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________________ नाम कहीवारधवल मोमवान गयो जैन धर्म को आशातना करे, तास शीख दी। तुम्हे सरे ॥ तब मंत्री वदे वचन रसाल, कहो कुणे अवज्ञा करी गुणमाल ॥४॥ तब बोले साधु निग्रंथ, ते वृत्तांत मंत्री सुणो गुणवंत ॥ वीरधवल राय मामो जेह, सूर्यमल नामे कहीए तेह ॥५॥ वन रमवाने गयो उबगह, फरी आव्यो ते नगर मांह ॥ एणे अवसर पमिलेहण करी साध, काजो उझरे ते निराबाध ॥ ६॥ तब आला आगल आव्यो राय, अम्हे नवि जाण्युं सूरजमला जाय ॥ तेणे हुकम की तिण वार, सेवकने कहे साध तुं मार ॥ ७॥ तिण गुरु अवज्ञा कीधी लहुँ, मुजने चाबख माख्या बहु ॥ जिनशासन ते हेली करी, निज थानक गया हर्षज धरी ॥७॥ तुम्ह सरिखा अम्ह श्रावक होय, केम अघटतुं करे ते सोय ॥ तब मंत्री मन क्रोध अपार, हुं सूर्यमझने करूं खुआर ॥ ए ॥ ए साधु मोटा गुणवंत, षट्काय शरणे राखे जंत॥ पांच समिति त्रण गुप्ति धार, पंच महाव्रत पाले सार ॥ १० ॥ बावीश परिषद जीपे सूर, क्रोध मान माया लोन दूर॥ त्रीश गुणे सोहे गुरुराय, वैरागे सूर प्रणमे पाय ॥ ११॥ वीरवचन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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