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________________ (६१) राय ॥ जोगी जमरा रणकणे रे, कामी जन मन थाय ॥ १॥ वसंत नले आवीयो हो, खेले सहु नर नारी ॥ वसं० ॥ ए आंकणी ॥ अंब लिंब दामिम फट्यां रे, फलीया ते सहकार ॥ केसु कदंबक केवमो रे, तिहां कोयल करे टहुकार ॥॥वसंग॥वृदा वृंद रायखेलतो रे,करतो रंग विरंग॥केसर गुलाल तिहां गंटतो रे, गंटे नीर सुचंग ॥३॥ वसं॥ताल तमाल तिहां जा जूश रे, मोगर लाल गुलाल ॥ चंपक केतक मालती रे, दमणो मरुले रसाल ॥४॥ वसं० ॥ बेल बबीला खेलता रे, खेले सरखी जोमी ॥ ताल वृंदाल चंग गाजतो रे, थेश थे करे नरकोमि ॥५॥वसं॥नरीय खंडो खली कीलता रे, चंदन करी घनघोल ॥ वसंत खेले त्यां राजी रे, वली आवे नगरनी पोल ॥६॥ वसं० ॥ चतुर सेनाए परिवस्यो रे, कीधो नगर प्रवेश ॥ सूर्यमन तिहां आवीयो रे, पोसालने निवेश ॥ ७॥ वसं० ॥ एणे समे सहु साधजी रे, किरिया करे मनरंग ॥ काजो शोधी ते परग्वे रे, गोखे चढी चेलो चंग॥७॥ वसं० ॥ वायरे रज ते उमती रे, जश् लागी सूरजमवा अंग ॥ चंचलपणे राय जोवतो रे, साधु देखी उपन्यो नंग॥ए॥ वसं० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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