मी साधन जोइ विवेक ॥ सती चोर वध जोतां पाप, इह लोके लागे संताप ॥ २७ ॥ राणो बापको नारी जोतो, आव्यो नगर बाहिर ते फरतो ॥ तिहां नर नारी बिहु निरखे, निज नारी देखी त्यां दरखे ॥ २७ ॥ उठी नारी पीयु पाये लागी, राजानी For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज्ञा मागी ॥ स्वामी करती हुँ प्राणज त्याग, ते पीयु आव्यो मुज नाग ॥ श्ए॥ ॥दोहा॥ ॥ नारीने नर एम मख्यो, एहवो नगर निवेश॥नर नारी सखीयां थयां, मेरु कडेवो नगर विशेष ॥१॥ एहवं नगर पाटण नवं, वरण्ये नावे पार ॥ राज करे सिकराज तिहां, इंसमो अवतार ॥२॥ गढ मढ मंदिर मालीयां, प्रौढी पोल प्राकार ॥ चोराशी चहुटां जलां, पोशालनो नहीं पार ॥३॥ श्रावक जन त्यां सहु सुखी, फुःख नहीं लवलेश ॥ हरिना सूरि त्यां रहे, देता धर्म उपदेश ॥४॥ कोटिध्वज कोटमा वसे, लखेशरी वसे लाख ॥ अनेक व्यवहारी वसे, मधुरी वाणी वदे नाख ॥५॥ न्यात चोराशी त्यां रहे, उस वंश श्रीमाली सार ॥ प्राग वंश प्रगट मल, सकल नात शणगार ॥६॥ पुण्ये पूरे पामीए,न्यात जात शुज वास॥ पुण्य विहुणा प्राणीया, परघर थाये दास ॥ ७॥ पूरव पुण्य ते आचस्यां, वस्तुपाल तेजपाल ॥मात पिता उत्पत्ति कहुं, सुणजो बाल गोपाल ॥ ॥ गुर्जरधर मंगल कहुँ, चोथी पेढी त्यां जाण ॥ अणहिलपुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 3 ) श्रावी रह्या, महतो चंद्रपराक्रम वखा ॥ एं ॥ चंद्रप्रसाद अंगज करूं, सोमचंद आसपाल ॥ कुमारदेवी कुखे उपन्या, वस्तुग ने तेजपाल ॥ १० ॥ वणिज करे त्यां वाणी, सोमपुत्र आसराज ॥ प्राग वंशमां मूलगुं, त्रण पेढीनुं घरराज ॥ ११ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ ॥ सराजनी करणी जोय, कर्मे दारिद्र्य ते पण होय || पेटराइ त्यां नवि थाय, नगर बांकी एक गामे जाय ॥ १ ॥ पंथ चाल्यो जाये जिसे, चासे तोरण बांध्यं तिसे ॥ वाम दाहिए शकुन ते थयां, अनु*मे ए मालास गया ॥ २ ॥ ग्राम मध्य कीधो प्रवेश, शकुन जिमणां हुआ विशेष ॥ प्रथम ज‍ प्रणमे जिनराय, देव गुरुना गुण त्यां गाय ॥ ३ ॥ चोखावटी पाडे घर लीयो, साथे कर्म ते लेइ आवीयो ॥ दोहिला दहामा ते निर्गमे, लंपटपणुं मन साथे रमे ॥ ४ ॥ पाटण बांकी मालासण जाय, सघलां कर्म ते साथे थाय ॥ आसराज तिहां सुखे रहे, सरुवणे धर्मज लहे ॥ ५ ॥ हरिज सूरि विचरे सदा, मालास आव्या वे तदा ॥ गुरु ज्ञानी दे उपदेश, आसराज करे धर्म विशेष ॥ ६ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (G) पोसा पमिकमणां अंगे करे, नव तत्त्व ते जाणे शिरे ॥ गुरुयाज्ञा नहीं लोपे कदा, विनयवंत चतुराश् सदा ॥ ७॥ एक दिवस राति पोसो करे, आलस निमाने परिहरे ॥ अगोचर ज बेठो यदा, हरिजन सूरि नवि दीगे तदा ॥ ॥ आवश्यक करी श्राफ घर गया, हरिजन सूरि त्यां सुखे रह्या ॥ पोसह नणी सहु निना अनुसरे, एक चेलो गुरु वातज करे॥ए ॥ सुण व शासनदेवी एकदा, में समरी वात पूर्वी तदा ॥ शासनयोध कुण होशे जोय, कहे कुमारदेवीना नंदन होय ॥ १०॥ शिष्य पूजे गुरु कहो ते वात, तुम्हे ज्ञानी जाणो अवदात ॥ रजनी वात न कहीए सुणो, एथी अनरथ थाये घणो ॥११॥ ते वात आरंजी कहो गुरु आज, ए आफरो टालो महाराज ॥ वारंवार शिष्य विनति करे, लाल देखी गुरु वयण उच्चरे ॥ १५ ॥शा बुनी पुत्री कडं, लाबलदे माता तेहनी लडं ॥ रूप यौवन चतुराश् सरे, माय बाप परणावी खरे ॥ १३॥ चतुरपणे ते बोले चंग, चोसठ कला सुंदरी अंग ॥ चंपावरणी दीसे देह, पीन पयोधर कसी बांध्या जेह ॥ १४ ॥ पदमणी पहिरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) सोल शणगार, विद्याधरी के देवकुमार ॥ पाये ठमके घूघर घमकार, एसी नारी नहीं डूजी संसार ॥ १५ ॥ सासरे सीधावी ते पण बाल, कर्मे रंगापण व्यं काल || पीहर तेमी आव्यो बाप, कुमरी कर्मे वे संताप ॥ १६ ॥ एहवी वातज हुं पण लहुं, नामे कुमरी वाइ ते कहुं । कुखे रत्न बे दी से सही, शासनदेवी एम कहीने गइ ॥ १७ ॥ एम वात करी निद्रा अनुसरे, सराज ते हृदयमां धरे ॥ प्रह उठी यावश्यक यादरे, गुरुचरणे ते वंदन करे ॥ १८ ॥ पोसो पारीने गुरुने नमे, रजनी वात हृदयमां रमे ॥ एणे अवसर बाइ कुमरी जोय, देव पूजी गुरु वंदे सोय ॥ १५ ॥ गुरु निरखे ते कुमरी नार, शीश दलावे वारोवार ॥ सराज मन चमक्यो वली, साधु शीश हलावे कारण कली ॥ २० ॥ विनय करी पूढे सराज, किम शीश दलाच्युं कहो महाराज ॥ श्रति आग्रह जाणी श्रावक तणो, दीगे लान सूरीश्वर घणो ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥इरिन सूरि सुखकरु, बोले अमृतवाण ॥ विधवा कुमरी एह बे, रत्न बे कुखे जाण ॥ १ ॥ वचन वदे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) सूरीश्वरु, शास्त्र त अनुसार ॥ वाम अंगे मसा कहुँ, जंघा स्तन तिल कर मकार ॥ २ ॥ लक्षणवती ते मानिनी, कवि किम वर्णवी जाय ॥ सराज मनमां वसी, ए मुज घरणी थाय ॥ ३ ॥ घरणी विना घर किस्युं, घरणी विना नहीं सार ॥ घरणी विना जग जीव्युं किस्युं, घरणी विना नहीं सुख संसार ॥ ४ ॥ मुज घरणी हवे ए करूं, सुख विलसुं जि राम ॥ करूं धारेलुं ए नारीशुं, परणतां नहीं मुज दाम ॥ ५ ॥ कुमरी मनमां कतु नहीं, कामी धरतो नेह ॥ एक पखी किसी प्रीतमी, जबक देखाडे बेह ॥ ६ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ राग मारुणी ॥ जोला मूल मांदे ॥ एदेशी ॥ बाली जोली जामनी जामे नवि पडे रे, पाले समकित सार ॥ ब अहम तप पोसा अंगे आदरे रे, जाणे थिर संसार ॥ १ ॥ कीधां कर्म जीव जोगवे रे, कीधाने अनुसार, एम बोले जिन निरधार ॥ की धां० ॥ ए आंकणी ॥ रूपे रुमी शीले सोहे सुंदरी रे, न करे पुरुषनो संग ॥ कामी पुरुष ते केमन मूकतो रे, कुमरी मन नहीं रंग ॥ २ ॥ कीधां० ॥ लंपट लालची लोजी ते लवे रे, तुं मुज हियानो हीर ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) नयणे निरखे हियडे हरखे आपणे रे, पूंठे फिरे साहसधीर ॥३॥ कीधां ॥ वचन विकार कुमरी प्रते वदे रे, मूकी कुलनी लाज ॥ अन्नोदक ते सर्वे परिहरी रे, विकल थर फिरे आसराज ॥४॥ कवित्त॥पहिलो मन संताप, शोक चटपटीज आवे॥ जिम लागो होय जत. चित्त ते तिमज नमावे॥जख तिरस सहु जाय, अन्न दीतुं नहीं नावे ॥ न रुचे वात विनोद, रात ते जंघ न आवे ॥ सजन विरोध जनहास बहु, राजदंग धन हानि कुःख॥कवि मेरु कहे परनारीशु, प्रेम करे ते कवण सुख ॥५॥ विनय करीने कुमरी प्रते एम कहे रे, सुण सुंदरि सुखकार ॥ आदि जिनेश्वर पूर्वे ए वस्त आदरी रे, श्राणी सुमंगला नार॥६॥ कीधां॥नंदीषण सरिखा करमे ते नड्या रे, कीधां ए वली कर्म ॥ साधुवेष मूकी रमणीशुं रमे रे, बारे वरष कीधो अधर्म ॥७॥ कीधांग ॥ अरणक ऋषीश्वर ते पण श्म रह्या रे, परस्त्री मिलीयो संयोग ॥ कुबेरदत्त कामी जगमां कह्यो रे, माय नगिनी विलस्या नोग ॥७॥कीधांग ॥ एहवां वचन सुंदरी काने नवि धरे रे, आसराज करे जो उपाय ॥ गुरुचरणे जर पोसो आदरे रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) हरख्या संघ बाबु शाय ॥ ए॥ की॥ महोडे मीठो हियडे धीठो धर्मग्ग थयो रे, देव गुरु प्रणमे पाय ॥ पुंजे प्रमार्जे चरवला मुहपत्ति रे, धर्मे रंजे आबु शाह ॥ १० ॥ की० ॥ पात्र पवित्र आवो अम घर आंगणे रे, सेवा करे स्वामी सोय ॥ शालि दाल सुखमी जली परे साचवे रे, साचो खामी मुज होय ॥ ११॥ की० ॥ ते निरखे गोख मंदिर मालीयां रे, निरखे कुमरी घरबार ॥ पोल प्राकार शेरी बारी निरखतो रे, निरखे वली तालां कुंची सार ॥ १२ ॥ की० ॥ सामी धामी हरामी त्रीजो ए मख्यो रे, एथी श्वान कहुँ सार ॥ अधर्मवार्ता करवी चिंतवे रे, रजनी हरु ए नार ॥ १३ ॥ की॥ ॥दोहा॥ ॥ नगर नबुं मालासपुं, वसे वरण अढार ॥राजधर नामे एक राश्को, रहेतो नगर मकार ॥१॥ आसक राश्काने मल्यो, मित्र थयो उदास ॥ एक जीव काया जुजुवी, बानी वात करे तास ॥५॥ सऊन एसा कीजीए, जेसा सोपारी जंग ॥ आप करावे टुकमा, परमुख दीए रंग ॥३॥ सेवो सऊन अंब सम, अवगुण तजी गुण लेय ॥ उ उथथे प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्थर हणे, उ जथथे फल देय ॥४॥ सोनुं वेची स. जन कीया, मोती केरे तोल ॥ ते सजान किम जोमीए, लोकां केरे बोल ॥ ५॥ आसक आशा पूरतो, राश्को करे रुमी वात ॥ बानी वात करे सदा,रूठगे न करे घात ॥ ६॥ एक दिन मैत्री बेजणा, करता वात कबोल ॥ अवसर जाणी मेतो कहे, कुमरीशं करी रंगरोल ॥७॥राश्को वचन वलतुं कहे, अववसर जाणी सांढ पव्हाण ॥ घमीए योजन मूकशे, कुमरी ले जा सुजाण ॥७॥ घमीआ योजन सांढ आपतो, राश्को मित्र अपार ॥ काम करे तुं - पएं, प्रवे न करे को वार ॥ ए॥ संदरी वात प्रवे सुणावतो, करतो चेष्टा अनेक ॥ आंगली गलतां पूंचो ली, रजनी आवे धरी विवेक ॥१०॥ ॥ढाल चोथी॥ ॥रे जीव दानजदीजीए ॥ ए देशी॥ निजाजर सुती सुंदरी, पोढी ने पमशाल ॥ आसक आवी पापीठ, रजनी हरे ते बाल ॥१॥ एहवां कर्म न कीजीए, जेणे दंडे राय ॥ मात पिता न्याति परिहरे, परनव नरके जाय ॥२॥ एहवां ॥ए आंकणी॥चंचलपणे चोरी करे, निस जर निमा बाल ॥ जागी अबला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) मुख बांधीयुं, सांढ लेश् चाल्यो ततकाल ॥३॥ एह ॥ घमीए जोजन चालती, आवी रजनी मांय ॥ आसापहीए वीयां, निर्जय ते तिहां थाय ॥४॥ एह ॥ वांकी वसमी नूमिका, कोतर जालां नहीं पार ॥ आसो नील तिहां कडं, पसीपति शणगार ॥५॥ एह ॥ पूरवे नगरी करुणावती, जव करण अवतार ॥ नव योजन लांबी वसे, बार योजन विस्तार ॥६॥ एह० ॥ कर्मे कालज व्यापीठ, नगर हां उदवेस ॥आसो चोर तिहां रहे, सुख न दीए लवलेश ॥७॥ एह॥मयवासो सारुये,चोर तणां इतां राज ॥ पाटण हाकम नावतो, त्यां याव्यो आसराज ॥ ॥ एह ॥ पडे गुर्जर देश राजा हुई, महा बलवंत वमवीर ॥ अहमदशा जग जाणीए. राजनगर वास्युं धीर ॥ ए॥ एह ॥ संवत् चौद अगवने, आसो माने रायनी आण ॥ पहिडं नगर करुणावती, हवे आसाउल जाण ॥ १० ॥ एह० ॥ शाह अहमद राजा पालतो, वास्युं अहमदावाद ॥ संवत् अगसठे कहुं, वास्युं महमदावाद ॥ ११॥ एह० ॥ वैशाख वदि सातम नली, पुष्य नक्षत्र रविवार ॥ राजनगर कीधी थापना, जाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) देवपुरी सार ॥ १२ ॥ एह० ॥ दवे आसराज श्राशा फली, केडे को नवि थाय ॥ मनमानी ते मानिनी, राखी मंदिर मांय ॥ १३ ॥ एह० ॥ बाली जोली शूरती, किहा जवनां लाग्यां पाप ॥ साधु संताच्या में सही, बोरु विडोयां माय ॥ १४ ॥ ० ॥ कूमां कलंक सखी में दीयां, थापणमोसा कीध ॥ शुद्ध शील नवि पालीयुं, कर्मे दूषण दीध ॥ १५ ॥ एह० ॥ जीन खंडं काया तनुं, ए वात मुजथी न होय ॥ प्राण प्रिया मुज वजा, गुरुवचन संजाली जोय ॥ १६ ॥ एह० ॥ तुज मुज सरज्यं ए सही, दीजे कर्मने दोष ॥ सरज्यं किमह न बूटीए, किसो करो हवे रोष ॥ १७ ॥ ० ॥ कहो कर्म उदय मुज आवीयां, न रही कुल तणी लाज ॥ कारज किम आदरुं, सांजल तुं आसराज ॥ १८ ॥ एह० ॥ प्राणी प्रीत ते शुं करे, परवश पमी ते बाल ॥ घरणी करी घरे राखतो, रूपा चूक पहिरी रसाल ॥ १५ ॥ एहु० ॥ घरनी मेले घरणी हुइ, हरख्यो ते आसराज ॥ सोपारापुर जायशुं, देश बांगी महाराज ॥ १० ॥ ए६० ॥ नारीवचने पीयु चालीयो, ज‍ यो सोपारे वास ॥ पंच विषय सुख विलसतो, सात पुत्री सुत नहीं आस ॥ २१ ॥ ए६० ॥ सालू मालू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानकी, मानी मागी मोटी सार ॥ सातमी सखरी शोजती, ए सात पुत्री उदार ॥२२॥ एहण॥दारिद्य घरवासो वसे, सात पुत्रीनो बाप ॥ कीधां कर्म ते जोगवे, पामे मन संताप ॥ २३ ॥ एह ॥ काव्यं ॥ कुग्रामवासः कुनरेंऽसेवा, कुनोजनं क्रोधमुखी च नार्या ॥ कन्याबहुत्वं च दरिता च, षड् जीवलोके नरकावसंति ॥२४॥ ॥दोहा॥ ॥निसाणी नाणे नविराचीए,बंटी खाणुं नहीं सार॥ बाली पूजाणुं ते किस्यु, तिम काफी पुत्री असार ॥१॥ चिंतातुर ते बे जणां,हवे करशुं किस्यो उपाय॥ खीर न खाधी हाथे बली, ए उखाणो साचो थाय ॥२॥श्म करतां दिन केता गया, पुत्र प्रसव्यो लूणिक ताम ॥ मात पिता हरख्यां घj, उबव करे अनिराम ॥३॥ बीजो पुत्र वली त्यां हुई, मालदेव दीधुं नाम ॥ थोमा दिवसमां बेहु जणा, पोहता अमरविमान ॥४॥ कुमरी मूर्ती लुश पमी, रु रुवावे रान ॥ आसक ाशानंग हुश्, हवे जश् पूर्बु गुरु झान ॥५॥ चिंता म कर रे मानिनी, चिंते किमपि न होय ॥ सशुरु पूर्बु वातमी, कहेशे वृत्तांत सोय ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) ॥ चोपाइ ॥ ॥ सराज बोले ते वाय, चिंता न करो तुम्हे पुत्री माय ॥ मुजने वात कही जे हती, हवे प्रगट थ‍ पाय लागुं जति ॥ १ ॥ एम कही चाल्यो परदेश, सद्गुरु सुण्या बे गुर्जर देश ॥ समरथ साहसिक साह - सधीर, गुरुचरणे जइ भेट्यो वीर ॥ २ ॥ विनय करी गुरु प्रणमे पाय, हियमा जीतर हर्ष न माय ॥ स्वामी तुम्हे बे पुत्रज का, ते जाया पण थिर मवि रह्या ॥ ३ ॥ सहगुरु लख्यो श्रावक सोय, अकह कहाणी ए पण होय ॥ मुज वयण एणे अणुसस्त्रो, हवे हाथ थकी नवि मूकुं परो ॥ ४ ॥ सहगुरु बोले ज्ञाने करी, सोपारा पाटण परिहरी ॥ श्रावो वेराट देश मकार, वीरधवल राजा जयकार ॥ ५ ॥ गुरुवचने ते हरख्यो घणुं, कुटुंब तेमी यावे यापणुं ॥ शुकन नोपम हुआ विशेष, नगर मध्य कीधो प्रवेश ॥ ६ ॥ प्रथम जइ भेटे जिन पास, सकल वंबित ते पूरे यश | जाडे आवास एक कीधो वली, कुटुंब सह तिहां रहे मिली ॥ ७ ॥ प्रथम खंडे ए वातज कही, सदगुरु पासे में पण लही || आमलचूमलो तपति होय, वस्तरा तेजपाल हवे जनमज जोय ॥ ८ ॥ वस्तु ० २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) तप गल मंगन साहसधीर,श्रीविजयदान सूरि बावन वीर ॥ पंमित गोपजी गणि रंगविजय शिष, मेरुविजय पूरो मनह जगीश ॥ ए॥ - ॥दोहा॥ ॥प्रथम खंम खांते कह्यो, पामी हरख अपार ॥ पंमित जन मुख में सुणी, प्रबंध रच्यो सुखकार॥१॥ सहगुरुवचने त्यां आवीया, धवलका नगर मकार ॥ नाग्यउदय हवे त्यां हुवे, सुणजो ते विस्तार ॥२॥ माय बाप वृत्तांत कह्यो, लह्यो ते में लवलेश ॥ हवे वस्तग तेजपाल तणुं, चरित्र कहुं सुविशेष ॥३॥ श्रीगुरु चरणकमल नमी, समरी सरखती माय ॥ श्रीविजयराज सूरिराजे वली, वस्तुपाल रास कहे. वाय ॥४॥ खंम खंम नवनवि वारता, नवनवा नाव नणेश ॥ चित्त धरी सहु सांजलो, पाप सहु हणेश ॥५॥ ॥ढाल ॥ ॥आदित्य जोए रे जीवमा ॥ए देशी॥ वीजो खंग सोहामणो,जनम तणो अधिकार ॥ हवे नर नारी सुख विलसतां, श्रावी उपन्या देवकुमार ॥१॥ सुगुण नर तमे सांजलो, गुण कहुं वस्तुपाल ॥ सांजलतां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) सुख उपजे, मूको आलपंपाल ॥॥ सु॥ ए आंकणी ॥ सुपने देखे कुमारिका, चंछ सूर्य सार ॥ पूरे मासे ते वली, जनम्या देवकुमार ॥ ३॥ सु०॥ चतुर नर नले जनमीया, जग जाणो वस्तुपाल ॥ बीजो पुत्र वली जनमीठ, नाम दी तेजपाल ॥४॥ मु॥ उडव मोबव तात करे, माय मन हर्ष अपार | शुभ मुहर्त नले जनमीया, उच्च ग्रह अति सार ॥५॥ सु०॥ दिन दिन वाधे दीपतो, मुख जिसो पूनमचंद ॥ तेजे दिनकर दीपता, शशी रवि सरखा बे नंद॥६॥ सु०॥ वस्तुपाल पहिलो जनमीठ, बीजो ते तेजपाल॥ मात पिता मन हरखीयां, रत्न हुयां बे बाल ॥ ७॥ सु०॥ नान्हा बालक लहुअमा, बे हुलरावे माय ॥ठमक ठमक चाले मलपता, हरखे माय ने ताय ॥ ७॥ सु० ॥ लक्षण बत्रीशे दीपता, वाधे जिम बीजचंद ॥ बहुत्तेर कला कहुं पुरुषनी, जाणे आसराजनंद ॥ए ॥ सु०॥ सामुजिक शास्त्रे वखाणीए, कुमर दीसे एहवा दोय॥ अंग सुकोमल गुण नस्या, दया दाक्षिण्य जोय॥१०॥ सु० ॥ वदने जीत्यो चंद लो, नयणे कुरंग सोय ॥ दंतपंक्ति हीरा जिसी, अधर प्रवाली रंग जोय॥१९॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) सु० ॥ जाल तिलक जलां दीपतां, जमुह धनुष सम जाणी || सरल नासिका दीपती, बोले अमृतवाणी ॥ १२ ॥ सु० ॥ लघुपणे लीला घणी, बालक सरखा रमे दोय ॥ पंच अष्ट वर्ष जे हुआ, पुत्र जणावे सोय ॥ १३ ॥ ० ॥ पद्यं ॥ माता शत्रुः पिता वैरी, बालो येन न पावितः ॥ सनामध्ये न शोजते, हंसमध्ये बको यथा ॥ १४ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ दशे कापण नावी, सोले कला न होय ॥ वीशे. उदार न पामीर्ज, पढे जलपण वाढे न जोय ॥ १ ॥ विद्या धेनु जास घर, सदा सलूणी होय ॥ क्षण जे दण कशे, मूयां विसूके सोय ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ विद्यावंत जग पूजीए, विद्याधन बानुं होय ॥ राज चोर लेइ नविशके, विद्या नवि सीदावे कोय ॥ १ ॥ सु० ॥ विद्या नगर परदेशडे, विद्या माने नरेश ॥ विद्याथी जरा वाधतो, विद्या जणो विशेष ॥ २ ॥ सु०॥ नृपथी विद्या मोटकी, नृप निज देश पूंजाय ॥ गम वाम विद्या पूजी, माने राणा राय ॥ ३ ॥ सु० ॥ पंच वरष पुत्र पालीए, दश वरष जणावे सोय ॥ सोल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) वरष सुत जब दुले, पुत्र मित्र सम जोय ॥४॥ सु०॥ श्म जाणी ते पुत्रने, जणवा मूके ताय ॥ पाटी खमी खेर संचरे, पुत्र निशाले जाय ॥५॥ सु॥ शृंगार पहेरी चढे हाथीए, आपे फोफलपान ॥ महाजन सहुए रंजीया, लोक दीए बहु मान॥६॥सु०॥ कामिनी पूंठे गावती, बिरुदावली बोले नाट॥पंमितघर कुमर आवीया, दीए चीरोद कपाट ॥७॥सु॥ पंमितने वली आपीयां, दान अनेक प्रकार ॥ फूली खमीआ आपतो, निशालीने सार ॥ ७ ॥सु॥ विद्या जणी पुत्र आवीया, हरख्यां माय ने ताय॥बहुतेर कला शीखी वली,सुणो नाम कहेवाय॥ए॥सु०॥ ॥ढाल॥ ॥कपूर होये अति उजलो॥ए देशी॥बहुत्तेर कला नरनी कहुं रे, चोसठ कला नारी होय ॥धर्म कर्म कुमर जाणतो रे, राजनीति जाणे सोय ॥१॥ नरेश्वर ॥ बहोत्तर कला अंगे जाण, बेहु बंधव वखाण ॥न०॥ ए आंकणी ॥मंत्र यंत्र उषध जाणतो रे, जाणे कनकरूप सिक ॥ रमे रमाडे जूवटां रे, जाणे परघर करू॥॥न०॥ माकण शाकण ते नडे रे, जाणे नारीना जोग ॥जाणे सेवक जोगवी रे, जाणे सयल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) संयोग ॥३॥ न०॥ शयन विलेपन जाणतो रे, वैद्यक जाणे उहास ॥ जाणे नाद गीत नाचवू रे, जाणे वचन विलास ॥४॥ न०॥ वस्त्र शस्त्र अंगे सांचवे रे, नूषण पहिरी जाण ॥अन्नोदक जाणे केलवी रे, पंखी. नाषा जाणे सुजाण ॥५॥ न० ॥ युद्ध करी तेजाणतो रे, जाणे काव्य श्लोक ॥ वणिजकला ते जाणतो रे, जाणे सकल कला लोक ॥६॥न ॥ शाक पाक करी जाणतो रे, नोग करे रसाल ॥ जनवाद करी जल थंजतो रे, दान दीए दयाल ॥७॥न ॥ जाणे घोमा खेलवी रे, अंकपसी सर्व जाणी॥ चरणां चोली करे फूलना रे, चतुर नर गुणखाणी ॥७॥ न० ॥ चित्रामण जग जाणतो रे, नाटक जाणे ताम॥गाणेतकला लीलावती रे, सकल शास्त्र जाणे नाम ॥ ए ॥ न० ॥ लोकव्यवहार ते जाणतो रे, जाणे मान अपमान ॥ सकल जल तरी जाणतो रे, राजनीति जाणे दे दान ॥ १० ॥ न० ॥ विनय करी ते जाणतो रे, जाणे उत्तम आचार ॥ नगरवासी ते जाणतो रे, जाणे परणावी देशदान ॥ ११॥ न ॥ पकवान केलवी जाणतोरे, नाणुं पारखी जाण ॥ पुरुष तणी बहुत्तेर कला रे, एणी परे पूरी वखाण॥१शान॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) ॥दोहा॥ ॥ सकल कला बे बंधव तणे, रंजे नवनवा लोक ॥ धवलकपुर नगरे रमे, जोवा मले जनथोक ॥१॥ विनय करी ते परवस्था,बु बावन वीर ॥ रूपे स्मरदेव हरावी, समरथ साहसधीर ॥२॥ ॥ चोपा ॥ ॥ चतुरपणे ते बोले चंग, पुण्ये करी निज पोषे अंग ॥ एवा कुमारबे अवतस्या, सागर जिम गंजीरे जख्या ॥१॥ पात्र देखीने दानज दीए, गुणी देखीने गुणज लीए ॥ उर्जन देखी प्रीतज हरे,सऊन देखी हियडे ठरे॥२॥ शास्त्र देखी ते करे अर्थ, रणमें पेठे थाय समर्थ ॥ पुरुष तणां जे लक्षण इस्यां, ते सहु कुमर जाणे तिस्यां ॥३॥ एवा वस्तग तेजपालज कडं, एह समो बीजो नव लहुं ॥ मात तात आश पूरे वली, घरनो नार चलावे रली ॥४॥पमाइपोटली करे बेहु बाल, कुमली करतां गयो केतोकाल॥ तावर बायो हृदय नवि धरे, पेटनराइएणी परे करे ॥५॥ श्म करतां वरष अढारे गयां, वस्तुपाल वखत हवे प्रगटे श्हां ॥ अनुपमदेवी परणी नार, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) लक्षणवती पाम्यो संसार ॥६॥वधू आव्ये दारिद्य कीधुं पूर,दिन दिन वस्तुपाल वाध्यु नूर ॥कामकाज घरनां सह करे, कुमली बांधव बे शिर धरे ॥७॥ श्म करतां दिन केता थाय, श्रीशेजेजे संघ यात्रा जाय ॥ पाटणथी संघ पीयाj कीध, अनुक्रमे धोलके आव्या सीध ॥७॥संघ देखी मन उलट थयो, कुटुंब तेमी वस्तग यात्रा गयो ॥ फाटो तूटो डेरो कीध, वांकी वहेल बलद उबला लीध ॥ ए॥ संघ बोहलो नवि पामे गम, तटाककोरे डेरो दीए ताम ॥ पूरव पुण्य श्हां परगट होय, सोवनकलश तिहां नीकले सोय ॥१०॥ वस्तुपाल नोमे खीली धरे, कलश देखी त्यां चित्तडं ठरे ॥ अनुपमदेवी बुद्धिवंती नार, पीयु पूडे एकांत विचार ॥ ११ ॥ सोवन देखी नारी हर्ष अपार, सुलदणी बोली तेणी वार ॥ ए अव्य श्हां रहेवा दी, वाट सारु जोशए ते ली ॥ १५॥ नारीवचन हृदयमां धरी, हती कमा तिहां मूकी परी ॥ चाल्यो संघ साथे वस्तुपाल, गणेशधोलके पोहता ततकाल ॥१३॥ संघ मेव्हाण तिहां डेरा दीध, खणता वस्तुपाल देखे रिक ॥ नारीवचने वली ते तिम करे, गम ठगम एम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) धन नीसरे ॥ १४ ॥ अनुक्रमे पालीताणे गया, आदेसर पूजी निर्मल थया ॥ नारी कहे पहिरावो संघ, एक प्रासाद मंमावो रंग ॥१५॥ नारीवचने मांड्यो प्रासाद, गगन सरिसो मांडे वाद ॥ घणुं अव्य त्यां खरची करी, यात्रा करी घर आवे फरी॥१६॥ वाटे आवतां जांगी वहेल, पीजणी तलाइ त्रूटी सेल ॥ गाम समीपे वहेल ते जोय, सुतारने लश् जाएं सोय ॥१७॥ गजधरने जश विजवे वस्तुपाल, मुच्य ले काम करो ततकाल ॥ गमार बोल्यो तट्रकी करी, हवां ना, तुं जाने फरी ॥१७॥वस्तुपास दरबारे जइ कहे, तुम्ह नगरे गजधर एक रहे ॥ दाम बापतां न करे काज, ए नगरनी किम रहेशे खाज ॥ १७ ॥ नीच माणस वसवाल होय, अटक बोल ते बोले सोय ॥ नव नारु ने कारु पांच,अधिकीने दीए बहु लांच ॥ २० ॥ शेव सेनापति नरपति जोय, वस्तुपाल वचने हरख्या सोय ॥ नफर एक आव्यो तेणी वार,हवे शब्दे आव्यो सुतार ॥२१॥ लोकवार्ता एणी परे कहे, एकह बेला षटंका लहे॥ वस्तुपाल मन निश्चे कीधा अधिकारण विनाकार काम न सिफ॥२२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) ॥दोहा॥ ॥ हवे शुज मुहूर्ते घर आवीया, हियडे हर्ष न माय ॥ सुपनमां देवी कहे, राय प्रधान तुं थाय ॥१॥ माहणदेवी हुँ उपनी, रहवाने कहे आस ॥ तें शेधुंजे देवल की, त्यां पूस्यो में वास ॥२॥ ते जणी तुज सेवा करूं, तुं गुणहनिधान ॥ समस्यां साफ हुँ तुज दी, प्रनात करूं तुज प्रधान ॥३॥राय पासे देवी वली, आवी कहे सुण तात ॥प्रधान थाप वस्तुपालने, एकांत कहुं तुम्ह वात ॥४॥ लवणराय मन चिंतवे, हुं पेखु बालपंपाल ॥ प्रगट थर देवी वदे, त्रिलोकसुंदरी हुँ बाल ॥५॥प्राण थकी हुँ तुम्ह वसही, परणावी तुम्ह प्रधान ॥ उदयन गंधे परहरी, अंतकाले आव्युं शुन्न ध्यान ॥ ६॥ व्यंतर देवी हुं हुश्, प्रधान फेडं गर॥ समकितधारी हुं सखी, श्रीशेजूंजे अवतार ॥ ७॥ तीर्थंकरसेवा हुं करूं, मादणदेवी मुज नाम ॥ राग शेष मूकी कडं, वस्तग करो प्रधान ॥७॥ ॥ढाल॥ ॥ रंगरसीला साहिबा॥ए देशी। एहवं तात प्रति कहीने जाती, वीरधवल बंधव पासो रे ॥ युग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) राजपदवी तुम्हने बाजे, तुम्ह पूरशे वस्तुपाल यशो रे ॥ १ ॥ माहणदेवी इण पर बोले, जग नहीं कोइ वस्तुपाल तोले रे || प्रधानपदवी एहने देजो, तुम्ह वखत एही खोले रे ॥ २ ॥ माह० ॥ ए आंकणी ॥ वीरधवल राजा मन चिंते, मुजशुं बात करे कुण नारी रे ॥ निद्रामां ते जागतो तब, पेखे निज जगिनी सारी रे ॥ ३ ॥ मा० ॥ प्रगट थइने देवी बोले, सुणो तुम्हे बंधव तातो रे | पुण्यपसाये हुं पण यावी, सांजलो एक मुज वातो रे ॥ ४ ॥ मा० ॥ ए नगरमां कुमी वहता, बे बंधव सरखी जोम रे ॥ अढार वरपने महाजने, ते मांहि नहीं किसी खोम रे ॥ ५ ॥ मा० ॥ मोदीहाटे ते पण मिलशे, तुम्ह घृत गुंजाइ देशे रे ॥ पुण्यवंत प्राणी ते हुं देखूं, माथे कणो उघाडे वेशे रे ॥ ६ ॥ मा० ॥ तुम्ह महेताने शीखज देशे, नगरवेला वलशे तेथी रे || धर्मकरणी ए प करशे, तुम्ह आण माने सहु एथी रे ॥ ७ ॥ मा० ॥ निधान प्रगट एथी होशे, राजसवाइ होशे एहथी रे ॥ जग सचराचर महिमा एहथी, एम बोले देवी डाहुं वेती रे ॥ ८ ॥ मा० ॥ तुम्ह दासीने मानज देशे, तुम्ह राजधानी ते जोशे रे ॥ विजय मुहूर्ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) तुमने मिलशे, तुम्ह प्रधान ते पण होशे रे ॥ ए ॥ मा० ॥ एम कही देवी ते जावे, वीरधवल दरख न मावे रे || म्ह बहिनी राजचिंता करती, नाम वाम प्रधान थापी जावे रे ॥ १० ॥ मा० ॥ हर्ष धरीने वीरधवल जठ्या, प्रउठी हुई अजुआलो रे ॥ लवण राजा महोले पधारया, तात पुत्र स्नेह बेरसालो रे ॥ ११ ॥ मा० ॥ स्वामी सुपन में पहिलं दीतुं, पबे प्रगट थइ तुम्ह सुता रे ॥ वस्तुपाल प्रधान तुम्हे करजो, सजना बे ते पुत्ता रे ॥ १२ ॥ मा० ॥ राजा वचन ते वतुं बोले, पुत्र मुजने एम कही जावे रे || ते प्रधान हवे जोने लावो, जिम राजलोक सुखी थावे रे ॥ १३ ॥ मा० ॥ एणे समे हवे नगरे सुणो, उदयन मंत्री रायनो कहीए रे ॥ राजाने ते मन नवि धरतो, जोर जास्ती महेताघर लहीए रे ॥ १४ ॥ मा० ॥ हवे अधिकार वस्तुपाल केरो, सांजलो सहु चित्त लाइ रे ॥ पूरव अन्यास ते पण करतां, घृत वेचे नगरे बे नाइ रे ॥ १५ ॥ मा० ॥ ए ऋद्धि पाम्या पण प्रगट न करता, वणिक जात चाल ते नरती रे ॥ जवर जरीने महिषी यावे, वली जारो निरते चरती रे ॥ १६ ॥ मा० ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥चोपाई॥ ॥ कुमर शिर नार मूक्यो तात, सरखी जोम ते बे वली जात ॥ कुमली आणे घीए जरी, लाज आवते वेचे परी॥१॥ कुमर बे कुमली ते नरी, नगर पोल ते आव्या फिरी ॥ प्रथम हाट बोल्यो धनपाल, घृत आपो इहां नान्हा बाल ॥२॥आगल फांदे पमशो तमो, माही वात कहुं बुं अमो॥प्रधान राजा न मानी आण, तुम्हे दीसो बो चतुर सुजाण ॥३॥ प्रधान विद्या केलवे बहु, घृत खांम गहुँ गोल लेवे सहु ॥ नाणुं मागे नापे तदा, नगरे वस्तु हवे नावे कदा ॥४॥ लघुवेश ते उधमल थया, धनपाल वारतां आघा गया। चहुटामध्यते आवे यदा, उदयन मंत्री देखे तदा ॥५॥ महेतो नगर जोवा संचरे, घृतकुमी ते निजरे पडे ॥ हुकम चलावे व्यावो अरी, वस्तुपाल बोले वचनज फरी॥६॥मस्तक उपर घत में ध, विण पैसे नवि आपुं परं ॥ महेतो आवी वलग्यो जाम, मोल सहित कुमी लीधी ताम ॥७॥ वस्तुपाल चिंते हवे करें उपाय, जिम महेताने दंडे राय ॥ कणो वींटी शिर पाडो वले, पहिले हाट जश शेठने मले॥७॥ शेठे मशकरी कीधी घणी, घृत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) लीधुं तुम्हे थया रेवणी ॥ रायमोदीए एमज कह्युं, धनपाल एहवुं नामज लघुं ॥ ए॥ वस्तुपाल कहे सांजल धनपाल, हवणां अम्हे बुं नान्हा बाल ॥ एहने शीखज देश करी, मस्तक मोल बांधुं ते खरी ॥ १० ॥ ए अवसर रायदासी एक, घृत लेवा मोकली विवेक ॥ घृत आपो मोदी तुम्हे आज, मुंजाइए बेटा महाराज ॥ ११ ॥ मोदी बोल्यो मूकी लाज, प्रधानत्राज्ञा विण न करूं काज ॥ घृत याप्युं ते में नवि जाय, जइ विनवजे ताहरो राय ॥ १२ ॥ पाठी वली ते दासी गए, राजा आगल उनी रही ॥ घृत नापे स्वामी सुणो शेव, प्रधान थकां नवि जरीए पेट || १३ || पुनरपि राय कहे विनवे वयण, बशेर घृत तुम्हे आपो सयण ॥ रायवचने दासी गइ वली, मोदी नापे घृतनी पली ॥ १४ ॥ राजानुंजाइ ताढी थाय वस्तुपाल चिंते मन मांय ॥ घृत बशेर तुम्हे आपो शेठ, अम्द वींटी मूको तुम्ह चरणां देव || १५ || दासी घृत घर ले जाय, मोदी नापे वस्तुपाल गुण गाय ॥ स्वामी बे बंधव देवी जे का, मोदीहाटे ते पण रह्या ॥ १६ ॥ घृत गुंजा तेणे दीघ, ते पासे कां न दीसे रिद्ध ॥ तुम्ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) उपर बहु आणे रंग, रूपे रुमा वयण बोले चंग ॥ १७॥ हाटे बेग पूढे वृत्तांत, राजा दीसे सबल शांत ॥ मोदी कहे सांजलो तुम्हे बाल, प्रधान आगल राजा नवि चाल ॥ १७ ॥ आण दाण महेतानी फरे, शेठ सेनापति सेवा करे ॥ राजधानी महेता घर होय, लवणराय न माने सोय ॥१॥ तब वस्तुपाल फुःख लाग्युं घj, राज्य वायूँ हवे चावमा तणुं ॥ एम कही चाल्यो वमवीर, राजधानी जय जवे धीर ॥ २० ॥ प्रथम जुवे ते पोल प्राकार, गढ मढ मंदिर देखे विस्तार ॥ पड्यां विसंस्रल जीरण थयां, सार संजाल को न करे तिहां ॥१॥जय जुवे ते घोटकशाल, पुर्बल देखे वली रखवाल ॥ हुता तेजी ते टटु थया, अन्न पांखे ते नूखे मूया ॥ २॥ वेगे वाधे मंदिर मांहि, पेखे हस्तीशाला त्यांहि ॥ ऊंचा पर्वत पिते प्रौढी, पुर्बल दीसे मोटी खोमी ॥ २३ ॥ नेश उंट बलद वली गाय, चारोन पामे रेवणी थाय ॥ राणी जाया रजपूत जेह, बोली चाली न शके तेह ॥ २४ ॥ दीन दयामण उर्बल देह, लवणराय राजधान। एह ॥ करवाले चापमा बांध्या कहुं, कहेतां पार किम्हे नवि लहुँ ॥२५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) राज अंतेउर दीगं पुर्बलां, दास दासी नवि दीसे जलां ॥ राजधानी दीठी वस्तुपाल, पजे जर नेटे नूपाल ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ चतुर चिंते चित्त बापणे, गले कर न जाये कोय ॥ देव गुरु राजा वली, नेटज करवी सोय ॥१॥ दाम दीए राजानेटणे, गुरुमुख पच्चरकाण कीध॥देव. मंदिर आखे कहुँ, विनये पामे सिह ॥२॥ विनयः वंत वारु वाणीया, वस्तग ने तेजपाल ॥ ज रायने चरणे नमे, मेरु वचन वदे रसाल ॥३॥ ॥ ढाल॥ ॥उंचे उंचे डुंगरीए जश् रह्यो, जदूं की, नेमनाथ ॥ मेरे लाल ॥ए देशी॥वारु विचदण वाणी, जश्नम्यो वीरधवल राय ॥ मेरे लाल ॥ सरस सलूणी सुखमी, नेट करीने लाग्यो पाय ॥ मेरे लाल ॥१॥ वारु विचक्षण वाणी, सकल प्रधान शिरदार ॥मेरे लाल ॥धर्म तणो अधिकारी, राजा वीरधवल शणगार॥मेरेला ॥२॥वा॥ए आंकणी॥ विनय करीने विनवे, सांजल तुं नूपाल ॥ मेरे लाल || राज्य सीदाये तुम्ह तएं, श्म बोले त्यां वस्तुपाल ॥ मे ॥३॥वा॥ उत्रीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) राजकुली सांजले, जो दीसे प्रधान ॥ मे० ॥ जानु सम जले यवीया, राजा दीए बहु मान ॥ मेरे० ॥ ४ ॥ वारु० ॥ रूपे राजा रंजी, वचन वदे टंकशाल ॥ मे० ॥ राजधानी राजा इंद्र तणी, करी श्रापुं ते रसाल ॥ मे० ॥ ५ ॥ वारु० ॥ बोल कोल राजा करे, sura aid निरधार ॥ मे० ॥ काज सिद्धां हवे आपणां, नगर दुवो जयकार ॥ मे० ॥ ६ ॥ वारु० ॥ प्रधानवटी त्यां पतो, आपे वस्त्र वली पंच ॥ मेरे० ॥ कटारुं दीए देशनुं, उदयन उपर परपंच ॥ मे० ॥ ७ ॥ वारु० ॥ पुण्ये प्रधान वली ए मल्यो, एम जंपे लोकना थोक ॥ मे० ॥ राजा प्रजा सुख पामीयां, ए साचो सोन रोक ॥ मे० ॥ ८ ॥ वारु० ॥ कटक सेना सद्ध करी, पहिरे ससह बगतर सार ॥ मे० ॥ सहस्र पांचने माजने, ज‍ वींठ्युं उदयन घरबार ॥ मे० ॥ ए ॥ वारु० ॥ सुतो साझो सुखी, उदयन मेतो जोय ॥ मे० ॥ जकमबंध बांध्यो बंध, कीधां कर्म जोगवे सोय ॥ मे० ॥ १०॥वा० ॥ कर साही मुंइ नाखी, पासे बेठो ते वस्तुपाल ॥ मे० ॥ घर खोदावे ते हनुं, शाबास दीए भूपाल ॥ मे० ॥ ११ ॥ वारु०॥ वेर पोतानुं वालतो, हिया उपर मांचो वाल ॥ मे० ॥ बोल संजारयो बंधवा तिहां, पाग बांधे वस्तुपाल A वस्तु० ३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) ॥मे॥१॥वारुणा उत्रीश कारखानां तिहां अ, बावी करे तिहां पोकार॥मे॥अकरम कीधा एणे पापीए, हवे तुम्हे करो अम्ह सार ॥ मेरे ॥ १३ ॥ वारु०॥ नगरलोक तेमी करी, ते आपे निज निज वस्त॥मे॥ कुमी ने पोता तणी, दीए निज बंधव हस्त ॥ मेणार॥ वा॥ सोना रूपा घाट सामटुं, हस्ती तुरंगम सार ॥ मे ॥ राजाने जश् सुंपतो, नगरे हु जयकार ॥मे० ॥ १५ ॥ वा० ॥ राजलोक सुखी कस्या, सुखी कस्या नगरना लोक ॥ मेरे० ॥ वस्तु लीए व्यापारी, आपे आपे नाणुं रोक ॥ मे॥१६॥ वा ॥ राज्य करे त्यां राजी, हवे वीरधवल उगह ॥मे०॥कर जोमी मंत्री विनवे, स्वामीआपो एक पसाय ॥ मे॥१७॥वा॥ उदयन बंधथी बोमीए, एतो दी मुजने मान॥मे॥ राजा कहे जूमो पापीठ, वली लागे मुजशें कान ॥ मे ॥ १७ ॥ वा ॥ जीवितदान दी, तेहने,कीधो परउपगार ॥मे॥ गुण केडे अवगुण करे, एहवा नर घणा संसार ॥ मे ॥ १५ ॥ वा ॥ अवगुण करे ते बापमो, तेहने गुण करी दीजे शीख ॥ मे॥ एहवा नर थोमा लहुँ, जे जाणे परनु कुःख ॥मेारावा॥ वे बांधव तेहवा लडं, जीवदया प्रतिपाल॥मे॥उद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) यन महेतो मूकावी,धन्य धन्य वस्तग तेजपाल॥मे० ॥१॥वा॥राजाप्रति मंत्री विनवे, एवी राजधानी होय ॥ मे ॥ जीरण दीसे मंदिर मालीयां, नगरकोट समरावं सोय ॥ मे ॥ २२॥ वा॥ ॥दोहा॥ ॥ऽव्य खरचे मंत्री वली, राखे जगमा नाम ॥धवलकपुर वेला वली, सांजलो ते अजिराम ॥१॥ नगर की रलियामणो, चोराशी चौटांसार॥राजनुवन सोहामणां, जोतां हर्ष अपार ॥२॥ जिनमंदिर सुंदर करे, धर्मशाला अनिराम ॥श्रावकजन त्यां सहु सुखी, करे वली धर्मनां काम ॥३॥खान सरोवर खांते कां, निर्मल नीर त्यां होय॥उंचा कीयां ते मालियां, राजधानी त्यां जोय ॥४॥ वली सरोवर बीजुं कीयुं, मोटुं मल्हार नाम ॥ एक गाउ पहोवँ कबुं, पाषाणबंध अनिराम ॥५॥जल मध्य वापी रोपावतो, करतो त्यां आवास ॥ सरोवर मध्य वहेल श्रावती, करता केति विलास ॥ ६॥ उंचां गमन मंगने करे, मिन्हारा दो.जाण॥नगर दीसे रलियामणुं, जाणे इंजपुरी मंमाण ॥ ७॥ लवण राजा वृक्ष हुर्ड, राज करे कुमार॥सहु समीपे राज्य सुंपी करी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) लवण रहे एक वार ॥ ८ ॥ हवे इंद्र तणां सुख जोगवे, वीरधवल राजान ॥ सुधर्मा सजा जिसी दी - पती, राय दीए वस्तगने बहु मान ॥ ९ ॥ बीजो खंग खांते जयो, आशो सुदि बीज वखा ॥ कविजन अति उलट धरी, रास रच्यो गुणखाण ॥ १० ॥ तप केरो राजी, श्री विजयदान सूरिराय ॥ पंगित गोपजी गणि रंगविजय, मेरुविजय गुण गाय ॥ ११ ॥ ॥ चोपाइ ॥ ॥ सरस वचन दीर्ज सरस्वती माय, त्री जो खंग खांते कद्देवाय ॥ वस्तग तेजपाल तो कहीशुं रास, कविजन के पूरो आश ॥ १ ॥ त्रीजा खंगमां बे अधिकार, प्रथम तेजपाल विवाह सार ॥ बीजो युद्धअधिकारज होय, त्रीश राज मंत्री जीते सोय ॥ २ ॥ एहवो बलवंत मंत्री कहुं, एह समो अवर नवि लहुं ॥ वीरधवल इम बोले वाण, धन्य धन्य वस्तपाल तुं सुजाण ॥ ३ ॥ प्रधान राजामन राखे सदा, वचन न लोपे रायनुं कदा ॥ यश बोले सहु मंत्री तणो, वस्तग तेजपाल हरखज घणो ॥ ४ ॥ शेव सेनापति व्यवहारी जेह, प्रधान उपर सहु आ नेह ॥ मंत्री चाले रायने चित्त, बंधव परणावे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) खरचे बहु वित्त ॥५॥ न्यात गुरु निमंत्री दीए बहु मान, बांधव विवाह कीजे काम ॥ नगरे वसे व्यवहारी अनेक, कन्या जुर्म सुलक्षणी एक ॥६॥ आसी मन रलियातज थाय, कन्या जोवा घर घर जाय ॥ शाह सुजाणनी धूा जेह, लीलावती नामे कन्या तेह ॥ ७॥ मागु करे मंत्री वस्तपाल, शा सुजाण कन्या दीए ततकाल ॥ पमबुं पंच शेर सुवनज कीध, पहेरामणी वरने बहु दीध ॥७॥आप्यां फोफल श्रीफल सार, विवाह बोले ते निरधार॥दाढी पीली वली आपे पान, मंत्री दीए वेव्हार मान ॥ए ॥ लगन ली, शुन वेला वली,जमा देखीने सहु पूगी रली ॥ विवाह करे मोटे मंमाण, माय ताय हरख्यां सुजाण ॥ १० ॥ नगर शणगारे ते पण बहु, नगरलोक जोवा मलीया सहु ॥ घर घर मंगख गाये नार, तलीयां तोरण बांध्यां बार ॥ ११॥ वारु वर वरघोडे चढे, वीरधवल. राय वयण उच्चरे ॥ महेतो दीसे देवकुमार, रूपे मनाव्यो कंजप हार ॥ १५ ॥ तेजपाल वस्तग सरिखी जोम, सूरज शशी, मानज मोम ॥ पहिरण कनाय पीली पातली, मस्तक मुगट काने कुंमल वली ॥ १३ ॥ पग पीली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) वरघोडे चढे, मुख तंबोल कर श्रीफल धरे ॥ टीवु करी शिर चोखा वरे, कटबरी मुख अमृत उच्चरे ॥ १४ ॥ जान चलावे शा आसराज, कुमर तेजपाल मोटे साज ॥ श्रश्वे चढे कुमर ते. वार, खूण उतारे बेनम सार ॥ १५ ॥ पंच शब्द वाजे निशाण, नेरी नफेरी नंना जाण ॥ आगल गुणिजन पूंठे नार, लामण दीवो ऊगमगतो सार ॥ १६ ॥ जान तणो ते पार नवि लहुं, जानरणी इंसाणी कहुं ॥ गाये कामिनी करी टकोल, आव्या तोरण करे रंगरोल ॥ १७॥ सासु श्रावी उलट धरी, मुशल त्राक लेश पूंखे खरी ॥ वर नाक ग्रही त्यां सासु रही, घाटमी धरी ते ताण्यो सही ॥ १७ ॥ नबुं खगन नली वेला लही,वर वधू परण्यां गहगही॥ कंसार जीमीयां जेणी वार, सलिथ सलोको रमे नर नार ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ वर परणी घर आवीयो, हु ते जयजयकार ॥ वहुथरावी पाये नमे, सासु मन हरख अपार॥१॥ आशीष दीए बहु पुत्रवती, तुम्ह चूमो तपो अखेराज॥कुलवंती वनिता कडं,जे करो धर्म कर्म काज॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) ॥ ढाल॥ ॥साहेलमी ए॥ए देशी ॥ हवे नर नारी सुख जोगवे साहेलमी ए, पूरव पुण्यपसाय ॥गुणवेलमी ए॥ सखसागरमां कीलतां॥सा॥जातो न जाणे काल॥ गुण ॥१॥ पद्मिनी पोयण पातली ॥ सा॥ चंपाव देह ॥ गु० ॥ हाव जाव पीयुशुं करे ॥सा०॥ शीयले करी सीता जेहं । गुण॥२॥ मुख शारदको चंदलो ॥ सा ॥ अधर प्रवाली रंग ॥ गु० ॥ दांत पांत हीरा जिसा ॥ सा ॥ नयणे हराव्या कुरंग॥गु०॥३॥जीन जिसी पोयण पातली ॥सा॥ बोले अमृतवाणं। ॥गु० ॥ काटमेखला खलके नल। ॥ सा॥ सिंहलंकी सुजाण ॥ गु० ॥४॥ केलथंन जंघा जिसी ॥ सा० ॥ कणेर कांब तिसी बांह ॥ गुं०॥ आंगली मगफली पातली॥ सा ॥ स्तन जेसा श्रीफल त्यांह ॥ गुण ॥ ५॥ नालिकूपी रविवामणी ॥ सा ॥ देह अमीनो कंद ॥ गुण॥ काने कुंमल रतने जड्यां ॥ सा ॥ नीलवट चोड्यो चंदा ॥ गु० ॥ ६॥ मस्तक राखमी शोजती ॥सा॥ वेणी जिसी नागण जाण ॥ गुण ॥ नवसर हार ते पढेरती ॥सा॥मांहि मोती अनोपम जाण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) गु०॥ ७॥ बांहे सोहे बहेरखा ॥ सा ॥ सोवन चूडो सार॥ गु०॥माणक मोती हीरे जड्यो॥सा॥ कनकमय कंकण सार ॥ गु० ॥ ॥ चीर पीतांबर पहेरीयां ॥ सा ॥ कंचुक कसीमा उदार ॥ गु०॥ घाटमी घूघरी घमघमे ॥ सा ॥ रूपे अपलर नार॥ गु० ॥ ए ॥ गजगति चाले चालती ॥ सा ॥ पहेरे सोले शणगार ॥ गु०॥ चोसठ कला जाणे सुंदरी ॥ सा ॥ पाये जांऊरनो ऊमकार ॥ गुण ॥ १० ॥ बेहु बांधव नारी इसी ॥ सा ॥ सुख विलसे आवास ॥ गुण ॥ चित्रशालीए सोहे चंचुआ ॥ सा ॥ जाणे इंड किलास ॥ गु० ॥ ११॥ नवनव रंगे ते रमे ॥ सा ॥ वस्तुपाल अनोपम नार ॥ गुण ॥ ललितादे तेजपाल\ ॥ सा ॥ सुख विलसे संसार ॥ गुण ॥ १२ ॥ पूर्व पुण्य बहु आचस्यां ॥ सा० ॥ते कहेशं आगल विस्तार ॥ गु०॥ वीरधवल हवे एम कहे॥ सा ॥ मंत्री साधो देश अपार ॥ गुण ॥१३॥ त्रंबावतीनो राजी ॥ सा॥तेहने आण मनावो जाय॥ गुण ॥ विनय करी मंत्री विनवे ॥ सा॥ नीमकणने आणुं साय ॥ गु० ॥ १४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) ॥ दोहा ॥ ॥ रायवचन मंत्री शिर धरी, बे बंधव सरिखी जोम ॥ कहे त्रंबावती जइ वश करूं, वैरी शिर आएं खोम ॥ १ ॥ सलह बगतर सज करे, सज करे सबल हथियार ॥ गज रथ घोमा पाखस्या, पायदलनो नहीं पार ॥ २ ॥ हवे सबल सेना लेइ संचरे, बे बंधव सुखकार ॥ माहणदेवी समरी करी, हृदय समरे नवकार ॥ ३॥ ॥ ढाल ॥ ॥ जी हो सरस्वती स्वामिनी पाये नमी लाला, प्रणमी निज गुरु पाय ॥ ए देशी ॥ जीहो धवलकपुरथी चालीd लाला, मंत्री मोटे मंगा ॥ जी हो जय जय शब्द जन बोलता लाला, श्राव्या त्रंबावती सुजाण ॥ १ ॥ मंत्री श्वर सबल तुं बलवंत, जइ रोके वैरी जंत ॥ मं० ॥ एकणी ॥ जीहो एक नर यावी त्यां विनवे ॥ ला० ॥ सांजल तुं वस्तुपाल || जीहो जयसेन महेतो वे आकरो || बा० ॥ तुं बे नान्हो बाल ॥ २ ॥ मं० ॥ जी हो बावतीनो राजी || ला० ॥ जीमकर्ण नामे राय ॥ जीदो जयसेन प्रधानज तेहनो ॥ ला० ॥ निज स्वामीद्रोहो थाय ॥ ३ ॥ मं० ॥ जीदो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) राज काज जयसेन करे || ला० ॥ केहनी न माने आए || जीहो निज स्वामी नवि मानतो ॥ ला० ॥ तुम्हां वे काण ॥ ४ ॥ मं० ॥ जी० ॥ वस्तग पंथी ने बल दाखवे ॥ ला० ॥ विधी कमा त्यां सात ॥ जी० ॥ देवी समरी वाण नाखतो ॥ ला० ॥ विधे ताल वली आठ ॥ ५ ॥ मं० ॥ जी० ॥ निशाणे घा देश करी ॥ ला० ॥ मंत्री चढे वस्तपाल || जी० ॥ जयसेन साहमो नीसरे || ला० ॥ जला वढे भूपाल ॥ ६ ॥ मं० ॥ जी० ॥ रणथंजो तिहां रोपता ॥ ला० ॥ वढे त्यां सुटज को मि ॥ जी० ॥ एक एकने नविनमे ॥ ला० ॥ पडे त्यां नरनी कोमी ॥ ७ ॥ मं० ॥ जीहो युद्ध करी दिन त्रण लगे | ला० ॥ फंदे हराव्यो जयसेन || जी० ॥ चिहुं दिशि चार फोजे करी ॥ ला० ॥ घेरी लीधो जयसेन ॥ ८ ॥ मं० ॥ जीहो त्रागे जयसेन कालीन ॥ ला० ॥ हुई ते जयजयकार ॥ जो बावती तखते बेसतो ॥ ला० ॥ मंत्रीमन हर्ष अपार ॥ ए ॥ मं० ॥ जीहो जयसेन घर जोवरावीयां ॥ ला० ॥ रुद्धि तो नावे पार || जीहो खचर एकसो सोने जया ॥ ला० ॥ मोती मए दश चार ॥ १० ॥ मं० ॥ जीहो जीमकर्ण राय घर एम करे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) सा० ॥ लीधी सघली रे साथ ॥जीहो राजा प्रधान बे बांधीया ॥ ला ॥ मंत्री लेश् आवे साथ ॥११॥ मं॥जीहो त्रंबावती राय वश करी ॥ला॥जीत्यो सबल सेनाय ॥ जीहो जय वरी घर आवीया ॥ ला ॥ जनमे निज राय ॥ १५ ॥ मं० ॥ जीहो वेरी पाये लगामी ॥ ला ॥ वर्तावी निज आण॥ जीहो वस्तुपाल रायने विनवे ॥ ला ॥ देश दी एहने सुजाण ॥ १३॥ मं० ॥ ॥दोहा॥ ॥ परउपकार मंत्री करी, जीमकर्णने दीधो देश ॥ गणि रंगविजय शिष्य एम लणे, प्रथम ए युक नरेश ॥१॥ ॥ढाल॥ ॥ तुंगीया गिरि शिखर सोहे॥ए देशी ॥राजा एक मिल सजा पूरी बेग, राजकुली बत्रीश रे॥ असना सम राजधानी, बेग करे जगीशरे ॥१॥राजा ॥ ए आंकणी ॥ तेणे समे एक पूतज श्राव्यो, लायो वेरी वात रे॥अम्ह राजा तुम्हे आज्ञा मानो, दी सलामी लद सात रे॥॥ राजा ॥ गोडा नगरी अम्ह राजा कहीए, शंखधर रायनुं नाम रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( RR ) ति जोरावर बलवंत ते बे, पांच सदस्स तेहनां गाम रे ॥ ३ ॥ ० ॥ तव दूत प्रते मंत्री पूबे, तुज राजा ए शुं नाम रे ॥ वृत्तांत सघलो तेहज कहतो, सांजले सना सहु ताम रे ॥ ४ ॥ रा० ॥ पूरव जवनो मंत्री तेहनो, मरी थयो व्यंतर देव रे ॥ शंख देश व्यंतर कहेतो बांधव, सारे एहनी सेव रे ॥ ५ ॥ रा० ॥ सबल सेना तुं पण जीतीश, एथी होशे तुम्ह जयकार रे || शब्द करता करथी परुशे तव, जीत नहीं निरधार रे ॥ ६ ॥ ० ॥ देवाधिष्ठित शंखज बोले, शंखराय ते जणी नाम रे ॥ एम वचन बोली डूतज दीए, कांचली काजल ताम रे ॥ ७ ॥ रा० ॥ डूतवचन राय अंगे लाग्यां, राये तेड्या निज प्रधान रे ॥ शंख राजा जींपी जे यावे, तेहने देइए बहुलुं मान रे ॥ ८ ॥ ० ॥ तेजपाल लघु बंधव कहीए, बीडुं बबे रायनुं ताम रे ॥ सबल सेना लेइ चाट्यो, जइ करे युद्धनां काम रे ॥ ॥रा० ॥ बुद्धिकला त्यां केलवे, धेनु वाली श्राघो जाय रे ॥ शंख राजा शंख पूरी, सबल सेन लेइ धाय रे ॥ १० ॥ रा० ॥ मंत्री मनमां एमज चिंते, ए मोटो बलवंत राय रे ॥ युद्ध करतां ए नवि हारे, तव समरी माइणदेवी माय रे ॥ ११ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) रा० ॥ ते देवी कह्याथी बाणज मूके, शंख पाड्यो करथी दूर रे ॥ तेजपाल जीत्यो राय हास्यो, शंख सेना करी चकचूर रे ॥ १२ ॥ रा० ॥ तेजकुमर तेजे करी दीपे, जय वरी यावे निज देश रे ॥ शंख राजाने बांधी लावे, जसे दिवसे नयरे करे प्रवेश रे ॥ १३ ॥ रा० ॥ मंत्रीश्वर यावी पाये नमतो, करतो रायने नेट रे ॥ तुम्ह चरणे ए बांधी आयो, दीन काजल कांचली जरे पेट रे ॥ १४ ॥ रा० ॥ मंत्री वचने ते तिमज करतो, पढेरे सामो कांचली सार रे ॥ नारीवेशे शंख जवर जरतो, हवे करुणा करे मंत्री उदार रे ॥ १५ ॥ रा० ॥ बंधज कापी शंखना, तेहने दीधो पाठो देश रे || एहवो उपकार मंत्री करतो, दीए वली त्यां नरवेश रे ॥ १६ ॥ रा० ॥ बीजो प्रधान तेजपाल कीर्ज, हु जयजयकार रे || गणि रंग विजय सेवक इण परे बोले, ए बीजो युद्धअधिकार रे ॥ १७ ॥ रा० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ शंखराज पाये नम्यो, माने वीरधवलनी आए ॥ वेरीअंतज आणीया, राय करे मंत्री वखाण ॥ १ ॥ ॥ चोपाइ ॥ ॥ हवे सुख विलसे सहु निज थान, राजा दीए For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) मंत्रीने मान ॥ सजा पूरी ते बेठा यदा, एक वात वली हुश् तदा ॥१॥छूत मोकले त्यां सोरठ धणी, धवलका नगर वारधवल नणं।॥आण माने अम्हार। आज, नहीं तो विणसे ताहरां काज ॥२॥ हस्ती अनोपम मोकले हसी, अम चाकरी तुम्हे करोजबसी॥ मोकलजे बीजी वस्तज घणी, नहींतर थाशो खरा रेवणी ॥ ३॥ वात एहवी तुं कहेजे खरी, कागल देजे आदर करी ॥ राज करवानुं जो तुम्ह काज, सघली वस्त मोकलजो आज ॥४॥ वीरधवल बागल उनो रही, एह वचन तुं कहेजे सही॥ ठूत आव्यो धोलका मांहि, सजा पूरी राजा बेगे ज्यांहि ॥ ५ ॥पूत लेख ते आप्यो जिसे, वांची लेख छूत होक्यो तिसे ॥ अपमान्यो ठूत काढ्यो सही, निज नगरीए त गयो ते वही॥६॥छूत जर विनवे निज नूप, अपमान्यो कहे सकल सरूप ॥ तव बोले सोरठनो राय, हुं वीरधवल लगायुं पाय ॥७॥ ते राजा रीसे धमहडे, वीरधवलने को जश्ने नडे ॥ सबल साज सेनापति करे, एक लद हस्ती अश्व पाखरे ॥ ७॥छूत काढ्यो राय देश अपमान, हवे राजलोक थया सावधान ॥ हस्ती घोमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) घणा पाखस्या, सूर सुनट ते हरखे नया ॥ ए॥ चउरंग सेना लेश संचरे, प्रस्थाने वीरधवल उतरे ॥ वस्तग तेजपाल बंधव वहे, करजोमी राय बागल रहे ॥ १० ॥ ए बीडु आपो अम्हने आज, तुम्ह वैरी अणा लाज ॥ बडेप्पीआणे मंत्री बे जाय, वैरी वढवा साहमो थाय ॥ ११ ॥ बेहु दल वढे त्यां गुजार, तीरे तीर जालां करवार ॥ पायक सबल वाहे हथियार, नीमसेन नागे तिहि वार ॥१२॥ प्रधान हाथ दीग आकरा, घणे पुरुषे कीधा साथरा ॥जीमसेननी नागी फ, गढमां जश्ने पोलज दीक ॥ १३ ॥ तव प्रधान रह्यो गढ वींटी करी, राजाने वीट्यो ते फरी ॥ धर्मद्वार मागे मंत्री पास, वस्तुपाल काढी मूके तास ॥१४॥ नगरलोक यावी प्रणमे पाय, प्रधान देखी रलियातज थाय॥कहे वीरधवसनी मानो आण, पमहो वजावो चतुर सुजाण ॥ १५ ॥ आण मनावी गढमां जाय, धन देखी त्यां हरखज थाय ॥ नंमार पेखे बहु धन नख्या, मुडा करीने पाबा फस्या ॥ १६ ॥ जयपताका मंत्री वरी, निज राय पासे आवे फरी॥राजा कहे तुम्हे महा सुजट, एका बेग करो गहगट्ट ॥ १७ ॥ एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) दिन राजा दीए आदेश, उणी तुम्हे करो प्रवेश ॥ वचन प्रमाण करी वस्तपाल, सबल सेना लेइ चाट्यो ततकाल ॥ १० ॥ मालव देश हवे यावे जाम, एक लाख बाएं बे वली गाम ॥ प्रधान यावी उतरे यदा, उझेणी धणी मिली तदा ॥ १५ ॥ लेइ सलामी मनावी याण, प्रधान चाल्यो मरु देश सुजाण || नव कोटी मारु पोते करी, मंत्री यावे मेवाडे फरी ॥ २० ॥ ॥ छंद ॥ ॥ हवे आव्यो मेदपाट मंत्री श्वर, देशधणी राणो महा दुर्धर ॥ ण न माने तेहज केहनी, कहे व आप न मानुं एहनी ॥ १ ॥ तव मंत्री लेख लिखे शुज लायक, डूत मोकलीन तिहां महा वायक ॥ तब ते त ज लेख देतो, वांची राजा रीसे वधतो ॥ २ ॥ रे रे दूत कुण बे मंत्री श्वर, तब बोल्यो दूतज कवीश्वर || सांजल राणा तुं मुज वात वस्तुपाल तेजपाल वे जात ॥ ३ ॥ देश वैराट धवलकपुर मांदे, राज्य करे वीरधवल उबाहे ॥ तेह तथा ए मंत्री लहीए, महा सुनट वमवीरज कहीए ॥ ४ ॥ तस बल सर्व कहुं ते मांगी, मूको मन श्रमिमानज बांकी ॥ म्लेख " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (you) राय मारी वश कीधा, तेह तणे शिर दंगज दीधा ॥ ५ ॥ लाट नोट कर्णाट करया वश, महाथली ते पण कीधी वश ॥ मानी मरहमा उजाड्या, सिंहल सोरउमा पग पाड्या ॥ ६ ॥ मालव देश वली मुलताना, कामरु वेराम मोड्या माना ॥ अंग वंग वली तलंगाणा, कोकण देश पड्यां नंगाणां ॥ ७ ॥ गोडदेश पाड्या राय राणा, हलफलीया बीजा हिंदु थाणा ॥ एपी परे सहु देशज वश कीधा, धींगल मल्ल राय साथे लीधा ॥ ८ ॥ एक सदस्स चोराशी गयवर, एकादश सोहे हयवर ॥ सवालक्ष कहीए असवार, पायदलनो नहीं लहीए पार ॥ ए ॥ माहादेवी बे सान्निधकारी, मंत्री आगल सहु जाये हारी ॥ मान तजी ए आज वहीए, मंत्री तथा पदकमल अनुसरीए ॥ १० ॥ जो मंत्री श्वर कोपज चढशे, तो ताहरु भुजबल ते दलशे ॥ तब बोल्यो तटकी ते राणो, मन मांहे ते क्रोधे जराणो ॥ ११ ॥ जा जा त जबानी करतो, तुंहज बोल बोलेश विसरतो ॥ जा रे तुज व णिकने कलेजे, हींग मीतुं वेची पेट जरीजे ॥ १२ ॥ कहे मुज यागल ते कु लेखे, तरु आगल पेखे ॥ तुज स्वामीने हुं इज मारुं, एह तरणं कुण तणुं दल वस्तु० ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) सवि संहारूं ॥ १३ ॥ पूत अपमान्यो तेहज वली, त्रागे जश् स्वामीने मिली ॥छूत कहे ए आण न माने, एहज चढी मोटे माने ॥ १४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ एहवां वचन मंत्री सुणी, रूगे काल कराल ॥ कहे राणाने ऊटपटुं, एम कही उठ्यो ततकाल॥१॥ तब सेनापति सङ थया, दीए रणजंना तेणे गर॥ हस्ती तुरंगम पाखस्या, मंत्री थाय असवार ॥२॥ ॥बंद॥ ॥ तब सऊ थया चहुआण चाउम, रूमी मंगल मुलतानी नाजम ॥ खानमुलक साथे सुलताना, हफसी हम फिरंगी फकाना ॥१॥ चंचल चपल पगण सुठलका, तोमर गुरज ग्रह्या जेणे नलका ॥ बत्र धरावी चामर वीऊता, मंत्री मेदपाट सीम उतरंता ॥२॥ हवे राणे सेन सजा कीध, रण चढवा नफेरी दीध ॥ मदमत्ता मयगल मलपंता, तेजे तरल नेजा फलकंता ॥३॥ मोटा हयवर करे हींसारा, तस उपर चढे रढियाला सारा ॥ ढाक चंदेला ने चहुआणा, सोलंकी रागेम सुराणा॥४॥दहीआ माना ने बोमाणा, परमारा मोरी कहीवाणा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) चाल्या कटक विकट ते कहीरी, अंगटोप सलह सहु पहीरी॥५॥ बूटा नट बोटा बोगाला, कमब्या कुंडाला मूंगला ॥ जगजगतां फाल्यां ते नालां, देता दोट फलफलता पाला ॥६॥ खेमा खमग गदा फरसीधर, चक्र चाप ने तोमर मुगर ॥ खपुया भी कटारी मूशल, धींगा मांगवजाडे चंचल ॥७॥ होका नाल हवाइ हाथे, बहु बंधुक चलावे साथे॥ उत्र धरावीराणो सुविलासे, उज्ज्वल चामर ढले बेह पासे ॥७॥ ढम ढम ढम ढम ढोल ध्रसूके, सांजलतां कायर त्रसूके ॥ श्म करतां वोली ते रजनी, उग्यो दिनकर मुख उज्ज्वल दिसनी॥ए॥ तब रणवाजित्र वजामी जलीयां, रणअंगण बेहु दल मिलीयां ॥ मांड्यु युद्ध मंत्री नूप चढीया, धीर वीर आगलथी वढीया ॥ १० ॥ बूटां तीर नाखे रण साथे, काढे कटारी धूसे हाथे ॥ घोडे धनुष चढावी पाला, कोश कोइने नवि दीए टाला ॥ ११ ॥ जगमगतां नालां ते जोके, कर फराट लोही मुख मूके ॥ बूटे नाल हवा होका, बंधुके मारे बहु लोका ॥ १२ ॥ मोडे टोप सलह सहु फोडे, नाचे धम वाजित्रज तोडे मुजर मारी करे चकचूरी, मदगहिला गजसंकल ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) मूरी ॥ १३॥ राणा सुनट हता महाबलीया, ते रंग मुंग रणनूमे ढलीया ॥ रुधिरनदी दीसे विकराला, राणा सुनट थया विसराला ॥ १४ ॥ तब रणअंगणथी राणो नागे, मंत्री दल तसु पूंठे लागे॥ त्रागे राणो गढमां पेगे, मंत्रीश्वर गढ घेरी बेगे ॥१५॥ तब राणो वष्टि ले पेठगे, कहे चीतोम गढ तुम्ह चरणा देगे ॥ तब मंत्री कहे तुं सुण रे राणा, खंधे कोथलो मांहि हींग धाणा ॥ १६ ॥ एणी रीते जो मुजने नमतो, तो हुँ तुज गेडं जीवतो ॥ आव्या लाट विच मांहि जेह, मंत्री वचन करी पाय लगाड्यो तेह ॥ १७॥ गयवर हयवर रथपायक दल, रूप सुवर्ण ये मणि मुक्ताफल ॥ मंत्रीने वस्तु आपे अनेक, राणे आण मानी ते बेक ॥ १७॥ ॥दोहा॥ ॥राणो पाय लगामी, वीरधवलनी मानी आण॥ मंत्री पायदल बेश पाडगे फिरे, गुरजर देश आवे सुजाण ॥१॥ सकल देश शिरोमणि, गुरजर देश विशेष ॥ राजनगरनो राय वश करी, पडे मंत्री जाय निज देश ॥२॥ राजलोक सहु हरखीया, प्रधान आव्या सुखकार ॥ ढोल निशाण वजमावीयां, हुर्ड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३ ) ते जयजयकार ॥ ३ ॥ देश साधी घर आवीया, मंत्री ते वस्तपाल ॥ रायचरणे यावी नमे, जलुं माने भूपाल ॥४॥ बत्रीश युद्ध मंत्री इम कीयां, जीत्या त्रीशे राय ॥ राजरुद्धि बहुली लही, ते तो पुण्य पसाय ॥ ५ ॥ बांधव नवाजीया, कीधा कोमि पसाय ॥ मात तातने पाये नमे, हियडे हर्ष न माय ॥ ६ ॥ हरखे हिये हींसते, बंधव करे वे वात ॥ हवे धर्मकरणी बंधव करो, पढे पोखो पोतानी जात ॥ ७ ॥ तब सत्रकार मंगावी, त्रण खंडे विस्तरे नाम ॥ त्री जो खंग खांते कह्यो, कवि मेरु जणे अनिराम ॥ ८ ॥ परम जट्टारक श्री विजयदान सूरि, तप गछनो शणगार | पंकित गोषजी गणि रंगविजय शिष्य, मेरु विजय सुखकार ॥ ए ॥ संवत् बार ब्याशी कहुं, अरिमर्दन कीधां वस्तपाल ॥ सत्रकार तदा मांगी, करी मंत्री धर्म रसाल ॥ १० ॥ हवे चोथो खंग चतुरपणे, कहीशुं गुरुत्राधार ॥ सांजलतां सुख उपजे, जणतां हर्ष अपार ॥ ११ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ दान दीर्ज जग जीवमा, जिम पामो जवनो पारो जी ॥ वस्तग तेजपाल जग जयो, दान दीए ते उ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) दारोजी॥१॥ दान०॥ए आंकणी॥दीनदयाल दोहिला बला, दान दे करे उपगारो जी ॥ दान अव्हारी मंत्री दीए,धन्य धन्यतुजअवतारोजी॥२॥ दा॥योगी संन्यासी कापमी, जगत जरमा दरवेशो जी॥ शेषयंदा जंगमी कहूं, ब्राह्मण 'जात विशेषो जी ॥३॥ दा० ॥ गंध्रव चारण जाटवली, थावे जाचक तेह विशेषो जी॥ मुह माग्युं मंत्री दीए, जश वाधे देश प्रदेशो जी॥४॥दा॥ मेघ तणी परे वरसतो, वधता पुण्यअंकुरोजी ॥मोद तणां फल ते दीए, दान देश न करे शोरो जी॥५॥ दान॥नगर ढंढेरो फेरवे, पालो जीव अमारोजी॥नूख्यो तरष्यो को मत सुर्ड, आवो प्रधान दरबारोजी॥६॥दा॥चोर चाम पूरे करे, जोर जूवटुं नहीं बिगारो जी॥धर्मी राजा जाणीए, एहवो प्रधान उदारो जी॥७॥दा०॥ जाचक जन जश बोलता, नोजन करी दीए आशीषो जी॥ कर्णराय विक्रम हुआ, तेहनो तुं अधीशो जी ॥ ७॥ दा ॥खामिवत्सल मंत्री करे, अन्न पान बहुला पकवानो जी ॥ सुकृत पुण्य पाते नरे, देह वाधे बह वानो जी॥ए॥ दा० ॥ जग जश कीरत विस्तरी, महिमा वाध्यो मेरु समानो जी ॥ दान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) देश अनुमोदतो, करतो नहीं अनिमानोजी ॥१०॥ दा॥ जे जे वस्तु जन जाचता, ते ते दीए वस्तपालो जी ॥ विक्रम तणी परे ते हुउँ, जन दारिद्य कापे तेजपालो जी ॥११॥ दा॥नगरलोक जश बोलतां, धन्य धन्य एह प्रधानो जी॥तब उदयन मंत्री श्रवणे सुणी,ते आणे मन अनिमानो जी॥१२॥दा॥ष धरी ते पापी जश्, नमे रायने पायो जी॥ अव्य खरचे खामी तुम्ह तणो, जश पोतानो थायो जी॥ १३॥ दा० ॥ पुब्बलकन्ना राजवी, हृदय न होये सानो जी ॥ उदयन पासे बेसामीयो, चामीने दीए बहु मानो जी ॥ १४ ॥ दा॥ ॥काव्यं ॥ ॥काके शौचंद्यूतकारेषु सत्यं,सर्प दांतिःस्त्रीषु कामप्रशांतिः ॥ क्लीबे धैर्य मद्यपे तत्त्वचिंता, राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ काक पवित्र किम कहुँ, द्यूत न बोले साच ॥ पन्नग समता सुणी नहीं, नपुंसक धैर्य नहीं ए वाच ॥१॥ मद्यपी तत्त्व न चिंतवे, अस्त्री काम पूरो न थाय ॥ राजा मित्र तेहज नहीं, प्रधान चिंते मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माय ॥ ३॥ माहणदेवी समरी करी, हृदे समरे नवकार ॥ मंत्री आनंबर घणो करी, आव्यो राय कुवार ॥३॥ पुण्य पवित्र प्रधानने, राय बोलावे ते वार ॥ दाम खरचे तुं केहना, संच्युअव्य अम्हे अ. पार ॥४॥ वस्तुपाल वलतुं वदे, सांजल राय सुलतान ॥ तुम्ह पसाय पूरव पुण्य हुं, बाया पे निधान ॥५॥ उदयन रायने विनवे, कूडं लवे प्रधान ॥राजसना दरबार लगे, त्यां देखाडे निधान॥६॥ वस्तुपाल वलतुं वदे, सांजल राय सुलतान ॥ राजसना सिंहासन लगे, पोले देखुं निधान ॥ ७॥ ॥ढाल॥ ॥राजा रीसे धमधमे, वाणी जंपे आलपंपालो जी॥ ए वात जिनके नवि मिले, श्म जपे बालगोपालो जी ॥१॥ दा० ॥शाविना जोगी जग हुई, जग हुथा अनेक विवहारो जी॥धन्नो किंवन्नो दशानज, छिवंत हुवा अपारो जी॥२॥ दा॥ त्रेसठ शलाका पुरुष हुया, पण पग पग नहीं निधानो जी ॥ योजन योजन रसकूपिका, बे बांधव करे अजिमानो जी॥३॥दा॥राजसना सहु सांजले, श्म बोले त्यां वस्तपालो जी ॥ उठ पग धरती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ग्वं, तब पेखु कलश पातालो जी ॥४॥दा ॥ रोषे जस्यो राजा एम कहे, महेता अयुगतुं न नाखोजी ॥ दाम अम्हारा वावरी, तुम्हे नाम पोतार्नु राखो जी ॥५॥ दा० ॥ विनय करें। मंत्री विनवे, स्वामी जोर ली निधानो जी॥राजसना पोले पेसतां, देखाडं त्यां बहु दामोजी॥६॥दा०॥ उदयन चुगली वली करे, कलश सांत्या पोते रायो जी ॥ महिमा वधारे श्रापणो, धन देखाडे सना मायो जी॥७॥ दा०॥ वस्तपाल साहमुं राजानालतो, शिर नमावे मंत्री तामो जी ॥ सिंहासन हेउल वली, मंत्री देखे ते निधानो जी॥॥दा॥ वस्तपाल रायने विनवे, खामी विनतमी अवधारोजी॥ सिंहासन तले जोशए,देखुंसोवन कलश सुखकारोजी ॥ ए ॥ दाण ॥ ततदण राय जोवरावतो, जंम जोश गमे दोय जी॥