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________________ ( ६२ ) सूर्यमल्ल वचन त्यां वदे रे, जइ शीख दी ए मुंम ॥ पायक पोसाले यावीने रे, चेला घाबख जोडे मूंग ॥ १० ॥ वसं० ॥ चंचल चेलो रोवतो रे, नान्हो ते बे बाल ॥ अन्याय कस्यो पायक पापीए रे, ज‍ विनव्यो निज नूपाल ॥ ११ ॥ वसं० ॥ सूर्यमल मनमां बीतो रे, एनो श्रावक बे वस्तपाल ॥ साधु संताप्या जाणशे जो, तो आणशे मोरो काल ॥ १२ ॥ वसं० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मनमठो मामो थयो, रहीयो निज आवास ॥ एणे समे चेलोज‍, मंत्री आगल परकास ॥ १ ॥ मंत्री बेठो ते मालीये, पेखी साधु सुजाण ॥ ततण वी पाये नमे, गुरुजी कहो केसी वाण ॥ २ ॥ ॥ चोपाई ॥ ॥ चेलो बुद्धे बावन वीर, मंत्री आगल उजो धीर ॥ वचन बोले त्यां टंकशाल, एकमनो थइ सुणे नूपाल ॥ १ ॥ स्वामी तुं अधिकारी होय, ताहरी आए न लोपे कोय ॥ तुं जगमां मोटो प्रधान, बहु भूपतिनुं मूकाव्यं मान ॥ २ ॥ जैन धर्म तुं यादर करे, त्रण तत्त्व तुमे जाणो सरे ॥ देव गुरु धर्म तुं साचो वखाण, एहवा श्रावक तुम्हे चतुर सुजाण ॥ ३॥ Jain Educationa International " For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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