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रोवे ॥ २० ॥ तोड़े न मल्यो ते जरतार, तब जांखी थइ ते नार || एवं नगर अनोपम लहीए, नरसमुद्र पाटण एकही ॥ २१ ॥ हवे राजा नगर जोवरावे, तोड़े तेहनो पीयु नहीं आवे || नारी सात दिवस त्यां जोती, पढी प्राण त्याग करे रोती ॥ २२ ॥ स्वामी विरहे सती थाउं, पीयु राणो नाव्यो किहां जानं ॥ राय आज्ञा दीए ते वार, सती यावा जाये नार ॥ २३ ॥ पीयु पीयु करती मारग जावे, समसा काष्ट रचावे || राजा दीए द्रव्य बहु मान, पतिव्रता पीयु समरे ताम ॥ २४ ॥ जयजय शब्द करती दानज दीए, निज जर्त्तार धरती हिये ॥ सतीमुख जोवा सदु धावे, राजादिक लोक बहु यावे ॥ २५ ॥ नगरलोक बहु तिहां यावे, सतीना गुण सहु कोइ गावे ॥ नारी वरसती रूपानाणे, निज मुखथी पीयुने वखा ॥ २६ ॥ तिहां मलीया लोकना थोक, धर्मी साधन जोइ विवेक ॥ सती चोर वध जोतां पाप, इह लोके लागे संताप ॥ २७ ॥ राणो बापको नारी जोतो, आव्यो नगर बाहिर ते फरतो ॥ तिहां नर नारी बिहु निरखे, निज नारी देखी त्यां दरखे ॥ २७ ॥ उठी नारी पीयु पाये लागी, राजानी
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