सना मध्य सिंहासने, निधान नीसह्यु त्यां सोय जी ॥ १० ॥ दा॥ चुगल कहे ए नवि लढुं, पोते सांत्युं काढे सहु कोय जी ॥ जंगल पाषाण जो पेखीए तो, साचो मंत्री सोय जी ॥११॥ दा ॥ बावन गज शिला वन पमी, मंत्री रायने तेमी त्यां जायो जी ॥ पाषाणमां अव्य प्रगटीयुं, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) सहु पेखे राणा रायो जी ॥ १५ ॥ दा॥ राजा मन जांखो थयो, चुगल हु निराशो जीनगर बाहिर चामी काढी, राय मंत्री हो सुखवासो जी॥१३॥ दा॥ बेहु बंधव राये मानीया, कीधा लाख पसायो जी ॥ जयजयकार नगरे हुर्ड, ते तो धर्म तणे पसायो जी ॥ १४ ॥ दा० ॥ ॥दोहा॥ ॥ दान तणे पसाउले, माने राणा राय ॥ दाने दारिद्य पूर करे, दाने प्रणमे सहु पाय ॥१॥ ॥चोपाई॥ .॥ दाने राजा रंजे बहु, वस्तपाल प्राक्रम जाणे सहु ॥ पूर्व पुण्य एणे कीधां घणां, ए शछि पाम्यो फल तेह तणां ॥ १॥ दाने शालिज पाम्यो नोग, दाने किंवन्नो सर्व संयोग ॥ दाने मूलदेव पाम्यो राज, दाने चंदनबाला सिझां काज ॥२॥ धनावो शेठ दीए घृतदान, तीर्थंकरपद पामे झान ॥ जिनदास शेठ ते साथू दीध, कांकरा टली ते रतन रिक॥३॥ उत्तम कुमरे जीर्ण वस्त्र दीध, वस्तग तेजपाल एमज कीध ॥ उत्तम पाम्यो अनंती रिक, वस्तपाल पाम्यो सकल सिक॥४॥ दाने महिमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () मेरु समान, दाने गुरुजी दीए बहु मान ॥ देव दानव दाने वश थाय, विरह व्याधि वैरी सब जाय ॥५॥ दाने रोग सोग पूर पलाय, दाने अग्नि पण जल थाय ॥ दाने माने मोटा राय, मयगल सिंह पन्नग दूर थाय ॥६॥ अष्ट ने प्रनवे न कहीं कदा, सकल सिकि ते थाये सदा ॥ दान दी जग सहु नर नार, जेहथी लहीए नवनो पार ॥७॥ हवे एक दिन मंत्री राजा वली, बेठा उत्रीशे राजकुली ॥ शेठ सेनापति बहु प्रधान, बेग वस्तग तेजपाल निधान ॥७॥ ॥दोहा॥ ॥ विनय करी राजा विनवे, सकल प्रधान शिरदार ॥ आण वहो सहु वस्तपालनी, श्म कहे राय उदार ॥१॥सावराज मंत्री तणो, न करे किस्यो अन्याय ॥न्याय घंटा वजमावतो, प्रणमे देव गुरु पाय ॥२॥ चतुरपणे मंत्री चिंतवे, ए संसार असार॥धर्मकरणी मंत्री करे, सुणजो ते अधिकार ॥३॥ एणे समे गुरु आवीया, माणकनप्रसूरिराय ॥ बहु आडंबर मंत्री करे, हरिजन पाट कहेवाय ॥ ४ ॥ चतुर चोमासुं त्यां रह्या, धवलकपुर मकार ॥ पंच Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०) शु परिव सयांशु परिवस्था, समता रस नंमार ॥ ५॥ धर्मोपदेश साधु दीए, रीज्या राय प्रधान ॥वीरधवल राजा वली, दीए गुरुने बहु मान ॥६॥बे बंधव वस्तुपाल वली, सूरि तणा ए श्रावक सार ॥ समकित सूधुं त्यां लडं, धवलकपुर मकार ॥ ७॥ ॥चोपाई॥ ॥ गुरु उपदेश दीए मनरंग, सना सहु सांजलो मनचंग ॥ मंत्री वस्तुपाल तेजपाल, गुरुचरणे आवे नूपाल ॥१॥ राजा दीए गुरुजीने मान, गुरु गिरुया ए मेरु समान ॥ एणे समे एक हुश वात, एकमना थक्ष सुणो अवदात ॥२॥ वीरधवलनो मामो कडं, सूर्यमव एवं नामज लहुँ॥ रजपूत रुमो रागेम होय, नाणेज पासे ते रहीतो सोय ॥३॥ जीजीकार सङ तेहने करे, मामो मनमा हरखज धरे ॥ रमे जीमे ने कीमा करे, चतुर सेना ले वनमा फरे ॥४॥ एम करतां आव्यो फागुण मास, वसंत खेले मन जबास ॥ बोले फाग गीत गाइरसाल,नवनवां गान करे नूपाल ॥५॥ ॥ ढाल वसंतनी ॥ ॥ वसंत मास नले श्रावीउ रे, फली फूली वन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) राय ॥ जोगी जमरा रणकणे रे, कामी जन मन थाय ॥ १॥ वसंत नले आवीयो हो, खेले सहु नर नारी ॥ वसं० ॥ ए आंकणी ॥ अंब लिंब दामिम फट्यां रे, फलीया ते सहकार ॥ केसु कदंबक केवमो रे, तिहां कोयल करे टहुकार ॥॥वसंग॥वृदा वृंद रायखेलतो रे,करतो रंग विरंग॥केसर गुलाल तिहां गंटतो रे, गंटे नीर सुचंग ॥३॥ वसं॥ताल तमाल तिहां जा जूश रे, मोगर लाल गुलाल ॥ चंपक केतक मालती रे, दमणो मरुले रसाल ॥४॥ वसं० ॥ बेल बबीला खेलता रे, खेले सरखी जोमी ॥ ताल वृंदाल चंग गाजतो रे, थेश थे करे नरकोमि ॥५॥वसं॥नरीय खंडो खली कीलता रे, चंदन करी घनघोल ॥ वसंत खेले त्यां राजी रे, वली आवे नगरनी पोल ॥६॥ वसं० ॥ चतुर सेनाए परिवस्यो रे, कीधो नगर प्रवेश ॥ सूर्यमन तिहां आवीयो रे, पोसालने निवेश ॥ ७॥ वसं० ॥ एणे समे सहु साधजी रे, किरिया करे मनरंग ॥ काजो शोधी ते परग्वे रे, गोखे चढी चेलो चंग॥७॥ वसं० ॥ वायरे रज ते उमती रे, जश् लागी सूरजमवा अंग ॥ चंचलपणे राय जोवतो रे, साधु देखी उपन्यो नंग॥ए॥ वसं० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) सूर्यमल्ल वचन त्यां वदे रे, जइ शीख दी ए मुंम ॥ पायक पोसाले यावीने रे, चेला घाबख जोडे मूंग ॥ १० ॥ वसं० ॥ चंचल चेलो रोवतो रे, नान्हो ते बे बाल ॥ अन्याय कस्यो पायक पापीए रे, ज‍ विनव्यो निज नूपाल ॥ ११ ॥ वसं० ॥ सूर्यमल मनमां बीतो रे, एनो श्रावक बे वस्तपाल ॥ साधु संताप्या जाणशे जो, तो आणशे मोरो काल ॥ १२ ॥ वसं० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मनमठो मामो थयो, रहीयो निज आवास ॥ एणे समे चेलोज‍, मंत्री आगल परकास ॥ १ ॥ मंत्री बेठो ते मालीये, पेखी साधु सुजाण ॥ ततण वी पाये नमे, गुरुजी कहो केसी वाण ॥ २ ॥ ॥ चोपाई ॥ ॥ चेलो बुद्धे बावन वीर, मंत्री आगल उजो धीर ॥ वचन बोले त्यां टंकशाल, एकमनो थइ सुणे नूपाल ॥ १ ॥ स्वामी तुं अधिकारी होय, ताहरी आए न लोपे कोय ॥ तुं जगमां मोटो प्रधान, बहु भूपतिनुं मूकाव्यं मान ॥ २ ॥ जैन धर्म तुं यादर करे, त्रण तत्त्व तुमे जाणो सरे ॥ देव गुरु धर्म तुं साचो वखाण, एहवा श्रावक तुम्हे चतुर सुजाण ॥ ३॥ Jain Educationa International " For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम कहीवारधवल मोमवान गयो जैन धर्म को आशातना करे, तास शीख दी। तुम्हे सरे ॥ तब मंत्री वदे वचन रसाल, कहो कुणे अवज्ञा करी गुणमाल ॥४॥ तब बोले साधु निग्रंथ, ते वृत्तांत मंत्री सुणो गुणवंत ॥ वीरधवल राय मामो जेह, सूर्यमल नामे कहीए तेह ॥५॥ वन रमवाने गयो उबगह, फरी आव्यो ते नगर मांह ॥ एणे अवसर पमिलेहण करी साध, काजो उझरे ते निराबाध ॥ ६॥ तब आला आगल आव्यो राय, अम्हे नवि जाण्युं सूरजमला जाय ॥ तेणे हुकम की तिण वार, सेवकने कहे साध तुं मार ॥ ७॥ तिण गुरु अवज्ञा कीधी लहुँ, मुजने चाबख माख्या बहु ॥ जिनशासन ते हेली करी, निज थानक गया हर्षज धरी ॥७॥ तुम्ह सरिखा अम्ह श्रावक होय, केम अघटतुं करे ते सोय ॥ तब मंत्री मन क्रोध अपार, हुं सूर्यमझने करूं खुआर ॥ ए ॥ ए साधु मोटा गुणवंत, षट्काय शरणे राखे जंत॥ पांच समिति त्रण गुप्ति धार, पंच महाव्रत पाले सार ॥ १० ॥ बावीश परिषद जीपे सूर, क्रोध मान माया लोन दूर॥ त्रीश गुणे सोहे गुरुराय, वैरागे सूर प्रणमे पाय ॥ ११॥ वीरवचन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) न लोपे कदा, सूत्र सिद्धांत आगम जाणे सदा ॥ अबोध जीवने दीए प्रतिबोध, जिनशासनमां कहीए योध ॥ १२ ॥ ए गुरुनी अवज्ञा करी केम, शीख दीधा विण जीमवा नेम ॥राय न लोपे माहरी वाण, लोक सहु माने मुज आण ॥ १३ ॥ एहवो उन्मादी सूर्यमव थाय, मुज गुरु अवज्ञा करी क्यां जाय ॥ चेलाजी तुम्हे जा गुरु पास, सूर्यमन्बनो करुं हुं नाश ॥ १४॥ मंत्री मनमां चिंती एह, साधु संताप्या फल देखाडं तेह ॥ बीजो एम न करे वली कोय, दाहिण कर अणावं सोय॥१५॥ हवे मंत्री एक करे प्रपंच, सुजटने कहे करो ए संच ॥ सूर्यमल राय मामो जेह, दाहिण कर ले। आवो तेह ॥ १६ ॥ एम आदेश मंत्रीश्वर दीए, सुनट सहस्स वात धरता हिये ॥ सबल सजा करी चाल्या तदा, सूर्यमल मोहले पोहता मुदा ॥१७॥ हाकी बोल्या उठ पापिष्ठ, गुरु अवका करी तें रिष्ट ॥ जीमणो कर ताहरो तुंदे, नहीं तो मंत्री करशे तुज वे ॥१७॥ मामो चिंते मनमां इस्युं, ए\ जोर न चाले क\॥ लाल पाल ते सूर्यमद करे, जीमणो कर ते आगल धरे ॥ १५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) तब सुनटे मन प्राणी मया, मंत्रीने ते कहेवा गया ॥ स्वामी या व आपणी, ए मति मूको मूंगी पापणी ॥ २० ॥ तव मंत्री इम वयण उच्चरे, एक अंगुली व्यावो ते खरे ॥ सुजट ते तिम करता सही, ते चांगली नगरीए फेरवे वही ॥ २१ ॥ धरम अवज्ञा करशे जेह, तेहज फल वली लदेशे एह ॥ एवो श्रावक वस्तपालज कहुं, एह समो अवर नवि लहुं ॥ २२ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे वस्तपाल एम चिंतवे, मुज शिर वैरी दोय ॥ उदयन बीजो सूर्यमल्ल, सांनिध करे धर्म सोय ॥ १ ॥ वैरी व्याधि वैश्वानर, व्याज व्यसन निवार ॥ ए पंच वकार परिहरे, ते पामे सुख संसार ॥ २ ॥ वैरी रूठो दा दीए, विषधर चंप्यो खाय ॥ विरह विलुधी कामिनी, विष देश परघर जाय ॥ ३ ॥ वैरी ते वैरी सही, जो कीजे शत उपकार ॥ अग्ने घृत जो होमीए, तोहि सुख नवि दीए लगार ॥ ४ ॥ मंत्रीश्वर उदयन हवे, द्वेष धरे अपार ॥ मति विदुणो पापी, वली वैर पोखे गमार ॥ ५ ॥ वस्तु० ५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) ॥ चोपाइ ॥ ॥ वस्तुपाल केहनी बीक नवि धरे, मंत्री श्वर पुण्य पोते जरे ॥ दान शील तप जावना सार, सत्रकार मंत्री दीए उदार ॥ १ ॥ वर्ण अढार जश बोले घणो, धर्मेद्रव्य खरचे आपणो ॥ सत्रकार मंत्री एणी पर दीए, घृतधार पानी नवि लीए ॥ २ ॥ देश प्रदेशे जश बोले सहु, राजा प्रधानने माने बहु || ए समे वैरी घातज करे, वीरधवल राय वयण उच्चरे ॥ ३ ॥ उदयन सूर्यमल्ल एकता मिली, राय यागल चुगली कहे वली ॥ खामी राज्य तुम्हारुं तेह, थोमा दिवसमां मंत्री लेशे जेह ॥ ४ ॥ शेव सेनापति खान सुलतान, नगरलोक पायदल पलट्या ताम ॥ सलह बगतर सज करे हथियार, म्ह वयण तुम्हे मानो निरधार ॥ ५ ॥ डुब्बलकन्नो ते राजा थयो, चुगल वचन ते श्रवणे लह्यो । वली वयण चुगल त्यां लवे, लोक ती एव राय तुंजीमे ॥ ६ ॥ घृत मोकले गूंजाइ जेह, एव अवाको नराय तेह ॥ वयण सांजली राजा उठी काल, गम टालो डरमति वस्तुपाल ॥ ७ ॥ कोपे राजा चढ्यो जिए वार, चुगल कहे देखाडुं निरधार ॥ राजा प्रधानशुं धरतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) वेष, उदयन साथे राय चाल्यो बेक ॥ ॥ जगवां वस्त्र ते पहीरी राय, संध्या समे प्रधानघर जाय॥ मंत्री घर बे अनोपम नारी, लली बेसणां मांडे बे चार ॥ ए ॥ नारी देखी राय असंजय थयो, मंदिर पेखी नयनांतज जयो ॥ जीमतां प्रीसे घी गोणीया धार, खल खल नामे सुलदाणी नार ॥ १० ॥ खल खल नामे नली कदेवाय, तेहने माने गुरुजी राय ॥ उतुं घी प्रीसे नहीं जेह, नरणां नाम न लीजे तेह ॥ ११ ॥ बालकने घी वालुं सही, सुवावमी घी खावे वही ॥ घीनो दीवो मंगलिक कह्यो, घीथी जमाइ रीसावतो रह्यो ॥ १२ ॥ घृत चाले नीकी ते वही, राजा नजरे देखे सही ॥ उदयन गंधो वयण उच्चरे, अबला एवडो मान कां करे ॥ १३ ॥ नारी वचन बोले तेणे गय, अम शिर वीरधवल ने राय ॥ अम स्वामी पूर्वे पुण्यज कीध, वीरधवल पासे पामी रिक ॥ १४ ॥ नारीवचने राजा खुशी थयो, पडे अवामो जोवा गयो । दीगे अवाम ते घृते नस्यो, पूजे रखवालने कहेजे खरो ॥ १५ ॥ ए घृत गुंजूंजाये दीए, ना स्वामी एहवी वात नवि कहीए ॥ एह प्रधान दीसे सुचंग, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) राय उपर बहु धरतो रंग ॥१६॥शरद् कालनांनीपन्यां घृत, तरुणी स्त्रीए ताव्यां धरी हित॥ त्रीश राजकुली ते वावरे, या घृत अश्व हस्ती चरे॥१७॥ एणे अवसर मंत्री वस्तपाल, नूपचरणे आव्यो ततकाल ॥ खमा खमा करी पाये पडे, श्रा अवस्था खामी शुं नडे ॥ १७ ॥ राजा मनमा लाज्यो सही, सघली वात तेसाची कही। उदयन सूर्यमब चामी करे, तुज हणवा हुं याव्यो खरे ॥ १५॥ तुं प्रधान पुण्यवंतज खरो, गम ठगम साचो उतस्यो । करी प्रशंसा माने राय, चुगल लाज्यो त्यां मन मांय ॥२०॥ वैरी मनमां कांखो थयो, राये हणवा थादेश दीयो ॥ दयावंत वस्तग तेजपाल, उदयन मूकाव्यो ततकाल ॥१॥ चुगल काढ्यो देश बहार, नगर मध्य हुई जयकार ॥ राजा प्रधान हवे करे कसोल, पुण्यवंत प्राणी सदा रंगरोल ॥ २ ॥ चोथो खंग कह्यो सुखकार, श्री विजयदान सूरि गुरु आधार ॥ पंमित गोपजी गणि रंगविजय शिष, मेरु विजय पूरो मनह जगीश ॥२३॥ ॥दोहा॥ ॥सरस वचन दी सरस्वती, वरसती वचनविलास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) ॥ पंचम खंग कहुं वली, वस्तुपाल केरो रास ॥ १ ॥ हवे पुण्यपवित्र वस्तुपाल कहे, सांजल नाइ तेजपाल || पूर्व पुण्य बहु याचस्यां, तो माने नूपाल ॥ २ ॥ नूपतपे जलं साजनुं, नात समो नहीं कोय ॥ एम जाणी मंत्री वली, साजनुं मेले सोय ॥ ३ ॥ नात चोराशी त्यां वसे, मंत्री दीए जाजां मान ॥ धवलकपुर रवियामणुं, त्यां न्यात मिली अनिराम ॥ ४ ॥ ॥ चोपाइ ॥ - ॥ श्रीश्रीमाली जैसवाल पोरवाल, गुजर मींकु दीसावाल ॥ खगायता खंडेर खंगोल, कठणि राका किला कपोल ॥ १ ॥ नाहर नागर नाणावाल, प्रोढ लाग लाकुआ श्रीमाल || हालर हरसोरा हुंबमा, श्री गोम कालोरा जांगमा ॥ २ ॥ धाकमी आ जमीय मूंगमा, ब्रम्हाणा वीजू वायमा || गोनू अमालजा मांगलीच्या मोढ, पंचम पुष्पर जंबूसरा सोढ ॥ ३ ॥ सोरवाल ने जदेउरा, चितवाल सुरही खरा || मादर कंबोजा करिही रसाल, पोरवान सोरठीया पल्लीवाल ॥ ४ ॥ मंमाहमा मंगोरा मेवाम, वाल्मीक जाचा चित्रावाल || नरसिंगपुरा सूर कहीए खंडेर, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२० ) नागौद्रा अग्रवाल जोडेर ॥ ५ ॥ बावरसर वधणोरा अस्तकी, अष्टवर्गी ने पद्मावकी ॥ गोलवाल नागोरा नरा, तेरोटा साचोरा खरा ॥ ६ ॥ जामु नागद्रानी ज्ञात, उग्रवाल बाबरनी जात ॥ जानू वली राणा निमाल, कथरोटा कोरंटा वाल ॥ ७ ॥ दाहिल सोनी सोध मयाल, वमीसखा ते कहुं दयाल ॥ राजसखा ने लहुमीसखा, चसखा लहुं दोसखा ॥ ८ ॥ सूराया राजोरा जोय, मेकतवाल मंगोरा होय ॥ आणंदोरा नगरेणा रेख, वी नात वागरु विशेष ॥ ॥ ए चोराशी नातज कही, निज कर्मे अवस्था सही ॥ पूरव पुण्य जेणे पूरा कीध, उंच कुल आवी पामी रिद्ध ॥ १० ॥ महाजन सह त्यां बेठा चंग, वस्तग तेजपाल दुई मनरंग | वे बंधव त्यां बोले बाल, न्यात तणा तुमे बो भूपाल ॥ ११ ॥ एक एक सन्मुख निरखे सोय, प्रधान लाज न लोपे कोय ॥ सही वात समे हो यदा, प्रधान न्यात पहीरावे तदा ॥ १२ ॥ अंग शोजता वाधा दीया, रत्न जति वेढ त्यां यापीया ॥ वारु वींऊणे वीजे वाय, कड़े नात तणो तुहे करो पसाय ॥ १३ ॥ श्रीफल फोफल वली पानज दीए, सहु सजन देखी मंत्री हरखे हिये ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) नावी पदार्थ ते नवि टाल, एक रंमानो विसरे बाल ॥१४॥ ते बालक त्यांावी करी,न्यात आगल पोकारे फरी ॥ ए रंमा प्रधान तेसाथे ली, कहे एक जर्रार अम्ह करवा दी ॥१५॥बुधो मारी ते उनो रह्यो, महाजन किणे परो नवि थयो ॥ नान्हा मोटा न्याते सही, ए अयुगतुं हवे थाये नहीं । १६॥ ठीकरीए घमो नांजे सही, एह वात ते लोकमुखे सही ॥ ए उखाणो साचो थयो, बालकथी मंत्री बाहिर रह्यो ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ किम बोल्यो ते डोकरो, किम बोली तेहनी माय ॥ एकमना सहु सांजलो, अवदात तेहनो कहेवाय ॥१॥ जसोधर कहुं व्यवहारी, जसोमती तेहनी नारी ॥ बुझिमंत कुमर तेहनो, देवदत्त नाम अवधार॥२॥घरजार कुमरने सुंपीठ, तापस थयो मूकी धाम ॥ न्यात तणो हतो अधिकारी, पोहतो परजव ताम ॥३॥ हवे न्यात चोराशी त्यां मली, कुंणे न बोलावी जसोधरनारी ॥ ते यावी मागे चूमो चूनमी, महाजन करो उपकार॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) ॥ ढाल॥ ॥ नानो नाहलो रे॥ ए देशी ॥ धवलकपुर सोहामणुं रे, त्यां ते बालकनो वास के, वारु वाणी रे॥ जंच कुलनो जाणीए रे, प्राग वंश शणगार के,नानो बादुमो रे॥१॥जसोधर कहुं व्यवहारी रे, तेहनो पुत्र कहीवाय ॥ वारु० ॥ आयु पूरी एहनो तातजी रे, पोहतो ते परलोक के ॥ ना ॥२॥ लघुपणे हुँ ढुं एकली रे, मूकी गयो ते नर्त्तार ॥वा॥ दोहिले बालक उबेरती रे, यौवन माहीं जाय के ॥ना ॥३॥ दिवस दोहिले हुँ निगमुं रे, रजनी किमह न जाय ॥ वा ॥ अहनिश समरं पुत्रना तातने रे, मुज यावे पीउनुं ध्यान ॥ ना॥४॥ पूरव क्रीमा मुज सांजरे रे, सांजरे माहरो नाद के ॥वा॥ आठ गुणो काम कामनी रे,पूरो केम न थाय के॥ ना॥५॥पीयुपाखे शुं जीवq रे, ज्यां जाये त्यां रांग के ॥ वा० ॥ न्यात साजन नवि जाणतां रे, बालीवेशे थालं नाम के ॥ना॥६॥ मोटां मंदिर मालीयां रे, एकलां रयणी न जाय के ॥ वा ॥ कृपा करो करुं हुं नाहलो रे, ए साथे चूके न्याय के ॥ ना ॥७॥लाज मूकी नारी त्यां लवे रे, उनी रावले चोक के ॥ वा ॥ फिट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) फिट लूंमी पापणी रे, एहवो न कीजे रोष के ॥ना ॥७॥ नारीवचन ते सांजली रे, साजन दहुँ दिशे जाय ॥वा॥प्रधान पासे जेता रह्या रे, ते लघु शाखा कहीवाय ॥ ना ॥ ए ॥ पाय लागी मंत्री विनवे रे, साजनांशुं जोर न थाय ॥ वा ॥ लाजे पड्या केता वाणीया रे, प्रधाननी बांह साय ॥ना॥१०॥ लघु शाखा तिहां थापता रे, निज निज न्यात कहीवाय के ॥ वा ॥ शाखा प्रशाखा प्रस्तरी रे, बीजो नहीं किसो अन्याय के ॥ ना० ॥ ११॥ यशोमती न्यात अजुबालती रे, राख्यो न्यातनो बंध के ॥वा० ॥ वृद्धशाखी ते जाणीए रे, लघु वस्तुपालथी संध के ॥ ना० ॥ १२॥ ॥दोहा॥ ॥ उद्यम कीधो मंत्रीश्वर घणो, कोइ नाव्यो ते पिण कार ॥ हवे निज न्यात पोखे सदा, मंत्री जाणे अथिर संसार ॥ १॥ एम जाणी मंत्री वली, केहगुं नाणे शेष ॥ नावी पदारथ नवि टले, निज मन आणे विवेक॥२॥ सिरज्युं किमह न बूटीए, जो पेसीए पाताल ॥राजा हरिचंदने वली, फुःख पड्यां अकाल ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ॥ चोपा॥ कमें नमीयां वीर जिन कहुं, ब्राह्मण कुल अवतारज लहुँ ॥ गणधर तात दो पण लह्या,दश एकादश माने कह्या ॥१॥ कर्मे नंदीषेण वेश्याघर लह्यो, कर्मे अरणिक एमज कह्यो ॥ कमें आषाढनूत एम रख्यो, नटवीने जश्ने मल्यो ॥२॥ कर्मे सीता रावण हरी, ने पोतानी ते पुतरी ॥ कमें नगिनी परण्यो जोग, कमें जननीशु कीधो लोग ॥३॥ अकह कहाणी ए पण होय, कुबेरदत्त एहवे कमें जोय ॥ अढार नातरां एहनां कडं, त्रिहुं मलीने बहोंत्तेर लडं॥४॥ प्रसिक वार्ता डे ए घणी, कहेतां वार लागे बिमणी ॥ एवा दृष्टांत जिनशासन अनेक, कहेतां नावे तेहनो डेक ॥ ५॥कर्म आगल नवि चाले कंप, कर्मे राजा थाये रंक ॥ एम वस्तुपाल मन निश्चय कीध, पूरव पुण्य ते उंग सिक ॥ ६॥ कि तणो ते घर नहीं पार, राय बोलावे जीजीकार ॥ परलोक साधन हुँ हवे करूं, जिम नवसायर लीला तरूं ॥ ७॥ एम कही गुरुवंदन जाय, माणिक मुनिना प्रणमे पाय ॥ गुरु उपदेश ते दीए रसाल, धर्म सांजली समज्यो वस्तुपाल॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (su) गुरु कड़े जीर्ण प्रासाद उरो, नवां जिनमंदिर दर करो ॥ जिनबिंब जरावो मनरंग, श्रीशेगुंजे जात्रा करो चंग ॥ ए ॥ प्रधान धर्मनो अर्थी थयो, गुरुवचन ते श्रवणे लह्यो । विनय करी ते प्रणमे पाय, स्वामी नीच कर्म कहो किम बंधाय ॥ १० ॥ तीव्र क्रोध परनिंदा करे, मान माया लोन अंगे धरे ॥ परपीमा जीव वधज करे, देव गुरु माता मुख उच्चरे ॥ ११ ॥ नीच कुलनी निंदा करे, उंच कुले हुं उपन्यो शिरे ॥ एम कही मन हरखे जेह, हीन कुल नर पामे तेह ॥ १२ ॥ अवसर नही पूबे वस्तुपाल, पूरव जव अम कहो रसाल ॥ माणिक - सूरि एमज कहे, सूधी वात तो केवली लहे ॥ १३ ॥ मतिज्ञान श्रुतज्ञाने कहुं, पूरव पुण्य तुम यस्यां बहु ॥ तेनो कहेशुं टबो विचार, बीजो सर्व केवलीने पार ॥ १४ ॥ कहे सीमंधर स्वामीने पूबानं वात, पीछे कहेशुं तुम अवदात ॥ पद्मावती समरी गुरुराय, ततक्षिण यावी देवी माय ॥ १५ ॥ कहे तहे दो सीमंधर देव, माहरी वंदना कहेजो देव ॥ पूरव जव वस्तुपालनो सही, स्वामीने पूी वो वही ॥ १६ ॥ संघ सान्निध ले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) देवी त्यां गश्, मंदिर स्वामीने पूछे सही ॥ वस्तुपाल जव कहो स्वामी आज, ततक्षण वदे ते महाराज ॥ १७ ॥ देवी आवीने गुप्त कहे, माणिकला सूरि मन सदहे ॥ मंत्री आगल हवे गुरु वदे वाच, वस्तुपाल सदहे सघj साच ॥ २७ ॥ तिलकावती तुज कहुं अवतार, गुणसागर तुम्हे तातज सार ॥ लीलावती माता तुज सही, लघुपणे धर्म तें कीधो वही ॥ १५ ॥ जिनदत्त नाम ते ताहरु सही, उत्तम कुल तुं श्रावक लही ॥ सूधे मन आराधे धर्म, शास्त्र सिहांत सवि जाणे मर्म ॥ २० ॥ दान दीए निज काया दमे, पाप परिग्रह तुज नवि गमे॥क्रोधमान माया लोन परिहार, समकितधारी तुं श्रावक सार॥१॥ दान शील तप नाव मन धरे, उन्नय काल पमिकमj करे ॥साध सुधर्मी सरसी गोठ, केहर्नु न बोले विरुवं होठ ॥ ॥ साधु साध्वीने दीए बहु मान, सुऊतां दीए वली अन्न पकवान ॥ वस्त्र पात्र दीए नझास, अनित्य नावना नावे खास ॥ २३॥ सरल खनावे शील दृढ रहे, देव गुरु धर्म ते साचो कहे ॥ अढार पापस्थान पूरे करे, पुण्ये पोतुं पोते जरे ॥ २४ ॥ एक दिवस ते नगर मजार, शालधर साधु For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) श्राव्यो उदार ॥मासखमण- पारj करे, उष्ण काल ते गोचरी फिरे॥२५॥घर घर शेरी शेरी फिरतो साध,तें प्रतिलान्यो ते निराबाध ॥ चित्त वित्त पात्र मिलीयो संयोग, तेहथी पाम्यो सर्व संजोग ॥२६॥ वली दान देश्अनुमोद्यं घj, शुन्न थानक धन वाव्यु आपणुं ॥ नाव सहित तें दीधुं अन्न, उठ पग ते प्रगट्युं धन्न ॥ २७ ॥ धन सार्थवाहे दीधुं घृत, तेहथी ताहरु अधिकुं चित्त ॥ तीर्थंकरपद धनावे लीध, तिम तुं पाम्यो बहुली रिझ॥॥ हवे उष्ण काल साधु आतापना लीए, सूर्य तपे प्रसेवो उतरे हिये ॥ साधसेवा तुं करवा गयो, साध गंधाये ते अलगो रयो ॥२५॥ पुगंबग तिहां अल्पज कीध, आप निंदी मिठा पुक्कम दीध ॥ खमे खमावे वारोवार, तोहि जम्यो तुं अनंत संसार ॥ ३० ॥पश्चात्ताप तिहां घणो करे, मनशुं तुं वली सबलो मरे ॥ पुगंठा फल तेहy जोय, दश विश्वा ते तेणे होय ॥३१॥ गुरु गरुवा कहे एहवी वात, ए सीमंधरे कह्यो अवदात ॥ वात प्रबंधमां एमज कही, पंमित जन मुख में पण लही ॥३२॥ अधिकुं , कडं में जेह, मिठा मुक्कम दीजे तेह ॥ हवे मंत्री कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुणो खाम, तुम्हे सास्यां अम्हारां काम ॥ ३३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ गुरुवचन श्रवणे सुणी, मंत्री लहे वैराग ॥ हवे सुकृत करणी मंत्री करे, ते सांजलो सह सोजाग॥१॥ ॥ ढाल वीडीयानी॥ ॥ लाला वरष अढारे वोल्यां पड़ी, मंत्री पाम्यो अव्यनी कोमि रे ॥ लाला करे उपगार जगजीवने, बे बंधव सरिखी जोमी रे ॥ १ ॥ लाला धर्मकरणी मंत्री करे, ते तो सांजलो सहु सोजाग रे ॥ ला ॥ सुरगुरु श्रावी जो कहे, तोहि न पामे ताग रे॥२॥ ला० ॥ धर्मः॥ ए आंकणी ॥ लाला सप्त क्षेत्रे वित्त वावरे, ए तो लीए लक्ष्मीनो लाह रे ॥ ला ॥ सुकृत करणी पोते करे, वस्तुपाल तेजपाल शाह रे॥३॥ ला०॥धाला॥ जैन प्रासाद करावीया, पंच सहस्स पांचसे चार रे ॥ ला॥ वीश सहस्स त्रणसो उकयां, जिनमंदिर उदार रे ॥४॥ ला॥धला ॥ नगवंत बिंब जरावीयां, लाख सवा कदेवाय रे ॥ ला ॥ अढार कोमि त्यां व्यय करी, वली त्रण नंमार सराय रे ॥५॥ लाग ध ॥ला॥ दांत सिंहासन सातसें, नवसें नेव्याशी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) पोसाल रे ॥ ला ॥ समवसरण पटकुलनां, पांचसें पंच रसाल रे॥६॥ला ॥ध०॥ला॥शेत्रंजे अव्य खरचीयुं, अढार कोमि बन्न लाख रे ॥ला॥ गिरनार उपर एटलां, एंशी लाख अढार कोमिनाख रे ॥७॥ ला ॥ धम् ॥ ला० ॥ अर्बुदाचल उपरे, जव्य खरचे मनने रंगरे॥ला॥ बार कोमि एंशी लाख लढुं, लूणिकवसही नामे सुचंग रे॥७॥ला॥ध ॥ ला ॥ तोरण त्रण चढावीयां, शेर्जेजे आबु गिरनार रे ॥ ला ॥ सोनश्या त्रण लाखनु, एकेकुं तोरण सार रे॥ए॥ला॥धलाणा देहरासर घर पूजता, साग तणां सो पंचवीश रे॥ला॥जैन रथ नीपजावीया,दांत तणा ते चोवीश रे॥१०॥ला॥ध०॥ला ॥ ज्ञानपंचमी आराधतो, उजवणुं अनेक प्रकार रे ॥ ला ॥ अढार कोमि सोना तणां, पुस्तक लिख्यां नंमार रे ॥११॥ला॥ध०॥ ला०॥ब्राह्मण नीशाल सातसें,सातसें घर सत्रकार रे॥ला॥मेसरा प्रासाद करावीया, त्रण सहस्स ने वली चार रे॥१२॥ लाप धाला॥ तापसमठ कस्या सातसें, चोसठ मसीत ते लाय रे ॥ ला ॥ चैत्य रखवाला ते कडं, शिव म्लेबनां मन राख रे॥१३॥ला॥धलाणापाषाण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८० ) बंधज ते करयां, चोराशी सरोवर जोय रे ॥ ला०] ॥ वाटे करावी वावमी, चारसें चोसठ वली होय रे ॥ १४ ॥ ला० ॥ ध० ॥ ला० ॥ सातसें कूप करावीया, विसामा चार हजार रे ॥ ला० ॥ चरम तलाव ते चालतां, चारसें चोराशी सार रे ॥ १५ ॥ ला० ॥ ध० ॥ ला० मोटा गढ मंगावीया, बत्रीश बे प्रसिद्ध रे ॥ ला० ॥ प्रपा मंगावी बारसें, एम उपकार मंत्री कीध रे ॥ १६ ॥ ला० ॥ ध० ॥ ला० ॥ गठवासी जति सातसें, सुजतो लहे त्यां प्रहार रे ॥ ला० ॥ एक सहस्स ने आठसें, एकाकी विचरे विहार रे ॥ १७ ॥ ला० ॥ ध० ॥ ला० ॥ ब्राह्मण वेद तिहां जणे, पांचसें त्यां दरबार रे ॥ ला० ॥ एक सहस्स तापस कहुं, कापमी सहस्स चार रे ॥ १८ ॥ ला० ॥ ध० ॥ सा० ॥ प्रेमशुं सहुने पोषतो, मंत्री बोले मधुरी जाख रे ॥ ला० ॥ त्रंबावती मां व्यय करे, सोनश्या ते बे लाख रे ॥ १९५॥ ला० ॥ ६० ॥ ला० ॥ जयजयकार दीसे सदा, सामीवचल बहु कीध रे ॥ ला० ॥ संघपूजा वरषे त्रण कहुं, वस्त्र आजरण अनेक दीध रे || २० || ला० ॥ ६० ॥ ला० ॥ जे जे मनोरथ उपन्या, ते ते सघला थया सिद्ध रे ॥ ला० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) ॥ एकवीश सूरिपद थापीयां, पदमोबव मेरु सम कीध रे ॥ २१ ॥ ला० ॥ ६० ॥ ला० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ बे बंधव आलोचता, कहे कीधा धर्म अनेक ॥ वे विमलाच करूं जातरा, एम उपन्यो हृदय विवेक रे ॥ १ ॥ वस्तुपाल कहे तेजपालने, पोख्या पात्र सुपात्र || पूर्व पातक तो टले, जो कीजे शेडुंजे यात्र ॥ २ ॥ मंत्री जाव एहवो दुर्द, जइ पूजुं कषन जिनदेव || संघ बरशुं संचरे, माहणदेवी सारे सेव ॥ ३ ॥ संवत् बार एकाशीए, पहेली यात्रा कीध ॥ पढे संघ लेइ संचरे, ते कहेशुं सघली रिद्ध ॥ ४ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ यावे यावे रूपनो पुत्र, जरत नृप जावशुं ए ॥ ए देशी ॥ सराज नंदन हरखशुं ए, वे बंधव सरखी जोम तो, शेत्रुंजे जातराए आवे आवे मनने को तो ॥ शेत्रुंजे जातराए ॥ १ ॥ पग पग कर्म निकंदता ए, विमलाचल यात्रा जाय तो ॥ शे० ॥ ए यांकणी ॥ सबल संघ सजाइ करी ए, ते कहेतां नावे पार तो ॥ शे० ॥ देश देशना संघ मल्या ए, जंगलीश सहस्स सेजवाल तो ॥ शे० ॥ २ ॥ सातसें संहान वस्तु० ६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (thin) पार शोजतां ए, पांच सुखासन सार तो ॥ शे० ॥ चारसें चोराशी गायन जलाए, अग्यारसें गंधव धार तो ॥ शे० ॥ ३ ॥ बे सहस्स करहला शोजता ए, तेहनी कोटे घूघरमाल तो ॥ शे० ॥ चार सहस्स तुरंगम पाखरया ए, पायदलनो नहीं पार तो ॥ शे० ॥ ४ ॥ दो हजार दांतरथ जाणीए ए, तेथे जोतस्या अश्व रसाल तो ॥ शे० ॥ रत्न जमित पलाण कहीए ए, पाये कांकरियां घूघरमाल तो ॥ शे० ॥ ५ ॥ सो देरासर सोना तणां ए, तेत्रीश दंत देवालय तो ॥ शे० ॥ अग्यारसें ते वली सागनां ए, वाटे पूजा रचे रसाल तो ॥ शे० ॥ ६ ॥ ग्यारसें दिगंबर ते कहीए ए, श्वेतांबर कहुं दो सहस्स तो ॥ शे० ॥ सातसें गणधर दीपता ए, वाटे देता धर्म उपदेश तो ॥ शे० ॥ ७ ॥ दीवीधरा साथै सहस्स जणुं ए, दो हजार कंदोई जोय तो ॥ माली फूल लेइ संचरे ए, त्र हजार तिहां होय तो ॥ शे० ॥८॥ चारसें चोराशी तलाव चालतां ए, चर्म तणां अगाध तो ॥ शे० ॥ डेरा तंबू ते दीपता ए, गगनशुं करता वाद तो ॥ शे० ॥ ए ॥ बिरुदावली बे सहस्स बोलता ए, दलवादी जाट त्रण सहस्स तो ॥ शे० ॥ अग्यारसें पूखरणा ते जणुं ए, चार सदस्स फरास तो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( हेत ) ॥ शे० ॥ १० ॥ चार सहस्र नेजा आगले ए, तेहना सोवनमय साज तो ॥ शे० ॥ दल वादल संघ चालतो ए, सहु कहे धन्य दिन आज तो ॥ शे० ॥ ११ ॥ खेद उडे संघ चालतां ए, वादल छायो सूर ताम तो ॥ शे० ॥ मेरु महीधर खलनले ए, कंपे वली इंद्रनुं गम तो ॥ शे० ॥ १२ ॥ अनुक्रमे तलेटीए वीया ए, वाग्यां निशाण सहस्स चार तो ॥ शे० ॥ मेरी नफेरी तिहां वाजती ए, शंख वाज्या हजार चारं तो ॥ शे० ॥ १३ ॥ वस्तुपाल तेजपाल हरखीया ए, हरख्यो हरख्यो संघ सहु साथ तो ॥ शे० ॥ सोवन फूले गिरि वधावता ए, सफल कीधा निज हाथ तो ॥ शे० ॥ १४ ॥ युगादि देव जइ जेटीया ए, सफल कस्यो अवतार तो ॥ शे० ॥ विमलाचल जिन पूजीया ए, हुई ते हरष अपार तो ॥ शे० ॥ १५ ॥ नवए करे जे जिन जावशुं ए, नावे ते संसार तो ॥ शे० ॥ रुषन जिन पूजा करी ए, संघ पोहतो ते गिरनार तो ॥ शे० ॥ १६ ॥ गिरनारे नेमि जिन पूजीया ए, सफल कीधो अवतार तो ॥ शे० ॥ सामी बार यात्रा एणी परे ए ए सह प्रबंधमां अधिकार तो ॥ शे० ॥ १७ ॥ गुरुवचने विमलाले ए, मंत्रीश्वर कीधी यात्र तो " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ॥शे० ॥ षन जिन पूजी करी ए, निर्मल कीधां गात्र तो॥ शेण ॥ १७ ॥अढार कोमि बन्नु लाख व्यय करी ए, विमलाचल जाणी सुगम तो॥शे॥ बार कोमि एंशी लाख कही ए, गिरनारे खरच्यो दाम तो ॥ शे०॥ रए ॥ त्यां धर्मकरणी बहुली करी ए, करे स्नात्रपूजा सार तो ॥ शेण ॥पुण्यनंमार पोते करी ए, आव्या निज निज घरबार तो॥शे॥२०॥नगरलोक सहु हरखीयां ए, हरख्या हरख्या राणा राय तो॥ शेण ॥ कहे गरुवी करणी तेणे करी ए, एम मेरुविजय गुण गाय तो ॥ शेण ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥राज काज पोते करे, करे वली सबल विवेक॥ माय ताय विन सुखी करयां, सुखी कस्या जंतु अ. नेक ॥ १॥ हवे अवसर लही माता विनवे, सुण पुत्र तुं सुकुमाल ॥ अम शिर देणुं एक बे, ते डोमव तुं गुणमाल ॥२॥ विनय करी पुत्र विनवे, मात कहो मुज वात ॥ सरल वचन माता कहे, मंत्री सुणो ते अवदात ॥३॥ ॥ढाल॥ ॥ एक घर घोमा हाथीयाजी॥ए देशी॥ पुत्र प्रते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) माता एम कहे जी, सांजलो पुत सपुत ॥ ज्येष्ठ बंधव हता ताहरे जी, लूणिक मालदेव सुत ॥१॥ नरेश्वर तुज समो अवर न कोय, आश पूरो हवे माहरी जी॥ जिनमंदिर आबु होय, नरेश्वर तुज समो अवर न कोय ॥२॥ मंत्रीश्वर लूणिक दुई वरष अष्टनो जी, करतो धर्म विचार ॥ सहगुरु वाणी सुणी करी जी, बज्यो जिनधर्म सार ॥३॥ मं॥ दान शील तप नाव धरे जी, पुण्ये करी पोषे काय॥ चौविध पात्र ते पोखीए जी, देव गुरु गुण गाय ॥४॥ मं० ॥ शीयल सन्नाह अंगे धरे जी, न करे केहनी रे तात ॥ प्रजन। जिनपाये नमे जी, जाणे नव तत्त्वनी वात ॥५॥ मं॥ बह अहम आंबिल करे जी, करे वली पोसह सार ॥ पमिकमणां दो नित्य करे जी, मुख जंपे नवकार ॥६॥मं॥ त्रिकाल पूजा नित्य करे जी, अष्टप्नकारी रे जाण ॥ सत्तरत्नेदी पूजा आदरे जी, जिन पूजे जले मंमाण ॥७॥ मंग॥ जिनमंदिर नीपजावीए जी, एहवो निश्चय कीध ॥ मनह मनोरथ चिंतवेजी, जोहुँ पामुं रिक ॥ ७॥ मं० ॥ आबु गिरिवर में सुण्यो जी, तेत्रीश कोमि देववास ॥ नेमप्रासाद नीपजावीए जी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) जिम लहीए सुखवास ॥ ए॥ मं० ॥ निज माताने विनवे जी, अम मन कीजे सिक॥ माहरे नामे जिनमंदिरु जी, करजो पामी रिक ॥ १० ॥ मं० ॥ एम कही खर्गे सीधावीया जी, लूणिक मालदेव नंद॥ बे बंधव तुम्हे पडे हुया जी, कुलमंमन रवि चंद ॥ ११ ॥ मं० ॥ पृथिवीममन तुं हुजी, खरचे - व्यनी कोम ॥ नेमप्रासाद मंमावीए जी,बे बंधव बो जोम ॥ १२ ॥ मं० ॥ बाबु उपर जिनमंदिरु जी, खूणिक नामे होय ॥ मातवचन सुणी हरखीया जी, संघ तिलक करावे सोय ॥ १३ ॥ मं०॥ ॥ दोहा॥ ॥ जे जे मनोरथ उपन्या, ते ते चढ्या प्रमाण ॥ हवे मात मनोरथ पूरतो, ते सुणजो सहु सुजाण ॥२॥ ॥ढाल॥ ॥ मनोरथ सवि फल्या ए॥ ए देशी॥ हवे संघपति संघ चलावतो ए, सबल करे सजाय ॥ मनोरथ सवि फल्या ए ॥ बहु करू ले सांचरे ए, सांनिध करे देवी अंबाइ॥ म॥१॥बाबु गिरिनी जातरा ए, पूरे मननी आश ॥म०॥ ए आंकण ॥ देश देशना संघ श्रावी मल्या ए, थावे आवे राणा रायम॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 69 ) हय गय पायक लख जणुं ए, वे सहस्स गुणिजन गाय ॥ ० ॥ २ ॥ मुहूर्त्त जले मंत्री श्वर संचरे ए, संघ चलावे मोटे मंगाए ॥ म० ॥ ढम ढम ढोल त्यां वाजता ए, वाजे वाजे अति निशाण ॥ म०॥३॥ सखरी सोहे सोवन पालखी ए, तेहने माणिक मोती हीरा साज ॥ म० ॥ निज मायने त्यां बेसारतो ए, मंत्री सारे पोतानां काज ॥ म० ॥ ४ ॥ तुरंगम चार सहस्र चालता ए, तेहनी कोटे सोहे घूघरमाल || म० ॥ बे सहस्र रथ वली जोतस्या ए, वृषन धोरी सुकुमाल ॥ ० ॥ ५ ॥ तेहने पाये सोवन जांजरी ए, रतन जर्मित शींगमां सार ॥ म० ॥ रण ऊण रणके चंग जलाए, अंगे विलाई मींदी ते वार ॥ म० ॥ ६ ॥ पंच शब्द बहु वाजता ए, बिरुदावलि बोले सहस्र जाट | म० ॥ हवे देव गुरु वांदी चालीया ए, चाले धर्मनी वाट || म० ॥ ७ ॥ सेजवाला सह बावीश मिल्या ए, चार लाख पोठी जाण ॥ म० ॥ चार सहस्र नेजा आगले ए, सुखासन दो सहस्र वखाण ॥ ० ॥ ८ ॥ एकसो सिंहासन शोजतां ए, साथे देवालय एंशी सात ॥ म० ॥ शेत्रुंजा पर संघपति ए, संघ यावे यावे आबु प्रजात ॥ म० ॥ ए॥ गढ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) देखी मंत्री हरखीया ए, तलेटीए दीधां मेव्हाण ॥ म ॥ सिंह शब्द त्यां गूंजता ए, वली वाजिन वजावे सुजाण ॥ म ॥ १०॥ अर्बुद गिरि मंत्री चढे ए, जर नेटे आदि जिनराय ॥ म ॥ अचलगढ जिन पूजीया ए, तेरसें मण सोवनकाय ॥ म० ॥ ११॥ स्नात्रमहोछव करी सांचरे ए, संघ पोहतो देलवामा मांहि ॥ म ॥ विमलवसही देखी हरखीया ए, मंत्री नेटे जय जिनपाय ॥ म ॥ १२ ॥ ॥दोहा॥ ॥ वस्तुपाल मंत्री मन चिंतवे, धन्य विमल मंत्री अवतार ॥ देवल नीपायुं षन तणुं, खरच्युं अव्य अपार ॥१॥ एम जाणी वस्तुपाल हवे, तेडे सूत्र शिलाट | जिनमंदिर नीपजावीए, अव्य दीए मूमा नरीमाट॥२॥राउल तेमी मुंश मूलवे, मुह माग्या दीए दाम ।। चोकम करी नुं चितरे, मूक्यो सोनल बिजगम ॥३॥ते अव्यसंख्या मंत्री करे, बत्रीश मूमा दीए दाम ॥ जिनमंदिर कीधुं रलियामणुं, सूणिकवसही दीधुं नाम ॥४॥संवत् बार नेव्याशीए, नीपन्युं जिनमंदिर सार ॥ बार बाणुं ध्वजारोप की, पट्टासण बेग नेम कुमार ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (UU) ॥ ढाल ॥ ॥ प्रौढ प्रासाद नीपावीर्ज ए, चितरी नेम जिन जान ॥ म० ॥ स्तंज मंरुप कोरी पूंतली ए, ते दीपे जिस्यो देवविमान ॥ ० ॥ १ ॥ रंगमंरुप रलियामा ए, खेला मंरुप सार ॥ ० ॥ ढार शत फरती पूतली ए, जांवसही उदार ॥ म० ॥ २ ॥ विमलवसही सादमुं वली ए, हस्ती शाला तिहां कीध ॥ म० ॥ जंन्नत प्रौढ पर्वत जिसा ए, जैले एकावन प्रसिद्ध ॥ म० ॥ ३ ॥ सप्त शुंभादरुज कहीए ए, श्वेत ऐरावण समृद्ध ॥ म० ॥ द्रव्य खरचे बहुलुं तिहां ए, जगमां जश बहु लीध ॥ म० ॥ ४ ॥ शिखरबद्ध प्रासाद नीपन्यो ए, इडुं नीपायुं तेणी वार ॥ म० ॥ सोवन कलश नले मूरते ए, ध्वजा चढावी सुखकार ॥ म० ॥ ५ ॥ माय मनोरथ त्यां फट्याए, सत्तर भेदे पूज्या जिनराय ॥ म० ॥ हवे प्रभु दरबारे निरखतां ए, देराणी जेठाणी तेणे वाय ॥ ० ॥ ६ ॥ पदमिनी पीयु प्रते विनवे ए, स्वामी सुखी यो म्ह आज ॥ म० ॥ श्रम्ह नामे इहां द्रव्य खरची एए, जिम सरे अम्हारां काज ॥ म० ॥ ७ ॥ वली विनय करीने विनवे ए, लली लली ललितादे नार ॥ म० ॥ वचन अनोपम बोलती ए, अ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) नोपम देवी संसार ॥ म ॥७॥ पीयु पनोता अम्ह दीजीए ए, जिन दरबारे गम ॥म०॥ प्रन्नु बागल आलाया रचें। ए, राखुराखु जगमा नाम॥माए॥ जिनहारे दो सालीया ए. नव नव लखा होय॥म॥ देराणी जेठाणी वादशं ए, दाहिण वाम पासे जोय॥ म॥१॥माखण सम ते कोरणी ए,सोनासमा पाषाण जाण ॥म॥ रविकिरण परे फलहले ए, दो आली. ए बहु मंमाण ॥ म० ॥ ११ ॥ वली ललित सरोवर त्यां कमु ए, ललितादेवी नामे जाण ॥ म० ॥गाउ एक फरतुं कहीए ए, हवे नालियर नामे वखाण ॥ म० ॥ १२ ॥ उन्नत गिरि गाउ बारनो ए, उपर वसे गाम बार ॥ म ॥ हवे देव जुहारी त्यांथी सांचरे ए, वे आवे निज घरबार तो ॥ म० ॥ १३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ यात्रा करी घर आवीया, हु ते जयजयकार ॥ गणि रंग विजय शिष्य आशा फली, सफल कस्यो अवतार ॥१॥रास रच्यो रलियामणो, पांचमो खंग ए जाण ॥ पंमित गोपजी गणि रंगविषय शिष,मेरुविजय सुखकार ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) ॥ ढाल मेंदीनी ॥ ॥ सदगुरु पाय प्रणमी करी जी, समरी सरखती माय ॥ निरुपम नरपति रास रचुं रलियामणो जी, होम कहेवाय ॥ १ ॥ निरुपम संघपति पुण्यकरणी बहुली करी जी, राख्यां जगमां नाम ॥ निरु० ॥ एकणी ॥ हवे धवलकपुरमां ते वली जी, जिनमंदिर कीयां चार ॥ नि० ॥ दान अवारी मंत्री दीए जी, करी शेत्रुंजे यात्रा वार ॥ २ ॥ नि० ॥ मंत्री बहुविध धर्म कीयो जी, ते पुस्तक लिख्यां वखाण ॥ नि० ॥ हवे सहगुरु वंदन नित्य करे जी, नित्य सुणे निज गुरु वाण ॥ ३ ॥ नि० ॥ गुरु गिरुच्या गुण यागला जी, सामुद्रिक जाणे विवेक ॥ नि० ॥ रेखा फल त्यां वर्णवे जी, मंत्री आयु कह्युं ते बेक ॥ ४ ॥ नि० ॥ गुरुवचन श्रवणे सुणी जी, जाणी आयु प्रमाण ॥ नि० ॥ शुभ थानक विमलाचले जी, संघपति बहु मंगाण ॥ ५ ॥ नि० ॥ सबल आडंबर ते करी जी, संघपति शेत्रुंजे जाय ॥ नि० ॥ अनुक्रमे वलह चमारमी जी, व्हाण दीए वस्तT शाय ॥ ६ ॥ नि० ॥ एणे समे वात एकज हुइजी, सांजलो सहु नर नारी ॥ नि० ॥ संघ साथै सहु सांचरे जी, मनुष्य तिर्यंच नहीं पार ॥७ • Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ नि० ॥ धन्य जीव्युं धन्य ते घमी जी, जेणे कीधी शेत्रुंजे यात्र ॥ नि० ॥ एम सांजली श्वान हरखीया जी, वे करवा निर्मल गात्र ॥ ८ ॥ नि० ॥ तियच जीव यात्रा जे करे जी, त्रीजे जव पामे सिद्ध ॥ नि० ॥ अनेक श्वान यात्रा संचरे जी, एकशूनी गर्भवती लीध ॥ ए ॥ नि० ॥ पूरे मासे ते वली जी, आकुल व्याकुल थाय ॥ नि० || पेट व्यथा ते उपनी जी, ए सुणी वस्तग शाह ॥ १० ॥ नि० ॥ जन मूकी जोवरावतो जी, शूनी प्रसवे बालक ताम ॥ नि० ॥ दया आणी मंत्री एम कहे जी, घृत गोल यो बहु धान ॥ ११ ॥ नि० ॥ वली डेरा चंडुत्रा त्यां दीए जी, नावे वायरो शूनी ताम ॥ नि० ॥ सुवावम करे दिन दश लगे जी, संघ राखे देश बहु मान ॥ १२ ॥ नि० ॥ हवे मोदीखानुं जलुं दीपतुं जी, बांध्या चंडुवा चोसाल ॥ नि० ॥ जे जे वस्त जोइए ते वली जी, पूरे मोदी धनपाल ॥ १३ ॥ नि० ॥ गहुं धृत साकर जेलवी जी, करी मलीदो द्ये ति वार || नि० ॥ चोखा मग घृत खीचमी जी, शूनी अमृत करती आहार ॥ १४ ॥ नि० ॥ एणी परे श्वान ते संचरे जी, करंगी मोटो कीध ॥ नि० ॥ रुइ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३.) गादी तेहमां धरी जी, शूनी बच्चां तेहमां लीध ॥ १५ ॥ नि० ॥ एहवी दया मंत्री धरे जी, दीन दुर्बल करतो सार ॥ नि० ॥ जीवदया प्रतिपालतो जी, करतो परउपगार ॥ १६ ॥ नि० ॥ एणे अवसर वातज हुइ जी, ते सांजलो नर नार ॥ नि० ॥ ते नगरे वसे व्यवहारी जी, नामे धनपति सार ॥ १७ ॥ नि० ॥ सात पेढी नगरशेती जी, दाम तो नहीं पार ॥ नि० ॥ दान पुण्य ते नवि करे जी, खाय खरंचे नहीं गमार ॥ १८ ॥ नि० ॥ दक्षिणावर्त्त शंख तस घरे जी, ते पूरवे वंबित कोम ॥ नि० ॥ एक दिन शेव सुतो मालीये जी, यावी कहे सुर कर जो ॥ १९ ॥ नि० ॥ शेठ सुतो तुंशा जणी जी, एम कहे सुर शंखराय ॥ नि० ॥ सात पेढी तुम घर रह्यो जी, पूरव पुण्य पसाय ॥ २० ॥ नि० ॥ दृढ मूठी तें चादरी जी, धर्म न कीधो कोय ॥ नि० ॥ एम कही सुर जो रह्यो जी, जाउं वस्तपाल घर सोय ॥ २१ ॥ नि० ॥ धसमसतो शेव उठी जी, लागे सुरने पाय ॥ नि० ॥ कहे किम राख्या तुमे रहो जी, नाना कही सुर जाय ॥ २२ ॥ नि० ॥ चिंतातुर ते शेठ थ्यो जी, ए जीवन जीव कहेवाय ॥ नि० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (--०४ ) हा हा करी ते मुं पडे जी, में राखी न जाएयो घर मांय ॥ २३ ॥ नि० || दारिद्रीने घर रतन किस्युं जी, पापीनेशी आंख ॥ नि० ॥ वस्तुपाल घर ए शंख जलोजी, जिम पक्षीने सोदे पांख ॥ २४ ॥ नि० ॥ एम चिंती शंख कर धस्योजी, ए नेट करूं वस्तुपाल ॥ नि० ॥ धनपति शंख लेइ संचस्यो जी, संघपतिने नेटे रसाल ॥ २५ ॥ नि० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ घणे हे ते शंख दीए, मंत्री पूढे वृत्तंत ॥ स्वामी जाणी हुं तुम्ह दीजं, तुं दीसे दातार महंत ॥ १ ॥ एणे वचने मंत्री रंजी, अम्ह स्वामी करो उपगार ॥ या संघ तुम्हे नोतरो, पढे शंख दीर्ड उदार ॥ २ ॥ शरमे पड्यो ते वाणी, मंत्रीमुख ना नवि थाय ॥ संघवी मुखे त्यां हा जणी, शंख लेइ निज घर जाय ॥ ३ ॥ दाम खरचं किम चिंता करे, सुर यावी कहे सुणो शेठ || लक्ष्मी लाहो लीजीए, बहु दिन करता वेठ ॥ ४ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ सुरवचने संघ जी मानतो जी, खरचे बहुला दाम ॥ नि० ॥ अनेक प्रकार पकवान करी जी, सात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) लाख पोख्या स्वामी ताम ॥१॥ नि ॥ उधे पाय पखालतो जी, मन धरी हर्ष अपार ॥ नि ॥ वली चतुर्विध संघ पहिरावतो जी, आचरण वस्त्र उदार ॥२॥नि०॥पात्र सुपात्र स्वामी पोखीया जी,ते पुण्ये शंख थिर थाय॥नि०॥सात पेढी शंख बांधी जी, कहे शेग्ने शंख सुरराय ॥३॥ नि०॥ हवे शेठ जश् मंत्रीने विनवे जी, तुम्हे कीधो मुज उपगार ॥ नि०॥शंख जातो तुम्हे घर राखी जी, नले पाम्यो तुम्ह देदार ॥४॥ नि ॥ शेठ संतोषी मंत्री चाली जी, साथे लीधा ते श्वान ॥ नि०॥ गम गम एम उपकार करे जी, मंत्रीमन नहीं अनिमान ॥ ५॥ न० ॥ अनुक्रमे संघ हवे आवाज जी, अंकेवाली दीधा मेव्हाण ॥ नि ॥ दान अवारी तिहां दीए जी, जाणी निज आयु सुजाण ॥ ६॥ निम् ॥ निज गुरु तेगी वंदन करे जी, अणसण करे चौविहार ॥ नि ॥लाख चोराशी खामी जी, मान माया नहींअ लिगार॥७॥नि॥अनित्य नाव मंत्री धरे जी, मन समरे नवकार ॥ नि०॥ शेठेजो गाउ त्रण रह्यो जी, यात्रा हु सामी बार ॥ ७॥ निम् ॥ अंतकाले ध्यान आवतुं जी, मंदिरस्वामी सुखकार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) नि० ॥ शुभ ध्याने आयु बांधीयां जी, महाविदेह क्षेत्रे अवतार ॥ ए ॥ नि० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ संवत् बार बासठ कह्यो, वस्तुपाल जनमज जाए ॥ श्रीशेगुंजे जातरा, इसी वखत वखाण ॥ १ ॥ मंत्रीश्वर द्रव्यव्यय की, धर्म तो अधिकार ॥ तेह तणी संख्या कहुं, सुणो तेह उदार ॥ २ ॥ उगणत्रीश शत कोमी कहुं, त्रिहोत्तेर को कि एंशी लाख ॥ वीशसहस्स नवसें नेउ लह्या, त्रिहुं को कि पऊणा नाख ॥ ३ ॥ एवंकारी पुण्य पोते करी, पोहता महाविदेह मकार ॥ सीमंधर स्वामी चरणे नित्य नमे, कवि मेरुविजय सुखकार ॥ ४ ॥ संवत् बार अठाए, मंत्री श्वर वस्तपाल || दिवंगत अंकेवाली हुआ, हवे संघपति तेजपाल ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ मनमोहन || ए देशी ॥ चरण कारण करी संघ चाली ॥ म० ॥ पालीताणे ज‍ डेरा दीध || लाल मनमोहन ॥ सोवन फूले गिरि वधावीजं ॥ म० ॥ सफल अवतार त्यां कीध ॥ म० ॥ १ ॥ ला० ॥ ० ॥ विमलाचल वर राजी ॥ म० ॥ यदि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन नेट्या आनंद ॥ ला० ॥ म ॥ निर्मल नीर न्हा करी ॥म ॥ नावे पूजे झषन जिणंद ॥ ला॥२॥म॥ मंत्रीश्वर तेजपाल हवे॥म०॥दाने करी वरसे मेह ॥ ला० ॥ यात्रा करी घरे आवीया॥ म० ॥ कहे बांधव देश गयो बेह ॥ ला०॥३॥म॥ राजा प्रजा तिहां श्रावीया ॥ म ॥ तेजपाल मंत्रीपद दीध ॥ ला ॥ बार वरष धरमकरणी कीया॥ म॥ पजे अमर विमान ते लीध॥ला०॥४॥म॥ बे बंधव वगै सीधावीयाम॥अनोपम ललितादे तिम नार ॥ ला॥ मात पिता पहिलां गयांम॥ पुत्र एकेको ले निरधार ॥ ला ॥५॥म०॥वस्तपालनो सोहडपाल ॥ म॥ तेजपालनो पुत्र कीर्तिपाल ॥ ला ॥ जयतसी महेतो सोहमसी॥मालवणसी तेहनो विजयपाल ॥ला॥६॥म ॥जयतपाल महेतो ते कडं ॥ म०॥वयरपाल वीजपाल वखाण ॥ ला ॥ नर्मद महेतो ते कहुं ॥म॥ वस्तपाल तेजपाल पुत्र जाण ॥ ला० ॥ ७॥ मग ॥वीरधवल सुत जाणीए ॥ म ॥सारंगदेव कर्ण नूपाल ॥ ला० ॥ वीरधवलना ए पाटवी ॥ म ॥ कुलमंमन रसाल ॥ ला॥ ॥ मातेदना मंत्री में ए कह्या ॥ म० ॥ वस्तु. ७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (LUG) वस्तुपाल केरा नंद || ला० ॥ वस्तुपाल तेजपाल ए संतति ॥ ० ॥ कुलमंगन रवि चंद ॥ ला० ॥ ए ॥ म० ॥ जावी पदार्थ नवि टले ॥ म०॥ सरज्युं फले कपाल ॥ म० ॥ जिनमंदिर आबु नीपावीयुं ॥ म० ॥ सामली गहुंली अकाल ॥ ला० ॥ १० ॥ म० ॥ वास्तुक शास्त्र पंकित जण्या ॥ म० ॥ तेणे इस्यो कस्यो विचार || ला० ॥ अजरामर देहरुं कहुं ॥ म० ॥ नहीं पूंठे तेहनो परिवार ॥ सा० ॥ ११ ॥ म० ॥ हवे वस्तपाल मंत्री जइ उपन्यो | म० ॥ तेहनो कदेशुं विचार ॥ ला० ॥ वर्द्धमान सूरि गुरु तेहनो ॥ म० ॥ ते जाणे थिर संसार || बा० ॥ १२ ॥ म० ॥ वैराग विशेषे आदरयो ॥ ० ॥ चित्ते धर्मी दतो वस्तुपाल ॥ ला० ॥ हवे तपक्रिया बहुली करी ॥ म० ॥ वर्द्धमान ठेली रसाल ॥ बा० ॥ १३ ॥ म० ॥ बध - हम आंबिल करे ॥ म० ॥ एक दिन अनिग्रह लीध ॥ ला० ॥ श्रीशंखेश्वर जिन नेटीने ॥ म० ॥ पढे पारणे यांबिल कीध ॥ ला० ॥ १४ ॥ म० ॥ ईर्यासमिति गुरु चालता ॥ म० ॥ अग्नि उठी गुंफाल ॥ ला० ॥ सूर्यतपे तृषा घणी ॥ म० ॥ अग्रिह सहित करे काल ॥ ला० ॥ १५ ॥ म० ॥ ध्यान धरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (U) ते पासतुं॥म०॥पास अधिष्टायक थयो देव ॥ला॥ स्नेह धरे ते मंत्रीनो॥म॥नरत क्षेत्रे आलोके हेव ॥ला ॥ १६ ॥ म ॥ वली ज्ञान प्रयुंजे आपणुं ॥ म॥ व्यंतर न जाणे ग्राम ॥ ला ॥ आकुल व्याकुल ते थयो । म ॥ जश्पूर्बु सीमंधर साम ॥ ला० ॥राम०॥संघ तणी सान्निधे करी॥म॥व्यंतर पोहतो महाविदेह मांय॥ ला॥सीमंधर स्वामीने विनवेमाकहो वस्तपाल किणे गाय ॥ला॥१॥म॥ मधुरी वाणी जिनवर वदे ॥ म ॥ सांजल तुं व्यंतर देवलाया महाविदेहमा जाणीए ।मापुष्कलावती विजया देव ॥ला॥१॥म०॥ त्यांनो राजा ते हुई ॥ म०॥ कुरुचंड नामे नूपाल ॥ ला ॥ साधु समीपे संयम बेश ॥ म०॥ स्वर्गे पोहोंचशे जीव वस्तपालला॥२०॥म०॥महाविदेह देने वलीथावशे ॥ म० ॥ दात्रियकुल अवतार ॥ ला॥ लाख चोराशी पूरव आयखं ॥ म॥ ते मांहि बे लाख चारित्र सार ।। ला ॥१॥म०॥राज्य बांकी संयमी होशे ॥ मग ॥ पालशे पंचाचार ॥ ला ॥ बेहडे अणसण आदरी ॥ म ॥ एत्रीजे नव मोद मजार ॥ला॥२॥म॥ एहवी वात जिनवरेकही।मः॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) ते सांगली हरख्यो व्यंतर देव ॥ ला॥ विनय करी वली विनवे ॥ म ॥ अनोपम देवी जीव क्यां हेव ॥ ला ॥३॥म॥वलतुं वचन जिनवर वदे ॥म॥ सांनल ते अवदात ॥ ला॥आ महाविदेहमां जाणीए॥मासागर शेठ पुत्री जात ॥ला॥४ाम॥ रूप कला लावण्य घणी ॥ म० ॥अष्ट वर्षनी नान्ही बाल ॥ ला ॥ धर्म सुणी ते बालिका ॥म॥अम्ह पासे संयम ली रसाल ॥ ला० ॥२५॥म०॥पूरव कोडे संयम पाली ॥म ॥ पाले पंचाचार ॥ ला॥ केवलज्ञान पामी कर॥ म०॥ जाशे मुक्तिमकार ॥ला॥२६॥म०॥ पाये नमी व्यंतर विनवे ॥ म ॥ खामी ते मुजने वंदाव ॥ ला० ॥ जिनवचने ते व्यंतरो ॥ म॥ साधवी वांदी नरते सीधाव ॥ला॥ २७॥म॥ए वात जरत मांहि व्यंतर कहे॥ म० ॥ पुस्तक लिखी ते सोय॥ला॥ वस्तपालप्रबंधे ए कई ॥ म ॥ कुमारपालप्रबंधे जोय ॥ला ॥२॥म०॥ पंमितमुखे में सांजली॥ म॥रास रच्यो वस्तुपाल ॥ला ॥ नणो गुणो सहु सांजलो॥म॥ जिम पामो लही विशालला॥श्यामा सांजलतां सुख उपजे ॥ म०॥ नणतां पवित्र मुख होय ॥ ला०॥ दाता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) पशुं ते उपजे ॥ म० ॥ मेरुविजय वदे ए सोय ॥ ला० ॥ ३० ॥ म० ॥ अधिकुं जंतुं में जे कह्युं ॥ म० ॥ ते तो खमजो पंक्तिराय ॥ ला० ॥ मिठामि डुक्क ते दीजं ॥ ० ॥ कविजन अक्षर खाणजो वाय ॥ ला० ॥ ३१ ॥ म० ॥ अनेक कवीश्वर आगे हुआ ॥ म० ॥ ते आगल के मात्र ॥ ला० ॥ महारुं मन में रीऊव्युं ॥ म० ॥ निर्मल कीधुं गात्र ॥ ला० ॥ ३२ ॥ म० ॥ ॥ दोहा ॥ गुणवंतना गुण गावतां, निर्मल कीजे काय ॥ जिनवर वाणी एम वदे, गुणवंतना गुण लेवाय ॥ १ ॥ उत्तम पुरुष वल्ली जे कह्या, अवगुण ढांकी गुण जोय ॥ सुपम सरिखा नर ते वली, चालणी सरिखा के होय ॥ २ ॥ एम दृष्टांत अनेक बे, कहितां नावे पार हलुकर्मी जे जीवमा, ते करे परउपगार ॥ ३ ॥ बडे खंडे धर्मकरणी करी, राख्यां जगमां नाम ॥ प्राग वंश मंत्री हुआ, कीधां उत्तम काम ॥ ४ ॥ सुरगुरु यावी जो कहे, तो हि न पामे पार ॥ कहो कवि केता कहे, वस्तपाल गुण उदार ॥ ५ ॥ तप ग केरो राजी, श्रीविजयदान सूरिराय ॥ पंकित गोपजी गणि रंगवि - जय, कवि मेरुविजय गुण गाय ॥ ६ ॥ संवत् सत्तर एकवीश कहुं, चरित्र रच्युं रसाल ॥ ब खंग कह्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) रलियामा, पांत्रीश ढाल विशाल ॥ ७ ॥ परउपकारी महावीर कह्या, तास्यां बहु नर नार ॥ वीरपाट पट्टावली, अनुक्रमे कहुं उदार ॥ ८ ॥ || ढाल ॥ राग धन्याश्री ॥ धन्य धन्य शील शिरोमणि ॥ ए देशी ॥ वीरश्रेणी पट्टावली, सुधर्मा जंबू कुमारो रे ॥ प्रनवखामी सिद्यनव सूरि, पंचम जसोनद्र सुखकारो रे ॥ १ ॥ वीरपट्टोधर जाणीए, श्रीसुधर्म जंबूकुमारो रे ॥ वी० ॥ ए यांकणी ॥ संभूतिविजय जप्रबाहु वली, थूलन सातमो शणगारी रे ॥ श्रार्यमहागिरि सुहस्ति, पाट अष्टमे दो गुणधारी रे ॥ २ ॥ वी० ॥ तस पाटे सुस्थित सुप्रतिबुद्ध, दशमें इदिन्न सूरि कही ए रे || श्री दिन्न सूरि श्री सिह गिरि, तेरसमा वज्रखामी नही रे ॥ ३ ॥ वी० ॥ श्रीवज्रसेन श्रीचंद्र सूरि, सामंतन सोल वखाणो रे ॥ श्रीवृद्धदेव प्रयोतन सूरि, मानदेव मानतुंग सूरि जाणो रे ॥ ४ ॥ वी० ॥ श्री विजयदेव आगे हुआ, जयदेव देवानंद मने आणी रे || विक्रम सूरि नरसिंह सूरि, समुद्र सूरि वीश वखाणो रे ॥ ५ ॥ वी० ॥ मानदेव विबुधप्रज सूरि, जयानंद रविप्रन होय रे ॥ जसोदेव प्रद्युम्न सूरि कहुं, तेत्रीशमा मानदेव जोय रे ॥ ६ ॥ वी० ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) विमलचं उद्योतन लहुँ,श्रीसर्वदेव सूरि बत्रीशो रे॥ तस पाटे श्रीदेव सूरि, श्रीसर्वदेव सूरि अमत्रीशो रे ॥७॥वी॥श्रीयशोज श्रीनेमिचंद्र सूरि, मुनिचंद अजितदेव सारो रे॥श्रीविजयसंघ सरि हवा, सोमनऊ मणिरत्न दो गणधारो रे॥॥वी०॥ जगतचंड सूरिजग जाणीए,श्रीदेवें सूरि उदारो रे॥ विद्यानंद धर्मघोष दो कहुँ, सोमप्रन सूरि सोमतिलक जयकारो रे ॥ ए ॥ वी० ॥ देवसुंदर सोमसुंदर सूरि, मुनिसुंदर सुरिवर सोहे रे ॥ रत्नशेखर सूरि बटुं, लक्ष्मीसागर मन मोहे रे ॥ १० ॥ वी० ॥ सुमति साधु हेम विमल सूरि, आनंदविमल सूरि राजेरे॥ श्री विजयदान सूरीश्वरु, तप गडपति गुरु बाजे रे॥१९॥ वी० ॥ तस पाटे दिनकर दीपतो,श्रीहीरविजय सूरि जगगुरु जाणो रे॥शाह अकब्बर प्रतिब्रजवी, कीधा जगत्रय आशाणो रे ॥ १२ ॥ वी० ॥ सरोवरजाल बोमावीयां, बगेमाव्यां बानज लाखो रे ॥ डोमाव्यो जगजीउँ, शाह अकब्बर जगगुरु नाख्यो रे॥१३॥वी०॥ सा कुमरा कुले जाणीए, नाथी बार कुख मल्हारो रे॥ श्रीविजयदान सूरि शिष्य कडं, हीर विजय सूरि जगत्रय आधारो रे॥१॥ वी॥तस पट मंदिर सुंदरु, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) श्री विजयसेन सूरि सवाइ रे ॥ जांगीर पातशा प्रतिबूजव्यो, जो हीर विजय कहे वाये रे ॥ १५ ॥ वी० ॥ तस पट्ट तिलक सम दीपतो, श्री विजय तिलक सूरि ग धारो रे ॥ विजयसेन सूरि शिष्य कह्या, तप गछनो शणगारो रे ॥ १६ ॥ वी० ॥ हीर जेसंग वचन राखवा, उदयो जिनव जाणो रे ॥ कुमति कदाग्रह टालतो, श्रीविजय तिलक सूरि सुजाणो रे ॥ १७ ॥ वी० ॥ तस पट्ट सुंदर शोजता, श्री विजयत्र्यानंद सूरि, रायो रे ॥ प्राग वंश प्रभु प्रगटी, जेहने नामे नव निध थायो रे ॥ १८ ॥ वी० ॥ कुमति गज मद मर्दवा, यो केशरी सुजाणो रे ॥ हीरसंतति सोहाकरु, तप गछनो ए राणो रे ॥ १५ ॥ वी० ॥ वीर हीर वचन मन धरी, बोले अमृत वाणी रे ॥ विबुध वाचक सहु पाये नमे, शील समता गुरु वखाणी रे ॥ २० ॥ वी० ॥ गिरुआ गुरु गुण अति घणा, कवि एक जीज केता कहेवाय रे ॥ तस पाटे चिरं जीवो घणुं, श्रीविजयराज सूरिराय रे ॥ २१ ॥ वी० ॥ श्री विजयानंद पटोरु, मुख सोहे पूनम चंदो रे ॥ श्रीश्रीमाली वंश शोजतो, शाह मा केरो नंदो रे ॥ २२ ॥ वी० ॥ पाट पट्टावली में कही, अनुक्रमे ए गुणधारी रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५) हवे तप ग केरो राजी, श्री विजयराज सूरि शण गारी रे ॥ २३ ॥ वी० ॥ सकल पंकित शिरोमणि, नाम जपो सहु गुणमालो रे ॥ नामे नव निधि पामीए, पंकित गोपजी गणि रसालो रे ॥ २४ ॥ वी० ॥ तास शिष्य शोजा घणी, साधु तो शणगारो रे ॥ वैरागी गुण आगलो गणि, रंगविजय नामे जयकारो रे ॥ २५ ॥ वी० ॥ तस पदपंकज मधुकरु, सेवानो सुखवासी रे ॥ रास रच्यो रलियामणो, पंदित मेरुविजय उसी रे ॥ २६ ॥ वी० ॥ संवत् सत्तर एकवीश कहुं, चैत्र शुक्ल बीज सारो रे ॥ कानमी वीजापुर सुख लही, रास रच्यो बुधवारो रे ॥ २७ ॥ वी० ॥ श्रावक जन सह महे में, चरित्र रच्यो रसालो रे ॥ लघु प्रबंध वस्तपाल तणो, जोइ रास रच्यो सुविशालो रे ॥ २८ ॥ वी० ॥ जणे गुणे जे सांजले, तस घर मंगलमाला रे ॥ श्रीशांति जिन पसाउले, मेरु पाम्या ली विशाला रे ॥ २५ ॥ वी० ॥ वस्तपाल तेजपाल गुण वर्णव्या, ते तो देव गुरुनो आधारो रे ॥ रंगे मेरुविजय प्रभु विनवे, जिन नामे जयजयकारो रे ॥ ३० ॥ वी० ॥ ॥ इति श्रीवस्तुपालतेजपालरासः संपूर्णः ॥ ॥ श्रीरस्तु ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) ॥ अथ ॥ ॥ पंचानुष्ठान चोवीशी प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सिद्ध तणी सुख याशिका, अनंत अनंती होय ॥ ते स्तवना हुं केम लहुं, अल्प बुद्धि बे जोय ॥ १ ॥ ब्रह्मसुता तुजने स्तनुं, करो मुज बुद्धि प्रकाश ॥ जेम अनुष्ठान पांच कहुं, पूरो मननी यश ॥ २ ॥ विष गरलादिक अन्योन्या, तद्धित अमृत जेह ॥ त्रण तजे दोय आदरे, सिद्धगति पोहोंचे तेह ॥ ३ ॥ विष गरा अनुष्ठान जे, इह परलोककी आश ॥ अल्प सुखने कारणे, चिहुं गति पूरे वास ॥ ४ ॥ त्रीजुं अन्योन्या हवे कहुं, शून्य करे अनुष्ठान ॥ कोइ जीव जडकपणे, लहे फल पुण्य निदान ॥ ५ ॥ तद्धितने शुभ कारणे, जिन श्राज्ञा क्रिया ध्यान || गुरुसेवाए ते लहे, बेदे कर्म निदान ॥ ६ ॥ सिद्ध द्रव्य रूपी तणुं, रूपातीत धर्मध्यान ॥ ते पण परगुण आशिका, जोय अनंत निदान ॥ ७ ॥ नेद रूप ध्यातां थकां स्वद्रव्य निरखे जोय ॥ शुक्ल ध्याननुं तो रहे, तद्धिते एम होय ॥ ८ ॥ संतपदादि प्ररूपणा, लहे द्रव्य गुण पव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) रूप ॥ नय निक्षेप प्रमाण करी, नावे आत्मस्वरूप ॥ ए ॥ निज पर्यायमें चित्त रहे, न लहे पर्यायरूप ॥ पुण्यानुबंधी करे क्रिया, श्ह तछित स्वरूप ॥ १० ॥ हवे अमृत अनुष्ठानको, आवे आत्म स्खन्नाव ॥ हुँ करता ते नविग्रहे, नावे उदासीन नाव ॥११॥ उदयागत सवि खेपवे, रातो न तातो होय ॥ योग शुजाशुन उपजे, खेद राग नहीं कोय ॥ १२ ॥ जेहने अंत क्रिया होये, ते आत्मामृत जाण ॥ समान अशुन दोय तस गति, टली निश्चय लहे निर्वाण ॥ १३ ॥ अमृत खनाव सुख आशिका, सप्त धात कीयो नेद ॥ श्वेत मांस लोही हुआं, श्ह जिनपदको खेल ॥ १४ ॥ अनंतानुबंधी पूरे रह्यो, खेले पुजल खेल ॥ पूर्व नावना बंधथी, पण न मले चित्तको मेल ॥१५॥आह्लाद ने सुख आशिका, वांबा पड़ाव खेद ॥ अशुद्ध अव्य गुण पळवा, तेणे अनादि तुज टेव ॥ १६ ॥ जब संजलणमां जिके, कर्म रह्यां जव जाणी ॥ तव ते जिनादि संजम लहे, अमृतयोग अनुष्ठान ॥ १७ ॥ खाव्य गुण पजावा, जेह खनाव निज राख ॥ परजव्य अशुद्ध पजावा, तेह विनाव तुज नाख ॥ २७ ॥ नावअनु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०८ ) कंपा याणीने, चास्तिक आत्म खनाव || जे तनमें ते यइ रह्यो, खायक तो निदान ॥ १५ ॥ शुद्ध द्रव्य गुण पकवा, तेता मुज कने जोय ॥ बाह्य परद्रव्य पजवा, ते साध्युं शुंथी होय ॥ २० ॥ अमृतयोग तमा, हुआ दोय एकीभूत ॥ घोर उपसर्ग परीसहा, सहतां नहीं कोई दुःख ॥ २१ ॥ एम विधि कर्म खपावीने, पामे केवलज्ञान ॥ जव्य जीव प्रतिबोधीने, पोहोंचे शिवपुराण ॥ २२ ॥ पंच अनुष्ठान सुख शिका, रची ते उत्तम काम ॥ जणे गणे जे सांजले, बहे ते मंगल गम ॥ २३ ॥ इति श्रीपंचानुष्ठानचो विशी संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by Ramcliandra Yesu Shedge, at the Nirnaya sagar Press, 23, Kolbhat Dane, Bombay. Published by Heerjee Chelle.bhai Padainsi for Bhimsi Menneck, 238-210, Mandvi, Sackgalli, Bombay. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only