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(५७) ग्वं, तब पेखु कलश पातालो जी ॥४॥दा ॥ रोषे जस्यो राजा एम कहे, महेता अयुगतुं न नाखोजी ॥ दाम अम्हारा वावरी, तुम्हे नाम पोतार्नु राखो जी ॥५॥ दा० ॥ विनय करें। मंत्री विनवे, स्वामी जोर ली निधानो जी॥राजसना पोले पेसतां, देखाडं त्यां बहु दामोजी॥६॥दा०॥ उदयन चुगली वली करे, कलश सांत्या पोते रायो जी ॥ महिमा वधारे श्रापणो, धन देखाडे सना मायो जी॥७॥ दा०॥ वस्तपाल साहमुं राजानालतो, शिर नमावे मंत्री तामो जी ॥ सिंहासन हेउल वली, मंत्री देखे ते निधानो जी॥॥दा॥ वस्तपाल रायने विनवे, खामी विनतमी अवधारोजी॥ सिंहासन तले जोशए,देखुंसोवन कलश सुखकारोजी ॥ ए ॥ दाण ॥ ततदण राय जोवरावतो, जंम जोश गमे दोय जी॥सना मध्य सिंहासने, निधान नीसह्यु त्यां सोय जी ॥ १० ॥ दा॥ चुगल कहे ए नवि लढुं, पोते सांत्युं काढे सहु कोय जी ॥ जंगल पाषाण जो पेखीए तो, साचो मंत्री सोय जी ॥११॥ दा ॥ बावन गज शिला वन पमी, मंत्री रायने तेमी त्यां जायो जी ॥ पाषाणमां अव्य प्रगटीयुं,
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