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सयांशु परिवस्था, समता रस नंमार ॥ ५॥ धर्मोपदेश साधु दीए, रीज्या राय प्रधान ॥वीरधवल राजा वली, दीए गुरुने बहु मान ॥६॥बे बंधव वस्तुपाल वली, सूरि तणा ए श्रावक सार ॥ समकित सूधुं त्यां लडं, धवलकपुर मकार ॥ ७॥
॥चोपाई॥ ॥ गुरु उपदेश दीए मनरंग, सना सहु सांजलो मनचंग ॥ मंत्री वस्तुपाल तेजपाल, गुरुचरणे आवे नूपाल ॥१॥ राजा दीए गुरुजीने मान, गुरु गिरुया ए मेरु समान ॥ एणे समे एक हुश वात, एकमना थक्ष सुणो अवदात ॥२॥ वीरधवलनो मामो कडं, सूर्यमव एवं नामज लहुँ॥ रजपूत रुमो रागेम होय, नाणेज पासे ते रहीतो सोय ॥३॥ जीजीकार सङ तेहने करे, मामो मनमा हरखज धरे ॥ रमे जीमे ने कीमा करे, चतुर सेना ले वनमा फरे ॥४॥ एम करतां आव्यो फागुण मास, वसंत खेले मन जबास ॥ बोले फाग गीत गाइरसाल,नवनवां गान करे नूपाल ॥५॥
॥ ढाल वसंतनी ॥ ॥ वसंत मास नले श्रावीउ रे, फली फूली वन
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