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( ४२ )
राज काज जयसेन करे || ला० ॥ केहनी न माने आए || जीहो निज स्वामी नवि मानतो ॥ ला० ॥ तुम्हां वे काण ॥ ४ ॥ मं० ॥ जी० ॥ वस्तग पंथी ने बल दाखवे ॥ ला० ॥ विधी कमा त्यां सात ॥ जी० ॥ देवी समरी वाण नाखतो ॥ ला० ॥ विधे ताल वली आठ ॥ ५ ॥ मं० ॥ जी० ॥ निशाणे घा देश करी ॥ ला० ॥ मंत्री चढे वस्तपाल || जी० ॥ जयसेन साहमो नीसरे || ला० ॥ जला वढे भूपाल ॥ ६ ॥ मं० ॥ जी० ॥ रणथंजो तिहां रोपता ॥ ला० ॥ वढे त्यां सुटज को मि ॥ जी० ॥ एक एकने नविनमे ॥ ला० ॥ पडे त्यां नरनी कोमी ॥ ७ ॥ मं० ॥ जीहो युद्ध करी दिन त्रण लगे | ला० ॥ फंदे हराव्यो जयसेन || जी० ॥ चिहुं दिशि चार फोजे करी ॥ ला० ॥ घेरी लीधो जयसेन ॥ ८ ॥ मं० ॥ जीहो त्रागे जयसेन कालीन ॥ ला० ॥ हुई ते जयजयकार ॥ जो बावती तखते बेसतो ॥ ला० ॥ मंत्रीमन हर्ष अपार ॥ ए ॥ मं० ॥ जीहो जयसेन घर जोवरावीयां ॥ ला० ॥ रुद्धि तो नावे पार || जीहो खचर एकसो सोने जया ॥ ला० ॥ मोती मए दश चार ॥ १० ॥ मं० ॥ जीहो जीमकर्ण राय घर एम करे ॥
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