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________________ ( 3 ) श्रावी रह्या, महतो चंद्रपराक्रम वखा ॥ एं ॥ चंद्रप्रसाद अंगज करूं, सोमचंद आसपाल ॥ कुमारदेवी कुखे उपन्या, वस्तुग ने तेजपाल ॥ १० ॥ वणिज करे त्यां वाणी, सोमपुत्र आसराज ॥ प्राग वंशमां मूलगुं, त्रण पेढीनुं घरराज ॥ ११ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ ॥ सराजनी करणी जोय, कर्मे दारिद्र्य ते पण होय || पेटराइ त्यां नवि थाय, नगर बांकी एक गामे जाय ॥ १ ॥ पंथ चाल्यो जाये जिसे, चासे तोरण बांध्यं तिसे ॥ वाम दाहिए शकुन ते थयां, अनु*मे ए मालास गया ॥ २ ॥ ग्राम मध्य कीधो प्रवेश, शकुन जिमणां हुआ विशेष ॥ प्रथम ज‍ प्रणमे जिनराय, देव गुरुना गुण त्यां गाय ॥ ३ ॥ चोखावटी पाडे घर लीयो, साथे कर्म ते लेइ आवीयो ॥ दोहिला दहामा ते निर्गमे, लंपटपणुं मन साथे रमे ॥ ४ ॥ पाटण बांकी मालासण जाय, सघलां कर्म ते साथे थाय ॥ आसराज तिहां सुखे रहे, सरुवणे धर्मज लहे ॥ ५ ॥ हरिज सूरि विचरे सदा, मालास आव्या वे तदा ॥ गुरु ज्ञानी दे उपदेश, आसराज करे धर्म विशेष ॥ ६ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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