________________
(su)
गुरु कड़े जीर्ण प्रासाद उरो, नवां जिनमंदिर दर करो ॥ जिनबिंब जरावो मनरंग, श्रीशेगुंजे जात्रा करो चंग ॥ ए ॥ प्रधान धर्मनो अर्थी थयो, गुरुवचन ते श्रवणे लह्यो । विनय करी ते प्रणमे पाय, स्वामी नीच कर्म कहो किम बंधाय ॥ १० ॥ तीव्र क्रोध परनिंदा करे, मान माया लोन अंगे धरे ॥ परपीमा जीव वधज करे, देव गुरु माता मुख उच्चरे ॥ ११ ॥ नीच कुलनी निंदा करे, उंच कुले हुं उपन्यो शिरे ॥ एम कही मन हरखे जेह, हीन कुल नर पामे तेह ॥ १२ ॥ अवसर नही पूबे वस्तुपाल, पूरव जव अम कहो रसाल ॥ माणिक -
सूरि एमज कहे, सूधी वात तो केवली लहे ॥ १३ ॥ मतिज्ञान श्रुतज्ञाने कहुं, पूरव पुण्य तुम यस्यां बहु ॥ तेनो कहेशुं टबो विचार, बीजो सर्व केवलीने पार ॥ १४ ॥ कहे सीमंधर स्वामीने पूबानं वात, पीछे कहेशुं तुम अवदात ॥ पद्मावती समरी गुरुराय, ततक्षिण यावी देवी माय ॥ १५ ॥ कहे तहे दो सीमंधर देव, माहरी वंदना कहेजो देव ॥ पूरव जव वस्तुपालनो सही, स्वामीने पूी वो वही ॥ १६ ॥ संघ सान्निध ले
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org