________________
(६७) वेष, उदयन साथे राय चाल्यो बेक ॥ ॥ जगवां वस्त्र ते पहीरी राय, संध्या समे प्रधानघर जाय॥ मंत्री घर बे अनोपम नारी, लली बेसणां मांडे बे चार ॥ ए ॥ नारी देखी राय असंजय थयो, मंदिर पेखी नयनांतज जयो ॥ जीमतां प्रीसे घी गोणीया धार, खल खल नामे सुलदाणी नार ॥ १० ॥ खल खल नामे नली कदेवाय, तेहने माने गुरुजी राय ॥ उतुं घी प्रीसे नहीं जेह, नरणां नाम न लीजे तेह ॥ ११ ॥ बालकने घी वालुं सही, सुवावमी घी खावे वही ॥ घीनो दीवो मंगलिक कह्यो, घीथी जमाइ रीसावतो रह्यो ॥ १२ ॥ घृत चाले नीकी ते वही, राजा नजरे देखे सही ॥ उदयन गंधो वयण उच्चरे, अबला एवडो मान कां करे ॥ १३ ॥ नारी वचन बोले तेणे गय, अम शिर वीरधवल ने राय ॥ अम स्वामी पूर्वे पुण्यज कीध, वीरधवल पासे पामी रिक ॥ १४ ॥ नारीवचने राजा खुशी थयो, पडे अवामो जोवा गयो । दीगे अवाम ते घृते नस्यो, पूजे रखवालने कहेजे खरो ॥ १५ ॥ ए घृत गुंजूंजाये दीए, ना स्वामी एहवी वात नवि कहीए ॥ एह प्रधान दीसे सुचंग,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org