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________________ (thin) पार शोजतां ए, पांच सुखासन सार तो ॥ शे० ॥ चारसें चोराशी गायन जलाए, अग्यारसें गंधव धार तो ॥ शे० ॥ ३ ॥ बे सहस्स करहला शोजता ए, तेहनी कोटे घूघरमाल तो ॥ शे० ॥ चार सहस्स तुरंगम पाखरया ए, पायदलनो नहीं पार तो ॥ शे० ॥ ४ ॥ दो हजार दांतरथ जाणीए ए, तेथे जोतस्या अश्व रसाल तो ॥ शे० ॥ रत्न जमित पलाण कहीए ए, पाये कांकरियां घूघरमाल तो ॥ शे० ॥ ५ ॥ सो देरासर सोना तणां ए, तेत्रीश दंत देवालय तो ॥ शे० ॥ अग्यारसें ते वली सागनां ए, वाटे पूजा रचे रसाल तो ॥ शे० ॥ ६ ॥ ग्यारसें दिगंबर ते कहीए ए, श्वेतांबर कहुं दो सहस्स तो ॥ शे० ॥ सातसें गणधर दीपता ए, वाटे देता धर्म उपदेश तो ॥ शे० ॥ ७ ॥ दीवीधरा साथै सहस्स जणुं ए, दो हजार कंदोई जोय तो ॥ माली फूल लेइ संचरे ए, त्र हजार तिहां होय तो ॥ शे० ॥८॥ चारसें चोराशी तलाव चालतां ए, चर्म तणां अगाध तो ॥ शे० ॥ डेरा तंबू ते दीपता ए, गगनशुं करता वाद तो ॥ शे० ॥ ए ॥ बिरुदावली बे सहस्स बोलता ए, दलवादी जाट त्रण सहस्स तो ॥ शे० ॥ अग्यारसें पूखरणा ते जणुं ए, चार सदस्स फरास तो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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