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(५१) चाल्या कटक विकट ते कहीरी, अंगटोप सलह सहु पहीरी॥५॥ बूटा नट बोटा बोगाला, कमब्या कुंडाला मूंगला ॥ जगजगतां फाल्यां ते नालां, देता दोट फलफलता पाला ॥६॥ खेमा खमग गदा फरसीधर, चक्र चाप ने तोमर मुगर ॥ खपुया
भी कटारी मूशल, धींगा मांगवजाडे चंचल ॥७॥ होका नाल हवाइ हाथे, बहु बंधुक चलावे साथे॥ उत्र धरावीराणो सुविलासे, उज्ज्वल चामर ढले बेह पासे ॥७॥ ढम ढम ढम ढम ढोल ध्रसूके, सांजलतां कायर त्रसूके ॥ श्म करतां वोली ते रजनी, उग्यो दिनकर मुख उज्ज्वल दिसनी॥ए॥ तब रणवाजित्र वजामी जलीयां, रणअंगण बेहु दल मिलीयां ॥ मांड्यु युद्ध मंत्री नूप चढीया, धीर वीर आगलथी वढीया ॥ १० ॥ बूटां तीर नाखे रण साथे, काढे कटारी धूसे हाथे ॥ घोडे धनुष चढावी पाला, कोश कोइने नवि दीए टाला ॥ ११ ॥ जगमगतां नालां ते जोके, कर फराट लोही मुख मूके ॥ बूटे नाल हवा होका, बंधुके मारे बहु लोका ॥ १२ ॥ मोडे टोप सलह सहु फोडे, नाचे धम वाजित्रज तोडे मुजर मारी करे चकचूरी, मदगहिला गजसंकल ॥
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