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________________ (G) पोसा पमिकमणां अंगे करे, नव तत्त्व ते जाणे शिरे ॥ गुरुयाज्ञा नहीं लोपे कदा, विनयवंत चतुराश् सदा ॥ ७॥ एक दिवस राति पोसो करे, आलस निमाने परिहरे ॥ अगोचर ज बेठो यदा, हरिजन सूरि नवि दीगे तदा ॥ ॥ आवश्यक करी श्राफ घर गया, हरिजन सूरि त्यां सुखे रह्या ॥ पोसह नणी सहु निना अनुसरे, एक चेलो गुरु वातज करे॥ए ॥ सुण व शासनदेवी एकदा, में समरी वात पूर्वी तदा ॥ शासनयोध कुण होशे जोय, कहे कुमारदेवीना नंदन होय ॥ १०॥ शिष्य पूजे गुरु कहो ते वात, तुम्हे ज्ञानी जाणो अवदात ॥ रजनी वात न कहीए सुणो, एथी अनरथ थाये घणो ॥११॥ ते वात आरंजी कहो गुरु आज, ए आफरो टालो महाराज ॥ वारंवार शिष्य विनति करे, लाल देखी गुरु वयण उच्चरे ॥ १५ ॥शा बुनी पुत्री कडं, लाबलदे माता तेहनी लडं ॥ रूप यौवन चतुराश् सरे, माय बाप परणावी खरे ॥ १३॥ चतुरपणे ते बोले चंग, चोसठ कला सुंदरी अंग ॥ चंपावरणी दीसे देह, पीन पयोधर कसी बांध्या जेह ॥ १४ ॥ पदमणी पहिरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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