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( ४१ ) ॥ दोहा ॥
॥ रायवचन मंत्री शिर धरी, बे बंधव सरिखी जोम ॥ कहे त्रंबावती जइ वश करूं, वैरी शिर आएं खोम ॥ १ ॥ सलह बगतर सज करे, सज करे सबल हथियार ॥ गज रथ घोमा पाखस्या, पायदलनो नहीं पार ॥ २ ॥ हवे सबल सेना लेइ संचरे, बे बंधव सुखकार ॥ माहणदेवी समरी करी, हृदय समरे नवकार ॥ ३॥
॥ ढाल ॥
॥ जी हो सरस्वती स्वामिनी पाये नमी लाला, प्रणमी निज गुरु पाय ॥ ए देशी ॥ जीहो धवलकपुरथी चालीd लाला, मंत्री मोटे मंगा ॥ जी हो जय जय शब्द जन बोलता लाला, श्राव्या त्रंबावती सुजाण ॥ १ ॥ मंत्री श्वर सबल तुं बलवंत, जइ रोके वैरी जंत ॥ मं० ॥ एकणी ॥ जीहो एक नर यावी त्यां विनवे ॥ ला० ॥ सांजल तुं वस्तुपाल || जीहो जयसेन महेतो वे आकरो || बा० ॥ तुं बे नान्हो बाल ॥ २ ॥ मं० ॥ जी हो बावतीनो राजी || ला० ॥ जीमकर्ण नामे राय ॥ जीदो जयसेन प्रधानज तेहनो ॥ ला० ॥ निज स्वामीद्रोहो थाय ॥ ३ ॥ मं० ॥ जीदो
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